दमदमा साहिब का इतिहास – दमदमा साहिब हिस्ट्री इन हिंदी
Alvi
यह तख्त साहिब भटिंडा ज़िला मुख्यलय से 35 किमी दूर तलवांडी साबो में बस स्टेशन के बगल में स्थापित है । अमृतसर से भटिंडा 165 किमी दूर है। तख्त श्री दमदमा साहिब सिक्खों का पवित्र तीर्थ स्थान है। अपने इस लेख में दमदमा साहिब की यात्रा करेंगे, और दमदमा साहिब के इतिहास, दमदमा साहिब हिस्ट्री, दमदमा साहिब गुरूद्वारे का निर्माण, क्षेत्रफल, दमदमा साहिब दर्शनीय स्थल दमदमा साहिब का इतिहास आदि के बारे में विस्तार से जानेंगे।
दमदमा साहिब का इतिहास, हिस्ट्री ऑफ दमदमा साहिब
सिक्खों के दसवें गुरु गोबिन्द सिंह जी आनंदपुर साहिब के चमकौर साहिब तथा मुक्तसर साहिब के ऐतिहासिक युद्ध के बाद तलवंडी साबो की धरती पर पहली बार जनवरी 1706 में अपने चरण कमल रखे थे। गुरू गोविन्द सिंह जी के आगमन से ये धरती पावन और ऐतिहासिक हो गई।
गुरू गोविंद सिंह जी ने जिस स्थान पर अपना कमर कसा खोलकर दम लिया। वो धरती पावन और पवित्र हो गई तथा गुरु की काशी तख्त श्री दमदमा साहिब के नाम से विश्व प्रसिद्ध हुई। इस पवित्र धरती पर गुरू जी नौ महीने से भी ज्यादा समय तक श्री गुरू ग्रंथ के डल्ला प्रचार प्रसार के लिए रूके तथा अनेकों धार्मिक ऐतिहासिक कार्यों को सम्मपूर्ण किया।
इस पावन पवित्र स्थान पर भाई डल्ला जी इलाके का चौधरी था। उसे गुरू जी ने अमृत की बख्शीश कर सिंह सजाया, बाबा वीर सिंह तथा बाबा धीर सिंह के सिक्ख शिक्षक, भरोसे की परीक्षा भी गुरूदेव ने इस स्थान पर ली, और गुरू की कृपा से वे लोग इसमे सफल हुए।
इस पावन धरती पर ही श्री गुरू गोविंद सिंह जी ने भाई मनी सिंह जी से श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी के पावन स्वरूप में गुरू पिता, गुरू तेगबहादुर जी की पवित्र वाणी दर्ज करायी तथा वह पावन स्वरूप सम्मपूर्ण होने पर दमदमा स्वरूप कहलाया।
शहीदों के मिसाल के सरदार शहीद बाबा दीप सिंह जी के देखरेख में पढऩे पढ़ाने, लिखने, गुरूवाणी के अर्च तथा गुरूवाणी प्रचार प्रसार के लिए टकसाल में यहां शुरुआत की गई। जो दमदमी टकसाल के नाम से आज भी प्रसिद्ध हैं। इसी पावन स्थान पर युद्ध के उपरांत गुरू जी के दर्शन करने के लिए माता सुंदरी जी एवं माता साहिब देवा जी भी गुरू जी के दर्शन करने के लिए भाई मनी सिंह जी के साथ दिल्ली से यहा पहुंची थी।
तख्त श्री दमदमा साहिब के सुंदर दृश्य
श्री गुरू गोविंद सिंह जी इस स्थान से जब हजूर साहिब की ओर चले तब इस स्थान का मुख्य प्रबंधक बाबा दीप सिंह जी को बनाया गया था। बाबा दीप सिंह जी ने बहुत लम्बे समय तक इस स्थान की सेवा की। इस सेवा के दौरान ही बाबा जी ने श्री गुरू साहिब जी के पावन स्वरूप अपनी देखरेख में लिखवाये। जिससॆ दम़दमा साहिब सिक्ख लेखो तथा ज्ञानियों की टकसाल की पहचान के रूप मे प्रसिद्ध हुआ।
इस पवित्र ऐतिहासिक स्थान को सिक्खों का पांचवाँ तख्त होने का मान और सत्कार हासिल है। तख्त दमदमा साहिब की मौजूदा आलीशान इमारत का निर्माण 1965-66 ईसवी में हुआ था। इस ऐतिहासिक स्थान का प्रबंध शिरोमणि गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी, अमृतसर के पास 1960 में आया।
तख्त श्री दमदमा साहिब का क्षेत्रफल 30- 35 एड़ में फैला हुआ है। तख्त श्री दमदमा साहिब में सुबह शाम ऐतिहासिक वस्तुओं के दर्शन संगत को करवाये जाते है। जिसमें गुरू तेगबहादुर जी की तलवार, गुरू साहिब की निशाने वाली बंदूक, बाबा दीप सिंह जी का तेगा (खण्डा)। गुरूद्वारे मे प्रवेश के लिए मुख्य मार्ग से तीन बडे़ बडे़ प्रवेश द्वार पार करने के बाद मुख्य गुरूद्वारा दमदमा साहिब में पहुंचते हैं। यहां दरबार साहिब लगभग 100 फुट लम्बा और 60 फुट चौड़ा है। दरबार साहिब 5 फुट ऊंची जगती पर विराजमान है। नीले रंग का कढ़ाईदार मखमल का चंदोरा अत्यंत शोभायमान है। दरबार के गोल खंभों पर सोने का पत्तर चढा हुआ है। दरबार साहिब के बीचोबीच श्री गुरू ग्रंथ साहिब विराजमान है।
मुख्य ग्रंथी लगातार चंवर ढुलाते रहते है। नीचे बैठे रागी वाद्ययंत्रों के साथ चौबीस घंटे गुरूवाणी का पाठ करते रहते है। परिक्रमा मार्ग में संगत बैठकर गुरूवाणी का पाठ सुनती है। सम्मपूर्ण दरबार हाल पंखों एवं ए.सी से सुसज्जित है। दरबार हाल का बड़ा झूमर अत्यंत विशाल और आकर्षक है।
भूतल से 12 सीढियां चढ़ने के बाद मुख्य जगती पर पहुचते है। भूतल से 6 फुट ऊंची जगती पर लगभग 2.5 एकड का प्लेटफार्म बना है। प्लेटफार्म पर कीमती संगमरमर लगाया गया है। प्लेटफार्म के चारों ओर सुंदर पुष्पों के पौधे है।
दमदमा साहिब में यात्रियों के ठहरने तथा लंगर आदि का प्रबंध बहुत ही अच्छा है। गुरू नानकदेव जी एवं गुरू गोविंद सिंह जी का प्रकाशोत्सव, गुरू ग्रंथ साहिब जी का सम्मपूर्णता दिवस, तथा खालसे की साजना दिवस, वैशाखी बडे स्तर और धूमधाम से मनाये जाते है। जिसमे हजारों श्रद्धालु तथा इसके अलावा प्रतिदिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहा आते है। और गुरू जी की चरण रज प्राप्त कर गुरूधाम की यात्रा करते है।
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