जोसेफ प्रिस्टले की जीवनी – क्या आप जानते है ऑक्सीजन के खोजकर्ता को? Naeem Ahmad, May 30, 2022 क्या आपको याद है कि हाल ही में सोडा वाटर की बोतल आपने कब पी थी ? क्या आप जानते हैं कि अमेरीका के लोग आइस क्रीम सोडा, सोडा पॉप, कोकाकोला, जिजर एल, और सोडा वाटर पर सालाना 5,00,00,00,000 रुपये खर्च करते हैं ? क्या आप जानते आप जो कोल्डड्रिंक पीते हैं इसका आविष्कार किसने किया था? जोसेफ प्रिस्टले को जब पानी में कार्बन डाईऑक्साइड मिलाकर एक नये पेय का आविष्कार करने के लिए स्वर्ण पदक मिला था तो उसने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि इस प्रकार सोडा वाटर के एक नये कारोबार को ही जन्म दे चला है जिस पर अरबों रुपया सालाना खर्च आ सकता है। किन्तु जोसेफ प्रिस्टले को हम विज्ञान का एक दिग्गज मानते हैं। इसलिए नहीं कि उसने सोडा वाटर का आविष्कार किया, अपितु इसलिए कि वह ऑक्सीजन के रूप में प्राण संजीवनी (गैस आफ लाइफ) का अन्वेषक है। Contents1 जोसेफ प्रिस्टले का जीवन परिचय2 जोसेफ प्रिस्टले की ऑक्सीजन खोज3 हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े—- जोसेफ प्रिस्टले का जीवन परिचय जोसेफ प्रिस्टले का जन्म 13 मार्च, 1733 को इंग्लैंड के लीड्स शहर के पास एक छोटे से कस्बे में हुआ था। उसका बाप जुलाहा था। एक गरीब आदमी, जो 7 साल के जोसेफ को अनाथ करके चल बसा। बच्चे का लालन-पालन उसकी एक चाची ने ही किया। वहां वातावरण ही कुछ ऐसा था कि हर किसी को हर मामले पर अपने विचार प्रकट करने की छुट्टी थी। चाची एक छोटे से धर्म सम्प्रदाय की सदस्य थी जिसका नाम था– डिसेण्टर्ज, परम्परागत ईसाईयत के विरोधी। इसीलिए चाची ने बालक जोसेफ को ईसाईयत में दीक्षित होने के लिए एक नई संस्था में भेज दिया। वहां पहुंचकर जोसेफ ने पर्याप्त योग्यता दिखाई, विशेष कर भाषा के अध्ययन में। उसने फ्रेंच, इटेलियन, जर्मन, अरबी और एरामाईक सभी भाषाओं में एक सी निपुणता प्राप्त कर ली। किन्तु उसकी वाणी में कुछ खराबी थी, जिसका नतीजा यह हुआ कि ग्रेजुएट हो जाने के बाद भी उसे एक बहुत ही छोटे चर्च में नौकरी मिली, जहां उसकी तनख्वाह 15 रुपये प्रति सप्ताह से भी कम थी। किन्तु खर्चा तो किसी न किसी तरह पूरा करना ही था, या फिर बात यह थी कि प्रिस्टले एक बहुत मेहनती आदमी था। वह सारा दिन गांव के स्कूल में बच्चों को पढ़ाता और वहां से लौटकर भी प्राइवेट ट्यूशन करता रहता। इस सबके बावजूद उसने इतना समय निकाल लिया कि एक अंग्रेजी व्याकरण भी वह लिख गया। कुछ ही दिनों बाद उसे डिसेण्टर्ज की एकेडमी में भाषा अध्यापक की नौकरी मिल गई। यहां पढ़ाते हुए वह रसायनशास्त्र की क्लास में भी जाने लगा। उसकी गिनती स्थानीय वैज्ञानिकों में होने लगी। इन्ही दिनों बेंजामिन फ्रैंकलिन जो अमेरीका के नये उपनिवेशों का भ्रमणशील राजदूत भी था, इग्लैंड मे अमरीकी स्वतन्त्रता का समर्थन प्राप्त करने आया हुआ था। फ्रैंकलिन एक वैज्ञानिक के