तेजाजी की कथा – प्रसिद्ध वीर तेजाजी परबतसर पशु मेला Naeem Ahmad, September 23, 2019March 18, 2023 भारत में आज भी लोक देवताओं और लोक तीर्थों का बहुत बड़ा महत्व है। एक बड़ी संख्या में लोग अपने अपने क्षेत्र, राज्य, कुल, समाज, श्रृद्धा अनुसार अपने अपने लोक देवताओं और उनके तीर्थों को मानते है। तथा उनकी स्मृति में समय समय या प्रति वर्ष भव्य मेलों, भंडारों, कीर्तनों, जारगण, अखाडों आदि का आयोजन करते है। अपने इस लेख में हम जिस लोक देवता या लोक तीर्थ की बात करने जा रहे है। उस लोक देवता का नाम है “तेजाजी” या वीर तेजा। तेजाजी एक राजस्थानी लोक देवता हैं। तथा उनका मानने वाले लोग या समुदाय उन्हें भगवान शिव के ग्यारह अवतारों में से एक मानता है। तेजाजी उन लोक देवताओं में से थे जिन्होंने अपने जीवन को जोखिम में डाल दिया, परंतु अपनी प्रतिज्ञा, निष्ठा, स्वतंत्रता, सच्चाई, आत्रेय, समाजिक सुधार आदि जैसे मूल्यों को बरकरार रखा। वीर तेजाजी के मानने वाले लोगों या समुदाय की संख्या केवल राजस्थान तक ही सीमित नहीं है, बल्कि मध्यप्रदेश, गुजरात और हरियाणा तक उनके मानने वालों की संख्या काफी है। जिसकी पुष्टि इसी बात से हो जाती है कि राजस्थान के साथ साथ अन्य राज्यों में भी तेजाजी के मंदिर व धामों और उनकी स्मृति में भरने वाले मेलों आदि की संख्या काफी है।तेजाजी का जीवन परिचय, तेजाजी का इतिहास, तेजाजी की कहानी, तेजाजी की कथाग्यारहवीं शताब्दी की बात है। नागौर इलाके के खरनाल गाँव में ताहड़ देव खरनाल के नृपति थे। तेजाजी से पहले ताहड़ देव जी की छः संतानें और थी। और सातवीं संतान के रूप में श्री तेजाजी का जन्ममाघ शुक्ला, चौदस वार गुरुवार संवत 1130 तदनुसार 29 जनवरी, 1074, को धौल्या गोत्र के जाट परिवार में हुआ था। हुआ था। तेजाजी की माता का नाम रामकंवरी था। Tejaji के बाद ताहड़ देव के घर एक पुत्री का झन्म भी हुआ। जिसका नाम राजलदे अर्थात राजल रखा गया। पुत्री राजल और कुवंर तेजाजी में और संतानों की भांति बाल्य स्नेह बन गया था। ये दोंनो रूप और गुणों में बचपन से ही अपना अपना आदर्श प्रस्तुत करने लगे थे। तत्कालीन रूढ़ियों (प्रथा) के अनुसार कुवंर तेजाजी का विवाह परगना किशनगढ़ के पनेर ग्रामवासी चौधरी बदना जी की पुत्री पेमल के साथ बचपन में ही कर दिया गया था। परंतु Tejaji को यह बचपन की बात बिल्कुल ऐसे ही याद नहीं रही जैसे गुड्डे गुडियों के खेल जवानी में याद नहीं रहते।वीर तेजाजी महाराज से संबंधी चित्रराजस्थान में वर्षा ऋतु को मांगलिक माना जाता है। गर्मी से झुलसे हुए इस प्रदेश पर जब वर्षा की बूंदें पड़ती है, तो यहां का जन जीवन लहलहा उठता है। किसान लोग बैलों को सजाने सवारने लगते है। उनके गले में कोडियां और रंगबिरंगी राखी बांधते है। फिर लेजाकर खेत जोतते है। यहां की एक कहावत है। “ऊमरै नै ऊमरों नी वावड़ै” Tejaji भी उक्त कार्य के लिए किसी से पीछे नहीं रहे। क्योंकि उनकी माता का कहना था कि “पुल रा बायेड़ा रे तेजा मोती नीपजै” Tejaji अपनी मां की आज्ञा से खेत जोतने गए। उसने मालिक का ध्यान लगाकर हल पर हाथ धरा और शांत सुमधुर बेला में खेत जोतना शुरु किया। हल चलाते चलाते दोपहर के बारह बज गये। मगर उसने विश्राम तक नहीं किया। भोजन का भी समय हो गया था। जब तक पडोसी किसानों के घर भोजन व बैलों का चारा आ गया था। वे खा पीकर दोबारा खेत जोतने लगे। किंतु Tejaji के घर से अभी तक खाना व चारा लेकर कोई नहीं आया था। अतः वे गर्मी, भूख एवं अव्यवस्थित कार्य की चिंता से व्याकुल हो उठे। अत्यधिक इंतजार