अंतरिक्ष में इधर-उधर भटकते ये रहस्यमय धूमकेतु या पुच्छल तारे मनुष्य और वैज्ञानिकों के लिए हमेशा आशंका, उलझन तथा विस्मय का कारण बने रहे हैं। अंधविश्वासी लोग पुच्छल तारे को अशुभ और विपत्ति लाने वाला मानते हैं। उनके अनुसार जब भी पुच्छल तारा दिखाई देता है, तब भयानक बाढ, सूखा, भारी वर्षा, भूकम्प और ज्वालामुखी विस्फोट जैसी विनाशकारी आपदाएं आती हैं। धूमकेतु तारे का शीर्ष बहुत चमकीला होता है और इसके पीछे एक लम्बी चमकती हुई पूछ होती है। कभी-कभी यह पूंछ इतनी लंबी होती है कि सूर्य से पृथ्वी तक पहुंच सकती है- अर्थात् लाखों मील लम्बी।
सन् 1944 में एक ऐसा विचित्र धूमकेतु देखा गया था, जिसकी एक नहीं, छह पूंछे थी, जिनकी लंबाई लाखो मील थी। सन् 1811 मे एक ऐसा धूमकेतु प्रकट हुआ था, 1 ,700,000 किमी व्यास का तथा पूछ की लबाई 2,210,000 थी। पहली बार धूमकेतुओं के मार्ग के बारे में वैज्ञानिक एडमंड हेली ने खोज की। वेऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में खगोलशास्त्र के प्रोफेसर थे। हेली महान् वैज्ञानिक न्यूटन के मित्र थे। न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के नियम की खोज की थी। सूर्य के गुरुत्वाकर्षण के कारण ही सारे ग्रह इसकी परिक्रमा करते हैं। तब यह भी पता चला कि ग्रहों की तरह धूमकेतु भी सूर्य की परिक्रमा करते रहते हैं। एडमंड हेली ने ही पहली बार इसे सिद्ध किया।
उन्होने इस बात की भी खोज की कि सन् 1531 और सन् 1607 में भी इसी तरह के धूमकेतु प्रकट हुए थे। हेली ने अनेक गणनाएं की। अंत में वह इस नतीजे पर पहुंचे कि जो धूमकेतु सन् 1531 और सन् 1607 में दिखाई दिया था, वही पुनः सन् 1682 में दिखाई दिया। इन संख्याओं में 75 या 76 का अंतर था, इसका मतलब यह था कि धूमकेतु 75 या 76 सालो में सूर्य का एक चक्कर लगाता है। अंततः हेली की भविष्यवाणी सच निकली। लेकिन अपनी भविष्यवाणी सच होते देखने के लिए वह जीवित नहीं थे। इससे पहले ही उनकी मृत्यु हो चुकी थी। उनकी स्मृति में ही यह धूमकेतु हेली का धूमकेतु कहलाया।

हेली ने सन् 1337 से सन् 1698 के मध्य देखे गए सभी धूमकेतुओं की कक्षाएं निर्धारित की तथा उनके बारे में अनेक महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त की। सन् 1928 में एक अन्य खगोलशास्त्री पिकरिंग ने 8 ऐसे धूमकेतुओं की खोज की जो सूर्य से सात अरब मील की दूरी पर थे। इसी आधार पर उन्होने प्लूटो के बाहर एक और ग्रह की कल्पना की।अधिकांश धूमकेतुओं का संबध हमारे सौरमंडल से ही होता है और वे इसकी सीमा से शायद ही कभी बाहर जाते हों। कुछ धूमकेतु हमारे सौरमंडल में बाहर से भी आ जाते हैं। ये सौरमंडल में आकर सूर्य के चक्कर लगाते रह जाते हैं। अब तक वैज्ञानिक इस बात का निश्चित पता नहीं लगा सके हैं कि ये ब्रह्मांड के किस क्षेत्र से आते हैं और कहां वापस चलें जाते हैं।
वास्तव मे इन धूमकेतुओं का सिर छोटी-छोटी चट्टानों, धातुओं, ठोस गैसों और हिमकणों का एक समूह होता है। इनकी पूंछ गैस और धूल तथा हिमकणों से बनी होती है। धूमकेतुओं की पूंछ तभी दिखाई देती है जब यह सूर्य के समीप पहुंचता है। पूंछ धूमकेतु के पीछे-पीछे धुएं की लकीर के समान चलती है। जैसे -जैसे धूमकेतु सूर्य के समीप पहुंचता जाता है, उसकी पूंछ सूर्य के प्रभाव से लंबी होती जाती है। जब धूमकेतु सूर्य से दूर निकल जाता हैं तो उसकी पूंछ भी सिकुड़ कर छोटी होती जाती है। धूमकेतु की सबसे विचित्र बात उसकी पूंछ का घटना-बढ़ना होता है।
हेली धूमकेतु का खोज अभियान
हेली का धूमकेतु अर्थात् हेली पुच्छल तारा प्रत्येक 76 वर्ष बाद प्रकट होता है। यह माना जाता है कि उसकी पूंछ अंतरिक्ष में हजारों किलोमीटर लंबी होती है। वह मुख्यतः धूल-मिट्टी और बर्फ के कणों से बनी होती है। यह धूमकेतु जब अपनी कक्षा में रहते हुए सूर्य की ओर बढ़ता है, तो हमारी पृथ्वी के निकटतम होता है और तीव्र प्रकाश उत्पन्न करता है।
अंतिम बार सन् 1910 मे हेली धूमकेतु देखा गया था। 76 वर्षीय चक्र के अनुसार हेली को सन् 1986 में आना था। इस बार दुनियाभर के वैज्ञानिक इसके अध्ययन के लिए पूरी तरह से तैयार थे। आस्ट्रेलिया की पाकर्स वेधशाला सहित विश्व की सभी वेधशालाएं इस धूमकेतु का बारीकी से अध्ययन करने के लिए अपनी दूरबीने आकाश की ओर किये तैयार बैठी थी। “आपरेशन हेली” नामक परियोजना के अन्तर्गत यूरोपीय स्पेस एजेंसी (ई.एस.ए.), सोवियत रूस, जापान तथा नासा (अमरीका) के अन्तरिक्ष यानों ने हेली धूमकेतु को घेरा।
444 दिन अंतरिक्ष मे रहने के बाद 4 मार्च, 1986 को सोवियत स्पेस प्रोब वेहा-1 (Soviet space probe veha-1) ने हेली धूमकेतु का प्रथम चित्र खीचा। 6 मार्च, 1986 को हेली के शीर्ष से लगभग 9,000 किमी. की दूरी से वेहा-1 इस धूमकेतु की गैसों तथा गुबार में से होकर गुजरा। रूस के अतिरिक्त आस्ट्रिया,
बल्गारिया, हगरीं, जर्मनी, पोलैंड, फ्रांस, चेकोस्लोवाकिया तथा भारत सहित विश्व के अन्य देशों के खगोलविदों ने भी अपने-अपने तरीके से हेली के न्यूक्लियस तथा प्लाज्मा आच्छादित वातावरण-का अध्ययन किया। इन दिनों विश्व की सभी वेधशालाओं में एकत्रित किये आकडोउ का विश्लेषण एवं अध्ययन चल रहा है। अगली बार हेली धूूम्रकेतु 2062 में फिर दिखाई देगा।