तेल की खोज, जिसे खोजने वाले वैज्ञानिक की मूर्खता समझा गया था Naeem Ahmad, March 6, 2022March 12, 2022 धरती की लगभग आधा मील से चार मील की गहराई से जो गाढा कीचड़ मिला पदार्थ निकलता है, उसी को खनिज तेल कहा जाता है। वर्तमान संसार को आधुनिक बनाने में इस बहुमूल्य पदार्थ का बहुत बडा हाथ है। आज संसार को आधुनिक बनाने वाली करीब-करीब नब्बे प्रतिशत वस्तुएं इसी पदार्थ से निर्मित हैं। तेल की खोज किसने की थी सन् 1859 में तेल तथा पैट्रोल का आविष्कार एडविन एवं ड्रेक एक बेरोजगार व अशिक्षित व्यक्ति ने किया था। उसे न्यूयार्क के एक वकील ने तेल की खोज के लिए प्रेरित किया। सन् 1854 की शरद ऋतु में एक प्राध्यापक ने वकील जार्ज एच. बिसेल को एक खनिज तेल का नमूना दिखाया था। प्राध्यापक महोदय प्रयोगशाला में उस नमूने का परीक्षण कर रहे थे। प्राध्यापक ने वकील बिसेल को आश्वस्त किया कि यदि इस खनिज तेल को ठीक तरह से शुद्ध किया जाए तो कोयले से निकाले तेल की जगह यह अधिक अच्छी रोशनी दे सकेगा। ह्वेल मछली के तेल और बत्ती में प्रयुक्त होने वाले मोम का अभाव देखते हुए स्कॉटलैण्ड में उन दिनों कोयले से Oil निकालने के प्रयत्न चल रहे थे। प्राध्यापक के सिद्धांत ने बिसेल को इतना अधिक प्रभावित किया कि उसने एक कम्पनी बना डाली। फलतः कोयला तेल के व्यापारियों ने मिट्टी के Oil को 20 डालर प्रति बैरल खरीदने का प्रस्ताव भी कर डाला। लेकिन बिसेल के प्रयत्न सफल न हो सके। उसका सारा धन खर्च हो गया। इस मौके पर ड्रेक ने अपनी भूमिका का निर्वाह किया। उसने किसी विद्यालय में शिक्षा नहीं पाई थी। वह एक रोजगार से दूसरे रोजगार में भटक रहा था। हां, उसे पानी के कुंए खोदने का अनुभव था। स्थानीय जनता ड्रेक के दुस्साहस को उसकी मूर्खता करार दे रही थी कि 69 फूट की गहराई पर एक दिन oil निकल आया। टिट्सविले में तो तेल भू-तल तक आ गया था। पम्प लगाने पर कुंए से प्रतिदित 20 बैरल oil निकलने लगा। तेल ड्रेक की मूर्खता रंग लाई। सन 1867 तक कोयले के तेल के स्थान पर किरोसिन-मिट्॒टी का oil छा गया। इस oil से उत्तरी अमेरिकी राज्यों को अमेरिकी गृहयुद्ध में मदद मिली, साथ ही दक्षिणी राज्यों को कपास के स्थान पर विदेशी विनिमय का एक नया साधन भी मिला। युद्ध के बाद oil अमेरिका के महान औद्योगिक जीवन का आधार बन गया। इसके बाद यूरोप और अमेरिका में तेल के नए स्रोत मिले, पर विश्व का सबसे बड़ा तेल उत्पादक क्षेत्र मध्यपूर्व बहुत समय तक oil की दृष्टि से उपेक्षित ही रहा। सन् 1870 मे लार्ड रायटर ने फारस की सरकार से खनिज और तेल निकालने का पट्टा प्राप्त किया। 20 वर्ष तक प्रयत्न करने के बाद भी सफलता न मिलने पर रायटर पत्रकारिता के धंधे में चले गए। रायटर के पदचिह्नों पर विलियम कॉक्स दा अर्की ने इस क्षेत्र में प्रवेश किया। आस्ट्रेलिया मे सोने की खान से उन्हें विशाल धनराशि मिली थी। दा अर्की ने फारस के क्षेत्रों की जांच-पड़ताल के लिए एक भूगर्भशास्त्री को भेजा। इस अंग्रेज उद्योगपति ने 20,000 पौण्ड देकर 4,80 हजार वर्ग मील मे तेल की खोज का अधिकार प्राप्त कर लिया। भारतीय सार्वजनिक निर्माण विभाग के एक अवकाश प्राप्त अधिकारी रेनाल्ट्स ने खुदाई का काम शुरू किया। जनवरी, सन् 1904 में सफलता मिली और तैल प्राप्त हो गया, पर जल्दी एक समस्या पैदा हो गई। पहला कुंआ सूख गया। मध्यपूर्व के oil अभियान में दी अर्की के सवा लाख पौण्ड डूब चुके थे। कई प्रयत्नों के विफल होने के बाद रेनाल्टस अंततः 26 मई, सन् 1908 को सफल हुआ। उस दिन एक oil का फब्वारा फूट पड़ा। अंततोगत्वा फारस में