दरबार साहिब तरनतारन हिस्ट्री इन हिन्दी – श्री दरबार साहिब तरनतारन का इतिहास Naeem Ahmad, June 18, 2021March 11, 2023 श्री दरबार साहिब तरनतारन रेलवे स्टेशन से 1 किलोमीटर तथा बस स्टैंड तरनतारन से आधा किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह पवित्र स्थान अमृतसर से केवल 24 किलोमीटर की दूरी पर अमृतसर – फिरोजपुर रोड़ पर स्थित है। दरबार साहिब तरनतारन हिस्ट्री इन हिन्दी गुरुद्वारा दरबार साहिब तरनतारन प्राचीन दिल्ली – लाहौर राजमार्ग पर स्थित है। तरनतारन पांचवें गुरु अर्जुन देव जी द्वारा बसाया गया एक पवित्र धार्मिक ऐतिहासिक शहर है। गुरु अर्जुन देव जी ने खारा व पालासौर के गांवों की जमीन खरीदकर सन् 1590 में इस ऐतिहासिक नगर की नींव रखी थी। मीरी पीरी के मालिक गुरु हरगोबिंद जी महाराज के पावन चरण भी इस स्थान पर पड़े है। श्री दरबार साहिब तरनतारन का निर्माण कार्य अभी चल ही रहा था कि सराय नूरदीन का निर्माण सरकारी तौर पर शुरू हो गया। तरनतारन का निर्माण कार्य रुकवा दिया गया। निर्माण के लिए एकत्र हो गई सामग्री ईंटें इत्यादि नूरदीन का पुत्र अभीरुद्दीन उठा कर ले गया। सन् 1772 में सरदार बुध सिंह फैजल ने सराय नूरदीन पर कब्जा किया तथा नूरदीन की सराय को गिरवा दिया एवं गुरूघर की ईंटों को वापस लिया तथा गुरु की नगरी तरनतारन का निर्माण दुबारा शुरु करवाया। शेरे पंजाब महाराजा रणजीत सिंह ने अपनेराजकाल के दौरान श्री दरबार साहिब तरनतारन की ऐतिहासिक इमारत को नया रुप प्रदान किया तथा सोने की मीनाकारी का ऐतिहासिक कार्य करवाया। विशाल सरोवर की परिक्रमा को महाराज ने ही पक्का करवाया। तत्कालीन परिस्थितियों के अनुरूप सिक्ख संगतों के आवागमन के लिए बहुत सारे बुर्ज भी बनाये गये। अंग्रेजों के समय में भी दरबार साहिब तरनतारन का प्रबंध उदासी महंतों के पास था। गुरुद्वारा प्रबंध सुधार लहर के समय 26 जनवरी 1920 को उदासियों के साथ संघर्ष करके सिक्खों ने इस स्थान का प्रबंध अपने हाथों में लिया। सन् 1930 को श्री दरबार साहिब तरनतारन का प्रबंध शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पास आ गया। तरनतारन दरबार साहिब की की अतिसुन्दर आलीशान इमारत, इसके विशाल सरोवर के एक किनारे पर सुशोभित है। इस पवित्र ऐतिहासिक स्थान पर सभी गुरूपर्व श्री गुरु अर्जुन देव जी महाराज का शहीदी दिवस तथा बैसाखी बड़े स्तर पर मनायें जाते है। दरबार साहिब तरनतारन श्री दरबार साहिब के अलावा तरनतारन मे गुरुद्वारा गुरु का कुआँ, गुरुद्वारा मंजी साहिब, गुरुद्वारा टक्कर साहिब, बीबी भानी जी का कुआँ आदि धार्मिक ऐतिहासिक स्थान मुख्य रूप से दर्शनीय है। गुरुद्वारा श्री बीबी भानी दा कुआँ इसे गुरुद्वारा श्री बीबी भानी दा खोह के नाम से भी जाना जाता है। गुरु अर्जुन देव जी ने यहां पानी की पूर्ति के लिए कई कुएँ खुदवाये थे। यह गुरुद्वारा श्री दरबार साहिब तरनतारन से लगभग 500 मीटर की दूरी पर स्थित है। बीबी भानी श्री गुरु अमर दास जी की बेटी, श्री गुरु राम दास जी की पत्नी और श्री गुरु अर्जुन देव जी की माँ थीं। बीबी भानी इस स्थान पर कोढ़ियों, जरूरतमंदों और आने वाले सिखों को भोजन, पानी और दवा मुहैया कराती थीं। अपनी मां बीबी भानी की याद में श्री गुरु अर्जुन देव साहिब जी ने यहां एक खोह (कुआं) बनवाया था। बाद मे स्थानीय सिखों ने डेरा कार सेवा तरनतारन की मदद से इस स्थान को संरक्षित किया और एक गुरुद्वारा का निर्माण किया। गुरुद्वारा श्री गुरु का खोह साहिब तरनतारन शहर में स्थित यह गुरुद्वारा श्री गुरु का खोह साहिब, वह जगह है जहाँ श्री गुरु अर्जुन देव जी महाराज की देखरेख में एक खोह (कुआँ) खोदा गया था। जब गुरुद्वारा श्री दरबार साहिब बन रहे थे, तब गुरु अर्जुन देव जी महाराज दिन भर का काम खत्म करके यहां विश्राम करने आते थे। गुरुद्वारा श्री लकीर साहिब सिखों की आध्यात्मिक शक्ति के स्रोत हरमंदिर साहिब को नष्ट करने के लिए, अहमद शाह अब्दाली ने जहांन खान को श्री हरमंदिर साहिब को नष्ट करने का आदेश दिया। आदेशों का पालन करते हुए, 1757 में, जहान खान भारी तोपखाने के साथ अमृतसर के लिए रवाना हुआ। राम रौनी के सिख किले को धराशायी कर दिया गया था। श्री हरमंदिर साहिब की रक्षा करने की कोशिश में कई सिख मारे गए गुरुद्वारा और उसके आसपास की इमारतों को ध्वस्त कर दिया गया और सरोवर गंदगी, मृत जानवरों और मलबे से भर गया। श्री हरमंदिर साहिब को तब सभी सिखों के लिए बंद कर दिया गया थागुरुद्वारा श्री लेकर साहिब उस स्थान पर स्थित है जहां बाबा दीप सिंह जी ने 1757 में मुगल साम्राज्य के खिलाफ उनके अत्याचारों के लिए युद्ध में प्रवेश करने से पहले जमीन पर एक रेखा चिह्नित की थी। बाबा दीप सिंह जी ने केवल उन लोगों से कहा जो सिखों के लिए लड़ने और मरने के लिए तैयार थे, और श्री हरमंदिर साहिब के अपमान को रोकने के लिए, लाइन पार करने के लिए कहा। गुरुद्वारा श्री मंजी साहिब तरनतारन मंजी साहिब, गुरुद्वारा श्री दरबार साहिब परिसर के भीतर परिक्रमा पथ के पूर्वी भाग में एक छोटा गुंबददार गुरुद्वारा है, यह उस स्थान को चिह्नित करता है जहाँ से गुरु अर्जन ने सरोवर की खुदाई का पर्यवेक्षण किया था। एक दीवान हॉल, प्रबलित कंक्रीट का एक विशाल मंडप, अब इसके करीब खड़ा किया गया है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—– [post_grid id=”6818″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के प्रमुख धार्मिक स्थल ऐतिहासिक गुरूद्वारेगुरूद्वारे इन हिन्दीपंजाब की सैरपंजाब टूरिस्ट 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