झेलम का युद्ध भारतीय इतिहास का बड़ा ही भीषण युद्ध रहा है। झेलम की यह लडा़ई इतिहास के महान सम्राट विश्व विजेता सिकंदर और पोरस के बीच हुई थी। इस भीषण संग्राम को सिकंदर और पोरस का युद्ध तथा हाईडेस्पीज (Hydaspes) का युद्ध के नाम से भी जाना जाता है। इस भीषण संग्राम में हजारों सैनिक मारे गए थे। अपने इस लेख में हम अपने कुछ महत्वपूर्ण सवालों के जवाब जो अक्सर हम इस लडा़ई के संबंध में जानना चाहते है उनके जवाब तथा सिकंदर और पोरस की कहानी और युद्ध को विस्तार पूर्वक जानेगें।
सबसे पहला सवाल आता है झेलम का युद्ध कब लड़ा गया? या झेलम का युद्ध कब हुआ था? इतिहास का यह भीषण संग्राम आज लगभग 2346 साल पहले यानि ईसा 326 वर्ष पहले हुआ था। अब सवाल आता है कि झेलम का युद्ध किस किस के बीच हुआ था? या जो झेलम का युद्ध लड़ा उसका नाम क्या था। यह युद्ध यूनान के सम्राट सिंकदर और भारत मेंपंजाब के महाराज पोरस के बीच हुआ था। आगे के लेख में हम इस युद्ध और समकालीन स्थिति को विस्तार पूर्वक क्रम अनुसार जानेगें।
झेलम का युद्ध के समकालीन भारत की राजनीतिक स्थिति
आज से लगभग 2300 वर्ष पहले यूनान के विजयी सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया था और इस देश के छोटे छोटे राज्यों पर उसने अपना अधिकार कर लिया था। उन दिनों में भारत की राजनीतिक शक्तियां बहुत निर्बल हो गई थी, इस निर्बलता का प्रारंभ महाभारत के बाद हुआ था। अपने जिस प्रताप और शौर्य के लिए भारत ने ख्याति पायी थी वह सब का सब महाभारत में ही समाप्त हो चुका था, और उसके बाद देश की शासन सत्ता छोटे छोटे टुकड़ों में बंट गयी थी। देश में कोई बड़ी राजनीतिक शक्ति न होने के कारण शासन व्यवस्था लगातार गिरती जाती थी। प्राचीन राजवंशों के शूरवीर, देश के भिन्न भिन्न भागो में अपनी अपनी स्वतंत्र सत्ता के साथ शासन कर रहे थे। इस प्रकार की शासन शक्तियां देश में सैकड़ों की संख्या में थी। हालत यह थी की जो राजा राज्य कर रहे थे उनमें से कुछ छोटे थे और कुछ बड़े। लेकिन किसी पर भी किसी का आधिपत्य न था। भारत में सैकड़ो की संख्या में जो राजा और नरेश शासन कर रहे थे, उनमें भी आपस में बहुत द्वेष फैला हुआ था। जो नरेश जिससे बलशाली होता था, अपने से निर्बल के लिए घातक हो जाता था। इस प्रकार का द्वेष सभी के बीच में चल रहा था। इसका परिणाम यह हुआ कि देश के वर्तमान नरेशों में कोई किसी का सहायक और शुभचिंतक न था। इन भयानक परिस्थितियों में ही देश में जैन और बौद्ध धर्म का जन्म हुआ था। जिस समय के राजनीतिक जीवन का वर्णन हम करने जा रहे है, उससे लगभग दो शताब्दी पूर्व भारत में अहिंसा की शीतल वायु चल रही थी। जैन धर्म उससे भी पहले देश के प्रत्येक भाग में अपना प्रभाव डाल चुका था। दोनों ही अहिंसा के प्रचारक और प्रवर्तक थे। देश में सम्पत्ति का अभाव न था, अहिंसा की बढ़ती हुई शिक्षा और दीक्षा में विलासिता का जन्म हुआ और देश के राजाओं और नरेशों ने विलास प्रियता का आश्रय लिया। इसके फलस्वरूप राजनीतिक दूरदर्शिता और युद्ध कुशलता क्षीण होने लगी। अहिंसा के प्रचार में आसानी के साथ सफलता मिलने का यह हुआ कि फूट और द्वेष में पड़े हुए देश के शासकों को युद्ध की अपेक्षा शांति अच्छी मालूम हो रही थी। इस प्रकार की शांति में विलासिता की वृद्धि स्वाभाविक हो जाती है।
सिकंदर और यूनान
आईये यहां हम झेलम युद्ध के महत्वपूर्ण किरदार महान सिकंदर के बारे कुछ जान लेते है कि सिकंदर कौन था? सिकंदर राजा कैसे बना? और सिकंदर का यूनान के साथ क्या संबंध है? और सिकंदर की विजय यात्रा, सिकंदर के पिता कौन थे?।
सिकंदर मकदूनिया के राजा फिलिप का पुत्र था। मकदूनिया यूनान के अंतर्गत एक छोटी सी रियायत थी। वहां के निवासियों को प्राचीन भारतवासी यवन (यवनी) कहा करते थे। समस्त यूनान छोटे छोटे राज्यों में बंटा हुआ था। यूनान के उत्तर में मकदूनिया एक पहाड़ी देश था। यूनान के दूसरे राज्यों के निवासी मकदूनिया के निवासियों को जंगली और असभ्य कहा करते थे। लेकिन ईसा से 400 वर्ष पहले मकदूनिया के राजा फिलिप ने यूनान के सभी राज्यों को जीतकर अपने अधिकार में कर लिया था। सिकंदर छोटी अवस्था से ही समझदार और लडाकू स्वभाव का था। उसका शरीर स्वस्थ और बलवान था। फुर्ती और तेजी के साथ साथ उसके स्वभाव में निर्भीकता थी, और आरंभ से ही वह अत्यंत सहासी था। आरंभ से ही सिकंदर के स्वभाव में युद्ध करने का उत्कृष्ट भाव था। वह पहले से ही संसार के दूसरे देशों के जीतने के लिए तरह तरह की बाते किया करता था। अपने बचपन में वह जीतनी बाते किया करता था सभी करीब करीब युद्ध संबंधी होती थी। वह विश्व विजय कर महान सम्राट बनने के सपने देखा करता था। और उसकी बातों को सुनकर लोग हंसा करते थे। उन दिनों यूनान के उत्तर पश्चिम में जो यूरोप के देश थे वे बिल्कुल जंगली थे।
बीस वर्ष की अवस्था में सिकंदर मकदूनिया के राज सिंहासन पर बैठा और राजा होते ही वह विश्व विजयी करने के लिए निकल पड़ा। विशाल फारस का सम्राज्य इन दिनों बहुत निर्बल हो गया था। यूनान के साथ फारस की पुरानी शत्रुता थी। ईसा से 492 साल पहले फारस के सम्राट मारजैनियस ने यूनान पर आक्रमण किया था और यूनान को जीतकर उसने यूनान की राजधानी एथेंस को जलाकर भस्म कर डाला था। फारस सम्राज्य उन दिनों तक शक्तिशाली माना जाता था। सिकंदर ने तीस हजार पैदल और पांच हजार सवारों की सेना लेकर फारस देश पर आक्रमण किया और उसको जीतकर उसने उस पर अधिकार कर लिया।
