जॉन डाल्टन का जीवन परिचय और जॉन डाल्टन की खोज Naeem Ahmad, June 2, 2022 विश्व की वैज्ञानिक विभूतियों में गिना जाने से पूर्वी, जॉन डाल्टन एक स्कूल में हेडमास्टर था। एक वैज्ञानिक के स्कूल-टीचर होने में कोई अजूबें की बात नहीं है, किन्तु जॉन डाल्टन की यह हेड मास्टरी तेरहवें साल में ही शुरू हो चुकी थी। किसी भी द्रव्य का मूल तत्व एक सूक्ष्म कण होता है। यह विचार मनुष्य के मन को सदियों से मथित करता आ रहा था। यूनानियों का विचार था कि चार तत्व पृथ्वी, वायु,अग्नि, और जल मुख्य होते हैं। एरिस्टोटल ने वस्तुमात्र को द्रव्यमात्र को, इन्हीं चार तत्त्वों तथा एक देवी तत्व और आकाश के विकार के रूप में दिखाने की कोशिश भी की। ग्रीस के वैज्ञानिक एवं गणितज्ञ डेमोक्रिटस ने एक स्थापना को कुछ इस प्रकार सूत्ररूप भी दिया था कि द्रव्यों के अवयवों की कण रूप में कुछ निचली सीमा होनी चाहिए। ये कण अन्ततः इतने छोटे हो जाते हैं कि उनका आगे और विभाजन असंभव हो जाता है। कण की इस पराकाष्ठा का नाम डेमोक्रिटस ने रखा था–एटम जिसका ग्रीक भाषा में व्युत्पत्यर्थ होता है अभेद्य। अणु का यह सिद्धान्त यदि सचमुच इतना पुराना है, तो हम उसके लिए डाल्टन को इतना सम्मान क्यों देते हैं? बात यह है कि डाल्टन के समय से लेकर आज तक रसायन ने जो प्रगति की है उसके पड़ाव है–तत्व, यौगिक परमाणु, और अणु, जिन सबका समन्वय और स्रोत था जॉन डाल्टन का यही प्रसिद्ध सिद्धान्त, जिस स्थापना को इस छोटे-से हेडमास्टर ने विश्व के सम्मुख प्रस्तुत करने का साहस किया, वह प्राचीन ऋषियों की कल्पनाओं को कहीं पीछे छोड़ आई थी। अपने इस लेख में हम इसी महान वैज्ञानिक का उल्लेख करेंगे और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से जानेंगे:— जॉन डाल्टन का जीवन परिचय? जॉन डाल्टन का परमाणु सिद्धांत? जॉन डाल्टन ने परमाणु सिद्धांत कब दिया? जॉन डाल्टन के परमाणु सिद्धांत की कमियां? डाल्टन के परमाणु सिद्धांत की विशेषताएं? जॉन डाल्टन का जीवन परिचयजॉन डाल्टन का जन्म 6 सितम्बर, 1766 को इंग्लैंड के एक गांव ईंगल्सफील्ड में हुआ था। बाप जुलाहा था। घर में पांच बच्चे थे। उसका प्रारम्भिक पठन-पाठन ‘ककजे’ स्कूल मे हुआ जहां उसने धर्म शिक्षा के अतिरिक्त गणित, विज्ञान, तथा अंग्रेजी ग्रामर भी पढी। आसपास शोहरत फैल चुकी थी कि हिसाब-किताब के मामलो मे डाल्टन की बुद्धि असाधारण है। अभी वह बारह साल का ही था जब गांव के अधिकारियों ने उसे अपना एक निजी स्कूल चलाने की अनुमति दे दी। कितने ही विद्यार्थी स्कूल के हेडमास्टर से उम्र मे बड़े थे। इसी वक्त से उसे ऋतु-अध्ययन में एक नया शौक पैदा हो आया जो कि उम्र भर बना रहा। मौसम के बारे में खबरें मालूम करने के लिए उसने कुछ अपने ही उपकरण तैयार किए और अपने इन अध्ययनों को