तंजौर का इतिहास – तंजौर का वृहदेश्वर मंदिर Naeem Ahmad, February 28, 2023 तंजौर जिसे तंजावुर के नाम से भी जाना जाता है,तमिलनाडु का प्रमुख धार्मिक और ऐतिहासिक शहर है। तंजौर का वृहदेश्वर मंदिर बहुत प्रसिद्ध मंदिर है, जिसके लिए इसे जाना जाता है। तंजौर दसवीं से चौदहवीं शताब्दी तक चोल शासकों की राजधानी रही। चोल राजा विजयालय ने पांड्य राजा से 850 ई० में तंजौर दूसरी बार छीनकर इसे अपनी राजधानी बनाया था। उसने यहाँ चोल वंश के शासन की नींव रखी।Contents1 तंजौर का इतिहास – तंजावुर का इतिहास1.1 तंजौर के पर्यटन स्थल – तंजावुर के दर्शनीय स्थल1.2 तंजौर उपलब्ध सुविधाएं2 हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—तंजौर का इतिहास – तंजावुर का इतिहासचोल शासक पहले पल्लव शासकों के सामंत थे। नौवीं शताब्दी के अंत में विजयालय (चोल) ने कांचीपुरम के पल्लव शासक को भी परास्त करके उसकी हत्या कर दी और कांची के आस-पास का संपूर्ण क्षेत्र, जिसे टोंडईमंडलम कहते हैं, अपने अधीन कर लिया। इस प्रकार उन्हें पल्लवों और पांडयों दोनों से मुक्ति मिल गई और उन्होंने तंजौर में अपने स्वतंत्र शासन की स्थापना की। विजयालय के बाद उसका पुत्र आदित्य प्रथम 885 ई० में शासक बना। उसने अपने पल्लव अधिपति अपराजित को पांड्य राजा के विरुद्ध जिताया था। अपराजित ने पांड्य राज्य के विजित क्षेत्र उसी को दे दिए। आदित्य प्रथम उसकी दुर्बलता को भाप गया और उसने उसे हराकर टोंडईमंडलम अपने अधिकार में ले लिया। उसने गंगों की राजधानी तालक्काड़ पर भी अपना दबदबा कायम किया।आदित्य के बाद परांतक प्रथम (907-53) ने दक्षिण की ओर स्थित शेष पांड्य राज्य को समाप्त करके अपने राज्य की सीमा कन्याकुमारी तक बढ़ा ली। उसने श्रीलंका पर चढ़ाई की, परंतु सफल न हो सका। जब पल्लव शासक पुनः सिर उठाने लगे, तो उसने उनको भी दबा दिया। मान्यखेट के राष्ट्रकूट राजा कृष्ण तृतीय ने उसे तक्कोलम के स्थान पर हराकर उससे 943 में टोंडईमंडलम छीन लिया। इस प्रकार कुछ काल तक चोलों की शक्ति दब गई। बाद में परांतक द्वितीय (953-73) ने राष्ट्रकूट शासक को हराकर उससे टोंडईमंडलम वापस ले लिया।सन् 973 में मधुरांतक उत्तर चोल और 985 में राजराजा प्रथम शासक बना। राजराजा प्रथम ने त्रिवेंद्रम पर आक्रमण करके चेर राज्य के बेड़े को कांदलूरशालय के निकट तहस-नहस कर दिया। उसने किल्लौं पर भी धावा बोला और मदुरै पर आक्रमण करके पांड्य शासक को बंदी बना लिया। उसने श्रीलंका के शासक को भी पराजित किया और उसके राज्य का कुछ भाग छीन लिया। राजराजा ने मालदीव को भी जीता। उसने कलिंग के गंग राजा और वेंगी को परास्त किया। राजराजा के काल में चालुक्य राजा सत्याश्रय ने चोल साम्राज्य पर आक्रमण किया। उसके पुत्र राजेंद्र प्रथम (1013-35) ने सत्याश्रय को हराया। उसने चेर और पांड्य राज्यों को रौंदकर अपने राज्य में मिला लिया। उसने श्रीलंका को भी पूरी तरह परास्त किया, जिससे अगले 50 वर्षों तक श्रीलंका चोल शासक के अधीन रहा।