नवाब वाजिद अली शाह कौन थे – वाजिद अली शाह का जीवन परिचय

नवाब वाजिद अली शाह

नवाब वाजिद अली शाहलखनऊ के आखिरी नवाब थे। और नवाब अमजद अली शाह के उत्तराधिकारी थे। नवाब अमजद अली शाह की मृत्यु के पश्चात 12 फरवरी सन्‌ 1847 को अवध के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह ने हुकूमत की लगाम अपने हाथों में थाम ली। नवाब वाजिद अली शाह का जन्म जून 1821 ई० अर्थात 10 जीकादहिजरी 1237 तदानुसार श्रावण शुक्ल की 12 सम्वत 1878 इंन्द्रयोग 57 घड़ी 39 पल दिन मंगलवार को हुआ था।

नवाब वाजिद अली शाह का जिस दिन राज्याभिषेक होना था उसी दिन ही अपशकुन हो गया। तख्त तक पहुँचने के लिए जो जीना बना था वही टूट गया अमीरुद्दौला, मीर मेंहदी अली खाँ और नवाब अली नकी खाँ तसवीह फेरते हुए कमरे में आये। नवाब ने कमरे में प्रवेश करने के बाद नमाज पढ़ी। फिर ताज लाया गया उसके बाद रेजिडेन्ट ने घोषणा की कि नवाब वली अहद बादशाह मुकर्र हुए। बादशाह वाजिद अली शाह हुस्न के पुजारी थे। स्‍लीमन साहब लिखते हैं, उनकी माता मलिका किश्वर की एक निहायत खूबसूरत बाँदी थी। एक दिन बादशाह की निगाह उसके चेहरे पर पड़ी और वह उसके दीवाने हो गये। मल्का किश्वर इस बाँदी को बहुत चाहती थी और उसे हमेशा अपने साथ रखती, यहाँ तक कि बाँदी मलिका किश्वर के साथ ही सोती थी। किश्वर उसे अपने से अलग नहीं करना चाहती थीं।

नवाब वाजिद अली शाह की जीवनी

उन्होंने एक उपाय सोचा– एक दिन नवाब से कहा कि यह औरत सांपू है। ऐसी औरत के साथ यदि तुम रहे तो खानदान नष्ट हो जाएगा। सांप से तात्पर्य है गले में पीछे की तरफ साँप के सदृश घुमे हुए केश। इस तरह के केश प्रायः सभी स्त्रियों के होते हैं मगर मलका किश्वर ने कुछ इस ढंग से कहा कि नवाब के होश फाख्ता हो गये। उनको सनक सवार हुई कि शायद उनका स्वास्थ्य साँप औरतों के साथ रहने के कारण ही खराब हुआ है। बस उन्होंने हर बेगम की जाँच शुरू कर दी, बेगम खास महल को छोड़ कर। अब तो बड़ी आफत हो गयी ऐसे सर्पाकार केश सुलेमान महल, दारा बेगम, हजरत बेगम, निशात महल, हजरत महल, खुर्शीद महल, छोटी बेगम, बड़ी बेगम सभी में मिले फिर क्या था बादशाह ने इन सबको तलाक देने की इच्छा जाहिर की और आदेश दिया कि वे सब महल छोड़ कर चली जायें।

इसी बीच कुछ लोगों ने बादशाह से कहा क्‍यों न एक बार हिन्द पडितों से पूछा जाए ? खेर वह भी हुआ। पण्डितों ने कह दिया कि उस सर्पाकार जगह को गर्म दहकते लोहे से दाग दिया जाए तो इससे यह दोष खत्म हो जाएगा। बाकी छः बेगमों ने तो यह करवाने से साफ इनकार कर दिया मगर बड़ी और छोटी बेगम राजी हो गयी। जिन लोगों को दागना था उन्हें पैसे देकर बेगमों ने अपनी ओर मिला लिया। अब सारी बेगमों ने साजिश बना कर शर्ते मंजूर कर ली। इस कहानी को खत्म कर दिया गया। मलका किश्वर की इस युक्ति से ऐसी विकट समस्‍या उत्पन्न हो गयी थी। फिर भी उनकी प्रिय बाँदी तो बच गयी यही सोचकर उन्होंने चेन की साँस ली।