प्रतिदिन नोटबुक में अंकित करना शुरू कर दिया। यह अब उसका एक प्रकार से एक नित्यकर्म ही बन गया था। नोटबुक में अन्तिम अंकित गणना उसकी उस दिन की है जिस दिन कि उसकी मृत्य हुई। ऋतु चक्र के सम्बन्ध से जॉन डाल्टन के इन प्रत्यक्षो की संख्या कुल मिलाकर 20 लाख तक पहुच गई थी। स्कूल में नियम पूर्वक पढ़ाना भी, बाप की खेतीबारी में हाथ भी बटाना, ऋतु का अध्ययन भी नियमित रूप से करना। डाल्टन के स्वाध्याय में कभी कही कोई त्रुटि नहीं आने पाई। इसके अतिरिक्त लेटिन ग्रीक का अध्ययन भी जारी रहता, गणित की गवेषणाएं भी, और ‘प्रकृति-दर्शनो’ (उन दिनो विज्ञान का यही नाम था) भी बाकायदा चलता रहा। 15 बरस की आयु में डाल्टन ने स्कूल को बन्द कर दिया, क्योंकि लड़के पढने को मिलते नही थे। और वह केण्डल में अपने भाई जोनाथन के पास आ गया। 12 साल तक यहां भी विद्यार्थियों को पढ़ाता ही रहा, प्रवचन के साथ गणित और विज्ञान सम्बन्धी स्वाध्याय भी, और शुगल के तौर पर ऋतु-अध्ययन की पुरानी हवस भी। उसके किसी भी काम मे कुछ अवनति नहीं आई। केण्डल में उसने एक ‘साइन्स डिस्कशन फोरम’ भी चलाने की कोशिश की। किन्तु प्लेटफार्म के लायक उसका व्यक्तित्व था नहीं, आवाज़ भी आकर्षक नहीं थी। इस कार्य में उसे सफलता भला किस प्रकार मिलती ? जॉन डाल्टन 1793 में डाल्टन को मेन्चेस्टर मे एक कालिज मे इन्स्टक्टर की नियुक्ति मिल गई। वहा उसे गणित और विज्ञान पढ़ाना होता था, किन्तु वह सुखी नही था, क्योकि सारा समय उसका इस तरह ही गुजर जाता। केण्डल में रहते हुए वह एक प्रसिद्ध विद्वान जान गफ के सम्पर्क में आया। यह गफ जन्म से अन्धा था किन्तु कितनी ही भाषाओं में निष्णात था, और बीस मील के घेरे मे, मेन्चेस्टर के गिर्द जितने भी पौधे-पत्ते थे, स्पर्श-स्वाद-गन्ध द्वारा ही उसे सब ज्ञात थे। इस सबके अतिरिक्त उसे भी मौसम को पढने का शोक था, और यह चीज़ भी डाल्टन और गफ दोनो को एक करने वाला एक बन्धन बन गईं। जॉन डाल्टन की खोज गफ ने डाल्टन को प्रेरित किया कि वह अपने ऋतु-सम्बन्धी अध्ययनों को प्रकाशित करा दे जिसके परिणाम स्वरूप उसे मेन्चेस्टर की साहित्यिकों एवं दार्शनिकों की गोष्ठी’ के सदस्य रूप मे आमन्त्रित कर लिया गया। सारा जीवन डाल्टन का सम्बन्ध इस गोष्ठी के साथ बना रहा, और अपने जीवन के 50 सक्रिय वर्षो में डाल्टन ने 100 से ऊपर वैज्ञानिक निबन्ध गोष्ठी के सदस्यों के सम्मुख पढे। डाल्टन अपनी सफलता का श्रेय घोर परिश्रम को दिया करता था। सोसाइटी के सामने वह अक्सर कहा भी करता था “अगर आज मुझे अपने इन उपस्थित मित्रो की अपेक्षा कुछ अधिक सफलता प्राप्त हुई है तो उसका प्रमुख, मैं तो कहूंगा। एकमात्र, कारण है अनवरत परिश्रम।” प्राय सौ साल पीछे टामस एडिसन ने भी कुछ ऐसी ही बात कही थी किन्तु उसके शब्द कुछ भिन्न थे “प्रतिभा बस एक प्रतिशत ही देवी अथवा अपौरुषय इन्स्पीरेशन हुआ करता है, बाकी निन्यानवे हिस्सा उसका पसीना पर्पिरेशन हुआ करता है।” जॉन डाल्टन ने मन्चेस्टर विश्वविद्यालय से इस्तीफा दे दिया कि अब वह एक निष्ठ होकर वैज्ञानिक अध्ययन एवं अनुसन्धान मे लग सके। अमीर वह था नही, कुछ कुछ प्राइवेट ट्यूटरी वह अब भी करता रहा कि फालतू दिन में वह सारा वक्त वातावरण का अध्ययन कर सके। वायु मण्डल का यह व्यापक अध्ययन ही थे। जो, अन्तत डाल्टन को द्रव्यो के सम्बन्ध में अणु-सिद्धान्त की ओर क्रमश अभिप्रेरित कर गया। रॉबर्ट बॉयल, जो डाल्टन से प्राय 150 साल पहले गुजरा था, वायु और वायु के दबाव के सम्बन्ध मे बहुत कुछ अध्ययन कर चुका था। बॉयल इस निष्कर्ष पर पहुचा था कि यह वायु मण्डल बहुत सी गैसो का एक स्थान है। और उसके बाद हाल ही मे हेनरी कैवेंडिश, एंटोनी लेवोज़ियर और जोसेफ प्रिस्टले ने यह सिद्ध भी कर दिखाया था कि हमारी इस वायु के निर्माता तत्त्व प्राय ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड, और जल वाष्प ही होते है। डाल्टन ने वायु के कितने ही नमूने इंग्लेंड की विभिन्न जगहो से पहाडो की चोटियों से और घाटियों से, गावो से और शहरो से इकट्ठे किए। इन सभी के विश्लेषण उसने किए। पता लगा कि वायु प्राय इन्ही अवयवो से और प्राय इन्ही अनुपातो मे हर कही बनती है। डाल्टन के सम्मुख अब एक प्रश्न था कार्बन डाई ऑक्साइड भारी होती है, वह नीचे आकर क्यो नही टिक जाती ? ये गैसे परस्पर इतनी अधिक क्यों घुलमिल जाती है? इनका यह मिश्रण कौन सम्भव करता है? हवाए या ताप की निरन्तर परिवर्तमान धाराएं? डाल्टन कोई बडा परीक्षणकर्ता नहीं था। फिर भी उसने प्रयोगशाला से प्रश्न का कुछ समाधान करने का प्रयत्न किया। एक बोतल मे उसने कार्बन डाई ऑक्साइड की भारी गैस भर दी और एक और बोतल मे एक हलकी गैस भर के उसे उलटा कर दोनो बोतलों के मुंह को मिला दिया। बोतलों मे भारी और हलकी गैसे अलग-अलग नहीं रही, कुछ ही देर बाद मिलकर एक हो गई। डाल्टन ने इस निष्कर्ष को इन शब्दों मे अभिव्यक्त किया जिसे दुनिया आज गैसो का आशिक दबावो का सिद्धान्त’ करके जानती है। “एक गैस के कण, दूसरी गैस के कणों को नहीं, अपने ही कणो को परे धकेलते है।” जिसके आधार पर डाल्टन ने एक धारणा ही बना ली कि गैसो से बडे छोटे-छोटे कण होते है और उनके दो कणों मे विभाजक दूरी भी पर्याप्त होती है। और यह सिद्धान्त विज्ञान-जगत को आज भी मान्य है। जॉन डाल्टन ने रसायन का और रासायनिक विश्लेषण का लक्ष्य प्रस्तुत किया। रसायन का काम होता है, बस इन भौतिक कणो का जोड-तोड। द्रव्य के ये कण मुलत अभेद्य होते हैं, इन्ही के द्वारा द्रव्यमात्र की, वस्तुजात की, रचना सम्भव होती है। और, रेडियो-एँक्टिविटी तथा ऐंटम स्मेशिंग की सम्भावना से पूर्व परमाणु