फारस के बाद सिकंदर एशिया के प्रदेशों को विजय करने के लिए निकला। उसने एक एक करके मध्य एशिया के कई देशों को जीतकर तुर्किस्तान, अफगानिस्तान और दूसरे कई राज्यों को अपने अधिकार में कर लिया। इसके बाद वह अपनी विशाल विजयी सेना के साथ वह एशिया के पूर्व सुदूरवर्ती देशों की और बढ़ा और अफगानिस्तान होकर बलख से काबुल का सीधा मार्ग उसने पकड़ लिया और हिन्दू कुश को पार करता हुआ कोहेदामन की घाटी के पास पहुंचा। वहां से भारत के रास्ते पर चलकर जलालाबाद के पश्चिम की ओर एक स्थान पर सिकंदर ने अपनी सेना के साथ मुकाम किया। यहां पर कुछ समय विश्राम करके सिकंदर ने अपनी सेना का विभाजन किया और सेना का एक भाग देकर अपने दो सेनापतियों को उसने की ओर रवाना किया और बाकी सेना के साथ सिकंदर पिछे चला। रास्ते में मिलने वाले नगरों राज्यों और पहाड़ी सरदारों के किले की सेनाओं ने सिकंदर के प्रभुत्व को स्वीकार किया और जिसनें इंकार किया, यूनानी सेना ने उसका विनाश किया। इस प्रकारभारत की ओर बढ़ते हुए यूनानी सेना ने अनेक लंबे लंबे पहाड़ी रास्तों, घाटियों और नदियों को पार किया। मार्ग में आरनोस के करीब सिकंदर ने अपना एक डिपो कायम किया। और उसका अधिकार अपने एक सेनापति को दे दिया। फिर वहां से चलकर यूनानी सेना ओहिन्द नामक स्थान पर पहुंची गई। इधर बहुत दिनों से लगातार यात्रा करने के कारण यूनानी सेना बहुत थक गई थी इसलिए उसको विश्राम की जरूरत थी। यह समझकर सिकंदर ने उस स्थान पर तीस दिनों तक अपनी सेना को रूकने और विश्राम करने की आज्ञा दी। इससे यूनानी सेना बहुत प्रसन्न हुई और उसने पूरी स्वतंत्रता के साथ खेलकूद एवम आमोद प्रमोद में तीस दिन व्यतीत किये।
भारत में यूनानी सेना का प्रवेश
यहां हम जानेगें भारत में सिकंदर का प्रवेश कैसे हुआ था? भारत में सिकंदर कब आया था? सिंकदर ने भारत आने पर सबसे अपले कौनसे राज्य पर अधिकार किया था? सिकंदर ने भारत आने पर सबसे पहले किस राजा को अपने अधीन किया था?
सिंध नदी के कुछ फासले पर तक्षशिला का राज्य था। यहां के राजा आम्भी ने कुछ ही दिन पहले इस राज्य के सिंहासन को प्राप्त किया था। जिन दिनों में सिकंदर की सेना ओहिन्द में विश्राम कर रही थी, राजा आम्भी के एक प्रतिनिधि ने यूनान सम्राट सिकंदर से मुलाकात की थी और तक्षशिला की और से यूनानी सेना के स्वागत की सम्पूर्ण तैयारियो का उसने जिक्र किया था। इससे पहले तक्षशिला का स्वर्गीय राजा जो आम्भी का पिता था, सिकंदर के सेनापतियों से मिलकर (जिन्हें सिकंदर ने आगे भेजा था) आत्मसमर्पण करना स्वीकार कर चुका था। ओहिन्द के राजा आम्भी के प्रतिनिधि ने स्वर्गीय राजा के प्रस्ताव का समर्थन किया और तक्षशिला राज्य की ओर से श्रेष्ठ सात सौ घोड़े, तीस हाथियों, तीन हजार मजबूत बैलों और दस हजार भेडों के साथ चांदी के बहुत से सिक्के उसने सम्राट सिकंदर को भेंट में दिये।
इस मुलाकात में राजा आम्भी के प्रतिनिधि ने सम्राट सिकंदर को बताया कि राजा तक्षशिला आत्मसमर्पण करके यूनान के सम्राट की सहायता चाहता है। पंजाब के महाराज पोरस और अभिसार नरेश के साथ राजा आम्भी की शत्रुता चल रही थी। बसंत ऋतु का प्रारंभ हो चुका था, मौसम के अच्छे दिन सामने थे। तीस दिनों तक विश्राम करने के बाद सिकंदर ने अपनी सेना की रवानगी और सिंध नदी को पार करने का निर्णय लिया। सेना विश्राम करने के बाद फिर उत्साह पूर्वक तैयार हुई और एक दिन प्रातःकाल होते होते उसने तक्षशिला के राजा की सहायता से सिंध नदी को पार कर भारत की पवित्र भूमि पर पर्दापण किया। यह सिकंदर का भारत की धरती पर पहला कदम था जो भारत के तक्षशिला राज्य सीमा मे रखा था।
सिंध नदी पार कर यूनानी सेना सीधे तक्षशिला की ओर रवाना हुई। जब नगर पांच मील की दूरी पर रह गया तो सिकंदर ने देखा एक सशस्त्र सेना तेजी के साथ चली आ रही थी। उसके ह्रदय में आशंका उत्पन्न हुई। अभी तक सिकंदर के सामने तक्षशिला के राजा का व्यवहार ही दूसरा था। उसका ख्याल हुआ कि अभी तक राजा आम्भी ने अपने प्रतिनिधि के द्वारा जो बातें की है, हो सकता है कि उनमें धोखा दिया गया हो, और अवसर पर अगर तक्षशिला की सेना का आक्रमण हो जाए तो यूनानी सेना बड़े खतरे में पड़ जायेगी। इस प्रकार की आशंका में सिकंदर ने अपनी सेना को आगे बढ़ने से रोक दिया और राजा आम्भी की आने वाली सेना से निपटने की तैयारी करने लगा। ऐसे मौकों पर आंख मूंद कर विश्वास करना वह मूर्खता समझता था। वह बड़ी ही सावधानी के साथ सामने आने वाली सेना को देख रहा था। इसी अवसर पर तक्षशिला राजा आम्भी अपने कई मंत्रियों के साथ आता दिखाई दिया। उसने अपनी सेना को बहुत पीछे छोड़ दिया था। राजा आम्भी ने आकर जाहिर किया कि तक्षशिला की सेना, यूनान सम्राट के स्वागत में सम्मान प्रदर्शन करने के लिए आयी है। और राज्य की सम्पूर्ण सेना यूनान सम्राट के अधिकार में है। राजा आम्भी की इन बातों को सुनकर सिकंदर की आशंका दूर हुई और यूनानी सेना फिर आगे कि ओर रवाना हुई। तक्षशिला नगर में पहुंचने पर सम्राट सिकंदर और उसकी सेना का भव्य स्वागत और सम्मान किया गया। सिकंदर के सम्मान में राजा आम्भी ने बड़ा उत्सव किया और उस उत्सव में उसने सिकंदर को अपना अधिपति स्वीकार किया। इस प्रकार भारत में सिकंदर ने बिना युद्ध के पहला अधिकार तक्षशिला राज्य पर किया और सिकंदर द्वारा भारत में प्रथम अधिपत्य राजा आम्भी पर किया था। इस उत्सव के समय सम्मान प्रदर्शन में दोनों ओर से बड़ी बडी सम्पत्तियां भेंट की गई।
अभिसार राज्य में सिकंदर का अधिकार
भारत आने पर सिकंदर ने दूसरा अधिकार किस राज्य पर किया? झेलम का युद्ध की पटकथा?
