गुरूद्वारा श्री तेगबहादुर साहिब या धुबरी साहिब भारत के असम राज्य के धुबरी जिले में ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे स्थित हैं। सिक्खों के प्रथम गुरू श्री गुरू नानक देव जी की याद में धुबरी में ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे बनाया गया था। सन् 1505 में सिक्ख धर्म के संस्थापक श्री गुरू नानक देव जी आसाम से धनपुर होते हुए, महापुरुष श्रीमन्ता शंकर देवा के साथ यहां रूके थे
गुरूद्वारा गुरू तेग बहादुर धुबरी साहिब का इतिहास
गुरू जी ने यहाँ लोगों से बातचीत करके कहा कि तंत्र विद्या को छोड़कर आपस में मिलकर एक धर्म बनाये, और एक भगवान की पूजा करें, और इन काला जादू और काली विद्याओं को छोड़ दे। अपनी आसाम यात्रा के दौरान सिक्खों के नवें गुरू गुरू तेगबहादुर जी धुबरी साहिब में आएं। और 17 वी शताब्दी में यहां गुरूद्वारा धुबरी साहिब की स्थापना की। जयपुर के राजा रामसिंह के साथ इस स्थान पर गुरू तेगबहादुर जी घूमने आये।
मुगलों के समय में मुगल और अहोम में लड़ाई छिड़ गई। आसाम में बहुत से मुगलों को पकड़ लिया गया। सन् 1667 में गुवाहाटी और कामाख्या जैसे पावन स्थल और उनके आसपास के स्थानों को घेर लिया गया। राजा राम सिंह ने सन् 1669 में मुगल जनरल अम्बर को हराया था। अहोम लड़ाई के शस्त्रों से पूरी तरह सुसज्जित था।
गुरूद्वारा गुरू तेग बहादुर धुबरी साहिब के सुंदर दृश्यवह जानते थे कि राजा रामसिंह के माता पिता गुरू तेगबहादुर के सिद्धांतों पर चलते है। राजा रामसिंह ने गुरू तेग बहादुर से प्रार्थना की कि इस लड़ाई में वह उनका साथ दे। गुरू तेगबहादुर ने स्वीकृति दे दी और अंदर ही अंदर राजा रामसिंह की सहायता की। इस लड़ाई में राजा रामसिंह को पकड़ लिया गया और उनके साथ उनका पुत्र शिवाजी और उनका बेटा पकड़ा गया।
कामरूप में पहुंचते ही गुरू तेगबहादुर धुबरी में पकड़े गये। राजा रामसिंह और उनके सैनिक सहित रंगमति किले में बंदी बनाये गये। आसाम की औरतों ने काला जादू और तंत्र विद्या का मंत्र पढ़ना शुरू किया। उस मंत्र से 25 फिट लम्बा एक पत्थर हवा में लहराते हुए गुरू तेगबहादुर के पास आकर जमीन में आधा धंस और वहीं पर खड़ा हो गया। और उनकी तंत्र विद्या फेल हो गयीं।
जब पत्थर ने अपना काम नहीं किया, तब वहां की औरतें गुरू तेगबहादुर जी के पास जाकर क्षमा याचना करने लगी। गुरू तेगबहादुर ने दोनों शासकों से पूछा कि लड़ाई के परिणाम से क्या मिला। तब अहोम के राजा ने गुरू तेगबहादुर को कामख्या मंदिर में बुलाया, वहां उनका बहुत आदर सम्मान किया गया।
धुबरी में ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे यह गुरूद्वारा काफी बड़े क्षेत्र मे फैला हुआ है, और सफेद रंग में बहुत ही सुंदर व आकर्षक दिखाई पड़ता है। धुबरी साहिब गुरूद्वारे का प्रवेश द्वार बहुत ही अद्भुत है। जिसे चढने के लिए बहुत सी सीढियां बनी है, जो लाल रंग से रंगी है। मुख्य द्वार से अंदर जाते ही बहुत बड़ा खुला हुआ आंगन है। जहाँ गुरू साहिब का दरबार लगता था।आंगन के एक किनारे श्री गुरू ग्रंथ साहिब पालकी साहिब में विराजमान है। जो गैलरी से सीधे सामने की ओर दिखाई देता हैं। जहाँ पवित्र ग्रंथ साहिब रखे है, उसके ठीक बाई ओर अष्टभुजाकार अर्धगोलाकार छत है। गुरू तेगबहादुर जी यही पर पवित्र ग्रंथ साहिब लिखा करते थे।
पूरे गुरूद्वारा धुबरी साहिब की बनावट महल की तरह है। निचला भाग सफेद पत्थर का बना हैं। और छत पर प्लास्टर पर सफेद पेंट किया हुआ है। पूरे भारत वर्ष से सभी जाति धर्म के लोग दिसंबर माह में यहां विशेष रूप से आते है और गुरू तेग बहादुर जी की वर्षगांठ मनाते है। सिक्ख धर्म के भक्तगण इस दिन को शहीदी गुरू पर्व के नाम से मनाते है। गुरूद्वारा गुरू तेग बहादुर धुबरी में जूताघर, लंगर हाल, प्रसाद घर, अतिथि गृह और कार्यालय स्थापित है।
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गुरूद्वारा कमेटी द्वारा वर्ष में गुरु नानक जयंती, गुरू तेग बहादुर जयंती, होला मोहल्ला, वैशाखी एवं अन्य पर्व धुबरी साहिब में बडी धूम धाम से मनाये जाते है।
श्री गुरू तेग बहादुर साहिब गुरूद्वारा धुबरी पहुचनें का मार्ग सड़कों से अच्छी तरह जुडा हुआ है। यह असम की राजधानी गुवाहाटी से 265 किलोमीटर की दूरी पर है। ट्रेन से पहुंचने के लिए धुबरी में स्वयं का एक रेलवे स्टेशन है। निकटतम हवाई अड्डा एल.जी.बी.आई गुवाहाटी है।
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