तालकटोरा जयपुर – जयपुर का तालकटोरा सरोवर Naeem Ahmad, September 14, 2022March 26, 2024 राजस्थान की राजधानी जयपुर नगर प्रासाद और जय निवास उद्यान के उत्तरी छोर पर तालकटोरा है, एक बनावटी झील, जिसके दक्षिण मे बादल महल और तीन ओर चौडी मिट॒टी की पाल हुआ करती थी जिस पर अब जयपुर की बढती आबादी ने मकान ही मकान बनाकर इस चित्रोपम जलाशय के सारे सौन्दर्य को विकृत कर दिया है। इस पाल पर भी पहले बहुत सुन्दर बगीचा था जिसे पाल का बाग कहा जाता था। जयपुर के तीज और गणगौर के प्रसिद्ध मेलो का समापन पाल के बाग मे ही होता आया है। बादल महल के एकदम सामने वाली पाल पर जिसके कोनों पर अष्टकोणीय छतरिया, बीचों-बीच कमानीदार छतवाली लम्बी छतरी और इनके बीच मे समतल छतों वाली जालियों से बंद दो छतरिया और बनी हैं। तीज और गणगौर के जुलूस इसी जगह आकर समाप्त होते हैं। भोग के बाद तालकटोरा मे ही तीज और गणगौर को पधराने या विसर्जित करने का रिवाज रहा है। लह-लहाते बाग-बगीचो के बीच, तालकटोरा के किनारे तीज और गणगौर के रगो से भरे जुलूसों का यह नजारा इस शहर के सबसे चित्रोपम नजारो मे गिना गया है। दूसरी पाल पर जब इस प्रकार मेले का समापन होता था तो बादल महल मे जुडी सभा या दरबार मे नाच-गान के कार्यकम चलते रहते थे। जिस जमाने में ब्रह्मपुरी और माधो विलास की दीवारों से टकराने वाला राजामल का तालाब तीन ओर से तालकटोरा को घेरता था, तो ताल कटोरा नाम सार्थक हो जाता था, बडे तालाब मे तैरता हुआ कटोरा, तालकटोरा।तालकटोरा जयपुर – जयपुर का तालकटोरानगर-प्रासाद की सरहद मे आये हुए इस तालकटोरा मे कभी मगरमच्छो की भरमार थी। इन्हे रोजाना महाराजा की ओर से खुराक पहुंचाई जाती थी और यह जानवर बड़े पालतू हो गये थे। खुराक लेकर जाने वाले कर्मचारी जब तालकटोरा की पाल पर जाकर खडे होते तो बडे-बडे मगरमच्छ उनके हाथो अपना भोजन पाने के लिये सीढियां चढकर ऊपर पाल तक आ जाते। मगरमच्छो को खिलाने का यह नजारा भी खूब था। जिन्होने देखा है, उन्हे अब तक याद है।ईसरलाट जयपुर – मीनार ईसरलाट का इतिहासखास-खास अवसरो पर तालकटोरा जयपुर में मगरमच्छो की खिलाने का एक तमाशा भी होता। लम्बी रस्सी से बांध कर कोई जिन्दा खुराक तालाब मे फेक दी जाती, उसी तरह जैसे शेर के लिये बकरा या पाडा बाध दिया जाता है। बस, मगरमच्छो मे घमासान लडाई छिड़ जाती। जब सबसे जोरदार जानवर इस खुराक को पकड़ लेता तो रस्साकशी होती। एक तरफ मगर और दूसरी तरफ रस्सी को थामने वाले आदमी। अपनी शिकार के पीछे पडे मगरमच्छ को खीच कर तालकटोरा तालाब से बाहर करने के लिए कई-कई लोगो को जोर आजमाना पडता। इस तरह वह जबरन खिच तो आता, लेकिन फिर झुंझला कर रस्सी को काट खाता और लौट जाता तालकटोरा के पानी में।तालकटोरा जयपुरराजामल का तालाब ओर जयपुर का तालकटोरा की जगह जयपुर बसने से पहले भी झील ही थी जिसके आसपास आमेर के राजा शिकार खेलने के लिए आया करते थे। जब सवाई जय सिंह ने जय निवास बाग और उसमे अपने महल बनवाये तो तालकटोरा को तो वह स्वरूप मिला जो आज भी हम देखते है ओर राजामल का तालाब नगर-प्रासाद की ‘सरहद’ से बाहर आम जनता के लिए छोड दिया गया। इस तालाब को तत्कालीन ग्रन्थों मे “जयसागर’ कहा गया है लेकिन जय सिंह के प्रधानमत्री राजमल की हवेली के पास होने के कारण जयपुर के लोगो ने इसे “राजामल का तालाब” ही कहा। इसमें पानी की आमद शहर के उत्तरी भाग ओर नाहरगढ़ की पहाडी से होती थी। बाला नन्द जी के मंदिर से लेकर तलाब तक पानी आने का रास्ता ‘नन्दी”’ कहलाता है जो फतहराम के टीबे के पास बारह मोरियो मे होकर जय सागर या राजामल के तालाब मे पहुंचता था। पूरा भराव हो जाने पर माधो विलास के पश्चिम से इसका अतिरिक्त पानी निकल कर मानसागर या जल महल के तालाब में पहुंचता था और यही जयपुर के उत्तरी शहर का “नेचरल ड्रेनेज -प्राकुतिक जल निकास था।गोवर्धन नाथ जी मंदिर जयपुर राजस्थानमहाराजा रामसिंह के समय मे जब शहर की आबादी बढ चली थी, राजामल के तालाब को गन्दगी और बीमारी (मलेरिया) का घर समझ कर मिट॒टी से पाटना शुरू किया गया। पिछले राजाओं की उपेक्षा और जयपुर पर आये दिन आने वाली मुसीबतो के कारण तब जलेब चौक और जय निवास बाग का बुरा हाल था। रामसिह ने इन दोनों ही जगहों का सब कूडा-कचरा हटवाया और यह पास ही राजामल के तालाब मे भर दिया गया। गोविन्द देवजी की ड्योढी के बाहर ही तब रामसिंह ने बग्घी-खाने और रामप्रकाश नाटकघर की इमारते भी बनवाई। तब से शहर का कूडा-कचरा ढोने वाली भैसा-गाडियां भी इसी तालाब मे खाली होने लगी और इसके पूरा भर जाने तक होती रही। अब तो राजामल का तालाब कवर नगर नामक एक बस्ती बन गया है ओर यहां मकान ही मकान बन गये हैं। फिर भी सैकडो बरस जो जमीन तालाब के नीचे रही, उसमे आज भी सीलन और नमी है। इस नयी बस्ती के नीचे न जाने गन्दगी भी कितनी दबी पडी है। गिरधारी जी के मन्दिर की तरफ ट्रक वालो के पडाव है और सारी बस्ती मे एक अजीबो-गरीब दुर्गन्ध भरी रहती है। नयी बस्ती होकर भी यह एक ”स्लम” जैसी ही थी। हांलांकि अब काफी सुधार हुआ है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—- [post_grid id=”6053″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत की प्रमुख झीलें जयपुर पर्यटन