यूनानी सेना ने कुछ समय तक तक्षशिला राज्य में विश्राम किया। राजा आंभी ने उसके सुख और सुविधाओं के प्रबंध में कोई कसर न रखी। सिकंदर और उसकी सेना को प्रसन्न करने में तक्षशिला राज्य की सम्पत्ति पानी की तरह बहायी गई। यूनान के विजयी सम्राट सिकंदर के साथ इस प्रकार मैत्री करके वह अपने शत्रु महाराज पोरस और राजा अभिसारी को अपनी एक महान शक्ति के संकलन का प्रमाण दे रहा था। देश के जिन शत्रु राजाओं को वह स्वयं कभी पराजित न कर सका था। और जिनकी शत्रुता के कारण वह बार बार नींचा देख चुका था। आज सिकंदर के साथ अपनी मित्रता करके मानो वह उनको लज्जित कर रहा था।
तक्षशिला नगर में मुकाम करके सिकंदर ने आसपास के राज्यों पर अधिकार करने का सूत्रपात किया और राजा अभिसार के पास अपने राजदूत के द्वारा अधीनता स्वीकार करने का संदेश भेजा। राजा आंभी के साथ राजा अभिसार की शत्रुता पहले से थी, और सिकंदर के भारत में आने पर वह युद्घ के लिए तैयार था। महाराज पोरस की सहायता में अपनी शक्तिशाली सेना भेजकर सिकंदर को पराजित करके भारत से उसे भगाने का उसने पहले से अपना इरादा बना रखा था। लेकिन यूनानी राजदूत के पहुंचने पर वह असमंजस में पड़ गया। इसके संबंध में महाराज पोरस की तरफ से क्या होगा, उसे इस बात को समझने का मौका न मिला। एक भयानक दुविधा में पड़कर और यह सोचकर कि तक्षशिला का आंभी सिकंदर की मित्रता का लाभ उठावेगा, उसने यूनानी सम्राट के प्रति आत्मसमर्पण करना स्वीकार कर लिया। इस प्रकार सिकंदर ने पहली बार भारत आने पर बिना किसी युद्ध के दूसरे राज्य पर विजय प्राप्त कर ली थी।
सिकंदर का पोरस को अधीनता का संदेश
सिकंदर ने पोरस को अधीनता स्वीकार करने का संदेश में क्या कहा? सिकंदर के अधीनता स्वीकार करने के संदेश के जवाब में पोरस ने क्या कहा। सिकंदर और पोरस की कहानी की शुरूआत, झेलम का युद्ध इन हिन्दी? सिकंदर एंड पोरस हिस्ट्री इन हिन्दी? सिकंदर और पोरस का इतिहास?
अब सिकंदर के सामने महाराज पोरस का प्रश्न था। उसने तक्षशिला में मुकाम करके पोरस के बारें में अनेक प्रकार की बातें सुनी थी, लेकिन सिकंदर एक असाधारण योद्धा था। उसने अपने राजदूत को तैयार किया और नियमानुसार, राजा पोरस के पास जाकर मिलने और आत्मसमर्पण करने का उसने संदेश भेजा। महाराज पोरस का देश पंजाब में झेलम और चिनाब नदियों के बीच में था, और उनके राज्य में तीन सौ बड़े बड़े नगर थे। राजा आंभी को छोडकर दूसरे कितने ही राजाओं के साथ पोरस की मित्रता का संबंध था। पंजाब में अनेक राजा राज्य करते थे, लेकिन उनमें उस समय पोरस ही एक बड़ा राजा था और युद्ध में पराक्रमी और शूरवीर था।
महाराज पोरस के दरबार में अपने विजयी सम्राट सिकंदर का संदेश लेकर यूनानी राजदूत पहुंचा और अपना संदेश सुनाया। राजदूत के मुंह से अधीनता स्वीकार करने और यूनानी सम्राट से जाकर मिलने का संदेश सुनते ही भारतीय नरेश पोरस के सम्पूर्ण शरीर में बिजली दौड़ गई। उसने बड़े बड़े नेत्रो से एक बार राजदूत की ओर देखा और मन ही मन कहा इस देश के सभी राजा और नरेश, राजा आंभी नही है। अधीनता! आत्मसमर्पण! इस जीवन में! सिकंदर ने समझने की भूल की है।
पोरस ने राजदूत को जवाब देते हुए कहा —- मैं आऊंगा और अपनी सेना के साथ सीमा पर युद्ध के लिए तैयार मिलूंगा।
पोरस का उत्तर लेकर राजदूत वहां से लौटा और अपनी सेना में पहुंचकर उसने सिकंदर को पोरस का जवाब सुनाया। सिकंदर ने ध्यानपूर्वक राजदूत के मुंह से पोरस के कहे हुए शब्दों को सुना। सिकंदर ने समझ लिया अब पोरस के साथ युद्ध होगा। और भारत में सिकंदर का पहला युद्ध यही से प्रारंभ होगा। उसने यह भी समझा की राजा आम्भी और पोरस में क्या अंतर है। पोरस के अन्तःकरण में छिपे हुए शौर्य और स्वाभिमान को भी उसने अनुभव किया। तक्षशिला राज्य में काफी समय तक रहकर स्वागत सत्कार के अपूर्व सम्मान के साथ कुछ दिन बिताकर सिकंदर युद्ध की तैयारी करने लगा। पोरस के पास राजदूत को भेजने के पहले उसका ख्याल था कि अभिसार के राजा ने आत्मसमर्पण करना स्वीकार कर लिया है। इस दशा में पोरस भी अधीनता स्वीकार करेगा और युद्ध के लिए तैयार नहीं होगा। लेकिन पोरस का जवाब सुनकर उसका यह भ्रम दूर हो गया था।
पोरस की सेना में युद्ध की तैयारियां
झेलम का युद्ध की तैयारियां, सिकंदर और पोरस महायुद्ध की तैयारी, पोरस ने सिकंदर से युद्ध के लिए क्या क्या तैयारियां की।