रूप में यहां पहुचा था, और सचमुच वह एक वैज्ञानिक था भी। प्रिस्टले दौड़ा-दौड़ा अपने युग के इस महान विद्युत विशारद के पास आया और उसके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर एक पुस्तक ‘विद्युत की वर्तमान स्थिति का इतिहास’ भी उसने लिख डाली, जिसका तात्कालिक परिणाम यह हुआ कि 1766 मे रॉयल सोसाइटी ने उसे अपना सदस्य चुन लिया। और प्रसगात, प्रिस्टले को अमरीकी क्रांति की सत्यता में भी विश्वास था, जिससे बेंजामिन फ्रैंकलिन से उसकी मित्रता आजीवन बनी रही। ओर, यह तो हम आसानी से कल्पना कर ही सकते है कि जोसेफ प्रिस्टले के लिखे ‘विद्युत के इतिहास’ मे ज्ञात तथ्यों का एक संग्रह ही नहीं था, अपितु कितने ही मौलिक परीक्षण भी साथ-साथ संकलित थे। जोसेफ प्रिस्टले अब भी वह चर्च का एक पादरी ही था। दिन के फालतू समय में ही वैज्ञानिक परीक्षण किया करता था। लीड्स के एक गिरजें में उसे प्रधान पादरी की नियुक्ति मिल गई। यहां उसे तनख्वाह बहुत कम मिलती थी, और अब एक परिवार का पोषण भी उसके जिम्मे था। इसलिए एक बडे शराबखाने की बगल में एक छोटा सा घर उसने किराए पर ले लिया और सच तो यह है कि शराब खाने की यह बू ही थी जो उसे रासायनिक परीक्षणों की ओर बरबस खींच ले गई। शराबखाने के मालिको की इजाजत भी उसने ले ली कि उनके भारी ड्रमो से उठती गैस को वह अपने परीक्षणों के लिए इस्तेमाल कर सकता है। उसने इस गैस का सूक्ष्म अध्ययन किया, और देखा कि एक जलती तीली उसमें जाकर बुर जाती है। प्रिस्टले ने वैज्ञानिकों के ग्रन्थों की छानबीन की और इस “स्थिर’ गैस को बनाने के और ढंग भी खोजे। आज सभी इसका नाम जानते हैं– कार्बन डाई ऑक्साइड। किन्तु प्रिस्टले की खुश किस्मती इसमें यह थी कि उसने कार्बन डाई ऑक्साइड को सफलता पूर्वक पानी में घोल दिया जिसकी बदौलत, जैसा कि हम ऊपर कह आए है, उसे एक स्वर्ण पदक भी मिला था। उसकी इस सफलता को फ्रांस तक में सम्मानित किया गया। फ्रेंच एकेडमी ने उसे अपना सदस्य मनोनीत कर लिया। और विज्ञान के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण चीज यह हुई कि उसे चर्च के कामों में अब अपना वक्त बरबाद करने से एकदम मुक्ति मिल गई। और यह सब ठीक वक्त पर ही हुआ– पादरी का उपदेश सुनने जो जनता उसके गिरजे में आती थी उसे यह बर्दाश्त करने के लिए मुश्किल पड़ रही थी कि उसके धर्मोपदेशकों के इर्द-गिर्द तरह-तरह की बोतलें ही बोतलें पड़ी हों, तरह-तरह की खुशबू-बदबू हमेशा उठ रही हो। और सच तो यह है कि प्रिस्टले के दिन का अच्छा-खासा हिस्सा गुजरता भी तो शराबखाने में ही था। एक अध्ययनशील राजनीतिज्ञ, लार्ड शेलबर्न ने प्रिस्टले को अपना लाइब्रेरियन बना लिया। पुस्तकालय के साथ एक परीक्षण शाला भी थी। शेलबर्न ने ऐसा इन्तजाम कर दिया कि सर्दियों में तो प्रिस्टले लन्दन रहा करे और गर्मियों में उसके कैलने स्थित निजी महल में। विज्ञान में अनुसन्धान करने के लिए दोनों जगह परीक्षण-शालाएं भी थीं, और