के बाद Tejaji के घर से उनकी भाभी भोजन और बैलों का चारा लेकर आई। Tejaji ने इस विलंब के लिए भाभी से शिकायत की ओर और कहा- यह भी कोई खाना खिलाने का समय है। सारें पडोसी किसान खाना खा पीकर कुछ आराम कर दोबारा खेत जोत रहे है। भाभी जी तो खुद घर के सारे काम से थकी कड़ी धूप में चलकर आयी थी, पहले से ही गर्म थी। ऊधर Tejaji भी भूख प्यास से मारे गुस्से में गर्म थे। बस फिर क्या था? गर्म लोहे से गर्म लोहा भिड़ गया और व्यंग्यात्मक चिंगारियां उछलने लगी। भाभी बोली “थारी रे परण्योड़ी देवर भातों ढोवै पीहर में” देवर ऐसी जल्दी खाना खाने की इच्छा है तो तुम अपनी पत्नी से ही यह कार्य क्यों नहीं करवा लेते? जो अपने पिता के घर यह कार्य कर रही है। भावज के तानों द्वारा अपनी ब्याही औरत का पीहर रहना सुनकर Tejaji तिलमिला गये और तुरंत हल छोडकर घर की ओर दौड़ आये। Tejaji को अचानक घर आया देखकर माता ने पूछा – बेटा सब लोगों के खेतों में हल छल रहे है। अपने खेत की भीगी धरती क्यों सूख रही है।Tejaji ने भाभी के व्यंग्य को बताते हुए अपनी माता से ससुराल का गांव और मार्ग पूछा। माता ने जोशी से बेटे का ससुराल जाने का समय निकलवाया तो वह शुभ नहीं आया। जोशी ने बतलाया कि मुझे तो उज्जवल देवलु दिखाई दे रही है। परंतु सबके मना करने पर भी कुवर तेजा अपनी लीलण नाम की घोड़ी पर सवार होकर गाँव पनेर की और प्रस्थान कर गये और चौधरी बदनाजी का घर पूछकर दरवाजे में प्रवेश किया। दरवाजे में तेजाजी की सास गाये दूह रही थी। Tejaji की घोड़ी की टापों की आवाज से उसकी गायें बिदक गई। और दूध देना बंद करके भाग खड़ी हुई। स्थितिवश उनकी सास अपरिचित बटाऊ (मेहमान) पर आग बबूला हो गई। और कहने लगी “अरे नागड़े खादा, तू ऐसा कौन बटाऊ आकर मरा है, जो मेरी सारी गायों को घोडी से बिदका दी? आज का सारा दूध गया और गायें भी डर कर भाग गई” सास के ये तीर समान शब्द Tejaji के कानों को भेदकर मर्म स्थल तक पहुंच गए। उन्होंने अपनी घोडी को मोड़ा और जिस मार्ग से आये थे वापसी चल दिए। बाद में अपने जमाई का आना मालूम पड़ते ही उनकी ससुराल में हलचल की स्थिति बन गई। उस परिवार के मुख्यजन Tejaji के पीछे गए और उन्हें घर लाने के लिए विनती करने लगे। Kunvar Tejaji साफ इंकार कर गये, और बोले जिस घर में बटाऊओं का ऐसा सम्मान किया जाता है, उस घर में, मै तो कदापि नहीं जाऊँगा। ससुराल वाले बार बार प्रार्थना कर रहे थे, Tejaji साफ इंकार करते जा रहे थेइसी समय वहां लाछां नाम की गूजरी रोती हुई अपनी गायों की फरियाद लेकर वहां पहुंची और बोली– मेरी सारी गायें मेर के मीणा अपहरण करके लिए जा रहे है। कोई वीर हो तो मेरी मदद करो, बड़े उपकार का कार्य है। दुखी बछड़े मां के बिना रमा रहे है। सब स्तब्ध हो गये। इस पर लाछां ने kunwar Tejaji को संबोधित करते हुए कहा– अरे भाई बटाऊ तुम भी इन लोगों की तरह मौन क्यों हो? तुम्हारे चेहरे पर तो वीरता की ज्योति उजवल हो रही है। तुम अकेले ही मेरी गायें लौटा ला सकते हो, ऐसा तुम्हारे तेज से प्रकट होता है।