सन् 1857 में भारत में भयंकर विद्रोह अग्नि की ज्वाला भड़की।
इस की चिनगारियाँ देखते देखते सारे भारतवर्ष में फैल गई । इस समय भोपाल की रिजेन्ट नवाब सिकन्दर जहां बेगम ने ( यह अब तक रिजेन्ट का काम करती थीं ) ब्रिटिश सरकार की तन, मन, धन से सहायता की। इन्होंने अपने राज्य में पूर्ण शान्ति स्थापन की भी अच्छी व्यवस्था की। इन्होंने कई भागे हुए अंग्रेजों की प्राण-रक्षा की। अंग्रेजी फौजों को रसद से मदद पहुँचाई। इससे अंग्रेजों को बड़ी सहायता मिली। जब देश में पूर्ण शान्ति स्थापित हो गई,, तब नवाब सिकन्दर जहां बेगम ने ब्रिटिश सरकार को दरख्वास्त दी कि, वह भोपाल रियासत की बेगम स्वीकार की जाये।
नवाब सिकन्दर जहां बेगम भोपाल स्टेट
उन्होंने अपनी दरख्वास्त में यह भी दिखलाया कि, दराअसलभोपाल रियासत की गद्दी की वही अधिकारिणी है। उसके (नवाब शाहजहां बेगम के) पति को गलती से नवाब घोषित किया गया था। इसके साथ ही नवाब शाहजहां बेगम ने भी यह स्वीकार कर लिया कि, जब तक उसकी माता नवाब सिकन्दर जहां बेगम जीवित है, तब तक वही भोपाल की शासिका रहे।
नवाब सिकन्दर जहां बेगमब्रिटिश सरकार ने सन् 1857में नवाब सिकन्दर जहां बेगम की दी गई सहायता को स्वीकार करते हुए उसे भोपाल की बेगम घोषित कर दिया। सन् 1861 में जबलपुर में एक दरबार हुआ था, उसमें नवाब सिकन्दर बेगम भी उपस्थित हुई थीं। उस दरबार में तत्का-
लीन वायसराय लॉर्ड केनिंग ने नवाब सिकन्दर बेगम को संबोधित करते हुए कहा था— “सिकन्दर बेगम ! में इस दरबार में आपका हार्दिक स्वागत करता हूं। में एक लंबे अर्से से यह अभिलाषा कर रहा था कि आपने श्रीमती सम्राज्ञी के राज्य की, जो बहुमूल्य सेवाएँ की है उनके बदले में आपको धन्यवाद प्रदान करूँ। बेगम साहिबा, आप एक ऐसे राज्य की अधिकारिणी है, जो इस बात के लिये मशहूर है कि, उसने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ कभी तलवार नहीं उठाई। अभी थोड़े दिन पहले जब कि आपके राज्य में शत्रुओं का आतंक उपस्थित हुआ था, उस समय आपने जिस धैर्यता, बुद्धिमत्ता और योग्यता के साथ राज्य कार्य का संचालन किया, वैसा कार्य एक राजनीतिज्ञ या सिपाही के लिए ही शोभापद हो सकता था। ऐसी सेवाओं का अवश्य ही प्रतिफल मिलना चाहिए। में आपके हाथों में बलिया जिले की राज्य-सत्ता सौंपता हूँ। यह ज़िला पहले धार राज्य के अधीन था। पर उसने बलवे में शरीक होकर उस पर से अपना अधिकार खो दिया। अब यह राज्य-भक्ति के स्मारक स्वरूप हमेशा के लिये आपको दिया जाता है।”
इसी साल श्रीमती नवाब सिकन्दर बेगम को जी. सी. एस. आई. की उपाधि मिली । ईसवी सन् 1862 में आपको गोद लेने की सनद भी मिली। इसवी सन् 1864 में आप मक्का यात्रा के लिये पधारी और सन् 1868 की 30 अक्टूबर को आपने परलोक की यात्रा की। मृत्यु के समय श्रीमती की अवस्था 51 वर्ष की थी।
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