दुर्वासा धाम मेला आजमगढ़ उत्तर प्रदेश

दुर्वासा धाम मेला

आजमगढ़ बहुत पुराना नगर नही है, किंतु तमसा के तट पर स्थित होने के कारण सांस्कूतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा है। काशी के संत-महात्मा यहां आते रहे है। यह भूमि तपस्या के लिए उपयोगी
रही है। तमसा गोमती की तरह गहरी नदी है जिसके तट पर अनेक यज्ञानुष्ठान होते रहे है। उन्ही स्मृतियों को स्थायित्व प्रदान करने के लिए यहां मेलो का आयोजन किया जाता है। आजमगढ़ जनपद का मुख्य मेला दुर्वासा धाम मेला है।

दुर्वासा धाम मेला आजमगढ़

दुर्वासा धाम नाम यह स्थान आजमगढ से फूलपुर-खुरासन मार्ग पर छः किलोमीटर उत्तर में स्थित है। यहां प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर बहुत बडा मेला लगता है। इतना बडा कि दो से तीन लाख दर्शनार्थी यहां एकत्र हो जाते है। आस-पास के जनपदों से भी यहां लोग स्नान-दर्शन, पूजन, भजन-कीर्तन मे प्रतिभाग करते हैं। यहां जाने के लिए सडक और रेलमार्ग की सुविधा है। यहां ठहरने के लिए धर्मशाला और विशाल पुराना सुन्दर मंदिर है।

दुर्वासा धाम मेला
दुर्वासा धाम मेला

कार्तिक पूर्णिमा की शारदीय, सुहावनी, सुखद अमृत वर्षा करने वाली चांदनी शत में चन्द्र प्रकाश में चंद्रिका-स्नान करते हुए आनन्दोल्लास के वातावरण मे विविध धार्मिक तथा सांस्कृतिक आयोजन होते हैं। यदा-कदा कवि-सम्मेलन, मानस-यज्ञ, गीता प्रवचन भी होते है।

दुर्वासा धाम मेला वैसे तो एक सप्ताह चलता है, किंतु गहमा गहमी तीन दिन रहती है। कहते है, यहां चौरासी हजार ऋषियों ने तपस्या की थी। तमसा और मंजूषा के संगम पर आज भी कुछ अवशेष प्राप्त हो जाते है।

महार्षि दुर्वासा के नेतृत्व मे यहां ऋषियों का महा संगम हुआ था और उनकी तपस्या से पूरा क्षेत्र तपःपूत हो गया था। यहां तब से अब तक कई महायज्ञ-यज्ञ हो चुके है।

दुर्वासा धाम मेले में हस्तकला के सामान- कुदाल, फावडा, हसिया, पहसुल, करछुल, सडसी, औजार, दैनिक उपयोग की वस्तुएं बिकने के लिए आती है। आजमगढ़ के लाल मिट्टी के पात्र तथा टेराकोटा और लकडी की बनी कलात्मक कलाकृतियां प्रसिद्ध है। इस मेले मे उनकी भारी खपत होती है जिससे राजस्व की भी अच्छी प्राप्ति हो जाती है।

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