पोरस को सिकंदर का संदेश मिल चुका था। उस संदेश में अपमान और पराजय की चिंगारियां थी। उस संदेश को सुनते ही पोरस ने सावधान होकर उसका जवाब दिया। लेकिन उसके बाद उसे सब युद्धमय दिखाई देने लगा, वह भारतीय नरेश था और शूरवीर था। विजयी सिकंदर के साथ युद्ध करने में उसका ह्रदय हतोत्साह न हुआ। वह जानता था आज देश की शक्तियां सैकड़ों भागों में विभाजित है। और सभी शक्तियां एक दूसरे से अलग है। फिर उसको देश की वीरता और शूरता पर अभिमान था। वह क्षत्रिय कर्तव्य का पालन करना जानता था। वह जानता था कि एक वीर पुरूष को युद्ध करने में ही सुख मिलता है। उसे विश्वास था कि अभी भारतीय वीरता का अंत नहीं हुआ है। सिकंदर और उसकी यूनानी सेना के साथ युद्ध करने के लिए उसके अन्तःकरण मे उत्साह और उमड़ की बाढ़ आने लगी।
झेलम का युद्ध
सिकंदर के साथ युद्ध करने और भारतीय स्वाधीनता की मर्यादा को सुरक्षित रखने के लिए पोरस ने अपनी सेना में युद्ध की तैयारी आरंभ कर दी। एशिया के अनेक देशों के विजेता सिकंदर के मुकाबले में युद्ध करने के लिए आज पोरस का उत्साह बढ़ रहा था। यूनान की विशाल सेना को पराजित करने के लिए उसने अपने शूरवीर सैनिकों को युद्ध के लिए तैयार होने की आज्ञा दी। जिन वीर सैनिकों ने युद्ध की भयानक मार के सामने कभी मुंह न मोड़ा था। और जो संग्राम में मारे जाने पर एक वीर पुरूष के मोक्ष पर विश्वास करते थे, इस प्रकार के चुने हुए वीर सैनिकों की उसने एक सेना तैयार की। उसकी इस सेना में 4000 हजार ऐसे वीर सैनिक अपने उछलते हुए घोड़ों पर तैयार होकर सामने आये, जो पोरस की सेना में प्रसिद्ध अश्वारोही सैनिक समझे जाते थे। युद्ध क्षेत्र पर जाने के लिए 200 सौ भयानक लडाकू हाथी तैयार हुए, जिनको देखकर ही भय मालूम होता था। इन सबके साथ साथ तीन सौ रथों पर बैठकर पंजाब के वीर योद्धा धनुष बाण लिए दिखाई देने लगें। युद्ध के जोशीले बाजों के साथ बड़ी तेजी से सेना की तैयारियां हो रही थी। अधिकारी सेनापतियों ने अपनी तैयारी की सूचना दी उसके बाद अपने शक्तिशाली हाथी पर बैठकर पचास हजार सेना के साथ पोरस युद्ध के लिए रवाना हुआ।
इस रवानगी के पहले पोरस ने अपने विस्वस्त सेनापतियों के साथ युद्ध का खाका तैयार किया था। पोरस ने झेलम नदी के तट पर पहुंच कर मुकाम किया। और नदी के दूसरी तरफ आने वाली यूनानी सेना पर निगरानी रखने के लिए उसने अपने सैनिकों का नदी के किनारे पर पहरा लगा दिया।
अक्सर सवाल पुछा जाता है कि सिकंदर और पोरस के बीच युद्ध कहा हुआ था? तो इसी झेलम नदी के तट पर सिकंदर और पोरस का युद्ध हुआ था। और इसी नदी के नाम के कारण ही इस महा संग्राम को इतिहास में झेलम का युद्ध के नाम से जाना जाता है।
युद्ध के लिए यूनानी सेना की रवानगी
सिकंदर की झेलम का युद्ध की तैयारी, सिकंदर कितनी फौज के साथ झेलम का युद्ध लडा। सिकंदर ने पोरस के साथ युद्ध के क्या क्या तैयारी की?।
सिकंदर अपनी विशाल सेना के साथ, अभी तक तक्षशिला में मौजूद था। यहां पर बहुत दिनों तक रहकर उसने और उसकी सेना ने विश्राम किया था। पोरस के साथ युद्ध करने के लिए उसने तैयारी शुरू कर दी और जिस समय वह तक्षशिला से रवाना हुआ उसके साथ सम्पूर्ण सेना के एक लाख बीस हजार सैनिक थे। इन सैनिकों में पचास हजार से अधिक यूरोपियन सैनिक थे, तक्षशिला के राजा आंभी ने भी पोरस को परास्त करने के लिए अपनी सेना दी थी। और खुद भी वह सिकंदर के साथ आया था। जिन दूसरे राजाओं और सरदारों ने आत्म समर्पण किया था, उनकी सेनाएं भी सिकंदर के अधिकार में थी। इस विशाल सेना को लेकर सिकंदर तक्षशिला से झेलम की ओर रवाना हुआ। झेलम के तट पर जहाँ उसे पहुंचना था, तक्षशिला से उसका फासला एक सौ दस मील था। इस रास्ते को सिकंदर ने पन्द्रह दिनों में पार किया और झेलम के किनारे बाई ओर जलालपुर के करीब उसने जाकर सेना का मुकाम किया। ठीक उसके सामने नदी की दूसरी तरफ पोरस की सेना का शिविर था। सिकंदर को पोरस की सेना में उसके युद्ध का एक भयानक अस्त्र, हाथियों का समूह दिखाई पड़ा। ईसा से 326 वर्ष पूर्व मई के महीने में जब भयानक गर्मी पड़ रही थी और पहाड़ों से पिघल पिघल कर आने वाली बर्फ के कारण झेलम नदी पूरी बाढ़ के साथ बह रही थी। सिकंदर ने झेलम के तट पर मुकाम करके समय और स्थान की परिस्थितियों का अध्ययन करना आरंभ कर दिया। दोनों ओर की सेनाओं में इस समय फासला था। फिर भी दोनों सेनायें एक दूसरे को देख सकती थी। जिससे दोनों सेनाओं को मालूम हो चुका था शत्रु सेना आ चुकी है।
सिकंदर और पोरस की युद्ध के संबंध मे दूरदर्शिता
सिकंदर और पोरस दंगल सज चुका था। सिकंदर और पोरस कि युद्ध नीति क्या थी? सिकंदर के सैनिकों के सामने किस नदी को पार करने की समस्या थी? सिकंदर ने झेलम नदी को पार करने का क्या उपाय सोचा?