इस सबके साथ 250 पौंड सालाना तनख्वाह भी। जोसेफ प्रिस्टले की ऑक्सीजन खोज लार्ड शेलबर्न के साथ सम्पर्क में आकर ही जोसेफ प्रिस्टले ने अपने वैज्ञानिक जीवन के मुख्य परीक्षण सिद्ध किए। शेलबर्न के साथ वह फ्रांस गया जहां लेवॉयजिए से उसकी मुलाकात हुई। और इस बात का श्रेय लेवॉयजिए को ही मिलना चाहिए कि प्रिस्टले की ‘प्लोजिस्टन रहित’ गैस एक नया तत्व है– यह वह एकदम पहचान गया, और उसने उसका नाम भी रख दिया– ऑक्सीजन। 1780 में ल्यूनर सोसाइटी ने आमन्त्रण द्वारा, उसे अपना सदस्य मनोनीत कर लिया। उस जमाने के प्रसिद्ध वैज्ञानिक और उद्योगपति इस संस्था के सदस्य थे। पॉटरी शिल्प का मूर्धन्य जोसिया वेजबुड, स्टीम इंजन का आविष्कर्ता जेम्स वॉट, चार्ल्स डार्विन का दादा वैज्ञानिक इरेज्मस डार्विन। ल्यूनैटिक का अर्थ होता है पागल और इन पागलों की सभा पूर्णिमा के निकट सोमवार के दिन ही लगा करती थी। इस तिथि का चुनाव ही इसलिए किया गया था कि छ: घण्टे के अधिवेशन और भोजन के पश्चात घर लौटते वक्त रास्ते में चांदनी हो। प्रिस्टले को यहां आकर अच्छा खाना मिलता और चिन्तन के लिए कुछ नये विचार मिलते। ल्यूनर सोसाइटी के कुछ धनी सदस्यों ने प्रिस्टले के परीक्षणों के लिए कुछ धन देना भी स्वीकार कर लिया। किन्तु प्रिस्टले एक आदर्शवादी था जिसे अपने किसी भी परीक्षण द्वारा किसी प्रकार का कुछ धन लाभ मंजूर न था। उसने यह परीक्षण जनता की सार्वजनिक सम्पत्ति घोषित कर दिए। नही उसे यह मंजूर था कि इन ‘ल्यूनेटिको’ से वह भारी रकम कबूल करता चले। परीक्षणों पर जितना आवश्यक था, उससे एक कौड़ी भी अधिक उसने कभी स्वीकार नही की। किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि जोसेफ प्रिस्टले की यह एक वैज्ञानिक की शान्त जिन्दगी ज्यादा देर नहीं चल सकती थी। उसकी रग में ही कुछ पादरीपन था, कुछ आदर्शवाद था। जिसकी बदौलत वह फ्रांसीसी क्रांति की चपेट में आ गया। स्वतन्त्रता, समानता, भ्रातृता’ का प्रचार उसने अपने लेखों मे खुलकर और बडे उत्साह के साथ किया, और इस बात का भी समर्थन किया कि धर्म और राज्य, दोनो के क्षेत्रों को पृथक कर देना चाहिए। 1775 मे एडमंड बर्क ने कोशिश की थी कि ब्रिटिश सरकार अपने नये उपनिवेशों के साथ किसी तरह का समझौता कर ले, आज वही एडमंड बर्क फ्रांस की क्रांति का विरोधी था, और उसने हाउस ऑफ कॉमनस मे एक वक्तृता में प्रिस्टले पर आक्षेप भी लगाए, जिनका परिणाम यह हुआ कि 14 जुलाई, 1751 के दिन, जब फ्रांसीसी क्रांति की दूसरी बरसी मनाई जा रही थी, अंधी जनता ने जोश मे आकर जोसेफ प्रिस्टले के घर पर हमला बोल दिया। उस घटना का एक आंखों देखा हाल इस प्रकार मिलता हैं — “लोग एकदम, जबरदस्ती, घुस आए, खिड़कियां अलमारियां तक खाली कर दी, फर्नीचर तोड डाला, लाइब्रेरी से किताबें निकालकर फाड़ डाली और परीक्षणशाला में जो भी रासायनिक उपकरण पडे थे सब चूर-चूर कर डाले, और अन्त मे घर को आग लगा दी। 