दुख्यारी की पुकार और गायों पर अत्याचार पर veer Tejaji में और अधिक वीरत्तव का संचार हो गया। वे लाछां गूजरी से कहने लगे गूजरी अब तुम रोना धोना बंद करो, मै तुम्हारी गायों को अवश्य लौटा लाऊंगा। गूजरी यह सुनते ही धन्यवाद और आशीर्वाद देने लगी। परंतु Veer Tejaji सुनी अनसुनी करके अपनी घोड़ी लीलण पर उचक कर चढ़ गए। उस समय इस धौलिया सरदार के साथ आठ जाट युवक एक गूजर वुर और एक कुलकवि भी चल दिये। रास्ते में एक सुरसरी नाम का गांव आया। वहां एक बालू नाम का विषधर सर्प रहता था। veer Tejaji को देखते ही सर्प ने ऊन पर आक्रमण कर दिया। क्योंकि एक किवदंती के अनुसार इनके वंशजों और सर्प के वंशजों में प्राचीन शत्रुता चली आ रही थी। सर्प का हमला इतना भयावह था, कि वे और उनके साथी घबरा गए। Kunwar Tejaji ने सोचा यदि सर्प के साथ लड़ना शुरू कर देगें तो गूजरी की गायों को लौटाने वाली प्रतिज्ञा पूरी नहीं हो सकेगी, पीछे बछड़े भी तो असुब्ध हो रहे है। अतः सर्प के साथ विनयपूर्वक ही निपटना चाहिए।वे बोले — हे सर्पराज! हम वीर बहादुरों को मौत का भय नहीं लगता, परंतु प्रतिज्ञा पूरी न होने का डर लगता है। हम आपके साथ युद्ध करके विलंब कर देगें तो गूजरी की गायें मेर के मीणा छीनकर ले गये है, नहीं लौटा सकेंगे, उनके बछड़े पीछे भूखे मर रहे है। और हम गायें लौटने की प्रतिज्ञा कर डाकुओं का पीछा कर रहे है। हे नागराज! गोरक्षा प्राणी मात्र का परम धर्म है। इसलिए आप उन गायों को लौटा लाने तक का समय हमें प्रदान कीजिए। मै आपसे वचनबद्ध होकर जाता हूँ कि गुजरी की गायों को डाकुओं से मुक्त करवाकर तुरंत आपकी सेवा में उपस्थित हो जाऊंगा। सर्पराज ने इस धर्म नीति की बात पर अपना आक्रमण बंद कर दिया।वीर तेजाजी महाराज से संबंधी चित्रTejaji एक ही दौड़ में गौ तस्करों से जा भीड़े। हांलाकि सामने वाले शत्रु संख्या में काफी अधिक थे, किंतु Tejaji और ऊनके साथियों ने तनिक भी परवाह नहीं की, वे ललकारते हुए उन पर टूट पड़े। शत्रु भी जोश में भरकर युद्ध स्थल में डटें, परंतु जमकर होने वाले इस युद्ध में डाकूओं के पैर उखड़ गए। Tejaji और उनके साथियों के सम्मिलित हमले से डाकू लोग मैदान छोडकर भाग गए। Tejaji और उनके साथी सारें गौधन को पनेर लौटा लाये।Tejaji ने गायों सहित जब पनेर में प्रवेश किया वहां लाछां गूजरी प्रतिक्षा में खड़ी मिली। Tejaji ने उसे गौधन सौपा वह बड़ी खुश हुई। Tejaji का परिचय पाकर बहिन पमेल के सौभाग्य की सराहना करती हुई आशीर्वाद देने लगी। तत्पश्चात लाछां ने डाकूओं से लौटाये हुए गौधन की संभाल शुरु की। गायों के समूह में एक बछड़ा नजर नहीं आया तब गूजरी उदास हो गई। Tejaji ने उसकी मनोदशा जानकर कारण पूछा, गूजरी भर्राई हुई आवाज में बोली– हे वीर तेजा मेरा सारा गौधन आ गया है। परंतु इसमें मेरा प्यारा बछड़ा नहीं है। मै उसे सूर्य का सांड कर देना चाहती थी। परंतु वह डाकूओं के पास रह गया। Tejaji लाछां के कारूणिक वचन सुनकर शीघ्र बछड़ा लाने को लौट चले। अभी डाकू कुछ ही दूर गयें होगें कि Tejaji ने अपने साथियों सहित जाकर उनको पुनः घेर लिया। दोनों ओर मोर्चे जम गए। भयंकर युद्ध हुआ। Tejaji के सारे साथी खड़े रह गए। अकेले तेजाजी ने ऐसी तलवार चलाई की डाकूओं के छक्के छूट गए। Tejaji का भी सारा शरीर जख्मी हो गया। मगर लाछां का बछड़ा उन्हें मिल गया। वे उसे लेकर पनेर आ गए। बछड़ा गूजरी को दिया और बदले मे बहुत आशीर्वाद प्राप्त किया।अब Tejaji की ससुराल से फिर ससुर साले सालियाँ आदि उन्हें घर ले जाने के लिए आए। स्वयं सास भी आपने दुर्व्यवहार के लिए क्षमा याचना करने आई। परंतु Tejaji सबके सामने अपनी लाचारी बताने लगे। उन्होंने कहा– संबंधी महानुभावों प्रतिज्ञा करके पलटने वाले व्यक्ति का जीवन ही कलंकित हो जाता हैं। वह दाग मिटाने से भी नहीं मिटाया जाता। मैने गौओं को छुडाने के लिए जाते समय सुरसरे गाँव के नागराज से प्रतिज्ञा की है कि गूजरी की गायें डाकूओं से मुक्त करवा कर शीघ्र तुम्हारे पास आ जाऊगां। यदि अब मै प्राणों के मोह में आखर उस प्रतिज्ञा से मुंह मोड लू तो सदा के लिए मेरा नाम अशुभ माना जाएगा। यह शरीर तो नश्वर है, तब मै क्यों इसके लिए अपना नाम कलंकित करूँ। हां आपसे विनयपूर्वक प्रार्थना करना चाहता हूँ। कि मुझे सत्य फथ से विचलित मत कीजिए, मेरी घृष्टता को क्षमा कर दीजिए। इतना कहकर kunwar Tejaji ने अपनी लीलण घोड़ी सुरसरे गाँव के मार्ग की ओर मोड़ दी। पनेर के लोग अवाक रह गए। और तेजाजी की पत्नी बेसूध होकर गीर पड़ी।