को हम भी तो सचमुच अभेद्य ही मानते आते थे। रासायनिक निर्माताओं के लिए यह जान लेना बहुत ही आवश्यक होता है कि एक यौगिक के विनिर्माण मे उसके तत्त्वो की क्या क्या मात्रा काम में आती है। उलटे-सीधे परीक्षण करके लोग कुछ ज्ञान इस विषय मे कुछ एक प्रक्रियाओं के सम्बन्ध मे तो सूचित करते आए थे, किन्तु डाल्टन ने इस सब ज्ञान-संग्रह का विश्लेषण किया कि इन रासायनिक प्रतिक्रियाओ से अणु जो की आपेक्षिक भाराश आदि विषयक स्थिति क्या होती है। आज हम इस आपेक्षिक भार को ‘अणु-भार’ नाम देते है। डाल्टन ने अनुभव किया कि यौगिक बनाने में कौन-सी वस्तु किस मात्रा मे चाहिए यह यौगिक अवयवो के अणु भारो की तुलना द्वारा पहले से ही निर्धारित किया जा सकता है। डाल्टन ने अब अणुओं की एक भार क्रमानुसार सारणी बनाने की कोशिश की। डाल्टन के निष्कर्ष गलत थे, किन्तु उसकी युक्ति श्रंखला सही थी। प्रयोगशाला की कमियों की वजह से ही उसकी गणनाओं में ये गलतियां आ गई थी। उसके इन आपेक्षिक अणु भारों का आधार था– हाइड्रोजन के आपेक्षिक भार को एक कल्पित कर बैठना। उसने सोचा कि हाइड्रोजन का एक ‘विरल’ (सिम्पल) ऑक्सीजन के एक ‘विरल’ के साथ जब मिलता है, तभी पानी की उत्पत्ति होती है। किन्तु ऑक्सीजन की आपेक्षिक गुरुत्वता हाइड्रोजन की अपेक्षा सात-गुना होती है , इसलिए ऑक्सीजन के एक अणु का भार भी हाइड्रोजन के अणु की अपेक्षा सात-गुना होना चाहिए। उसे यह मालूम नहीं था कि जल निर्माण मे ऑक्सीजन के अणु के साथ हाइड्रोजन के दो अणु मिला करते हैं। दूसरी गलती वह दोनो गैसों को तोलने मे भी कर गया, क्योकि ऑक्सीजन के अणु का भार हाइड्रोजन से 16 गुना होता है सात-गुना नही। जॉन डाल्टन का सिद्धान्त इतने वक्त से निरन्तर परीक्षित होता आ रहा है। सिद्धान्त के मूल तत्त्व ये हैं, वस्तु मात्र के मूल निर्माण तत्त्व, जिनका आगे और विभाजन नही हो सकता, अणु कहलाते है, भिन्न-भिन्न वस्तुओ के अणुओं की भिन्न-भिन्न विशेषताएं होती है, किन्तु एक ही तत्त्व अथवा द्रव्य के अणु सभी एक से ही होते है। रासायनिक प्रक्रियाओं में सारा-का-सारा अणु ही सक्रिय हुआ करता है। रासायनिक यौगिकों मे इन अणुओं की आन्तर रचना मे कोई परिवर्तन नही आता। अणुओं का न निर्माण हो सकता है न विनाश। यह स्पष्ट करने के लिए कि किस प्रकार एक द्रव्य के ‘विरल’ मिश्रण की प्रक्रियाओ में अवतरित होते है उसने छोटे-छोटे वृत्त खींचकर उनमें तत्त्व-तत्त्व की अन्त सम्पद्, मानों संकलित कर दी। जॉन डाल्टन के परमाणु सिद्धान्त को उसके सहयोगियों ने स्वीकार करने मे जरा देर नहीं लगाई। मुक्तकण्ठ से उसका स्वागत किया। फ्रांस के वैज्ञानिकों ने उसे अपनी एकेडमी आफ साइन्सेज का सदस्य चुन लिया,और पेरिस मे उसका अद्भुत आतिथ्य भी किया। 