20 साल की मेहनत और खोज जिन हस्त लेखों से संकलित थी वे चिथड़े-चिथड़े होकर बिखरे पडे थे।” यह एक ऐसा नुकसान था जिसका अफसोस प्रिस्टले को मरते दम तक जरा भी कम नही हो सका। खुशकिस्मती से डाक्टर प्रिस्टले और उसका परिवार वहां से बच निकले थे। बर्मिंघम छोडकर वे लन्दन में आ गए। फ्रांस की क्रांति अब ज्यो-ज्यो एक भय के साम्राज्य में परिणत होती गईं, जनता प्रिस्टले के विरुद्ध होती गईं। उसे देशद्रोही और नास्तिक करार दिया जाने लगा। रॉयल सोसाइटी के उसके पुराने साथी तक अब उसके हक में नही थे। 1794 मे प्रिस्टले जहाज़ मे चढकर अमेरीका पहुच गया। डा० प्रिस्टले जब न्यूयार्क शहर में उतरा तो जनता ने खुले दिल से उसका अभिनन्दन किया। देश के धार्मिक, वैज्ञानिक और राजनीतिक नेताओ ने उसका स्वागत किया। एक बार अमेरीका मे आ जाने पर उसका अपने पुत्रों से भी मेल हो गया, जो दो वर्ष पहले ही पेनसिल्वेनिया में आकर नार्थम्बरलैण्ड मे बस चुके थे। सभी तरह के पद और सम्मान उसे दिए जाने लगे। यूनिटेरियन चर्च का पादरी, पेनसिल्वेनिया विश्वविद्यालय में रसायन का प्रोफेसर। उसे व्याख्यानों के लिए आमंत्रित किया जाने लगा। बेंजामिन फ्रेंकलिन ने फिलाडेल्फिया के दरवाजे खोल दिए, और प्रिस्टले ने टामस जेफरसन के साथ मुलाकात की और जार्ज वाशिंगटन के साथ चाय पी। पर उसकी खुद की पसन्द थी कि नार्थम्बरलैण्ड के ही शान्त वातावरण में एक परीक्षणशाला में खुद को खपा दे। आज उसका वहां घर एक राष्ट्रीय संग्रहालय बन चुका है। जहा रासायनिक अनुसन्धानों मे खुद प्रिस्टले के प्रयुक्त वे प्याले, बोतलें, कुंडिया वगैरह सभी कुछ आज तक सुरक्षित है, और हर कोई आकर उन्हे देख सकता है। वे कौन-सी गवेषणाएं है जिनके आधार पर हम प्रिस्टले को विश्व के वैज्ञानिकों एवं रसायन शास्त्रियों मे इतना ऊंचा स्थान देते है ? प्रथम’ तो उसने उस अद्भुत तत्व ऑक्सीजन का आविष्कार किया। ऑक्सीजन तैयार करने का उसका ढंग बहुत ही सरल किन्तु सुन्दर और प्रभावास्पद था। उसने इसके लिए एक बोतल ली और उसमे कुछ पारा भर कर कुछ नमूना पारे के ऑक्सइड का डाल दिया। इस बोतल को अब उसने पारे के एक प्याले पर उल्टा दिया। और अब एक मैग्निफाइंग ग्लास के जरिए सूर्य की किरणों को पारद आक्साइड पर केन्द्रित करते हुए, उसे गरमी पहुचाई गई रासायनिक प्रतिक्रिया द्वारा यदि कुछ गैस मुक्त हो तो उससे पारा स्वभावत कुछ नीचे की ओर गिरेगा, और यदि इस प्रतिक्रिया में कुछ गैस खप जाए तो उससे वही पारा कुछ ऊपर की ओर उठ जाएगा, प्रिस्टले ने देखा कि पारद ऑक्साइड से खूब गैस छूट रही है। और प्रसंगत उसने यह भी देखा कि एक जलती हुई मोमबत्ती इस गैस में ले जाई जाकर और भी ज्यादा चमक उठती है। यही नही, इस गैस के उसने कुछ चूहों पर भी परीक्षण किए और पाया कि ऑक्सीजन से भरे एक बर्तन मे चूहे ज्यादा देर तक जिन्दा रहते है बनिस्बत मामूली हवा से भरे एक और बर्तन में। प्रिस्टले ने यह भी देखा कि ये फूल-पत्ते और पौधे पशुओ की प्राण