Tejaji अपने लहू से लथपथ शरीर को लेकर शीघ्र सुरसरे जा धमके। वहां जाकर नागराज को आक्रमण के लिए ललकारा और बोले– नागदेव! मेरी यह देह आपकी सेवा मे समर्पित हैं। तेजाजी की सत्यता पर वृद्ध नागराज गदगद हो गए। उन्होंने अपने जीवन में ऐसा दृढ़ प्रतिज्ञय धर्म पुरूष कभी नहीं देखा था। वह बोले– कुवंर तेजा! तुम जैसे धर्मवीर को देखकर मेरा मन श्रृद्धा से भर गया है। मैने प्राचीन शत्रुता को आज से त्याग दिया है। तुम अपने स्थान को जाओ और चिरकाल तक ऐसी ही धर्म नीति से अपना राजकाज संभालों। Tejaji विषधर की सारी कायरता को समझ गए। वे बोले– नागराज! सिंह और सर्पों के ऐसी बाते शोभा नहीं देती। बैरी बने हो तो बैर का पूरा बदला लो। आपके कायर भाव से मेरी वीरता भी विमल नहीं रहने पायेगी। यद्यपि आप स्वयं बैर भावना का विसर्जन कर रहे है। किंतु संसार वाले इसका दूसरा मतलब निकालेंगे वे कहेंगे कि Tejaji वृद्ध सर्प को तिरी दिखाकर जान बचा आएं। सो मै आब आपसे विनयपूर्वक प्रार्थना करता हूँ कि अपने बैर का मुझे निश्चित बिंदु मानकर शीघ्र आक्रमण करीए। Tejaji के इस अटल आग्रह पर नागराज को एक उपाय और सूझ गया। वे बोले तेजा तुम्हारा सारा शरीर पहले ही घावों से छलनी हो रहा है। ऐसी घाव जर्रित काया पर आक्रमण करना मेरा धर्म नहीं है। मै ऐसे लहुलुहान तन पर अपना शौर्य फन नहीं उठा सकता। इस पर Tejaji बोले- सर्पेंद्र मेरे मुंह में जिवह अभी अखंडित है। वही आपकी सेवा कर सकेगी। उसी से आप अपनी इच्छा पूरी कीजिए। मै उसे बाहर निकालकर आपके आगे करता हूँ। उस पर दंशन कर मुझे संतोष दीजिए। आपका प्रतिशोध पूरा होगा और मेरा प्रण भी निभ जायेगा। वीर तेजा के हठ पर नागराज को विवश होना पड़ा। उसने तत्काल जीभ पर ऐसा जबरदस्त दंश मारा कि क्षण भर बाद ही तेजाजी की मृत्यु हो गई। और वह अमरलोक पधार गए।तेजाजी के शरीर त्याग की बेला मे एक देवासी वहां उपस्थित था। उसके द्वारा लोक संवाद तथा पगड़ी पनेर पहुचाई गई। पनेर गाँव मे दुख की दरिया बह गई। सारे संबंधी उच्च स्वर में रूदन करने लगे। तेजाजी की धर्मपत्नी पेमल ने अपने पतिदेव की पगड़ी देखकर सत चढ़ गया। वह उस पगड़ी को ह्रदय से लगाकर सुरसरे गाँव की ओर सति होने के लिए चल दी। पारिवारिक जन ढोल बजाते हुए उसके पीछे हो लिए। उधर बालूनाग के बिल के पास लीलण घोडी अपने स्वामी लोकवीर तेजाजी की लाश के पास खड़ी रो रही थी।इस आलौकिक लीला का सर्व अवलोकन करके दुखी लीलण अकेले खडनाल आ पहुंची। घोडी को बिना सवार घर आई देखकर तेजाजी के माता-पिता एवं परिवाजनों में भारी आशंका व्याप्त हो गई। वे घोडी के उलटे पद चिन्हों पर जाने ही वाले थे कि पनेर के एक शोकाभिभूत व्यक्ति ने आकर तेजाजी की मृत्यु का सारा वृत्तांत सुना दिया। सारा परिवार रूदलीन हो गया।।तेजाजी की पूजा समस्त राजस्थान में सर्पों के देवता के रूप मे की जाती है। लोक विश्वास है कि इनके नाम की राखी (सूत्र) बांध देने से सर्प का काटा तुरंत जहर के प्रभाव से छूट जाता है। तेजाजी की स्मृति में प्रति वर्ष भाद्रपद सुदी 10 को स्थान स्थान पर भक्त लोग पावढ़ा गाते है। अगता रखा जाता है। किसान लोग हल चलाते हुए। तेजाजी के भजन, तेजाजी के गीत गाते है।