You are currently viewing नागा जनजाति के जनजीवन बारे में जानकारी
नागा जनजाति

नागा जनजाति के जनजीवन बारे में जानकारी

नागा प्रदेशभारत की उत्तर-पूर्वी सीमाओं पर स्थित है। यह एक जगत-विख्यात पहाड़ी प्रदेश है। सारे संसार में प्रसिद्ध होते हुए भी यह प्रदेश हमारे लिये आश्चर्य का विषय बना हुआ है। यहां के नागा जनजाति के निवासी बहुत पिछड़े हुए हैं। इन्सान होकर भी वे हिंसक बने हुए हैं। भारत जैसी देव-भूमि पर जन्म लेकर भी वे अब तक उन्नति के पथ पर अग्रसर क्यों नहीं हो पाये। इन सब बातों का उत्तर केवल एक ही है, और वह है, विद्या तथा शिक्षा का अभाव। इसी लिए नागा लोग हम से बहुत दूर हैं। यदि इन लोगों को शिक्षा से वंचित न रखा जाता, तो ये भी जीवन की दौड़ में आगे बढ़ सकते।

नागा जनजाति कहां पाई जाती हैं, नागा कौनसी जाति के होते हैं

भारत के इन नागा जनजाति के लोगों को देख कर प्रतीत होता है कि इन का अतीत अवश्य ही गौरव-मय रहा होगा। इन का रहन-सहन, खाना- पीना, आचार-विचार, तथा ओढ़ना-पहनना सभी विचित्र हैं। संसार कितना आगे बढ़ चुका है इस बात की इनको तनिक चिन्ता नहीं है। ये अपने रीति-रिवाजों तथा जीवन- प्रणाली को इतना महत्व देते है कि देखते ही बनता है। नागा समुदाय के लोगों का प्रदेश बर्मा, मणिपुर तथा आसाम की सीमान्त पहाड़ियों पर स्थित है। घोर वन तथा घोर-वर्षा के कारण यह प्रदेश बड़ा ही भयानक प्रतीत होता है। यही कारण है कि नागा लोगों का जीवन भी अत्यन्त कठोर हो गया है। नागा पंत पर बसने वाले नागा लोग किसी अज्ञात-युग से इस क्षेत्र के आदिवासी हैं।

माओ नागा, सार्रिंग नागा, अंगामी नागा, कुबई नागा तथा ताखुल नागा आदि कई प्रकार की जातियां इन लोगों में होती हैं। ये सब जातियां अपने रीति-रिवाज आदि के कारण एक दूसरे से भिन्न हैं। हर एक नागा जाति का अपना अलग देवता होता है जिसकी पूजा ये लोग बड़ी श्रद्धा से करते हैं। ये कहीं कहीं देवता पर नरबलि भी चढ़ाते हैं। वैसे ये लोग आर्य देवताओं की ही पूजा करते हैं। पर यह विश्वास से नहीं कहा जा सकता, कि ये लोग भारत के प्राचीन आर्यो की ही सन्तान हैं अथवा कोई आदिवासी हैं। नागा जाति का सामाजिक जीवन बड़े विचित्र प्रकार का है। जितने भी कुल अथवा जातियां इन में पाई जाती हैं, उन की पहचान करने के लिये पूछने की आवश्यकता नहीं पड़ती। प्रत्येक जाति का पहनावा एक दूसरे से भिन्‍न तथा एक विशेष रंग का होता है, जिससे विभिन्‍न जाति के नागाओं की पहचान सरलता से स्वयं ही हो जाती है।