प्रक्रिया को उल्टा देते हैं, जिससे वातावरण में एक प्रकार की संतुलित मधुरिमा बनी रहती है। उसने एक पौधा लिया और उसे एक ऐसी बोतल में रख दिया जिससे कि ऑक्सीजन बिलकुल निकाली जा चुकी थी। और कुछ दिन बाद नोट किया कि मोमबत्ती को इसमे ले जाकर फिर से जलाया जा सकता है। इस प्रकार प्रकृति की ऑक्सीजन तैयार करने की विधि का भी पता लग गया। एक और महत्त्वपूर्ण खोज प्रिस्टले ने पेनसिल्वेनिया में अपनी नई परीक्षणशाला स्थापित करने के बाद की। यहां उसके हाथो एक और उपयोगी, किन्तु जहरीली गैस कार्बेन मोनो ऑक्साइड का आविष्कार सम्भव हुआ। कार्बन मोनो ऑक्साइड तब उत्पन्न होती है जब कोयले, गैसोलीन या जलाने के तेल को या किसी और ऐसे ईधन को जिसमें कार्बन हो, किसी वस्तु को जलाकर खाक कर डालने के लिए आवश्यक ऑक्सीजन से कम परिमाण में उसके साथ मिला दिया जाता है। बन्द गैरेज मे यदि मोटर को चालू कर दिया जाए तो अक्सर यह चीज़ अकस्मात छुटनी शुरू हो जाती है, क्योकि ऑक्सीजन जल्दी ही खत्म हो जाने की वजह से अब (सोडावाटर की) कार्बन डाई ऑक्साइड की जगह कार्बन मोनो ऑक्साइड उत्पन्न होने लगती है जो कि उल्टे जहरीली है। कार्बन मोनो ऑक्साइड को हम जब चाहे पैदा कर सकते हैं और हमारे घरो में कहवा तैयार करने के लिए, या कमरों को गरम रखने के लिए, इसका प्रयोग आम तौर पर होता भी है। जोसेफ प्रिस्टले ने एक और गैस भी खोज निकाली थी जिसका अनुभव सर हम्फी डेवी को कुछ अजीब ही शक्ल में हुआ था। गलती से कुछ वाष्प सूघने के पश्चात डेवी का वर्णन है, “इसने तो मेरी नब्ज ही 20 से ज्यादा ओर बढ़ा दी, और मैं अपनी लैबोरेटरी में पागलो की तरह नाचने लगा।” इस गैस को अक्सर हंसाने वाली गैस” भी कहते है, और दांतो के डाक्टर दुखती दाढ को निकालने के लिए इसका इस्तेमाल करते है कि बीमार को तकलीफ कम हो। रसायन मे इसका नाम है— नाइट्रस ऑक्साइड। अमेरीका के लोगो को गर्व हो सकता है कि कितने ही ऐसे व्यक्तियों को उन्होंने समय-समय पर आश्रय दिया है जिन पर कि उनके अपने वतन में विपत्तियां आई। जोसेफ प्रिस्टले भी उन्ही सतप्तो मे एक था। सन् 1854 मे 80 साल की उम्र मे जोसेफ प्रिस्टले की मृत्यु हो गई। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े—- एनरिको फर्मी का जीवन परिचय - एनरिको फर्मी की खोज एनरिको फर्मी--- इटली का समुंद्र यात्री नई दुनिया के किनारे आ लगा। और ज़मीन पर पैर रखते ही उसने देखा कि Read more नील्स बोर का जीवन परिचय - नील्स बोर का परमाणु मॉडल दरबारी अन्दाज़ का बूढ़ा अपनी सीट से उठा और निहायत चुस्ती और अदब के साथ सिर से हैट उतारते हुए Read more एलेग्जेंडर फ्लेमिंग का जीवन परिचय - एलेग्जेंडर फ्लेमिंग की खोज साधारण-सी प्रतीत होने वाली घटनाओं में भी कुछ न कुछ अद्भुत तत्त्व प्रच्छन्न होता है, किन्तु उसका प्रत्यक्ष कर सकने Read more अल्बर्ट आइंस्टीन का जीवन परिचय - 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