गोरखपुर जिला मुख्यालय से 15 किमी0 दूर देवरिया मार्ग पर एक स्थान है तरकुलहा। यहां प्रसिद्ध तरकुलहा माता का तरकुलहा देवी मंदिर स्थित है। जहां तरकुलहा का मेला लगता है। इस स्थान की यहां के लोगों में बहुत मान्यता है।
तरकुलहा का मेला और उसका महत्व
तरकुलहा का मेला
कहते हैं कि यहां तरकुल के एक विशाल वृक्ष के नीचे माँ का प्राकटय हुआ बताया जाता है। बताते है कि यहां शहीद बन्धु नाम के एक स्वतंत्रता सेनानी थे जो माँ के परम भक्त थे। वे माँ को प्रतिदिन एक अंग्रेज की बलि चढाते थे। ऐसा कहा जाता है। अंग्रेज इन्हे पकडते और जब फांसी के तख्ते पर चढाते तो फांसी का फंदा अपने आप टूट जाता था। अंत मे जब उनकी मौत हो गयी तो तरकुल का पेड अपने आप टूट गया और तब देवी ने प्रसन्न होकर उन्हे अपनी अक्षय भक्ति प्रदान की। इसके बाद भक्तों द्वारा यहां एक मंदिर की स्थापना की जो आज तरकुलहा देवी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। इसी मंदिर पर तरकुलहा का मेला लगता है।
यहां चैत्र मास में नवरात्र के अवसर पर बडा मेला लगता है। जो तरकुलहा का मेला कहलाता है। यहा बकरे की बलि चढायी जाती
है और भक्तगण बलि का प्रसाद लिट्टी के साथ ग्रहण करते है। यहा भी चढायी हुई बलि का प्रसाद दुकानों पर भी खूब बिकता है। चेत्रमास के शुक्रवार की चारों तिथियो को यहा भारी भीड एकत्र होती है। तरकुलहा मेले में भी दैनिक उपयोग की वस्तुओं के अतिरिक्त सजावट की वस्तुए भी बिकने को आती है। काष्ठ कला की वस्तुए भी खूब बिकती है। इसके अलावा मनोरंजन के लिए छोटे बड़े झूले, सर्कस, भूत बंगला, हंसी के फुवारे, और विभिन्न प्रकार के गेम्स भी होते हैं। मेले में हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं और प्रशासन की ओर से तरकुलहा का मेला में सुरक्षा व्यवस्था पूरा बंदोबस्त रहता है। मेले में शरारती तत्वों को धरपकड़ के लिए पुलिस की टीमें निरंतर मुस्तेद रहती है।
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