नवाब वाजिद अली शाह
नवाब वाजिद अली शाह

नवाब नाच-गाने के बड़े शौकीन थे। वह इन्द्रसभा के रचयिता थे और खुद इन्द्र बनते थे। रासलीला के वक्‍त माहरुफ परी कन्हैया बनती थी ओर सुल्तान परी राधा। नवाब कलाकारी को बड़ी अहमियत देते थे। नवाब वाजिद अली शाह ने जिस तरह तमाम समस्याओं से घिरे रहने के बाद भी अवध का शासन सम्भाला वह एक मिसाल है। हिन्दू-मुस्लिम दोनों के प्रति ही समान दृष्टि रखना, हिन्दुओं के त्योहारों में भी बाकायदा खुद ही हिस्सा लेना उनकी समान दृष्टि का उदाहरण है।

सर जेम्स वेयर हाँग को 28 अक्टूबर, 1825 को सस्‍लीमन ने एक खत लिखा कि नवाब अपने को सबसे अच्छा बादशाह और सबसे अच्छा शायर समझता है। इसी प्रकार सर जेम्स को दूसरा खत 2 जनवरी, 1856 को लिखा था कि– होली के त्योहार पर (मैंने उसे) कई बार अपने गले में ढोल बाँध कर घूमते फिरते देखा। वह लखनऊ का सबसे बड़ा ढोलकिया बनना चाहता है। स्‍लीमन महोदय के नवाब के सम्बन्ध में जो ख्यालात रहे वह एकदम गलत थे। उसे क्या मालूम कि नवाब के इन कार्यों में भी एक इन्सानियत छपी हुई है। उनमें हिन्दू धर्म के प्रति भी वही आदरभाव निहित था जो मुस्लिम धर्म के प्रति। स्‍लीमन तो नवाब के हर काम में ऐब ढूँढ़ रहे थे तो अच्छाई कहाँ से नज़र आए।

कम्पनी सरकार की आँखों में नवाब वाजिद अली शाह खटक रहे थे। वह उन्हें किसी भी तरह से हटाना चाहती थी। कम्पनी सरकार 1837 की सन्धि को ठुकरा कर पुनः 1801 की सन्धि पर आ गयी, जिसके अन्तर्गत बादशाह से दीवानी तथा सैनिक शासन पूरी तरह से ले लिया गया और रियासत की आमदनी में से जो रकम बचती वही ही बादशाह को गुजारे के लिये मिलती।

बाद में बेरहम कम्पनी सरकार ने उन्हें गद्दी ही छोड़ने का आदेश दे
दिया। आउट्रम साहब बड़ी ही कृपा दृष्टि नवाब पर रखते हुए उन्हें समझाने गए कि हम दिल्‍ली के बादशाह को सिर्फ एक लाख रुपया सालाना पेंशन दे रहे हैं, लेकिन आपको 2 लाख रुपये सालाना पेंशन और 3 लाख रुपया नौकरों पर होने वाला खर्च भी देंगे यानी कि 5 लाख। आप दिलकुशा कोठी में रहें साथ ही 7 (सात) मकान और ले लें- रमना कोठी, दिलकुशा, सिकन्दर बाग, शाह मंजिल बादशाह बाग, खुर्शीद मंजिल, मुबारक मंजिल। आपके खानदान की तनख्वाह भी कम्पनी देगी। जब तक आप जिन्दा रहेंगे आपका बादशाह का खिताब भी चलेगा। आपके बाद उत्तराधिकारी को केवल 2 लाख रुपया ही पेंशन मिलेगी।

4 फरवरी, 1856 को कम्पनी के रेजिडेन्ट जनरल आउट्रम सुबह आठ बजे जर्द महल गए और अब्दुल मुजफ्फर नसिरुद्दीन सिकन्दर शाह बादशाहे आलिद, कैसरे-जमाँ, सुल्ताने आलम नवाब वाजिद अली शाह को सूचना दी कि “अवध की आवाम पर एक अच्छे शासन के विचार से प्रेरित होकर कम्पनी सरकार ने शासन अपने अधिकार में ले लिया है।