तेजाजी का सबसे प्रसिद्ध मेला परबतसर मे लगता है।यहां भाद्रपद शुक्ल 10 से पूर्णिमा तक भारी मेला लगता है। इनका गुणगान करने हजारों नर नारी मेले में भाग लेते है। इस सामूहिक भाग में एक बड़ी विशेषता होती है कि पुरूष पात्र संबंधी उक्तियों को पुरूष दल तथा स्त्री संबंधी उक्तियों स्त्री दल द्वारा गाई जाती है।यह दृश्य बड़ा मनोरंजक होता है। यह मेला प्रकृति के अनुसार ही नृत्य, गीत, वेशभूषा, साजसज्जा, पशु के साथ क्रय विक्रय का भी बड़ा केंद्र होता है। इसे जातीय विकास तथा राष्ट्रीय वृद्धि का स्त्रोत भी मानते है। वीर तेजाजी महाराज की स्मृति में भरने वाला यह प्रदेश का सबसे बड़ा पशु मेला लगता है तथा मंदिर परिसर में पूरे भादौ मेले सा माहौल रहता है।प्रिय पाठकों आपको हमारा यह लेख कैसा लगा हमें कमेंट करके जरूर बताएं। यह जानकारी आप अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर भी शेयर कर सकते है प्रिय पाठकों यदि आपके आसपास कोई ऐसा धार्मिक, ऐतिहासिक या पर्यटन महत्व का स्थल है जिसके बारे में आप पर्यटकों को बताना चाहते है तो आप उस स्थल के बारे में सटीक जानकारी हमारे submit a post संस्करण मे जाकर अपना लेख लिख सकते है। हम आपके द्वारा लिखे गए लेख को अपने इस प्लेटफार्म पर आपकी पहचान के साथ शामिल करेगेंराजस्थान पर्यटन पर आधारित 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भारत के राजस्थान राज्य के प्रसिद् शहर व गुलाबी नगरी Jal mahal history hindi जल महल जयपुर रोमांटिक महल प्रिय पाठको जैसा कि आप सब जानते है। कि हम भारत के राज्य राजस्थान कीं सैंर पर है । और Amer fort jaipur आमेर का किला जयपुर का इतिहास हिन्दी में पिछली पोस्टो मे हमने अपने जयपुर टूर के अंतर्गत जल महल की सैर की थी। और उसके बारे में विस्तार चित्तौडगढ का किला – चित्तौडगढ दुर्ग भारत का सबसे बडा किला इतिहास में वीरो की भूमि चित्तौडगढ का अपना विशेष महत्व है। उदयपुर से 112 किलोमीटर दूर चित्तौडगढ एक ऐतिहासिक व जैसलमेर के दर्शनीय स्थल – जैसलमेर के टॉप 10 टूरिस्ट पैलेस जैसलमेर भारत के राजस्थान राज्य का एक खुबसूरत और ऐतिहासिक नगर है। जैसलमेर के दर्शनीय स्थल पर्यटको में काफी प्रसिद्ध अजमेर का इतिहास – अजमेर हिस्ट्री इन हिन्दी अजमेर भारत के राज्य राजस्थान का एक प्राचीन शहर है। अजमेर का इतिहास और उसके हर तारिखी दौर में इस अलवर के पर्यटन स्थल – अलवर में घूमने लायक टॉप 5 स्थान अलवर राजस्थान राज्य का एक खुबसूरत शहर है। जितना खुबसूरत यह शहर है उतने ही दिलचस्प अलवर के पर्यटन स्थल उदयपुर दर्शनीय स्थल – उदयपुर के टॉप 15 पर्यटन स्थल उदयपुर भारत के राज्य राजस्थान का एक प्रमुख शहर है। उदयपुर की गिनती भारत के प्रमुख पर्यटन स्थलो में भी नाथद्वारा दर्शन – नाथद्वारा का इतिहास – नाथद्वारा टेम्पल हिसट्री इन हिन्दी वैष्णव धर्म के वल्लभ सम्प्रदाय के प्रमुख तीर्थ स्थानों, मैं नाथद्वारा धाम का स्थान सर्वोपरि माना जाता है। नाथद्वारा दर्शन कोटा दर्शनीय स्थल – टॉप 10 कोटा टूरिस्ट प्लेस चंबल नदी के तट पर स्थित, कोटा राजस्थान, भारत का तीसरा सबसे बड़ा शहर है। रेगिस्तान, महलों और उद्यानों के कुम्भलगढ़ का इतिहास – कुम्भलगढ़ का किला राजा राणा कुम्भा के शासन के तहत, मेवाड का राज्य रणथंभौर से ग्वालियर तक फैला था। इस विशाल साम्राज्य में झुंझुनूं के पर्यटन स्थल – झुंझुनूं के टॉप 5 दर्शनीय स्थल झुंझुनूं भारत के राज्य राजस्थान का एक प्रमुख