द्वारकाधीश मंदिर जालौन नगर के मुरली मनोहर नामक मुहल्ले में स्थित है यह उत्तर प्रदेश का प्रसिद्ध मंदिर है । द्वारकाधीश मन्दिर जालौन का निर्माण सन 1880 से 1885 के बीच सेठ चतुर्भुज दास मारवाड़ी पुत्र श्री नत्थूलाल मारवाड़ी द्वारा कराया गया। सेठ चतुर्भुज दास, ग्राम बाउली से गोद आये थे। इनके पूर्वज मूल रूप से जैसलमेर (राजस्थान) के निवासी थे। द्वारकाधीश मन्दिर के निर्माण का मुख्य उद्देश्य ईश्वर के चरणों में समर्पण कर निजी पुण्य लाभ अर्जित करना तो था ही साथ ही साथ वंश वृद्धि की कमना भी थी। इनके तीन विवाह हुए थे। प्रथम विवाह के उपरान्त मन्दिर की आधारशिला रखी गयी। पर प्रथम पत्नी के स्वर्गवास के पश्चात् जब दूसरा विवाह होने पर दूसरी धर्मपत्नी भी अल्पकाल में ही स्वर्गवासी हो गयी तो उनका तृतीय विवाह हुआ। तृतीय धर्मपत्नी के सामने मंदिर में भगवान द्वारकाधीश जी की प्राण प्रतिष्ठा हुईं और उसके परिणामस्वरूप इस वंश को एक मात्र कुल दीपक प्राप्त हुआ। जिसे गोकुलदास जी के नाम से जाना गया ।
सेठ चतुर्भुज दास जी ने अपनी जमींदारी के समय ग्राम हरदोई राजा की जमीन पर गोकुलपुरा नामक ग्राम की नींव डाली और उस पर हरिजनों को आबाद किया और आज भी यह हरिजनो की अच्छी आबादी का ग्राम है। इस मन्दिर की सेवा पूजा वैष्णव सम्प्रदाय की बल्लभ कुलीन पुष्टि मार्गीय सेवा नियमों पर आधारित है। श्री नाथ ( राजस्थान) से प्राप्त होने वाली वार्षिक निर्देशिका से मन्दिर के सभी कार्य संचालित होते है। इस मन्दिर में भगवान के दर्शन प्रातः मंगला, अंगार एवं राजभोग तथा सायंकाल में उत्थापन संध्या आरती एवं रात्रि में शयन आरती के समय ही निर्धारित समय पर होते है।
द्वारकाधीश मंदिर जालौन
सावन के महीने में झूलों का विशेष उत्सव चलता है। उस समय द्वारकाधीश मंदिर जालौन में मथुरा वृन्दावन जैसा वातावरण हो जाता है। यह कार्यक्रम जन्माष्टमी के दूसरे दिन दधिखाना उत्सव तक चलता है। वैसे तो लगभग सभी त्यौहार इस मन्दिर में मनाये जाते है। परन्तु अन्नकूट उत्सव अपना विशेष महत्व रखता है। देवोत्थान एकादशी पर पूर्ण रात्रि दर्शन खुले रहते हैं। शरदपूर्णिमा पर ठाकुर जी को चौक पर ले जाया जाता है। जिससे चन्द्रमा की स्वच्छ शीतल धवल चाँदनी में उनके दर्शन हो सके। उस रात्रि शग” नहीं होता है क्योंकि यह रात्रि में ही भगवान जी द्वारा रासलीला की जाती है। इसी भाँति रामनवमी को दोपहर 11 बजे से 12 बजे तक राम जन्मोत्सव एवं कृष्णा जन्माष्टमी को रात्रि 11 बजे से 12 तक कृष्ण जन्मोत्सव सम्पन्न होता है।
सेठ चतुर्भुज दास पूरे धार्मिक आस्था वाले व्यक्ति थे। जिन्होंने अपनी आय का अधिकांश भाग कई बड़े मन्दिरों के निर्माण में लगाया। जिनमें जालौन में स्थित बड़ी देवी, छोटी देवी भैरो जी और हनुमान जी आदि के मन्दिर प्रमुख है। अपनी जमींदारी के गांव गोरा भूपका में भी रामचन्द्र जी तथा देवी जी के विशाल मन्दिरों का निर्माण कराया। सेठ चतुर्भुज दास जी अन्य जमींदारों के मुकाबले में अधिक जमींदारी न खरीद लें इस कारण ब्रिटिश सरकार ने व्यक्तिगत जमींदारी खरीदने पर पाबन्दी लगा दी थी तथा उन्होंने कई पूरे के पूरे गाँव जैसे हरदोई राजा , पारेन तथा कुसमरा, पनिहार आदि के कुछ भाग खरीद कर भरी द्वारकाधीश जी के मन्दिर में लगा दिये। चूँकि द्वारकाधीश मन्दिर जालौन के निर्माण के साथ वंश वृद्धि की भावना भी जुड़ी थी जो आजतक श्री द्वारकाधीश जी की कृपा से फलीभूत हो रही है। परिणाम स्वरूप सेठ चतुर्भुज दास जी के पुत्र श्री गोकुल दास इनके पुत्र श्री द्वारिका दास उपनाम सीताराम महेश्वरी तथा इनके पुत्र श्री विनय कुमार जी एक मात्र पुत्र होने का सुयोग चलता चला आ रहा है। यह भगवान द्वारकाधीश के आशीर्वाद का ही प्रतिफल माना जाता है।
मन्दिर के मूल भवन का निर्माण ककैय्या ईटों तथा चूने से हुआ था जिसका जीर्णोद्वार सन 1964 से 1972 के मध्य सेठ द्वारकादास जी उपनाम सीताराम जी ने कराया। मन्दिर के निर्माण में तत्कालीन समय में चांदी के 25000 रूपये व्यय होना बतलाया जाता है। उस समय चित्रकार तथा शिल्पी लोगों में पतिस्पर्धा जगाकर पर्दा डाल दिया जाता था कि कौन कितनी अच्छु’ शिल्प या चित्रकारी कर पायेगा। उनको पारितोषक भी दिया जाता था। विशेषकर गर्भगृह के ऊपर बने हुए तीन मंगला कमरा इसका मुख्य प्रमाण है। समस्त मन्दिर का भवन तीन मंजिला है जोकि बगीचा एवं खुले परिसर सहित है। गर्भगृह आयताकार है। जिसके पश्चिम में एक बगीचा है तथा जिसके पूर्व में दालान तथा फिर चौक है और चौक के उत्तरी ओर मन्दिर बड़ी देवी जी का तथा चौक के पश्चात् एक दालान है और दालान के बाद एक चबूतरा बना हुआ है। द्वारकाधीश मंदिर जालौन कुल 136 फुट चौड़ाई एवं 209 फुट लम्बाई में सीमित है। द्वारकाधीश मंदिर जालौन पूर्वाभिमुख है।