नवाब को अपने अन्तिम दिनों में बड़ा कष्ट उठाना पड़ा। अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर कलकत्ता भेज दिया था। जहाँ तमाम यातनाएँ दी गयीं। नवाब ने 32 घण्टे तक खाना न खाया। मजबूर होकर बड़े लाट ने घर से नवाब को खाना मंगाने की इजाजत दे दी। एक अंग्रेज सिपाही ने खाने तक की तलाशी ली। नवाब ने उस खाने को भी ठुकरा दिया। 48 घण्टे तक उनके पेट में अनाज का एक दाना तक न गया।

नवाब वाजिद अली शाह को जेल में ऐसी जगह रखा गया था कि जहाँ सड़न, बदबू और मच्छरों का साम्राज्य था। गोरे सिपाही तरह-तरह के अपशब्द कहते थे–रात में पहरा देते समय कहते तुम सोता है या मर गया।’ दस दिनों तक नवाब पर बड़ी सख्ती रही। नवाब के चाहने वालों ने बड़ी कोशिशें की कि उन्हें किसी अच्छी जगह रखा जाए इतनी यातना न दी जाए। इसके लिए मौलवी मसीहुद्दीन लन्दन तक गए। तब कहीं उनको किले के भी तह ही बनी एक कोठी में रहने की इजाज़त मिली। 9 जुलाई, शनिवार 1859 को बादशाह जेल से रिहा होकर घर तशरीफ़ लाये।

नवाब वाजिद अली शाह के पास अब बचा ही क्या था? उनके खानदान के तमाम लोग लखनऊ में दहकी जंगे आज़ादी की लड़ाई में शहीद हो गए थे। जब वह जेल से छुटकर आए उनका शरीर खोखला हो चुका था। 17 जुलाई, 1859 को उन्होंने एक ख़त मुमताज महल के नाम भेज– “अल्लहमदुल्लिलाह’ कि तुम्हारी कल्बी कबूल हुई। मुसर्रत जावेद हुसूल हुई। यानी जुलाई की सातवीं तारीख हफ्ते के दिन बलाए नागहानी आफत आसमानी से नजात पाके अपने परोदगाह कदीम में आयें। उस दिन को शबे मेराज ऐशोनिशात कहना बजा है और ईद इशरत हमाबिसात समझना रवा है। और नवाब वाजिद अली शाह का 75 साल की उम्र में इन्तकाल हो गया।

हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े—–

राधा कुंड :- उत्तर प्रदेश के मथुरा शहर को कौन नहीं जानता में समझता हुं की इसका परिचय कराने की
प्रिय पाठको पिछली पोस्टो मे हमने भारत के अनेक धार्मिक स्थलो मंदिरो के बारे में विस्तार से जाना और उनकी
गोमती नदी के किनारे बसा तथा भारत के सबसे बडे राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ दुनिया भर में अपनी
इलाहाबाद उत्तर प्रदेश का प्राचीन शहर है। यह प्राचीन शहर गंगा यमुना सरस्वती नदियो के संगम के लिए जाना जाता है।
प्रिय पाठको अपनी उत्तर प्रदेश यात्रा के दौरान हमने अपनी पिछली पोस्ट में उत्तर प्रदेश राज्य के प्रमुख व धार्मिक
प्रिय पाठको अपनी इस पोस्ट में हम भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के एक ऐसे शहर की यात्रा करेगें जिसको
मेरठ उत्तर प्रदेश एक प्रमुख महानगर है। यह भारत की राजधानी दिल्ली से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित
उत्तर प्रदेश न केवल सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है बल्कि देश का चौथा सबसे बड़ा राज्य भी है। भारत
बरेली उत्तर भारत के राज्य उत्तर प्रदेश का एक जिला और शहर है। रूहेलखंड क्षेत्र में स्थित यह शहर उत्तर
कानपुर उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक आबादी वाला शहर है और यह भारत के सबसे बड़े औद्योगिक शहरों में से
भारत का एक ऐतिहासिक शहर, झांसी भारत के बुंदेलखंड क्षेत्र के महत्वपूर्ण शहरों में से एक माना जाता है। यह
अयोध्या भारत के राज्य उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख शहर है। कुछ सालो से यह शहर भारत के सबसे चर्चित
मथुरा को मंदिरो की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। मथुरा भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक
चित्रकूट धाम वह स्थान है। जहां वनवास के समय श्रीराजी ने निवास किया था। इसलिए चित्रकूट महिमा अपरंपार है। यह
पश्चिमी उत्तर प्रदेश का मुरादाबाद महानगर जिसे पीतलनगरी के नाम से भी जाना जाता है। अपने प्रेम वंडरलैंड एंड वाटर
कुशीनगर उत्तर प्रदेश राज्य का एक प्राचीन शहर है। कुशीनगर को पौराणिक भगवान राजा राम के पुत्र कुशा ने बसाया
उत्तर प्रदेश के लोकप्रिय ऐतिहासिक और धार्मिक स्थानों में से एक पीलीभीत है। नेपाल की सीमाओं पर स्थित है। यह
सीतापुर – सीता की भूमि और रहस्य, इतिहास, संस्कृति, धर्म, पौराणिक कथाओं,और सूफियों से पूर्ण, एक शहर है। हालांकि वास्तव
अलीगढ़ शहर उत्तर प्रदेश में एक ऐतिहासिक शहर है। जो अपने प्रसिद्ध ताले उद्योग के लिए जाना जाता है। यह
उन्नाव मूल रूप से एक समय व्यापक वन क्षेत्र का एक हिस्सा था। अब लगभग दो लाख आबादी वाला एक
बिजनौर उत्तर प्रदेश राज्य का एक प्रमुख शहर, जिला, और जिला मुख्यालय है। यह खूबसूरत और ऐतिहासिक शहर गंगा नदी
उत्तर प्रदेश भारत में बडी आबादी वाला और तीसरा सबसे बड़ा आकारवार राज्य है। सभी प्रकार के पर्यटक स्थलों, चाहे
अमरोहा जिला (जिसे ज्योतिबा फुले नगर कहा जाता है) राज्य सरकार द्वारा 15 अप्रैल 1997 को अमरोहा में अपने मुख्यालय
प्रकृति के भरपूर धन के बीच वनस्पतियों और जीवों के दिलचस्प अस्तित्व की खोज का एक शानदार विकल्प इटावा शहर
एटा उत्तर प्रदेश राज्य का एक प्रमुख जिला और शहर है, एटा में कई ऐतिहासिक स्थल हैं, जिनमें मंदिर और