तंजौर का मंदिरउसने कलिंग पार करके गंगा नदी पार की और दो स्थानीय राजाओं, जिनमें से एक बंगाल का राजा महीपाल था, को हराकर गंगईकोंड (गंगा पर विजय प्राप्त करने वाला) विरुद धारण किया। उसने कावेरी नदी के मुहाने पर गंगईकोंडाचोलापुरम नगर बसाया और उसे अपनी राजधानी बनाया। अगला शासक राजाधिराज तंजौर की गद्दी पर 1035 में बैठा। उसने चालुक्य राजा विक्रमादित्य को धन्नद और पुंडूर में हराया और कल्याणी को लूटा। उसने लंका से भी युद्ध किया। अपनी विजयों के उपलक्ष्य में उसने अश्वमेध यज्ञ किए। वह 1052 में चालुक्य राजा सोमेश्वर प्रथम के साथ युद्ध करता हुआ कोप्पम नामक रथान पर मारा गया।उसके बाद 1052 से 1063 तक उसके छोटे भाई राजेंद्र द्वितीय ने शासन किया। उसने चालुक्यों को हराकर कोल्हापुर को लूटा और वहाँ एक विजय स्तंभ बनवाया उसने लंका पर भी आक्रमण किया। वहां के राजा विजय बाहु ने एक पहाड़ी किले में शरण ली। उसके काल में 1055 ई० में घोर अकाल पड़ा। 1063 में उसका छोटा भाई वीर राजेंद्र गद्दी पर बैठा। उसने चालुक्य राजा सोमेश्वर को तुंगभद्रा और कृष्णा नदियों के संगम पर करारी मात दी और तुंगभद्रा के तट पर विजय स्तंभ बनवाया।सोमेश्वर प्रथम की मृत्यु के बाद उसके पुत्र विक्रमादित्य ने चोलों की अधीनता स्वीकार कर ली। वीर राजेंद्र के काल में लंका का राजा स्वतंत्र हो गया। 1070 में वीर राजेंद्र का पुत्र अधिराजेंद्र शासनारूढ़ हुआ। उसके गद्दी पर बैठते ही विद्रोह आरंभ हो गए और चोल सत्ता का प्रभाव कम हो गया। कुछ ही महीने बाद उसकी मृत्यु हो गई। कुलोतुंग प्रथम 1070 में तंजौर का अगला राजा बना। उसने चालुक्य नरेश विक्रमादित्य सप्तम, पांड्यों और चेरों को हराया। उसने लंका के राजा विजय बाहु के पुत्र से अपनी पुत्री का विवाह करके लंका से संधि कर ली।सन् 1075 में उसने विक्रमादित्य को हराकर गंग राज्य पर अधिकार कर लिया। उसने चीन, कंबोज, कन्नौज और पेंगन (बर्मा) के राजाओं से कूटनीतिक संबंध स्थापित किए। उसके शासन के अंतिम वर्षों में होयसल राजा विष्णुवर्मन ने उसके राज्य के कुछ भाग पर अधिकार कर लिया तथा चालुक्यों ने भी कुछ क्षेत्र हथिया लिए। कुछ सामंत भी स्वतंत्र हो गए। उसका उत्तराधिकारी विक्रम चोल उसकी मृत्यु के बाद 1122 में तथा विक्रम चोल का पुत्र कुलोतुंग द्वितीय 1135 में राज्य का स्वामी बना। उसके बाद राजराजा द्वितीय ने 1150 से 1173 तक शासन किया। उसके काल में पांड्य स्वतंत्र हो गए। उसके बाद राजाधिराज द्वितीय (1173-79), कुलोतुंग तृतीय, राजराजा तृतीय (1216-46) तथा राजेंद्र तृतीय (1246-79) राजा बने।इनके काल में पांड्यों और होयसलों ने चोल राज्य की नींव हिला दी। सुंदर पांड्य ने राजेंद्र तृतीय को हराकर तंजौर में चोल वंश का लगभग अंत कर दिया। इसके बाद चोल शासक स्थानीय सरदारों की तरह रह गए। 14वीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य के हाथों इस राज्य के अंतिम चिह्न भी मिट गए। 1751 में फ्रांसीसी सेना ने इस पर कब्जा करने का असफल प्रयास किया। फ्रांसीसी सेनापति लैल्ली ने तंजौर के राजा से 70 लाख रु. की बकाया राशि वसूल करने के लिए 18 जुलाई, 1758 को इस का घेरा डाल लिया, परंतु गोला बारूद की कमी के कारण वह इस पर कब्जा नहीं कर सका और अंग्रेजी सेना के तंजौर पहुँच जाने पर उसने 10 अगस्त, 1758 को इसका घेरा उठा लिया।तंजौर के पर्यटन स्थल – तंजावुर के दर्शनीय स्थलअपनी विजयों के उपलक्ष्य में चोल राजाओं ने यहां शिव और विष्णु मंदिर बनवाए। इनमें से राजराजा प्रथम (985-1016 ई०) द्वारा बनवाया गया राजराजेश्वर मंदिर भी है। इसका निर्माण 1010 ई० में पूरा हुआ था। यहां बने मंदिरों की दीवारों पर कुछ लेख भी खुदे हैं, जो वर्णनात्मक हैं। राजराजा प्रथम द्वारा बनवाया गया वृहदेश्वर मंदिर, जिसे राजराजा मंदिर भी कहा जाता है, द्रविड़ शैली की वास्तुकला का सबसे बढ़िया नमूना है। इसमें राजा, रानी और देवी-देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित हैं। इसकी ऊंचाई 200 फूट है। यूं तो यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है तथा इसमें शिवलिंग स्थापित होने के साथ-साथ भारत में नंदी की दूसरी सबसे बड़ी प्रतिमा (6 फुट लंबी) है, फिर भी इसकी दीवारों की अंदरूनी सतह पर शैव के अतिरिक्त बौद्ध एवं वैष्णव धर्म के भित्तिचित्र भी बने हुए हैं। ये भित्तिचित्र चोल शासकों (दसवीं-ग्यारहवीं शताब्दी) और नायक वंश (सतरहवीं शताब्दी) के काल के हैं। भारत में नंदी की सबसे बड़ी प्रतिमा अनंतपुर के पास लेपाक्षी में है।चोल शासकों ने तंजौर में जिस जगह से शासन किया था, वहां अब सरस्वती महल पुस्तकालय और कांसे की उत्कृष्ट प्रतिमाओं का एक संग्रहालय है। तंजौर में शिवगंगा सरोवर, सुब्रमण्य मंदिर तथा एक राजा द्वारा 1779 में बनवाया गया स्वार्टर्ज गिरिजाघर भी है। तंजौर के पास ही तिरुवैयार है, जहां उन्नीसवीं शताब्दी के दौरान दक्षिण के महान संत एवं संगीतकार त्यागराज रहा करते थे। तंजौर के आस-पास तिरुवैयारु, तिरुकंडीयुर, कुंभकोणम, तिरुभुवनम तथा धारासुरम, गंगईकोंडाचोलापुरम का शिव मंदिर, मुस्लिम तीर्थ स्थान नागौर तथा ईसाइयों का धर्म स्थल वेलंकन्नी का भ्रमण किया जा सकता है।तंजौर उपलब्ध सुविधाएंतंजौर या तंजावुर देश के अन्य भागों से रेल तथा सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। निकटतम हवाई अड्डा 60 किमी दूर तिरुच्चिरापल्ली है। ठहरने के लिए यहां अनेक होटल हैं। पर्यटन सूचना केंद्र जवान भवन में है।हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:— तिरुचिरापल्ली का 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