पोरस का राज्य पंजाब में चिनाब नदी से लेकर झेलम नदी तक फैला हुआ था। और इस तरफ झेलम उसके राज्य की सीमा थी। सिकंदर के साथ युद्ध करने के लिए पोरस अपनी शक्तिशाली सेना को लेकर सीमा पर आ गया था। उसने झेलम को पार कर सिकंदर के साथ युद्ध करने की आपेक्षा नदी की बांयी ओर अपनी सेना को रोककर उसने सिकंदर के सामने पहले आक्रमण करने की भयानक परिस्थिति उत्पन्न कर दी थी। उधर सिकंदर इस बात को खूब समझता था कि अगर यूनानी सेना नदी को पार करने की कोशिश करती है तो बिना किसी संदेह के वह नदी में मारी जा सकती है। ऐसी सूरत में पोरस की सेना के साथ युद्ध कैसे हो सकता है। और पोरस को पराजित करने में कैसे सफलता हासिल हो सकती है। इन प्रश्नों को बड़ी गंभीरता और तत्परता के साथ सिकंदर सोचने लगा। झेलम नदी के तट पर आकर उसने जरा भी जल्दबाजी से काम नहीं लिया। बल्कि अनेक दिनों तक अपने शिविर में रहकर युद्ध की समस्या को हल करने की वह कोशिश करने लगा। उधर पोरस भी सिकंदर की चालों को समझने की चेष्टा में था और सिकंदर युद्ध की सफलता का सरल मार्ग खोज रहा था। उसके साथ पैदल और सवारों की एक बहुत बड़ी सेना थी। नदी के इस उमडते हुए गहरे प्रवाह को सेना के घोड़े पार न कर सकेंगे, इस बात को वह भलिभांति समझता था। वह यह भी समझता था कि अगर उसकी सेना ने नदी को पार करने की कोशिश की भी तो पोरस की सेना नदी में ही उसका अंत कर देगी। इसलिए उसको ऐसा रास्ता पैदा करना था, जिससे दोनों सेनाओं का मैदान में आमना सामना हो सके। इसके बाद भी सिकंदर के सामने एक और कठिनाई थी। पोरस की सेना में हाथियों का एक बड़ा समूह था। युद्ध शुरु होने पर उनकी मार भयानक होगी। उन हाथियों पर बैठकर जो पोरस सैनिक बाणों की मार करेगें, उसका मुकाबला करना कठिन हो जाएगा। लेकिन इसकी रोक के लिए उसने पहले से अपनी तैयारी कर रखी थी। इस समय उसको किसी प्रकार नदी पार करनी थी।
अपने शिविर में रहकर सिकंदर अपनी समस्या को हल करने की कोशिश कर रहा था। भीषण गर्मी के अंत होने से पहले नदी के अगाध जल के कम होने की आशा न थी। इसलिए वह इन दिनों को व्यतीत करना चाहता था। उसके साथ युद्ध की जोरदार तैयारियां थी। एक विशाल और शक्तिशाली सेना उसके अधिकार में थी। फिर भी झेलम के उस पार युद्ध के लिए एकत्रित पोरस की सेना के साथ युद्ध करना सिकंदर के लिए उस समय तक कठिन और भयानक मालूम हो रहा था। जब तक नदी को सफलतापूर्वक वह पार न कर लें। इसलिए उसको स्थानीय जानकारी की सबसे ज्यादा जरूरत मालूम हुई। वह जानता था बिना इसके काम नहीं चलेगा। वह भी समझता था कि स्थानीय परिस्थितियों की जानकारी प्राप्त करने पर ही नदी को पार करने की समस्या हल हो सकती है। अनेक दिनों तक लगातार विचार करने के बाद वह इस नतीजे पर पहुंचा कि नदी को किसी प्रकार छिप कर पार किया जाये। इसके संबंध में सब से अच्छा तो यह होता कि अक्टूबर और नवंबर तक धैर्य के साथ अवसर की प्रतिक्षा की जाती और उसके बाद नदी का जल कम हो जाने पर उसे पार करने की कोई योजना तैयार की जाती। लेकिन इतनी बड़ी प्रतिक्षा शक्तिशाली सिकंदर को किसी प्रकार सहन न थी। सिकंदर ने राजनीति से काम लिया। उसने यह अफवाह फैलाने की कोशिश की कि यूनानी सेना मौसम के बदलने का इंतजार कर रही है। अनेक उपायों से इस खबर को इधर से उधर फैलाने की कोशिश की गई। सिकंदर जानता था इस खबर का पोरस की सेना में पहुंचना अत्यंत स्वाभाविक है, यही हुआ भी। पोरस की सेना में इस खबर के फैलते ही स्वभाविक रूप से शिथिलता उत्पन्न हो गई और निकट भविष्य में सिकंदर के आक्रमण की आशंका बहुत हद तक खत्म हो गई। सावधानी के लिए नदी के किनारे जो पोरस सैनिकों का पहरा था वह कायम रहा।
यूनानी सेना ने नदी को पार किया
सिकंदर की सेना ने नदी को कैसे पार किया? सिंकदर ने नदी को पार करने की क्या नीति अपनाई? क्या पोरस की सेना सिकंदर को नदी पार करने से रोक सकी? यूनानी सेना ने नदी को कैसे पार किया?
कुछ दिन और बीत गये वर्षा ऋतु शुरु हो जाने से झेलम नदी में पानी की और भी वृद्धि हो गई। एक ओर वर्षा के दिन चल रहे थे और दूसरी ओर सिकंदर अनेक उपायों से नदी की परिस्थितियों को खोजने और समझने का काम कर रहा था। सिकंदर अपने प्रयास में सफल हुआ। उसकी सेना के शिविर से सोलह मील ऊपर की तरफ उसे नदी में एक टापू मिला। यह स्थान जंगली वृक्षों से आच्छादित था। दूर से और बिना गंभीर छानबीन के आसानी के साथ उस स्थान पर टापू होने का किसी को अनुमान न हो सकता था। इस स्थान को देखकर और उसके द्वारा मिलने वाले लाभ को समझकर सिकंदर बहुत प्रसन्न हुआ। अपने शिविर में लौटकर सिकंदर ने सेनापति क्रैटरस के साथ बातचीत की और झेलम नदी को पार करने की योजना तैयार की। उस योजना में वे सभी बाते निश्चित हुई जो नदी के पार करने से लेकर होने वाले युद्ध तक आवश्यक समझी गई। सम्पूर्ण योजना सिंकदर और सेनापति क्रैटरस तक ही सीमित रही।
