गुरुद्वारा दमदमा साहिब हरगोबिंदपुर, श्री हरगोबिंदपुर शहर में बटाला से 32 किमी और गुरदासपुर शहर से 40 किमी की दूरी पर स्थित है। इस शहर की स्थापना पांचवें सिख गुरु, श्री गुरु अर्जुन देव जी ने 1587 में की थी और उनके बेटे के नाम पर श्री हरगोबिंदपुर का नाम रखा गया था। गुरु अर्जुन देव जी की शहादत के बाद शहर खंडहर में तब्दील हो गया। सिखों के छठे गुरु, श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने 1630 में करतारपुर से आते हुए शहर का दौरा किया और शहर का पुनर्वास किया। शहर के एक अमीर खत्री भगवान दास ने ईर्ष्या महसूस की और गुरु जी को क्षेत्र खाली करने की चुनौती दी। एक छोटी सी झड़प हुई और भगवान दास की मौत हो गई। भगवान दास के पुत्र रतन चंद चंदू के पुत्र करम चंद के साथ जालंधर के फौजदार के पास मदद मांगने गए। फौजदार ने मुगल सैनिकों को श्री हरगोबिंदपुर भेजा। मुगलों और सिख सेना के बीच एक भीषण लड़ाई लड़ी गई जिसमें रतन चंद और करम चंद दोनों मारे गए। कई सिखों ने शहादत हासिल की। उन सिख शहीदों की याद में गुरुद्वारा दमदमा साहिब का निर्माण किया गया है। इस स्थान पर गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने श्री हरगोबिंदपुर की लड़ाई के बाद आराम करने के लिए अपने कमर कस (एक कमर बेल्ट) को ढीला कर दिया।
गुरुद्वारा दमदमा साहिब हरगोबिंदपुर का इतिहास इन हिन्दी – गुरुद्वारा दमदमा साहिब हरगोबिंदपुर हिस्ट्री इन हिन्दी
गुरुद्वारा दमदमा साहिब हरगोबिंदपुर कस्बे मे स्थित है। यह श्री गुरु हरगोबिंद जी का स्मारक है। तीन मंजिला गुरुद्वारा दमदमा साहिब हरगोबिंदपुर से पश्चिम एक किमी की दूरी पर स्थित है।
गुरु अर्जुन देव जी ने श्री हरगोबिंदपुर में नगर बसाने के लिए 1587 में जमीन का टुकड़ा खरीदा था। 1630 में मुगल हाकिमों ने जमीन का यह टुकड़ा हथियाने की कोशिश की। छठें गुरु, गुरु हरगोबिंद जी ने मुगल हाकिमों के इस रवैये का विरोध किया। जिस कारण 1630 में मुगल सेना के साथ युद्ध हो गया। जालंधर के सूबेदार अब्दुल्ला खान को किसी ने गलत सूचना दे दी कि गुरु जी श्री हरगोबिंदपुर में किला बना रहे है। उसको चंदू शाह के पुत्र कर्मचंद तथा हीरे के पुत्र रतनचंद ने उकसाया कि वो गुरु जी पर हमला कर दें। उसने फौज के साथ गुरुजी पर हमला कर दिया। हमले में मुसलमान कमांडर उनके पुत्र तथा बहुत सारे फौजी अधिकारी मारे गये तथा बाकी फौज भाग गई। जिस स्थान पर युद्ध हुआ था वहीं पर गुरुद्वारा दमदमा साहिब हरगोबिंदपुर बना हुआ है। यह कस्बा व्यास नदी के दाहिने किनारे पर जिला गुरदासपुर में स्थित है। इसकी बुनियाद गुरु हरगोबिंद जी ने रखी थी। यह एक मशहूर तीर्थ स्थान है। यह सड़क मार्ग से अमृतसर, गुरदासपुर तथा बटाला के साथ जुड़ा हुआ है।
इस स्थान पर गुरु साहिब ने वास्तव में नये कस्बे का बुनियादी पत्थर रखा था। यह जगह छोटे से रूहेले गांव में है। जोकि व्यास नदी के दाहिने किनारे पर स्थित है। गुरु जी को यह स्थान बहुत पसंद आया था तथा उन्होंने इस खुले स्थान पर एक कस्बा बनाने का फैसला किया। इस वजह से चौधरी भगवान दास जोकि कबीले का मुखिया था उससे झगड़ा हो गया। जब चौधरी झगड़े के दौरान गुरु जी की शान के खिलाफ बोला तो उसकी हत्या हो गई। इलाके के लोगों में खुशी हो गई। घटिया सोच रखने वाले जालिम चौधरी से उनकी जान छूटी।
वर्षा ऋतु के समय सावन के दूसरे गुरुवार को गुरु हरगोबिंद जी ने करतारपुर छोड़ दिया और हरगोबिंदपुर में कैंप लगाया। इस समय जमीन पर भगवान दास घिराढ़ (खत्री) का कब्जा था। भगवान दास, चंदू शाह ( गुरु अर्जुन देव का हत्यारा) का रिश्तेदार था। जब गुरु हरगोबिंद साहिब कैंप लगा रहे थे तो भगवान दास ने गुरु साहिब को कुछ गलत शब्द कह दिये। भगवान दास ने जमीन पर अपना अधिकार जताया और कुछ बदमाशों की मदद से उन्हें वहां से हटाने का प्रयास किया। परिणामस्वरूप सिक्खों के साथ एक छोटी लडाई में भगवान दास और अधिकांश बदमाश मारे गये।
गुरुद्वारा दमदमा साहिब हरगोबिंदपुरइस घटना के बाद भगवान दास का पुत्र जालंधर गया जहां चंदू शाह का पुत्र कर्मचंद रहता था। वे एक साथ जालंधर के सुबेदार अली बेग के पास गए और गुरु हरगोबिंद साहिब की शिकायत की। यह सुनने के बाद सूबेदार क्रोधित हुआ और गुरु साहिब पर आक्रमण कर दिया। रोहिला कस्बे के बाहर भयंकर लड़ाई हुई। इस लड़ाई में अली बेग पराजित हुआ। लड़ाई के बाद शाम को गुरु साहिब ने उस स्थान पर अपनी कमर कसा को खोल दिया जहा गुरुद्वारा दमदमा साहिब हरगोबिंदपुर साहिब स्थित हैं।
यहां गुरु जी ने भूमि की खुदाई कर अब्दुल्ला खान, उसके दो पुत्र और पांच प्रमुखों के शवों को दफन कर दिया तथा वहीं पर बैठने के लिए सिंहासन लगा दिया। जस्सा सिंह रामगढिय़ा ने गुरुद्वारा दमदमा साहिब हरगोबिंदपुर बनवाया।
यह गुरुद्वारा उस जगह है जहां हरगोबिंद जी दीवान में और रोहिला की लड़ाई जीतने के बाद आराम किया था। तथा अपनी कमर कसा को खोला था। इसलिए इसे गुरुद्वारा दमदमा साहिब कहा जाता है। इस प्रसिद्ध गुरुद्वारे में प्रतिवर्ष 30- 35 लाख भक्त दर्शन करने के लिए आते है।
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