विश्व धरोहर स्थलों में से एक, फतेहपुर सीकरी भारत में सबसे अधिक देखे जाने वाले स्थानों में से एक है।
नोएडा से 65 किमी की दूरी पर, दिल्ली से 85 किमी, गुरूग्राम से 110 किमी, मेरठ से 68 किमी और
उत्तर प्रदेश का शैक्षिक और सॉफ्टवेयर हब, नोएडा अपनी समृद्ध संस्कृति और इतिहास के लिए जाना जाता है। यह राष्ट्रीय
भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश में स्थित, गाजियाबाद एक औद्योगिक शहर है जो सड़कों और रेलवे द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा
बागपत, एनसीआर क्षेत्र का एक शहर है और भारत के पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बागपत जिले में एक नगरपालिका बोर्ड
शामली एक शहर है, और भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश में जिला नव निर्मित जिला मुख्यालय है। सितंबर 2011 में शामली
सहारनपुर उत्तर प्रदेश राज्य का एक प्रमुख जिला और शहर है, जो वर्तमान में अपनी लकडी पर शानदार नक्काशी की
ऐतिहासिक और शैक्षिक मूल्य से समृद्ध शहर रामपुर, दुनिया भर के आगंतुकों के लिए एक आशाजनक गंतव्य साबित होता है।
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के पश्चिमी भाग की ओर स्थित एक शहर है। पीतल के बर्तनों के उद्योग
संभल जिला भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक जिला है। यह 28 सितंबर 2011 को राज्य के तीन नए
बदायूंं भारत के राज्य उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख शहर और जिला है। यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के केंद्र में
लखीमपुर खीरी, लखनऊ मंडल में उत्तर प्रदेश का एक जिला है। यह भारत में नेपाल के साथ सीमा पर स्थित
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश में स्थित, शाहजहांंपुर राम प्रसाद बिस्मिल, शहीद अशफाकउल्ला खान जैसे बहादुर स्वतंत्रता सेनानियों की जन्मस्थली
रायबरेली जिला उत्तर प्रदेश प्रांत के लखनऊ मंडल में स्थित है। यह उत्तरी अक्षांश में 25 ° 49 ‘से 26
दिल्ली से दक्षिण की ओर मथुरा रोड पर 134 किमी पर छटीकरा नाम का गांव है। छटीकरा मोड़ से बाई
नंदगाँव बरसाना के उत्तर में लगभग 8.5 किमी पर स्थित है। नंदगाँव मथुरा के उत्तर पश्चिम में लगभग 50 किलोमीटर
मथुरा से लगभग 50 किमी की दूरी पर, वृन्दावन से लगभग 43 किमी की दूरी पर, नंदगाँव से लगभग 9
सोनभद्र भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का दूसरा सबसे बड़ा जिला है। सोंनभद्र भारत का एकमात्र ऐसा जिला है, जो
मिर्जापुर जिला उत्तर भारत में उत्तर प्रदेश राज्य के महत्वपूर्ण जिलों में से एक है। यह जिला उत्तर में संत
आजमगढ़ भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक शहर है। यह आज़मगढ़ मंडल का मुख्यालय है, जिसमें बलिया, मऊ और आज़मगढ़
बलरामपुर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में बलरामपुर जिले में एक शहर और एक नगरपालिका बोर्ड है। यह राप्ती नदी
ललितपुर भारत के राज्य उत्तर प्रदेश में एक जिला मुख्यालय है। और यह उत्तर प्रदेश की झांसी डिवीजन के अंतर्गत
बलिया शहर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित एक खूबसूरत शहर और जिला है। और यह बलिया जिले का
उत्तर प्रदेश के काशी (वाराणसी) से उत्तर की ओर सारनाथ का प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थान है। काशी से सारनाथ की दूरी