1826 में उसे इंग्लैड की रॉयल सोसाइटी का मेडल मिला। इसके लिए जब वह लन्दन गया, उसका ज़िक्र उसने इस प्रकार किया है, एक अदभुत स्थान है यह लन्दन जिसे जिन्दगी में एक बार हर किसी को आकर देखता ही चाहिए, किन्तु चिन्तनशील प्रकृति वालो के लिए यह स्थान उतना ही घृणित भी है, जहां हमेशा के लिए आकर बस जाना शायद उन्हे पसन्द न हो। कभी कभी हो आए तो ठीक, किन्तु वहा जाकर रहने लग जाना उसे पसन्द न था। एक समस्या उठ खडी हुई डाल्टन को बादशाह के सामने पेश करना था। दरबारी दस्तूर के मुताबिक उसे घुटने तक ब्रीचेज, बकल वाले जूते और तलवार धारण करनी थी। लेकिन क्वेकरो मे इन चीज़ों की मुमानियत है। सौभाग्य से हाल ही में डाल्टन को ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से एक आनरेरी डिग्री मिली थी। वह यूनिवर्सिटी की ही पोशाक में बादशाह के यहां भी हाजिर हो सकता था। लेकिन कोई क्वेकर एक सस्कालेंठ’ कैसे पहने ? डाल्टन ने पोशाक के कालर को ज़रा गौर से देखा और पाया कि उसका रंग तो हरा है। शुरू से ही उसकी आंख मे कुछ नुक्स था, जिसकी वजह से रंगों में फर्क कर सकने मे वह असमर्थ था। और आंख के इस नस के बारे में उसने कुछ परीक्षण भी किए थे। वर्णान्धता को आज भी डाल्टनिज्म ही कहा जाता है। जॉन डाल्टन ने कभी विवाह नही किया। यह नही कि उसे औरत क्या बला होती है, इसकी कतई समझ न हो। अपने भाई जोनाथन को जो खत अपनी 1809 की लंदन यात्रा के बारे मे उसने लिखा था उसके कुछ शब्द इस प्रकार हैं “यहां मै न्यू बाड स्ट्रीट की सुन्दरियों के रोज दर्शन करता हूं। मुझे उनके चेहरे जितना आकर्षित करते है उतना उनकी पोशाक नही करती। कुछ के कपडे इतने सटे होते है कि जैसे वें औरते न होकर चलते फिरते ड्रम हो। और इन्ही के साथ कुछ ऐसी भी है जिनकी पोशाक एक खुले कम्बल की तरह लटक रही होती है। मुझे समझ नही आता कि यह सब ये करती किस तरह है। खैर, वस्त्र कैसे भी हो, सुन्दरता सुन्दरता ही रहती है।” जॉन डाल्टन के अणु सिद्धान्त का एक परिणाम तो यह हुआ कि विज्ञान में विशेषत रसायन मे, इससे गणनाओं में सही-सही नाप तोल की प्रवृत्ति आ गई। दूसरे, भौतिकी और रसायन दोनो एक दूसरे के नजदीक आ गए। इसका एक परिणाम यह हुआ कि द्रव्यमात्र के प्रति हमारी दृष्टि विद्यन्मूलक बन गईं हर वस्तु मूल मे विद्युन्मय है, विद्युत विनिरमित है। अणु-बम बना तो वह भी इसी को एक क्रियात्मक रूप देकर। और अणु शक्ति के शान्ति प्रिय प्रयोगी के मूल मे प्रेरिका पृष्ठभूमि भी तो इसी की है। जब 1844 मे जॉन डाल्टन की मृत्यु हुई तो 40,000 मनुष्य उसकी चिता की परिक्रमा करने आए। उस समय भी उन्हे मालूम था कि डाल्टन विज्ञान जगत का एक दिग्गज है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े—- [post_grid id=”9237″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक जीवनी