सन् 1844 में केवल 27 वर्ष की उम्र मेंनवाब जहांगीर मोहम्मद खान ने परलोक-यात्रा की। नवाब जहांगीर मोहम्मद खान ने अपने मृत्यु-पत्र में यह इच्छा प्रकट की कि, उनकी रखैल का लड़का दस्तगीर उनकी गद्दी का वारिस हो और उनकी लड़की वजीर मोहम्मद के खानदान के किसी लड़के से ब्याही जावे। ब्रिटिश सरकार ने इस मृत्यु-पत्र को मंजूर नहीं किया ओर उन्होंने नवाब जहांगीर मोहम्मद खान की पुत्री शाहजहाँ बेगम ही को गद्दी का वारिस कबूल किया। साथ ही में यह भी तय हुआ कि “शाहजहां बेगम का भावी पति, जो कि भोपाल के राज्य-कुटुम्ब ही में से चुना जायेगा, भोपाल का नवाब होगा। यह इसलिये किया गया जिससे भोपाल के भूतपूर्व राज्यकर्ता गौस मोहम्मद और वजीर मोहम्मद दोनों के खानदान
आपस में मिले हुए रहें।
नवाब शाहजहां बेगम जीवन परिचय
नवाब शाहजहां बेगमभोपाल की राज्य-गढी पर बेठा दी गई। इस समय इनकी उम्र केवल 7 वर्ष की थी। इनकी नाबालगी में राज्य- कार्य संभालने के लिये एक रिजेन्सी कौन्सिल बनाई गई। नवाब गौस मोहम्मद खान का सब से छोटा लड़का मियाँ फौजदार मोहम्मद खान भोपाल का प्रधान मंत्री भी बना दिया गया। पर एक साल ही में यह बात मालूम होने लगी कि, शासन की यह दोहरी पद्धति ( Dual system ) असफल होती जा रही है।
नवाब शाहजहां बेगम भोपाल रियासतफौजदार मोहम्मद खाँ और नवाब सिकन्दर बेगम की नहीं बनी। दोनों में गम्भीर मतभेद होने लगे। अतएव आखिर में पोलिटिकल एजेन्ट ने हस्तक्षेप किया, और उन्होंने फौजदार मोहम्मद खानको इस्तिफा देने के लिये मजबूर किया । साथ ही में यह भी तय हुआ कि, जब तक नवाब शाहजहां बेगम बालिग न हो जाये तब तक नवाब सिकन्दर बेगम ही के हाथ में राज्य-व्यवस्था की डोर रहे।
इसवी सन् 1838 में नवाब शाहजहां बेगम बालिग हो गईं। इसके कुछ वर्ष तक भोपाल रियासत की अच्छी तरक्की होती रही। कई अत्याचारी पद्धतियाँ मिटाई गई। किसानों को आराम पहुँचाने की व्यवस्थाएँ की गई। ईसवी सन् 1855 में नवाब शाहजहां बेगम की भोपाल के कमांडर- इन-चीफ बक्शी बाकी मोहम्मद खाँ के साथ शादी हो गई। इससे ये महाशय भी नवाब कहलाने लगे। इन्हें नवाब वजीर उद्दौला उमरावद्दौला बहादुर का ऊँचा खिताब भी मिल गया था।
बीच में उनके पति को गद्दी से उतार कर नवाब सिकन्दर जहां बेगम को नवाब की गद्दी सौंप दी गई, नवाब सिकन्दर जहां बेगम की मृत्यु के पश्चात अब नवाब शाहजहां बेगम की फिर बारी आई। वे पुनः भोपाल की राज्य-गद्दी पर बैठाई गई। इसी अर्से में नवाब शाहजहां बेगम के पति नवाब बाकी मोहम्मद खान बहादुर की मृत्यु हो गई। अतएव उन्होंने सन् 1871 में मौलवी सैय्यद सादीक हुसैन से दूसरा विवाह कर लिया। ये मौलवी साहब पहले भोपाल कई महत्वपूर्ण पदों पर काम कर चुके थे। नवाब शाहजहां बेगम के साथ विवाह हो जाने से इन्हें “नवाबे आला जहां अमीर उल-मुल्क” की पदवी मिल गई। सरकार ने इन्हें 17 तोपों की सलामी का मान दिया। सन् 1872 में नवाब शाहजहां बेगम की सेवाओं से प्रसन्न होकर भारत सरकार ने उन्हें “जी० सी० एस० आई० की उच्च उपाधि प्रदान की। इसवी सन् 1890 में बेगम साहबा के दूसरे पति का भी देहान्त हो गया। उनकी मृत्यु के बाद से लगा कर सन् 1901 तक बेगम साहबा ने अपने ही हाथों से भोपाल राज्य का शासन किया । इसी साल इनका देहान्त हो गया।
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