बौद्ध धर्म के आठ महातीर्थो में श्रावस्ती भी एक प्रसिद्ध तीर्थ है। जो बौद्ध साहित्य में सावत्थी के नाम से
कौशांबी की गणना प्राचीन भारत के वैभवशाली नगरों मे की जाती थी। महात्मा बुद्ध जी के समय वत्सराज उदयन की
बौद्ध अष्ट महास्थानों में संकिसा महायान शाखा के बौद्धों का प्रधान तीर्थ स्थल है। कहा जाता है कि इसी स्थल
त्रिलोक तीर्थ धाम बड़ागांव या बड़ा गांव जैन मंदिर अतिशय क्षेत्र के रूप में प्रसिद्ध है। यह स्थान दिल्ली सहारनपुर सड़क
शौरीपुर नेमिनाथ जैन मंदिर जैन धर्म का एक पवित्र सिद्ध पीठ तीर्थ है। और जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर भगवान
आगरा एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक शहर है। मुख्य रूप से यह दुनिया के सातवें अजूबे ताजमहल के लिए जाना जाता है। आगरा धर्म
कम्पिला या कम्पिल उत्तर प्रदेश के फरूखाबाद जिले की कायमगंज तहसील में एक छोटा सा गांव है। यह उत्तर रेलवे की
अहिच्छत्र उत्तर प्रदेश के बरेली जिले की आंवला तहसील में स्थित है। आंवला स्टेशन से अहिच्छत्र क्षेत्र सडक मार्ग द्वारा 18
देवगढ़ उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले में बेतवा नदी के किनारे स्थित है। यह ललितपुर से दक्षिण पश्चिम में 31 किलोमीटर
उत्तर प्रदेश की की राजधानी लखनऊ के जिला मुख्यालय से 4 किलोमीटर की दूरी पर यहियागंज के बाजार में स्थापित लखनऊ
नाका गुरुद्वारा, यह ऐतिहासिक गुरुद्वारा नाका हिण्डोला लखनऊ में स्थित है। नाका गुरुद्वारा साहिब के बारे में कहा जाता है
आगरा भारत के शेरशाह सूरी मार्ग पर उत्तर दक्षिण की तरफ यमुना किनारे वृज भूमि में बसा हुआ एक पुरातन
गुरुद्वारा बड़ी संगत गुरु तेगबहादुर जी को समर्पित है। जो बनारस रेलवे स्टेशन से लगभग 9 किलोमीटर दूर नीचीबाग में
रसिन का किला उत्तर प्रदेश के बांदा जिले मे अतर्रा तहसील के रसिन गांव में स्थित है। यह जिला मुख्यालय बांदा
उत्तर प्रदेश राज्य के बांदा जिले में शेरपुर सेवड़ा नामक एक गांव है। यह गांव खत्री पहाड़ के नाम से विख्यात
रनगढ़ दुर्ग ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रतीत होता है। यद्यपि किसी भी ऐतिहासिक ग्रन्थ में इस दुर्ग
भूरागढ़ का किला बांदा शहर के केन नदी के तट पर स्थित है। पहले यह किला महत्वपूर्ण प्रशासनिक स्थल था। वर्तमान
कल्याणगढ़ का किला, बुंदेलखंड में अनगिनत ऐसे ऐतिहासिक स्थल है। जिन्हें सहेजकर उन्हें पर्यटन की मुख्य धारा से जोडा जा
महोबा का किला महोबा जनपद में एक सुप्रसिद्ध दुर्ग है। यह दुर्ग चन्देल कालीन है इस दुर्ग में कई अभिलेख भी
सिरसागढ़ का किला कहाँ है? सिरसागढ़ का किला महोबा राठ मार्ग पर उरई के पास स्थित है। तथा किसी युग में
जैतपुर का किला उत्तर प्रदेश के महोबा हरपालपुर मार्ग पर कुलपहाड से 11 किलोमीटर दूर तथा महोबा से 32 किलोमीटर दूर
बरूआ सागर झाँसी जनपद का एक छोटा से कस्बा है। यह मानिकपुर झांसी मार्ग पर है। तथा दक्षिण पूर्व दिशा पर
चिरगाँव झाँसी जनपद का एक छोटा से कस्बा है। यह झाँसी से 48 मील दूर तथा मोड से 44 मील
उत्तर प्रदेश के झांसी जनपद में एरच एक छोटा सा कस्बा है। जो बेतवा नदी के तट पर बसा है, या
उत्तर प्रदेश के जालौन जनपद मे स्थित उरई नगर अति प्राचीन, धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व का स्थल है। यह झाँसी कानपुर
