नागार्जुनकोंडा का इतिहास हिन्दी में

नागार्जुनकोंडा स्तूप

नागार्जुनकोंडा (Nagarjunakonda ) भारत केतेलंगाना राज्य के नलगोंडा ज़िले में स्थित एक ऐतिहासिक नगर है। हैदराबाद से 100 मील दक्षिण- पूर्व की ओर स्थित नागार्जुनकोंडा एक प्राचीन स्थान है। यह बौद्ध महायान के प्रसिद्ध आचार्य नागार्जुनसागर के नाम पर प्रसिद्ध है। नागार्जुनकोंडा जिले में कृष्णा नदी पर नागार्जुन सागर बाँध के मध्य है। इसका नामकरण प्रथम शताब्दी ई० की महायान शाखा के बौद्ध विद्वान नागार्जुन के नाम पर हुआ।

नागार्जुनकोंडा का इतिहास

नागार्जुनकोंडा में 1927 से 1931 तक और 1938 से 1941 तक की गई खुदाइयों के दौरान एक मुख्य स्तूप, अनेक अन्य स्तूप, चैत्य, मुहर छोटी-छोटी मूर्तियाँ, मिटटी के बर्तन और अर्ध वृत्ताकार मंदिर पाए गए हैं।

नागार्जुनकोंडा में ब्राह्मण धर्म के ईंट के मंदिर भी पाए गए हैं। खुदाइयों में एक रोमन सम्राट हैद्रियान (117-38 ई०) की मुहर भी पाई गई है, जिससे नागार्जुनकोंडा के रोम के साथ व्यापारिक संबंधों का पता लगता है। यहाँ की गई खुदाइयों में नव-पाषाण काल के काफी अवशेष तथा महापाषाण काल (तीसरी शताब्दी ई०पू०-प्रथम शताब्दी ई०) की कब्रें मिली हैं।

नागार्जुनकोंडा स्तूप
नागार्जुनकोंडा स्तूप

यहाँ कृषि कार्यों के कई औजार पाए गए हैं। यहाँ की सभ्यता संगनकल्लू के ऊपरी स्तर और ब्रहमगिरि की समकालीन थी। के. वी. सुंदरराजन ने यहाँ खुदाई में जूतों के तलों की आकृति के फावड़े पच्चड़, बसूले, गैंती, छैनी और हथौड़े पाए हैं। इनमें दो किनारों वाली गैंती-फावड़ा अधिक प्रमुख है।

यह ईसा बाद के प्रारंभिक काल में सातवाहनों और उनके उत्तराधिकारी इक्ष्वाकुओं के अधीन बौद्ध कला का एक केंद्र था। ईक्षवाकु राजाओं के काल में बौद्ध धर्म का यहाँ बहुत विकास हुआ था। यहाँ इक्ष्वाकु राजा वीरपुरिसदात ने एक बड़ा स्तूप और अनेक विहार मंडप बनवाए थे।

नार्गाजुनकोंडा में पाई गई वस्तुएँ यहीं पर बने एक संग्रहालय में देखी जा सकती हैं। बड़ संख्या में बौद्ध धर्म को मानने वाले अनुयाई यहां आते हैं। इसके अलावा इतिहास और प्राकृतिक सौंदर्य में रूची रखने वाले पर्यटक भी यहां की नागार्जुनकोंडा की यात्रा जरूर करते हैं। नागार्जुमकोंडा भ्रमण के लिए नवंबर से अप्रैल तक का समय सबसे अच्छा रहता है।

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