जिला है। राजस्थान को महलों और भवनो की धरती भी कहा जाता पुष्कर सरोवर तीर्थ यात्रा – पुष्कर झील का धार्मिक महत्व भारत के राजस्थान राज्य के अजमेर जिले मे स्थित पुष्कर एक प्रसिद्ध नगर है। यह नगर यहाँ स्थित प्रसिद्ध पुष्कर करणी माता मंदिर – चूहों वाला मंदिर के अद्भुत रहस्य बीकानेर जंक्शन रेलवे स्टेशन से 30 किमी की दूरी पर, करणी माता मंदिर राजस्थान के बीकानेर जिले के देशनोक शहर बीकानेर पर्यटन स्थल – बीकानेर के टॉप 10 दर्शनीय स्थल जोधपुर से 245 किमी, अजमेर से 262 किमी, जैसलमेर से 32 9 किमी, जयपुर से 333 किमी, दिल्ली से 435 जयपुर पर्यटन स्थल – जयपुर टूरिस्ट प्लेस – जयपुर सिटी के टॉप 10 आकर्षण भारत की राजधानी दिल्ली से 268 किमी की दूरी पर स्थित जयपुर, जिसे गुलाबी शहर (पिंक सिटी) भी कहा जाता सीकर पर्यटन स्थल – सीकर का इतिहास व टॉप 6 दर्शनीय स्थल सीकर सबसे बड़ा थिकाना राजपूत राज्य है, जिसे शेखावत राजपूतों द्वारा शासित किया गया था, जो शेखावती में से थे। भरतपुर पर्यटन स्थल -भरतपुर के टॉप 8 टूरिस्ट प्लेस भरतपुर राजस्थान की यात्रा वहां के ऐतिहासिक, धार्मिक, पर्यटन और मनोरंजन से भरपूर है। पुराने समय से ही भरतपुर का बाड़मेर पर्यटन स्थल – बाड़मेर के टॉप 8 दर्शनीय स्थल 28,387 वर्ग किमी के क्षेत्र के साथ बाड़मेर राजस्थान के बड़ा और प्रसिद्ध जिलों में से एक है। राज्य के दौसा पर्यटन स्थल – दौसा राजस्थान के टॉप 7 दर्शनीय स्थल दौसा राजस्थान राज्य का एक छोटा प्राचीन शहर और जिला है, दौसा का नाम संस्कृत शब्द धौ-सा लिया गया है, धौलपुर पर्यटन स्थल – धौलपुर राजस्थान के टॉप10 आकर्षण धौलपुर भारतीय राज्य राजस्थान के पूर्वी क्षेत्र में स्थित है और यह लाल रंग के सैंडस्टोन (धौलपुरी पत्थर) के लिए भीलवाड़ा पर्यटन स्थल – भीलवाड़ा राजस्थान के टॉप20 दर्शनीय स्थल भीलवाड़ा भारत के राज्य राजस्थान का एक प्रमुख ऐतिहासिक शहर और जिला है। राजस्थान राज्य का क्षेत्र पुराने समय से पाली पर्यटन स्थल – पाली राजस्थान के टॉप टूरिस्ट प्लेस पाली राजस्थान राज्य का एक जिला और महत्वपूर्ण शहर है। यह गुमनाम रूप से औद्योगिक शहर के रूप में भी जालोर का इतिहास – जालोर के टॉप पर्यटन, धार्मिक, ऐतिहासिक स्थल जोलोर जोधपुर से 140 किलोमीटर और अहमदाबाद से 340 किलोमीटर स्वर्णगिरी पर्वत की तलहटी पर स्थित, राजस्थान राज्य का एक टोंक पर्यटन स्थल – टोंक जिले के टॉप 9 दर्शनीय स्थल टोंक राजस्थान की राजधानी जयपुर से 96 किमी की दूरी पर स्थित एक शांत शहर है। और राजस्थान राज्य का राजसमंद पर्यटन स्थल – राजसमंद जिले के टॉप 10 ऐतिहासिक व दर्शनीय स्थल राजसमंद राजस्थान राज्य का एक शहर, जिला, और जिला मुख्यालय है। राजसमंद शहर और जिले का नाम राजसमंद झील, 17 सिरोही का इतिहास – सिरोही पर्यटन स्थल – सिरोही के दर्शनीय स्थल सिरोही जिला राजस्थान के दक्षिण-पश्चिम भाग में स्थित है। यह उत्तर-पूर्व में जिला पाली, पूर्व में जिला उदयपुर, पश्चिम में करौली आकर्षक स्थल – करौली राजस्थान के टॉप दर्शनीय स्थल करौली राजस्थान राज्य का छोटा शहर और जिला है, जिसने हाल ही में पर्यटकों का ध्यान आकर्षित किया है, अच्छी सवाई माधोपुर आकर्षक स्थल – सवाई माधोपुर राजस्थान मे घूमने लायक जगह सवाई माधोपुर राजस्थान का एक छोटा शहर व जिला है, जो विभिन्न स्थलाकृति, महलों, किलों और मंदिरों के लिए जाना नागौर के ऐतिहासिक स्थल – नागौर का मौसम, तापमान राजस्थान राज्य के जोधपुर और बीकानेर के दो प्रसिद्ध शहरों के बीच स्थित, नागौर एक आकर्षक स्थान