कालपी का किला ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अति प्राचीन स्थल है। यह झाँसी कानपुर मार्ग पर स्थित है उरई
कुलपहाड़ भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के महोबा ज़िले में स्थित एक शहर है। यह बुंदेलखंड क्षेत्र का एक ऐतिहासिक
तालबहेट का किला ललितपुर जनपद मे है। यह स्थान झाँसी – सागर मार्ग पर स्थित है तथा झांसी से 34 मील
लक्ष्मण टीले वाली मस्जिद लखनऊ की प्रसिद्ध मस्जिदों में से एक है। बड़े इमामबाड़े के सामने मौजूद ऊंचा टीला लक्ष्मण
लखनऊ का कैसरबाग अपनी तमाम खूबियों और बेमिसाल खूबसूरती के लिए बड़ा मशहूर रहा है। अब न तो वह खूबियां रहीं
लक्ष्मण टीले के करीब ही एक ऊँचे टीले पर शेख अब्दुर्रहीम ने एक किला बनवाया। शेखों का यह किला आस-पास
गोल दरवाजे और अकबरी दरवाजे के लगभग मध्य में फिरंगी महल की मशहूर इमारतें थीं। इनका इतिहास तकरीबन चार सौ
सतखंडा पैलेस हुसैनाबाद घंटाघर लखनऊ के दाहिने तरफ बनी इस बद किस्मत इमारत का निर्माण नवाब मोहम्मद अली शाह ने 1842
सतखंडा पैलेस और हुसैनाबाद घंटाघर के बीच एक बारादरी मौजूद है। जब नवाब मुहम्मद अली शाह का इंतकाल हुआ तब इसका
अवध के नवाबों द्वारा निर्मित सभी भव्य स्मारकों में, लखनऊ में छतर मंजिल सुंदर नवाबी-युग की वास्तुकला का एक प्रमुख
मुबारिक मंजिल और शाह मंजिल के नाम से मशहूर इमारतों के बीच ‘मोती महल’ का निर्माण नवाब सआदत अली खां ने
खुर्शीद मंजिल:- किसी शहर के ऐतिहासिक स्मारक उसके पिछले शासकों और उनके पसंदीदा स्थापत्य पैटर्न के बारे में बहुत कुछ
बीबीयापुर कोठी ऐतिहासिक लखनऊ की कोठियां में प्रसिद्ध स्थान रखती है। नवाब आसफुद्दौला जब फैजाबाद छोड़कर लखनऊ तशरीफ लाये तो इस
नवाबों के शहर के मध्य में ख़ामोशी से खडी ब्रिटिश रेजीडेंसी लखनऊ में एक लोकप्रिय ऐतिहासिक स्थल है। यहां शांत
ऐतिहासिक इमारतें और स्मारक किसी शहर के समृद्ध अतीत की कल्पना विकसित करते हैं। लखनऊ में बड़ा इमामबाड़ा उन शानदार स्मारकों
शाही नवाबों की भूमि लखनऊ अपने मनोरम अवधी व्यंजनों, तहज़ीब (परिष्कृत संस्कृति), जरदोज़ी (कढ़ाई), तारीख (प्राचीन प्राचीन अतीत), और चेहल-पहल
लखनऊ पिछले वर्षों में मान्यता से परे बदल गया है लेकिन जो नहीं बदला है वह शहर की समृद्ध स्थापत्य
लखनऊ शहर के निरालानगर में राम कृष्ण मठ, श्री रामकृष्ण और स्वामी विवेकानंद को समर्पित एक प्रसिद्ध मंदिर है। लखनऊ में
चंद्रिका देवी मंदिर– लखनऊ को नवाबों के शहर के रूप में जाना जाता है और यह शहर अपनी धर्मनिरपेक्ष संस्कृति के
1857 में भारतीय स्वतंत्रता के पहले युद्ध के बाद लखनऊ का दौरा करने वाले द न्यूयॉर्क टाइम्स के एक रिपोर्टर श्री
इस बात की प्रबल संभावना है कि जिसने एक बार भी लखनऊ की यात्रा नहीं की है, उसने शहर के
उत्तर प्रदेश राज्य की राजधानी लखनऊ बहुत ही मनोरम और प्रदेश में दूसरा सबसे अधिक मांग वाला पर्यटन स्थल, गोमती नदी
लखनऊ वासियों के लिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है यदि वे कहते हैं कि कैसरबाग में किसी स्थान पर
इस निहायत खूबसूरत लाल बारादरी का निर्माण सआदत अली खांने करवाया था। इसका असली नाम करत्न-उल सुल्तान अर्थात- नवाबों का
लखनऊ में हमेशा कुछ खूबसूरत सार्वजनिक पार्क रहे हैं। जिन्होंने नागरिकों को उनके बचपन और कॉलेज के दिनों से लेकर उस
एक भ्रमण सांसारिक जीवन और भाग दौड़ वाली जिंदगी से कुछ समय के लिए आवश्यक विश्राम के रूप में कार्य

write a comment