श्रावण शुक्ला पंचमी को नाग-पूजा होती है। इसीलिये इस तिथि को नाग पंचमी कहते हैं। भारत में यह बडे हर्षोल्लास के साथ मनायी जाती है। इस दिन व्रत रखा जाता है।
नाग पंचमी की पूजा कैसे करे – नाग पंचमी का व्रत रखने की विधि
श्रावण शुक्ला पंचमी को घर के दरवाजे के दोनों ओर गोबर से नाग की मूर्ति लिखे। इस नाग पंचमी व्रत को करने वाले के चतुर्थी को केवल एक बार भेजन करके पंचमी के दिन भर उपवास रहकर शाम को भोजन करना चाहिये। चाँदी, सोना, काठ अथवा मिट्टी की कलम से हल्दी तथा चन्दन से पाँच फन वाले पाँच नाग लिखे। पंचमी के दिन खीर, पंचामृत, ओर कमल के पुष्प से तथा धूप, दीप, नेवेद्य आदि से विधिवत् नागों का पूजन करे।
पूजन के पश्चात् ब्राह्मणों को लड़डू या खीर के भोजन करावे। नागों मे बारह नाग असिद्ध हैं। यथा–अनन्त, वासुको, शेष, पद्म, केवल, ककेटक, अस्वतर, धृतराष्ट्र, शट्डपाल, कालिया, तक्षक ओर पिंगल। इनमे से एक-एक नाग की एक-एक मास में पूजा करनी चाहिये। ब्राह्मणों को खीर के भाजन कराने चाहिये ओर पूजा कराने वाले व्यास ( पंडित ) को नाग पंचमी के दिन स्वर्ण और गौ का दान देना चाहिये। कही-कहीं चाँदी या सोने के नाग पान के पत्ते पर रखकर दक्षिणा दान करने की विधि लिखी है। पंचमी के दिन नाग की पूजा करने वाले को उस दिन पृथ्वी न खोदनी चाहिये।
नाग पंचमीनाग पंचमी की कथा – नाग पंचमी की कहानी
एक किसान परिवार सहित मणिपुर नामक नगर में रहता था। उसके दो लड़के ओर एक कन्या थी। एक दिन जब वह अपने खेत में हल जोत रहा था, उसके हल की फाल में बिंधकर साँप के तीन बच्चे मर गये। बच्चों की माता नागिन ने प्रथम तो बहुत विलाप किया। फिर अपने बच्चों को मारने वाले से बदला लेने का संकल्प किया।
रात्रि के समय नागिन ने उक्त किसान, उसकी स्त्री ओर दोनों बच्चो को डस लिया, जिससे वे चारों मर गये। दूसरे दिन वह नागिन जब उसकी कन्या को डसने के लिये गई, तब कन्या ने डरकर उसके सामने दूध का कटोरा रख दिया और वह क्षमा प्रार्थना करने लगी। यद्यपि लड़की को मालूम नही था, परन्तु वह दिन नाग पंचमी का था।
इस कारण नागिन ने प्रसन्न होकर लड़की से वर माँगने को कहा। लड़की ने यह वर मांगा कि मेरे माता-पिता और दोनों भाई पुनः जीवित हो जाये और जो आज के दिन नागें की पूजा करे, उसको कभी नाग के डसने की बाधा न हो । नागिन लड़की को वरदान देकर चली गई । कहते है, उसी दिन से लोक में नाग पंचमी के पूजन का प्रचलन हुआ।
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