ऑयल मिल गया था और मध्यपूर्व में ऑयल उद्योग की प्रतिष्ठा हो गई। इस तेल उद्योग के संचालन के लिए एंग्लो-परशियन तेल कम्पनी स्थापित की गई। समूद्र तल तक 130 मील लंबी पाइप लाइन बिछाने तथा साल भर तक oil की एक बूंद भी न बिकने से कम्पनी के सम्मुख आर्थिक संकट पैदा हो गया। तत्कालीन नौसेना मंत्री विंस्टन चर्चिल ने ब्रिटिश नौसेना के लिए वाष्प चालित शक्ति के स्थान पर तेल का प्रयोग उचित ठहरा कर मध्यपूर्व के oil उत्पादन को उचित ठहराया। चर्चिल के विवेक के कारण मध्यपूर्व का तैल उद्योग पनप गया और प्रथम महायुद्ध में ब्रिटेन की स्थिति तेल के कारण मजबूत हो गईं। भारत में तेल की खोज भारत में पहला तेल का कुआं असम में सन् 1866 में नाहार पोग में खोदा गया। इस कुएं मे oil नही निकला लेकिन सन् 1867 मे माकुम नामक स्थान पर खोदे गए कुएं में पहली बार तेल निकला। असम रेलवे एण्ड कंपनी तथा आयल सिंडिकेट ने 1890-1893 के बीच चार तेल कुएं खोदे। दोनो कंपनियों को काफी सफलता मिली। सन 1898 तक इन कंपनियों ने 5 कुएं खोद डाले थे। ये दोनो कंपनियां मिलकर असम आयल कंपनी कहलाने लगी। कुछ समय बाद सन् 1901 में डिगबोई मे कारखाना खोला गया। सन 1920 तक असम कंपनी 80 कुएं खोद चुकी थी और 14,000 गैलन खनिज तेल प्रतिदिन निकालने लगी थी। इसी वर्ष बर्मा आयल कंपनी ने इंतजाम अपने हाथ मे ले लिया। सन् 1959 में खंभात में पहले कुएं से oil निकला और अब गुजरात में खंभात, अंकलेश्वर और कलोल मे तेल निकाला जाने लगा है। तेल की खोज में भारत को रूस ने बडी मदद की है। उसने तेल की खोज, सफाई और वितरण के काम में मदद दी है। कुछ विदेशी और देशी विशेषज्ञों का मत है कि हमारे देश में 4 अरब टन से अधिक ऑयल का भंडार है। एक रूसी विशेषज्ञ ने तो यहां तक कहा है कि 20 वर्ष के भीतर भारत को 5 करोड टन तेल प्रति वर्ष निकालना चाहिए। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए जांच-पडताल और कुएं खोदने की गति तेज की जा रही है। उसके बाद ईराक, कुवैत और सऊदी अरब में तेल उद्योग की प्रतिष्ठा हुई। इस समय उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक व एशिया से दक्षिणी अमेरिका तक तेल की खोज जारी है। मध्यपूर्व इस समय विश्व के तेल उत्पादन का मुख्य स्रोत है। अनुमान है कि वहां पर 3,34,000 करोड बैरल, रूस मे 2,800 करोड तथा रूमानिया मे 100 करोड़ बैरल ऑयल का भण्डार है। यूरोप, अमेरिका, एशिया और हमारे अपने देश में तेल की खोज जारी है। संसार का औद्योगीकरण ही नही, विश्व की सामान्य संस्कृति दूसरे किसी भी पदार्थ की अपेक्षा ऑयल पर अधिक निर्भर है। 19वीं शताब्दी में विद्युत के विकास से पूर्व मिट्टी का oil प्रकाश देता था। अब वह पृथ्वी, समुद्र और वायु यातायात का आधार बन गया है, इसी की शक्ति द्वारा अंतरिक्ष में रॉकेट भेजे जाते हैं। आज इसी के बलबूते पर उद्योग मे ऊष्मा, ऊर्जा और शक्ति प्राप्त की जा रही है। Oil अब जलाया नही जाता, परंतु इसके दूसरे उत्पादनों प्लास्टिक शोधक, नाइलान, टेरीलिन और दूसरे कृत्रिम उत्पादनों ने औद्योगिक क्षेत्र में क्रांति कर दी है। रासायनिक खाद तथा कीटाणु निरोधक औषधियां इसी से निर्मित हो रही हैं। संभवत: कुछ वर्षों मे यह प्रोटीन का मुख्य स्रोत भी बन जाए। एक समय जिस Oil को ड्रेक की मूर्खता समझा गया था, आज वह मानव का रक्षक व भक्षक दोनों ही बन गया है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े [post_grid id=’8586′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on 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