नागा जनजाति
नागा जनजाति

नागा जनजाति का भोजन और वेषभूषा

नागा समुदाय में ही नहीं, अपितु संसार के सभी आदिवासियों में शरीर का अधिक भाग नग्न रखने की प्रथा है। ये लोग शरीर को अधिक वस्त्रों से ढकने के पक्ष में नहीं हैं। नागा लोगों की स्त्रियां अधिकतर कमर पर एक ही कपड़ा पहने रहती हैं। इन्हें मंगे, सीप, कौड़ी तथा मोतियों आदि के हार पहनने का बड़ा चाव होता है, कानों में बड़े बड़े छल्ले पहनने का चाव तो स्त्री तथा पुरुष दोनों को होता है। ये छल्ले अधिकतर हाथीदांत तथा लकड़ी के बने होते हैं। ये लोग इतने हृष्ट-पुष्ट होते हैं, कि वे प्रायः सेरों के भार के अलंकार पहनते हैं, किन्तु फिर भी इन्हें बोझ नहीं लगता। कुछ समय से कुछ आर्थिक-संस्थायें नागा लोगों में धर्म का प्रचार कर रही हैं। जिन में इसाई मिशन तथा गायत्री तपोभूमि आदि संस्थाओं के नाम उल्लेखनीय हैं। यही कारण है, कि बहुत से नागा लोग अब या तो अंग्रेज़ी ठाट-बाट में दिखाई देते हैं, और या भारतीय खादी वेशभूषा में। स्त्रियां भी साड़ी तथा जम्फर पहनने लगी हैं। बहुत सी स्त्रियां तो नागा लोगों में ऐसी दीख पड़तीं है, कि कभी कभी उन्हें नागा-जाति की स्त्रियां समझने में सन्देह होने लगता है। पर फिर भी इन लोगों में अभी विशेष उन्नति नहीं हो पाई। कई क्षेत्र तो अब तक ऐसे पड़े हैं, जो आज के वेज्ञानिक युग से बिल्कुल अपरिचित हैं।

नागा जनजाति में अधिक जन-संख्या ऐसे लोगों की मिलती है, जिन का रंग गेहुंआ होता है। इन का स्वभाव बड़ा हंसमुख होता है। परन्तु अपनी आन पर मर मिटने की भावनाएं इन में बड़ी जटिल होती हैं। जो कुछ भी यह लोग ठान लेते हैं, उसे किये बिना चैन नहीं लेते। चाहे उसके लिये कितना भी परिश्रम इन्हें क्यों न करना पड़े। नागा लोगों के विषय में यह प्रसिद्ध है, कि वह सदा मेहनत कर के पेट भरते हैं। पाप की कमाई से इन्हें घृणा होती है। ये लोग कभी किसी के आगे भीख नहीं मांगते। भीख मांगना इनके समाज में एक घोर पाप समझा जाता है। इनका प्रत्येक कार्य परिश्रम से परिपूर्ण होता है। मेहनत करना इनका स्वभाव होता है। नागाओं की मारिंग जाति में कन्या-अवस्था में पुत्री के कान में पीतल के छल्ले पहनाये जाते हैं, परन्तु विवाह हो जाने पर उनके स्थान पर अनेक धातुओं के तारों को एक तार करके बालियां बना कर पहनाई जाती हैं ।

नागा जाति की स्त्रियां बड़ी बलवता तथा परिश्रमी होती हैं। घर के सम्पूर्ण कार्यों के साथ साथ खेतों में भी उन्हीं को कार्य करना पड़ता है। जंगलों से इंधन एकत्रित करके लाना, धान कूटना, पानी भरना, कपड़ा बुनना आदि सब काम स्त्रियों को ही करने पड़ते हैं। पुरुषों का काम तो केवल इतना ही है कि सारा दिन शिकार खेलते रहें अथवा कभी कभी मौज आने पर खेतों में कुछ काम कर लें। नागा लोगों का भोजन भी अनोखे ढंग का होता है। जंगली शाग-भाजी के अतिरिक्त मांस बहुत खाते हैं। बिल्ली के अतिरिक्त प्रत्येक जीव का माँस खा जाते हैं। चावल तथा मछली खाने का इन्हें बड़ा चाव होता है।

नागा जनजाति का विवाह

नागा जाति में विवाह की रीतियां भी बड़ी आकर्षक होती हैं।
विवाह के लिये केवल उसी लड़के को लड़की के योग्य समझा जाता है, जिसने कम से कम दो चार आदमियों का खून कर रखा हो। हमारी तरह इन लोगों में मां बाप को विवाह के लिये वर खोजने की चिन्ता नहीं करनी पड़ती। लड़का अथवा लड़की स्वयं ही एक दूसरे को पसन्द कर के अपना जीवन साथी निश्चित कर लेते हैं। इसके बाद मां बाप की अनुमति प्राप्त करना उन दोनों का कर्तव्य होता है। यदि मां बाप उसे स्वीकार कर लें, तो लड़का अपने साथ कुछ मूल्यवान पशु ले कर लड़की वाले के घर आता है, तथा उन पशुओं को लड़की के घर वालों को भेंट करता है। इस प्रकार परस्पर सगाई हो जाती है। इसके पश्चात एक नियत समय तक (अधिक से अधिक एक वर्ष तक) लड़के को लड़की के घर रह कर परिश्रम के काम करने पड़ते हैं। यदि इस अवधि में लड़की के घर वाले अथवा लड़की उसे परिश्रम से जी चुराते हुए देखें तो विवाह-सम्बन्ध तोड़ दिया जाता है, अन्यथा विवाह निश्चित हो जाता है।