कुछ यूनानी सेना के साथ तक्षशिला और दूसरे राजाओं तथा सरदारों से मिली हुई फौज को दस हजार की संख्या में शिविर की रक्षा के लिए सेनापति क्रैटरस के अधिकार में देकर सिकंदर ने शिविर और मिले हुए टापू के बीच में थोड़े से सैनिकों को नियुक्त किया और बाकी सम्पूर्ण विस्वस्त यूनानी और यूरोपियन सवारों और पैदल सेना को लेकर सिकंदर ने नदी को पार करने की चेष्टा की। कई दिनों के बादलों के समूह ने आसमान को आच्छादित करके दिन को रात बना रखा था। लगातार पानी बरस रहा था और तथा ज हवाओं के निरंतर भयानक झोकों ने रात और दिन को भयावह बना रखा था। टापू की ओर रवाना होने के पूर्व सिकंदर ने एक दूसरी राजनीति का भी प्रयोग किया। रात के आरंभ होते ही निश्चित योजना के अनुसार शिविर के यूनानी सवारों ने नदी के किनारे अपने घोडों को पानी में उतारा और कुछ थोड़ी सी गहराई में उसको लेजाकर, नदी के किनारे किनारे पानी में चलने की आवाज करते हुए, वे कुछ दूर तक इधर से उधर चलने लगे इसके साथ युद्ध के बाजों की भी आवाज शुरू हुई। नदी के दूसरी तरफ पोरस के पहरेदार सैनिकों ने अपने शिविर में जाकर यूनानी सेना के नदी पार करने का समाचार दिया। पोरस सेना बड़ी तेजी के साथ युद्ध के अस्त्र शस्त्र से सुसज्जित होकर तैयार हो गई और पोरस उसे लेकर नदी के किनारे आकर डटा। बरसात का पानी किसी प्रकार रूक न रहा था और तेज हवा के झोकों से ठंडक बढ़ गई थी। पूरी रात पोरस अपनी सेना के साथ बरसते हुए पानी में नदी के किनारे मौजूद रहकर सिकंदर की सेना का नदी में आगे बढ़ने का इंतज़ार करता रहा। सिकंदर की सेना आगे नहीं बढ़ी और सवेरा होते होते पोरस की सेना वापस शिविर में चली गई। दिन में फिर एक दो बार वैसा ही हुआ और खबर पाते ही पोरस अपनी सेना के साथ नदी के किनारे आ गया। लेकिन सिकंदर की सेना के आगे न बढ़ने पर पोरस की सेना वापस लौट गई। रात शुरू होने पर फिर उसी प्रकार की घटना हुई और उसके फलस्वरूप बरसते हुए पानी में सारी रात पोरस अपनी सेना के साथ नदी के किनारे पर मौजूद रहा। लेकिन कोई परिणाम न निकला।
इसी प्रकार एक एक करके कई दिन और रातें बीत गई। मौसम की भीषणता जरा भी कम नहीं हो रही थी। और कई दिन रात बरसते हुए पानी में नदी के किनारे रहकर पोरस की सेना बहुत थक गई थी। उसे अंत में यह मानना पड़ा कि यूनानी सेना इस प्रकार की परिस्थितियाँ उत्पन्न करके धोखा दे रही है। जिन रातों में पोरस अपनी पूरी सेना के साथ नदी के किनारे पर आकर यूनानी सेना के आगे बढ़ने की राह देखता रहा। उन्हीं में एक रात को पानी की तेज वर्षा और भयानक आंधी एवमं अंधकार में सिकंदर अपनी यूनानी और यूरोपियन सेना के साथ उस टापू की ओर रवाना हुआ जहाँ से नदी पार करने की उसने तैयारी की थी। और रात के उसी अंधकार में टापू के मार्ग से अपनी सेना लेकर सिकंदर झेलम के दूसरे किनारे पर गया। परंतु अभी तक उसकी समस्या हल न हुई, दूसरे किनारे पर पहुंचते ही उसे मालूम हुआ कि वर्षा के साथ आंधी और अंधकार में वह नदी की जिस धारा से होकर दूसरे किनारे पर पहुंचा, वहां से नदी के एक दूसरे प्रवाह को पार करने पर वह अपने मार्ग पर पहुंच सकता था। परिस्थिति की भीषणता उसके सामने ज्यो की त्यों बनी रही। बड़ी तत्परता और सावधानी के साथ वह फिर किसी मार्ग की खोज का काम करने लगा। इसमे रात का काफी समय बीत गया। लेकिन उसका प्रयत्न निष्फल नहीं गया उसको वहां पर एक ऐसी घाटी मिल गई , जहां से उसने और उसकी सेना ने फिर नदी को पार किया उस समय रात बीत चुकी थी और सवेरा हो रहा था।
युद्ध का सूत्रपात
सिकंदर के नदी पार करते ही क्या हुआ? सिकंदर का नदी पार करते ही सबसे पहले सामना किस से हुआ? क्या पोरस ने टापू की तरफ कोई सुरक्षा इंतजाम किए थे?
अभी तक सिकंदर पोरस सेना के शिविर में आक्रमण के लिए मार्ग खोज रहा न सका था। पोरस का पुत्र अपनी एक छोटी सी सेना के साथ झेलम के किनारे मौजूद था। सिकंदर की सेना का आभास होते ही उसने अपनी अधिकृत सेना को आगे बढ़ाया और तेजी के साथ बढ़ाया और वहां पहुंचा जहाँ पर यूनानी सेना आगे बढ़ने की कोशिश में थी। दो हजार सवारों और एक सौ बीस रथों के साथ आकर भारतीय सेना ने यूनान की विशाल सेना के साथ युद्ध प्रारंभ कर दिया। इस छोटी सी फौज के सैनिकों को पराजित करने में यूनानी सेना को कितनी देर लग सकती थी। इतनी बड़ी सेना के सामने आकर युद्ध शुरु कर देने में भारत के इन थोडे से सैनिकों के साहस की बात थी। सिकंदर की सेना ने सामना करने के बाद थोड़े समय में ही उन भारतीय सैनिकों का विध्वंस किया। चार सौ सैनिकों के मारे जाने और समस्त रथों के नष्ट हो जाने पर भारतीय सैनिक पीछे हट गये और उनमे से बहुतो ने तेजी के साथ भागकर पोरस की सेना शिविर में सिकंदर की सेना के आ जाने का समाचार दिया।
युद्ध क्षेत्र में दोनों ओर की सेनाएं
सिकंदर और पोरस की सेना किस मैदान में आमने सामने हुई? युद्ध क्षेत्र में पोरस की रणनीति क्या थी? युद्ध क्षेत्र में सिकंदर की रणनीति क्या थी? सिकंदर और पोरस का युद्ध चक्रव्यूह? झेलम का युद्ध का चक्रव्यूह?
