ध्वनि तरंगों की प्रकृति क्या होती है तथा आवाज की गति की खोज Naeem Ahmad, March 8, 2022March 12, 2022 हमारे आसपास हवा न हो, तो हम किसी भी प्रकार की आवाज नहीं सुन सकते, चाहे वस्तुओं में कितना ही कंपन क्यों न होता रहे। निस्संदेह पानी में रहने वाले वे जीव, जिनके कान हाते हैं, जल में चलने वाली ध्वनि की लहरों से कुछ आवाजों को जरूर सुन सकते हैं। पर हमारे कानों के परदे केवल हवा या किसी गैस से ही स्पर्श करने योग्य बनाए गए हैं। इसलिए हवा या किसी गैस के बिना हम किसी प्रकार की ध्वनि नही सून सकते। जो साधारण आवाज हम सुनते हैं, वह हमारे आसपास की हवा में चलने वाली लहरों का प्रभाव मात्र होती है और ये लहरें किसी वस्तु के कंपन से पैदा होती हैं। इस बुनियादी बात को यदि हम ठीक समझ ले, तो फिर आवाज में वास्तविकता तथा का क्षेत्र में होने वाले अनेक विचित्र अनुभवों का रहस्य सहज ही समझ में आ जाता है। ध्वनि तरंगों की खोज क्या वस्तुओं के हर कंपन से हवा मे लहरें अवश्य उठती हैं और क्या उन लहरों की हम आवाज के रूप में सुन सकते हैं? इस सवाल के पहले अंश का उत्तर है ‘ हां और दूसरे का ‘नहीं’। कोई आवाज हम सुन सके, इसके लिए जरूरी है कि वस्तु में जो कंपन हो और उस से हवा में जो लहरें उठें, उनकी कंपन गति कम से कम 16 बार प्रति सेकंड हो। इससे भी कम गति का जो कंपन होगा, उसकी आवाज हम नहीं सुन सकते। ध्वनि तरंगें लेकिन इसका यह अर्थ नही कि आवाज की लहरों का कंपन शून्य से लेकर अनंत तक हो सकता है। वास्तव मे कंपन की एक हद तो वह है, जिससे ऊपर हम आवाज को सुन ही नहीं सकते, और एक हद खुद कंपन की है, जिससे ज्यादा या कम हवा में कंपन हो ही नहीं सकता। सुनने की हद को विज्ञान मे ‘श्रवण सीमा’ कहते हैं। यह 20,000 बार प्रति सेकंड तक कंपन गति पर समाप्त हो जाती है। अर्थात् इससे ज्यादा कंपन गति वाली लहरों की आवाज हम नहीं सुन सकते। इससे प्रकट है कि हमारी श्रवण शक्ति का क्षेत्र 16 से लेकर 20,000 बार प्रति सेकंड तक की कंपन गति है। 16 से कम गति की तमाम आवाजों (लहरों) को विज्ञान में इंफ़ासोनिक (अश्रव्य) और 20,000 से ज्यादा गति की लहरों को अल्ट्रासोनिक (पराश्रव्य) कहते हैं। आवाज की गति की समस्या पर ध्यान देने वाले पहले वैज्ञानिक ब्रिटेन के सर आइजक न्यूटन (17वीं सदी) थे। उन्होंने अपना प्रथम प्रयोग सन् 1686 मे किया था। जो तरीका उन्होंने अपनाया, वह प्रकाश व आवाज के अंतर का साधारण तरीका था, जिसका अनुभव बादलों मे बिजली की चमक के दिखाई देने और गरज के सुनाई देने के बीच के समय अंतर से कोई भी कर सकता है। न्यूटन ने इसका हिसाब लगाने के लिए काफी दूरी पर छूटने वाली एक तोप का प्रयोग किया था। उन्होने अपनी घड़ी में दो समय लिए एक तो तोप के छूटने और प्रकाश दिखने का समय और दूसरा उसके धमाके की आवाज के उनके कानो तक पहुंचने का समय। इन दोनों स॒मयों के बीच जितने सेकंडों का अंतर उन्हें मिला, उस पर बीच की दूरी को फैलाकर उन्होने आवाज की गति प्रति सेकंड निर्धारित कर ली। हवा के तापमान संबंधी तथ्य का आविष्कार न्यूटन से लगभग 130 वर्ष बाद फ्रांसीसी गणित ज्योतिषी लाप्लास ने किया। उसने प्रयोगात्मक रूप से यह सिद्ध किया कि आवाज की गति पर तापमान का बहुत असर पड़ता है। आवाज गर्म हवा मे ठंडी हवा के मुकाबले कहीं तेज चलती है। अतः आज जो आवाज की प्रामाणिक गति (1088 फुट प्रति सेकंड या लगभग 744 मील प्रति घंटा) निर्धारित है, वह आवाज की वह गति है, जो समुद्र तल पर शून्य अंश सेंटीग्रेड के तापमान में होगी। आवाज की लहरें आखिर कितनी दूरी तक जा सकी हैं? यह एक रोचक विषय है। ऐसे कई ऐतिहासिक उदाहरण है। जिनमे आवाज हजारों मील तक गई है। इनमें सबसे प्रसिद्ध घटना सन् 1883 में क्राकाटोआ ज्वालामुखी (इंडोनेशिया) के फटने की है। उसके धमाके से लगभग सारी पृथ्वी ही कांप उठी थी। और उसकी आवाज दुनिया के लगभग 1/13 भाग में सुनी गई थी। आवाज की लहरें जब हवा में से चलती हैं, तो उनका आकार प्रकार प्रकाश-तरंगों जैसा हो जाता है। वे किसी ठोस सतह से टकराकर लौट या मुड़ सकती हैं। एक समतल दीवार से टकरा कर वह फिर सीधी अपने स्रोत के पास लौट सकती हैं। प्रति ध्वनि इसी प्रतिक्रिया का नाम है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े [post_grid id=’8586′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... विश्व की महत्वपूर्ण खोजें प्रमुख खोजें