नागाओं में लड़की वाले को दहेज आदि नहीं देना पड़ता अपितु स्वयं लड़का ही अपनी ओर से लड़की वालों को दहेज देता है। पर इसकी कोई सीमा नियत नहीं है। यह तो अपने सामर्थ्य की बात है। आर्थिक-शक्ति के आधार पर ही दहेज दिया जाता है। पर यह सब करने के साथ ही लड़के को लड़की के घर वालों के लिये लड़की पालने, तथा उसे दूध पिला कर विवाह योग्य बनाने का मूल्य चुकाना होता है। अलग अलग नागा कुलों में यह कीमत भिन्‍न भिन्‍न प्रकार की होती है, जो कि अधिक नकदी के रूप में न हो कर वस्तुओं के रूप में होती है।

नागा समुदाय में सगे भाई बहनों में भी विवाह हो जाता है। इस प्रकार का कोई भी सामाजिक प्रतिबन्ध इन लोगों में नहीं होता। प्रत्येक आदमी अपने वंश की प्रत्येक स्त्री से विवाह कर सकता है। विवाह के मामले में किसी भी प्रकार की अड़चन नहीं डाली जाती। पर निकम्मे तथा परिश्रम से जी चुराने वाले लोगों को समाज-द्रोही, तथा नीच समझा जाता है। ऐसे व्यक्ति के लिये केवल विवाह आदि कार्यो में हो रोड़ा नहीं अटकाया जाता अपितु सम्पूर्ण नागा-समाज उसे क्रूर-नेत्रों से देखा करता है। ऐसे आदमी के लिये वह अपने समाज में कोई स्थान नहीं रहने देते। परिश्रम करना ये अपना एक आदर्श समझते हैं। शायद जितने परिश्रम की रोटी नागा लोग खाते हैं, अन्य प्रदेशों में इसकी मिसाल नहीं मिलती।

नागा लोगों का चरित्र

चरित्र की दृष्टि से भी नागा लोगों का स्तर बहुत उच्च-कोटि का है। इमानदारी तथा सच्चाई इन लोगों का प्राकृतिक स्वभाव है। ये लोग कभी भी अपने गांव की सीमा से बाहर शिकार नहीं खेलते, और यदि खेलते समय किसी अन्य गांव की सीमा में कोई शिकार हो जाये, तो उसका आधा भाग उस गांव के लोगों को दे देते हैं। अधिकतर नागाओं का व्यवसाय कृषि ही है। ये लोग आलू कपास तथा चावल आदि की ही अधिक उपज करते हैं। लगभग सभी नागाओं का व्यवसाय खेती ही है। अपने निर्वाह के हेतु सभी के पास पर्याप्त खेत होते हैं। जन-संख्या बढ़ने से जब खेती योग्य धरती की कमी हो जाती है, तो ये लोग किसी के भरोसे नहीं रहते, अपितु वनों को काट कर अपने लिये अधिक खेत बना लेते हैं। खेत के बीच में एक वृक्ष खड़ा रहने दिया जाता है, ऐसी यहां की रीति है।

नागा लोगों को भूत-प्रेत आदि में बड़ी श्रद्धा होती है, तथा समय समय पर ये लोग उनकी पूजा आदि भी करते हैं। जिस समय ये लोग कोई युद्ध आदि जीत कर आते हैं, तो मदिरा-पान कर के प्रेत पूजा करते हैं, तथा खूब नाचते गाते हैं। मृत्यु आदि संस्कार करने के लिये भी इन में बड़ी अनोखी रीतियां प्रचलित हैं। नागा लोगों में एक जाति ऐसी भी होती है, जो अपने मृतक हितैषियों के शव के साथ दो भाले रख देती हैं। इनका विचार है, कि इनकी सहायता से स्वर्ग तक पहुंचने के लिये मार्ग में उसके सामने कोई विघ्न-बाघा उपस्थित नहीं हो पाती। युद्ध विद्या में प्रवीण यह जाति अभी अपना अधिक विकास नहीं कर पाई, अपितु विकास के लिये आशा लगाये बैठी है। वैसे इस जाति के बहुत से लोग विकास के पथ पर आज काफी आगे पहुँच चुके हैं। पर निरन्तर शिक्षा प्रचार जो आज भारत की सरकार इन्हें उन्नत करने के लिये कर रही हैं। अवश्य ही एक दिन इन्हें उन्‍नति के पथ पर ला कर खड़ा कर देगी।

हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—

Naeem Ahmad

CEO & founder alvi travels agency tour organiser planners and consultant and Indian Hindi blogger

Leave a Reply