नदी पार कर यूनानी सेना के आ जाने का समाचार सुनते ही भारतीय शिविर में तेजी के साथ तैयारी हुई। झेलम नदी के उस पार पड़ी हुई यूनानी सेना के सामने संरक्षण के लिए एक छोटी सी फौज छोडकर पोरस अपनी सम्पूर्ण सेना को लेकर सिकंदर का मुकाबला करने के लिए रवाना हुआ। दूसरी तरफ से यूनानी सेना बादलों के समान गरजती चली आ रही थी। झेलम के तट से कुछ दूरी पर कर्री के मैदान में भारतीय सेना जाकर रूक गई। उस मैदान में पहुंच कर पोरस ने अपनी सेना की व्यूह रचना की। सबसे आगे उसने अपने दौ सौ हाथियों की पंक्ति लगा दी और उन हाथियों को इस तरीके से खड़ा किया प्रत्येक हाथी का दूसरे हाथी से फासला सौ फिट का रहे। पोरस की सेना का यह प्रमुख मोर्चा था। उन हाथियों की बगलों में उसने तीन सौ रथों और चार हजार सवार सैनिक खड़े किये। प्रत्येक रथ को चार घोड़े खिचने का काम कर रहे थे। और प्रत्येक रथ में छः आदमी बैठे थे। उनके हाथों में धनुष बाण थे जो भयानक बाणों की वर्षा करने वाले थे। हाथियों, सवारों, और रथों के पीछे पोरस की पैदल सेना थी। प्रत्येक सैनिक के एक हाथ मे चमकती हुई तेज तलवार और दूसरे हाथ में मजबूत ढाल थी। पैदल सेना के बहुत से सैनिकों के हाथों में लम्बें तेज भाले थे। इस प्रकार अपनी सेना को युद्ध के लिए तैयार करके पोरस ने सिकंदर की सेना की तरफ देखा। युद्ध को आरंभ करके उन शत्रुओं के रक्त का वह प्यासा हो रहा था। जो उसके देश की स्वाधीनता का अपहरण करके अपना शासन कायम करने के लिए आये थे। आज वह इन शत्रुओं के साथ युद्ध करना चाहता था। पोरस साधारण शूरवीर न था। उसका स्वस्थ और बलशाली शरीर उसके शक्तिशाली सैनिक होने का प्रमाण दे रहा था। उसका व्यकतित्व उसकी शूरता का परिचायक था। साढ़े छः फिट ऊचा शूरवीर पोरस अपने लड़ाकू हाथी पर बैठा हुआ जिस समय वह युद्ध क्षेत्र में अपनी सेना के बीच घूमा उस समय वह युद्ध क्षेत्र का एक दैत्य मालूम हो रहा था।
युद्ध के लिए आगे बढ़ने से पहले सिकंदर ने अपनी सेना को व्यवस्थित कर लिया था। उसके साथ यूनानी और यूरोपियन लडाकू वीरों की एक अपार सेना थी। उसके सवार और पैदल सैनिक भयानक मार करने वाले थे। तलवारों, भालों से लड़ने के साथ साथ उसकी सेना में उन सैनिकों की बड़ी संख्या थी जो बाणों की भीषण वर्षा करते थे। सिकंदर स्वयं विश्व विजयी हो रहा था। युद्ध में आज तक उसकी कहीँ पराजय न हुई थी। उसका उत्साह और साहस बढ़ा हुआ था। अपनी सेना को लेकर युद्ध में वह सिंह की भांति आगे बढ़ता था। उसके सैनिक युद्ध शिक्षा में अभ्यस्त शक्ति और साहस में अद्वितीय और शत्रु को पराजित करने में अत्यंत श्रेष्ठ थे। सिकंदर अपनी इस सेना के साथ आगे बढ़कर कर्री के मैदान में पोरस की सेना के सामने पहुंच गया।
सिकंदर और पोरस महायुद्ध का टकराव
सिकंदर एंड पोरस का युद्ध का भीषण टकराव, सिकंदर और पोरस संग्राम, झेलम का युद्ध में किसकी जीत हुई? सिकंदर और पोरस दंगल में कौन विजयी हुआ। क्या सिकंदर पोरस का चक्रव्यूह तोड़ पाया? सिकंदर एंड पोरस का युद्ध स्थल?
रण स्थल में दोनों सेनाओं का सामना हुआ। भारतीय सेना को देखकर सिकंदर ने युद्ध की परिस्थिति का विचार किया। भारतीय सैनिकों के आगे दुर्ग के समान खडे हुए हाथी उसे अत्यंत भयानक मालूम हुए। भीमकाय हाथी यूनानी सेना की और बढ़े तो उनका रोकना मुश्किल हो जायेगा और उसके परिणाम मे हमारी हार होगी। इन हाथियों का मुकाबला किसी प्रकार सामने से युद्ध करके नहीं हो सकता।
युद्ध के लिए दोनों ओर की सेनायें आमने सामने हो चुकी थी। दोनों तरफ से सैनिक कुछ आगें बढ़े और युद्ध का प्रारंभ हो गया। सबसे पहले दोनों ओर से बाणों की वर्षा हुई, प्रत्येक दल के सैनिक एक दूसरे को पीछे हटाने की कोशिश करने लगे और घायल होकर वे लडा़ई के मैदान में गिरने लगे। हाथियों पर बैठे हुए सैनिकों की बाण वर्षा के कारण आरंभ में सिकंदर की सेना की हिम्मत कमजोर पड़ने लगी। सिकंदर इस बात को पहले से ही जानता था। वह समझता था कि भारतीय सेना को पराजित करने के लिए सामने का युद्ध अनुकूल न होगा। युद्ध की बढ़ती हुई भीषण परिस्थितियों को देखकर सिकंदर के एक सेनापति ने अपनी सेना के कुछ सैनिकों को लेकर बाई ओर से भारतीय सेना पर आक्रमण किया इस मौके पर पोरस की सेना के अचानक से बहुत से सैनिक मारे गये। पोरस ने परिस्थिति पर नियंत्रण करने की चेष्टा की और अपनी सेना के कुछ भाग को उस ओर मोडा जिधर से यूनानी सेना का नया आक्रमण हुआ था। भारतीय सैनिकों ने यूनानी सेना के इस नये आक्रमण को रोका और अपने बाणों की भयानक मार से उनको आगे बढ़ने का मौका न दिया।
युद्ध क्षेत्र में दोनों ओर से भयानक मार हो रही थी। और बाणों की वर्षा का एक भीषण तूफानी दृश्य उपस्थित हो गया था। घायल होकर गिरने वाले सैनिकों के रक्त से युद्ध क्षेत्र की भूमि रक्तमयी हो गयी थी। दोनों ओर से सैनिक अपने प्राणों का मोह छोडकर जिस प्रकार की मार कर रहे थे, उससे मालूम होता था कि युद्ध का निर्णय होने में अब अधिक देर न लगेगी। सिकंदर की सेना का जोर बाई ओर से बढ़ता जाता था। पोरस ने अपनी सेना की युद्ध के लिए जिस प्रकार व्यवस्था दी थी उसमे आमने सामने का ही युद्ध था। लेकिन सिकंदर भारतीय सैनिकों की शक्ति को देखकर अपने युद्ध की दिशा ही बदल दी। सम्मुख युद्ध के साथ साथ उसने अपनी शक्ति बाई ओर बढ़ा दी, जिसके फलस्वरूप पोरस की सेना के सामने लड़ने की नई दिशा पैदा हो गई। युद्ध ने दोपहर का समय पुरा ले लिया लेकिन उसके निर्णय संबंध में किसी प्रकार का अनुमान लगाना अभी तक असम्भव दिखाई दे रहा था। सिकंदर ने जितनी आसानी के साथ पोरस को विजयी करने का अनुमान लगाया था, उसका वह ख्याल अभी तक सही साबित नहीं हुआ दोनों ओर के बहुत से सैनिक मारे गए। युद्ध की भीषणता बढ़ती जा रही थी। बरसात के पानी की तरह युद्ध