है, जो अपने बूंदी इंडिया दर्शनीय स्थल – बूंदी राजस्थान के ऐतिहासिक, पर्यटन स्थल बूंदी कोटा से लगभग 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक शानदार शहर और राजस्थान का एक प्रमुख जिला है। बारां जिला आकर्षक स्थल – बारां के टॉप पर्यटन, ऐतिहासिक, टूरिस्ट प्लेस कोटा के खूबसूरत क्षेत्र से अलग बारां राजस्थान के हाडोती प्रांत में और स्थित है। बारां सुरम्य जंगली पहाड़ियों और झालावाड़ के ऐतिहासिक स्थल – झालावाड़ के टॉप 12 दर्शनीय स्थल झालावाड़ राजस्थान राज्य का एक प्रसिद्ध शहर और जिला है, जिसे कभी बृजनगर कहा जाता था, झालावाड़ को जीवंत वनस्पतियों हनुमानगढ़ का किला – हनुमानगढ़ ऐतिहासिक स्थल – हनुमानगढ़ पर्यटन स्थल हनुमानगढ़, दिल्ली से लगभग 400 किमी दूर स्थित है। हनुमानगढ़ एक ऐसा शहर है जो अपने मंदिरों और ऐतिहासिक महत्व चूरू का इतिहास, किला, पर्यटन, दर्शनीय व ऐतिहासिक स्थलों की जानकारी चूरू थार रेगिस्तान के पास स्थित है, चूरू राजस्थान में एक अर्ध शुष्क जलवायु वाला जिला है। जिले को। द गोगामेड़ी का इतिहास, गोगामेड़ी मेला, गोगामेड़ी जाहर पीर बाबा गोगामेड़ी राजस्थान के लोक देवता गोगाजी चौहान की मान्यता राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल, मध्यप्रदेश, गुजरात और दिल्ली जैसे राज्यों शील की डूंगरी चाकसू राजस्थान – शीतला माता की कथा शीतला माता यह नाम किसी से छिपा नहीं है। आपने भी शीतला माता के मंदिर भिन्न भिन्न शहरों, कस्बों, गावों सीताबाड़ी का इतिहास – सीताबाड़ी का मंदिर राजस्थान सीताबाड़ी, किसी ने सही कहा है कि भारत की धरती के कण कण में देव बसते है ऐसा ही एक गलियाकोट दरगाह राजस्थान – गलियाकोट दरगाह का इतिहास गलियाकोट दरगाह राजस्थान के डूंगरपुर जिले में सागबाडा तहसील का एक छोटा सा कस्बा है। जो माही नदी के किनारे श्री महावीरजी टेम्पल राजस्थान – महावीरजी का इतिहास यूं तो देश के विभिन्न हिस्सों में जैन धर्मावलंबियों के अनगिनत तीर्थ स्थल है। लेकिन आधुनिक युग के अनुकूल जो कोलायत मंदिर के दर्शन – कोलायत का इतिहास प्रिय पाठकों अपने इस लेख में हम उस पवित्र धरती की चर्चा करेगें जिसका महाऋषि कपिलमुनि जी ने न केवल मुकाम मंदिर राजस्थान – मुक्ति धाम मुकाम का इतिहास मुकाम मंदिर या मुक्ति धाम मुकाम विश्नोई सम्प्रदाय का एक प्रमुख और पवित्र तीर्थ स्थान माना जाता है। इसका कारण कैला देवी मंदिर करौली राजस्थान – कैला देवी का इतिहास माँ कैला देवी धाम करौली राजस्थान हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। यहा कैला देवी मंदिर के प्रति श्रृद्धालुओं की ऋषभदेव मंदिर उदयपुर – केसरियाजी ऋषभदेव मंदिर राजस्थान राजस्थान के दक्षिण भाग में उदयपुर से लगभग 64 किलोमीटर दूर उपत्यकाओं से घिरा हुआ तथा कोयल नामक छोटी सी एकलिंगजी टेम्पल उदयपुर – एकलिंगजी टेम्पल हिस्ट्री इन हिन्दी राजस्थान के शिव मंदिरों में एकलिंगजी टेम्पल एक महत्वपूर्ण एवं दर्शनीय मंदिर है। एकलिंगजी टेम्पल उदयपुर से लगभग 21 किलोमीटर हर्षनाथ मंदिर सीकर राजस्थान – जीणमाता मंदिर सीकर राजस्थान भारत के राजस्थान राज्य के सीकर से दक्षिण पूर्व की ओर लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर हर्ष नामक एक रामदेवरा का इतिहास – रामदेवरा समाधि मंदिर दर्शन, व मेला राजस्थान की पश्चिमी धरा का पावन धाम रूणिचा धाम अथवा रामदेवरा मंदिर राजस्थान का एक प्रसिद्ध लोक तीर्थ है। यह नाकोड़ा जी का इतिहास – नाकोड़ा जी भैरव चालीसा नाकोड़ा जी तीर्थ जोधपुर से बाड़मेर