उत्तर प्रदेश केमऊ जनपद में लगने वाला देवलास का मेला बहुत मशहूर है। ऐसी मान्यता है कि देवलास नामक स्थान पर देवल
मुनि ने तपस्या की थी। यह भी जनश्रुति है कि महर्षि विश्वामित्र के साथ भगवान राम जब अयोध्या से जा रहे थे तो यही महर्षि देवल के आश्रम पर विश्राम किया था। इस तरह इस मेले का पौराणिक
महत्व हो जाता है। बीस दिन तक लगने वाला देवलास का मेला मोहम्मदाबाद-गोहना से घोसी मार्ग पर लगभग आठ किलोमीटर दूर है। यह मेला कार्तिक शुक्ल पक्ष सुदी छठ से प्रारंभ हो जाता है। जिला मुख्यालय में से देवलास की दूरी लगभग 27 किलोमीटर है, तथा आजमगढ़ से भी यह स्थान लगभग इतनी ही दूरी पर पड़ता है।
देवलास का महत्व
देवलास मंदिरदेवलास धाम पर की देव स्थान है भगवान की अलग-अलग मूर्तियां स्थापित हैं। यहां का सबसे प्रसिद्ध सूर्य मंदिर है जिसके पास ही एक पवित्र सरोवर है, सरोवर के जल को गंगा जल की तरह पवित्र माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि छठ पर्व के दिन सूर्य मंदिर सहित अन्य देवालयों में स्वर्ग लोक से देवता उतरते हैं। तथा यहां सरोवर में स्नान करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। इसी मान्यता के अनुसार छठ पर्व के अवसर पर हजारों की संख्या में श्रृद्धालु पवित्र सरोवर में स्नान करते हैं तथा उगते सूर्य को अर्घ्यदान देते है। मऊ जिले केइस प्राचीन तथा पौराणिक स्थल पर सूर्य मंदिर, राधा कृष्ण मंदिर, शंकर मंदिर, संतगणिनाथ मंदिर,हनुमान मंदिर, संत रविदास का मंदिर सूघर दास का मठ सहित 16से अधिक मंदिर है । बताया जाता है कि भगवान राम अपने गुरु विश्वामित्र जी के साथ ताड़का वध करने के लिए बक्सर जाते समय सूर्य देवता की उपासना करने के लिए रात्रि में यहां विश्राम किया था और इसके साथ ही वहां पर स्नान कर सूर्य भगवान को अर्घ्य दिया था। इसलिए माना जाता है कि इस सरोवर मेें स्नान कर लेने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
देवलास का मेला
यहां पहुचने के लिए यातायात की सुविधाए उपलब्ध है। आवासीय व्यवस्था मदिर मे, आश्रम मे अन्यथा नगर मे है। इस मेले मे कला, शिल्प, प्रस्तर, मिट्टी, काष्ठ, सीक की वस्तुएं बिकने के लिए आती है। मनोरंजन के लिए भजन-कीर्तन, यज्ञ, रामायण, गीत, नाट्य, जादू, वाद्य, यदा-कदा कुश्ती के आयोजन होते है।इस मेले से व्यापारियो की आय बढ जाती है। इस मेले मे घोडे बिकने के लिए आते है। इस मेले की सबसे बडी विशेषता है कि प्रत्येक धर्मों, सम्प्रदाय के प्रतीक एक जगह स्थापित है जिसके कारण हर धर्म, जाति सम्प्रदाय के लोग यहां बेरोकटोक पहुंचते है।
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