क्षेत्र में सैनिकों का खून बह रहा था। लडा़ई के मैदान में लाशे ही लाशे दिखाई दे रही थी। सिकंदर की सेना का नदी की ओर प्राबल्य देखकर पोरस ने अपने हाथी को युद्ध में आगे की ओर बढाया और अपनी सेना का पूरा जोर लगाकर उसने यूनानी सेना पर आक्रमण किया। भारतीय शूरवीरों की भयानक मार के सामने कुछ देर के लिए यूनानी सेना पीछे हट गई। लेकिन उसके बाद संभल कर वह फिर युद्ध करने लगी। इस समय दोनों ओर की सेनायें एक दूसरे के सन्निकट आ गई थी। बाणों की वर्षा के साथ साथ तलवारों और भालों की मार भीषण रूप धारण करती जाती थी। सिकंदर की जिस सेना ने ईरान की शक्तिशाली सेना को आसानी के साथ पराजित किया था और जिस पराक्रमी सेना ने एशिया के अनेक देशों को जीतकर संसार में अपनी वीरता का पताका फहराया था आज उसी यूनानी सेना को पोरस की भारतीय सेना के सम्मुख युद्ध में लोहे के चने चबाने पड़ रहे थे। युद्ध क्षेत्र में जिस प्रकार की भीषण मार हो लही थी, उसमें कभी यूनानी सेना पिछे की ओर हटती हई दिखाई देती ओर कभी भारतीय सेना। तलवारों और भालों की मार से कट कटकर और घायल होकर सैनिक धराशायी हो रहे थे। यूनानी सैनिकों के बाणों की मार से पोरस के हाथी भयानक आवाजें करते हुए बार बार भागने की कोशिश करते थे, लेकिन उनके महावत उनको नियंत्रण में रखकर युद्ध से पीछे नहीं हटना चाहते थे। कुछ हाथियों के सैनिक मारे जा चुके थे और कुछ हाथियों के महावत घायल होकर जमीन पर कराह रहे थे। बाणो के लगने से हाथियों के शरीर में सैकड़ों जख्म हो गये थे और उनसे खून के फव्वारे निकल रहे थे। सैनिकों और महावतों के मारे जाने से कितने ही हाथी भागकर बाहर निकल गए थे। युद्ध की भीषणता ने अत्यंत भयानक परिस्थिति उत्पन्न कर दी थी। पोरस के बहुत से रथ चूर चूर हो गये थे, उनमें बैठे हुए सैनिक और जुते हुए घोड़े जख्मी होकर भूमि पर गिर गये थे। सवारों के मारे जाने पर दोनों और के सैकड़ों जख्मी घोड़े जमीन पर तड़प रहे थे। और कितने ही युद्ध क्षेत्र से भागकर बाहर निकल गये थे। इस भयानक परिस्थिति में भी दोनों में से एक भी सेना पीछे हटने का नाम न लेती थी। पोरस का हाथी जिस ओर घूम जाता उसी ओर भारतीय सेना आगे बढ़ती हुई दिखाई देती थी। अचानक युद्ध की गति बदलती हुई दिखाई पड़ी। जिस समय दोनों ओर से विकराल युद्ध हो रहा था और मर कर तथा घायल होकर गिरने वाले सैनिकों से उस मैदान की जमीन पर चतचदिक ढेर दिखाई देते थे, इसी मौके पर झेलम नदी की दूसरी तरफ शिविर में पड़ी हुई यूनानी सेना के दस हजार सैनिकों को लेकर सेनापति क्रैटरस ने झेलम नदी को पार किया और कर्री के मैदान की तरफ बढ़कर उसने पीछे से पोरस की सेना पर भयानक आक्रमण किया।
सिकंदर की विशाल सेना ने पोरस की सेना को चारो तरफ से घेर लिया इस संकट पूर्ण परिस्थिति को देखकर भारतीय वीरों ने अपनी पूरी शक्ति लगाकर मार शुरू कर दी। सिंकदर की सेना का जोर लगातार बढ़ता जा रहा था। इस भीषण मार काट के समय पोरस के हाथी चिंघाड़ते हुए युद्ध के क्षेत्र से भागने लगे। उनके भागने में मित्र शत्रु का कोई विवेक न रहा सैकड़ों और हजारों सैनिक हाथियों की भगदड़ में कुचलकर और दबकर मर गये। हाथियों के भागने के समय शत्रु पक्ष की अपेक्षा भारतीय सेना का ही अधिक नुकसान हुआ। अधिक संख्या में सैनिक जख्मी होकर गिर गये। और साथ साथ भारतीय सेना तितर बितर हो गई। इसी अवसर पर यूनानी सेना को आगे बढ़ने का मौका मिला और शत्रुओं की सेना ने भारतीय सेना का अधिक संहार किया। परिस्थिति को देखकर पोरस ने अपनी सेना को एक बार फिर से संभाला ओर जोर के साथ आक्रमण कारी यूनानी सेना का मुकाबला किया। इस समय भारतीय सैनिक बहुत कम संख्या में रह गये थे। शत्रु सेना का जोर अब भी लगातार बढ़ रहा था। फिर भी पोरस ने एक बार भयानक मार की। उस मार बहुत से यूनानी सैनिक मारे गये। अब भारतीय सैनिकों की संख्या और भी कम हो गई थी। जो रह गये थे वे युद्ध क्षेत्र से भागने लगे। इस भगदड़ में यूनानी सेना ने आगे बढ़कर बहुत से भारतीय सैनिकों को कैद कर लिया। इस झेलम के युद्ध में सिकंदर की जीत हुई। युद्ध करते करते पोरस थक गया था। उसके शरीर में बाणों के बहुत से जख्म थे। उनमें नौ जख्म अधिक गहरे थे जिनमें से अब भी खून गिर रहा था। युद्ध के अंतिम समय , जब भारतीय सेना तितर बितर होकर लड़ाई के मैदान से भागी, उस समय पोरस का हाथी अपने गहरे जख्मों के कारण घायल होकर जमीन पर गीर गया। घायल पोरस उसी स्थान पर खड़ा होकर युद्ध के दृश्य को देखने लगा। उसने भागने की इच्छा नही की अगर वह चाहता तो बहुत आसानी के साथ भागकर निकल जाता। जैसा की ईरान का प्रसिद्ध वीर सम्राट दारायु दो बार युद्ध में पराजित होने पर भागकर अपने प्राण बचा चुका था। लेकिन पारस ने ऐसा नहीं किया। ऐसा करना वह एक क्षत्रिय के लिए अपमान जनक समझता था। युद्ध के समाप्त होते ही सिकंदर के भेजे हुए सैनिकों ने पोरस को जाकर घेर लिया और वे सैनिक बंदी बनाकर सिकंदर के पास ले गये।
युद्ध के बाद सिकंदर एंड पोरस
युद्ध के बाद सिकंदर ने पोरस के साथ क्या किया? क्या सिकंदर ने पोरस को मार डाला? सिकंदर और पोरस में कौन जीता?
सिकंदर उस वीर पुरूष पोरस से अत्यंत प्रभावित हुआ। सिकंदर ने पोरस से पूछा– किस प्रकार का व्यवहार आपके साथ में हो? पोरस ने स्वाभिमान के साथ उत्तर दिया– एक राजा की हैसियत में!। सिकंदर इस बात को सुनकर प्रसन्न हुआ और पोरस को उत्तर देते हुए कहा — मैं वही करूंगा! । इसके बाद तुरंत सिकंदर ने पोरस के साथ स्नेह पूर्ण व्यवहार किया और जितना राज्य पोरस का था न केवल पोरस उसका अधिकारी रहा बल्कि सिंध और झेलम के बीच जीते हुए कई एक राज्यों को पोरस के अधिकार में देकर सिंकदर ने उसको अपना विस्वस्त मित्र बनाया।
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