जाने वाले रेल मार्ग के बलोतरा जंक्शन से कोई 10 किलोमीटर पश्चिम में लगभग केशवरायपाटन का मंदिर – केशवरायपाटन मंदिर का इतिहास केशवरायपाटन अनादि निधन सनातन जैन धर्म के 20 वें तीर्थंकर भगवान मुनीसुव्रत नाथ जी के प्रसिद्ध जैन मंदिर तीर्थ क्षेत्र गौतमेश्वर महादेव मंदिर अरनोद राजस्थान – गौतमेश्वर मंदिर का इतिहास राजस्थान राज्य के दक्षिणी भूखंड में आरावली पर्वतमालाओं के बीच प्रतापगढ़ जिले की अरनोद तहसील से 2.5 किलोमीटर की दूरी रानी सती मंदिर झुंझुनूं राजस्थान – रानी सती दादी मंदिर हिस्ट्री इन हिन्दी सती तीर्थो में राजस्थान का झुंझुनूं कस्बा सर्वाधिक विख्यात है। यहां स्थित रानी सती मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। यहां सती ओसियां का इतिहास – सच्चियाय माता मंदिर ओसियां राजस्थान के पश्चिमी सीमावर्ती जिले जोधपुर में एक प्राचीन नगर है ओसियां। जोधपुर से ओसियां की दूरी लगभग 60 किलोमीटर है। डिग्गी कल्याण जी की कथा – डिग्गी धाम कल्याण जी टेम्पल डिग्गी धाम राजस्थान की राजधानी जयपुर से लगभग 75 किलोमीटर की दूरी पर टोंक जिले के मालपुरा नामक स्थान के करीब रणकपुर जैन मंदिर समूह – रणकपुर जैन तीर्थ का इतिहास सभी लोक तीर्थों की अपनी धर्मगाथा होती है। लेकिन साहिस्यिक कर्मगाथा के रूप में रणकपुर सबसे अलग और अद्वितीय है। लोद्रवा जैन मंदिर का इतिहास – हिस्ट्री ऑफ लोद्रवा जैन टेंपल भारतीय मरूस्थल भूमि में स्थित राजस्थान का प्रमुख जिले जैसलमेर की प्राचीन राजधानी लोद्रवा अपनी कला, संस्कृति और जैन मंदिर गलताजी मंदिर का इतिहास – हिस्ट्री ऑफ गलताजी धाम जयपुर नगर के कोलाहल से दूर पहाडियों के आंचल में स्थित प्रकृति के आकर्षक परिवेश से सुसज्जित राजस्थान के जयपुर नगर के सकराय माता मंदिर या शाकंभरी माता मंदिर सीकर राजस्थान हिस्ट्री इन हिंदी राजस्थान के सीकर जिले में सीकर के पास सकराय माता जी का स्थान राजस्थान के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक बूंदी राजपूताना की वीर गाथा – बूंदी राजस्थान राजपूताना केतूबाई बूंदी के राव नारायण दास हाड़ा की रानी थी। राव नारायणदास बड़े वीर, पराक्रमी और बलवान पुरूष थे। उनके सवाई मानसिंह संग्रहालय जयपुर राजस्थान जयपुर के मध्यकालीन सभा भवन, दीवाने- आम, मे अब जयपुर नरेश सवाई मानसिंह संग्रहालय की आर्ट गैलरी या कला दीर्घा मुबारक महल कहां स्थित है – मुबारक महल सिटी प्लेस राजस्थान की राजधानी जयपुर के महलों में मुबारक महल अपने ढंग का एक ही है। चुने पत्थर से बना है, चंद्रमहल सिटी पैलेस जयपुर राजस्थान राजस्थान की राजधानी जयपुर के ऐतिहासिक भवनों का मोर-मुकुट चंद्रमहल है और इसकी सातवी मंजिल ''मुकुट मंदिर ही कहलाती है। जय निवास उद्यान जयपुर – जय निवास गार्डन राजस्थान की राजधानी और गुलाबी नगरी जयपुर के ऐतिहासिक इमारतों और भवनों के बाद जब नगर के विशाल उद्यान जय तालकटोरा जयपुर – जयपुर का तालकटोरा सरोवर राजस्थान की राजधानी जयपुर नगर प्रासाद औरजय निवास उद्यान के उत्तरी छोर पर तालकटोरा है, एक बनावटी झील, जिसके दक्षिण बादल महल कहां स्थित है – बादल महल जयपुर जयपुर नगर बसने से पहले जो शिकार की ओदी थी, वह विस्तृत और परिष्कृत होकर बादल महल बनी। यह जयपुर माधो विलास महल का इतिहास हिन्दी में जयपुर में आयुर्वेद कॉलेज पहले महाराजा संस्कृत कॉलेज का ही अंग था। रियासती जमाने में ही सवाई मानसिंह मेडीकल कॉलेज 1 2 Next » भारत के पर्यटन स्थल भारत के प्रमुख त्यौहार भारत के प्रमुख धार्मिक स्थल राजस्थान पर्यटन