नाथ पंथ, सम्प्रदाय की विशेषता, परिचय और इतिहास Naeem Ahmad, November 17, 2023 हमारे आलोच्यकाल में राजस्थान के सिद्ध जसनाथ जी को छोड़कर अन्य किसी संत कवि पर नाथ पंथ का प्रत्यक्ष प्रभाव परिक्षित नही होता, किन्तु मध्यकाल के समस्त सन्तों की योग साधना पर नाथ पंथ का पूर्ण प्रभाव है। इस तथ्य को सम्भवत: कोई अस्वीकार नहीं कर सकता। राजस्थान एवं कच्छ में नाथ योगियों के कई मठ थे, जिनके अनुयायी अपनी साधना एवं चमत्कारों से सबको प्रभावित करते रहते थे। जूनागढ़ के निकट गिरनार में आज भी नाथ पंथी साधुओं का मेला प्रति वर्ष लगता है। उससे यह प्रतीत होता है कि वहां कभी नाथ पंथ का विशेष प्रचार रहा होगा।राजस्थान में जोधपुर तथा गुजरात में कच्छ विभाग नाथ योगियों के कभी प्रसिद्ध केन्द्र थे। नाथ पंथ का परिचय विशेषता और इतिहास नाथ सम्प्रदाय के आदि गुरु गोरखनाथ माने जाते हैं, इनके जन्म संवत् का कोई निश्चित उल्लेख नहीं, मिलता परन्तु अधिकांश विद्वान उनका विक्रम की 11 वीं शताब्दी में होना बतलाते हैं। इसी प्रकार जन्म स्थान के सम्बन्ध में भी केवल अनुमान ही लगाया गया है। श्री परशुराम चतुर्वेदी ने इन्हे पश्चिमी भारत अथवा पंजाब के किसी भाग का होना स्वीकार किया है। नाथ सम्प्रदाय में गुरु गोरखनाथ के ब्रह्म तथा जगत सम्बन्धी विचार हमारे वेदान्ती एवं अद्वेतवादी सिद्धान्त के अनुसार ही है। अन्तर केवल योग साधना सम्बन्धी विचारों, में एवं साधना पद्धति में है। नाथ पंथ वेदान्त ज्ञान प्राप्ति के द्वारा तथा तत्व दर्शन द्वारा मोक्ष प्राप्ति के मार्ग को स्वीकार करते है, किन्तु नाथ योगी ज्ञान के साथ-साथ योग साधना को भी नितांत आवश्यक मानते है। योग साधना के द्वारा बिना इन्द्रिय-निग्रह किये साधना सफल नहीं हो सकती, ऐसा उनका विश्वास है। जिसको गोरखनाथ ने समाधि-स्थिति कहा है उसे प्राप्त किये बिना मुक्ति सम्भव नहीं होती। आत्मा इनकी दृष्टि में सर्व व्याप्त होती है। साधक को अजपा जाप द्वारा तथा आत्म ज्ञान के द्वारा मन को नियंत्रित रखने का उपदेश गोरखनाथ ने दिया है। इनके मतानुसार निरंतर सच्चे हृदय से राम में तत्लीन होने से ही परम निधान वा ब्रह्म पद उपलब्ध होता है। गोरखनाथ के पूर्व भारत में बौद्ध धर्म का विशेष प्रभाव था, जो शनै: शनै: क्षीण होता जा रहा था।गोरखनाथ ने बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म की साधनाओं तथा योग की क्रियाओं के साथ शंकराचार्य के अद्वेतवाद का समन्वय करके अपने मत का प्रतिपादन किया जो नाथ पंथ के नाम से प्रचलित हुआ। हमे यह देखना है कि परवर्तीकाल में प्रवर्तित नवीन सन्त सम्प्रदायों पर गोरखनाथ के विचारों का एवं उनकी साधना प्रणाली का कितना अधिक प्रभाव पड़ा है। गोरखनाथ के शिष्यों के द्वारा चारों ओर सम्प्रदायों का जो प्रचार हुआ उसके कारण भारत के भिन्न-भिन्न स्थानों में पंथ की 12 शाखाएं मुख्य रूप से स्थापित हुई। इनमें से धर्मनाथ द्वारा चलाया हुआ धर्मनाथ पंथ कच्छ में स्थापित हुआ तथा राजस्थान के जोधपुर में माननाथी पंथ की स्थापना हुई। इसके अतिरिक्त मध्यकाल में कबीर पंथ, रामानन्दी पंथ, दादू पंथ तथा प्रणामी संप्रदाय पर भी किसी न किसी रूप में नाथ पंथ की निर्गुण साधना तथा योग साधना का प्रभाव पड़ा। इसके अतिरिक्त नाथ परम्परा के शिष्य असंख्य साधु-संत राजस्थान तथा गुजरात के विभिन्न भागों में विशेषतः पहाड़ी प्रदेशों में एकांतिक साधना में लीन रहते थे, एवं आज भी कहीं-कहीं पाये जाते हैं । हमारे यह लेख भी जरुर पढ़े:— तानसेन का जीवन परिचय, गुरु, पिता, पुत्र, दूसरा नाम और शिक्षा संगीत सम्राट तानसेन का नाम सवत्र प्रसिद्ध है। 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