नवाब नजर मोहम्मद खान के कोई पुत्र न था। उनकी सिकन्दर बेगम नाम की केवल एक पुत्री थी। अतएव ब्रिटिश सरकार ने यह प्रस्ताव किया कि नजर मोहम्मद का भतीजा मुनीर मोहम्मद गोहर बेगम की रिजेन्सी के नीचे गद्दी पर बेठे। साथ ही यह भी तय हुआ कि मुनीर मोहम्मद खान सिकन्दर बेगम के साथ शादी कर ले। पर सन् 1827 में मुनीर मोहम्मद ने गौहर बेगम पर एक तरह से हुकूमत चलाना शुरू किया, इससे दोनों में नाइत्तफाकी होने लगी । अतएव ब्रिटिश सरकार ने मुनीर मोहम्मद को गद्दी से इस्तीफा देने के लिये मजबूर किया, और उसके छोटे भाई नवाब जहांगीर मोहम्मद खान को गद्दी पर बैठाया।
नवाब जहांगीर मोहम्मद खान का जीवन परिचय
सिकन्दर बेगम की शादी नवाब जहांगीर मोहम्मद के साथ हुई। गौहर बेगम और नवाब जहांगीर मोहम्मद खां की भी नहीं बनी।परस्पर तनातनी होने लगी। आखिर में सन् 1837 में पोलिटिकल एजेन्ट ने गौहर बेगम को रिजेन्सी से अवसर प्राप्त करने के लिये कहा। उसे गुजारे के लिये 500000 रुपये दिये गये। इंसवी सन् 1877 में दिल्ली में जो दरबार हुआ था, उसमें गौहर बेगम को “इस्पीरियल ऑर्डर आफ दी क्राऊन आफ इंडिया” की पदवी से विभूषित किया गया।

नवाब जहांगीर मोहम्मद खान बड़े विद्याप्रेमी थे। वे साहित्य से भी विशेष अनुराग रखते थे। विद्वानों की बड़ी क॒द्र करते थें। इतना होते हुए भी वे राज्य-कार्य पर बड़ा ध्यान देते थे। प्रजा की उन्नति ओर विकास की ओर उनका विशेष ध्यान था। पर दुर्भाग्य से ये इस संसार में अधिक दिनों तक नहीं रहने पाये। सन् 1844 में केवल 27 वर्ष की उम्र में इन्होंने परलोक-यात्रा की। नवाब जहांगीर मोहम्मद खां ने अपने मृत्यु-पत्र में यह इच्छा प्रकट की कि, उनकी रखैल का लड़का दस्तगीर उनकी गद्दी का वारिस हो और उनकी लड़की वजीर मोहम्मद के खानदान के किसी लड़के से ब्याही जावे।
ब्रिटिश सरकार ने इस मृत्यु-पत्र को मंजूर नहीं किया ओर उन्होंने नवाब जहांगीर मोहम्मद खान की पुत्री शाहजहाँ बेगम ही को गद्दी का वारिस कबूल किया। साथ ही में यह भी तय हुआ कि “शाहजहां बेगम का भावी पति, जो किभोपाल के राज्य-कुटुम्ब ही में से चुना जायेगा, भोपाल का नवाब होगा। यह इसलिये किया गया जिससे भोपाल के भूतपूर्व राज्यकर्ता गौस मोहम्मद और वजीर मोहम्मद दोनों के खानदान आपस में मिले हुए रहें।