जैसलमेर भारत के राजस्थान राज्य का एक खुबसूरत और ऐतिहासिक नगर है। जैसलमेर के दर्शनीय स्थल पर्यटको में काफी प्रसिद्ध है। इसलिए यहा साल भर सैलानियो का तांता लगा रहता है। जैसलमेर एक ऐसा नगर है जिसे“हवेलियो की नगरीनगरी”और“स्वर्ण नगरी”के नाम से भी जाना जाता है। इस नगर को चंद्रवंशी यादव भाटी रावल जैसल ने सन् 1156 में बसाया था। उन्ही के नाम पर इस नगर का नाम भी जैसलमेर पडा।
इस शहर की तंग गलियो में पथरीले रास्तो के दोनो ओर पीले पत्थरो की बडी बडी हवेलिंया है, जिनकी वजह से इस नगर को हवेलियो की नगरी कहा जाता है। चमकते सूरज की रोशनी जब इन पीले पत्थरो से बनी हवेलियो पर पडती तो यह हवेलिया सोने की तरह चमकने लगती है। जिसके कारण इस नगर को स्वर्ण नगरी भी कहा जाता है।पर्यटन के लिहाज से आज के समय में यह शहर बहुत महत्वपूर्ण है। यदि आप बडी बडी हवेलिया और महल देखने के इच्छुक है तो जैसलमेर पर्यटन पर जाइए। यहा आपको एक से बढकर एक नयाब व आलिशान हवेलिया व महल देखने को मिलेगें।
जैसलमेर के दर्शनीय स्थलो के सुंदर दृश्य
जैसलमेर के दर्शनीय स्थल
सोनार किला
सोनार किला जैसलमेर के दर्शनीय स्थल में खास स्थान रखता है। यह किला लगभग 80 मीटर की ऊंचाई पर त्रिकूट पहाडी पर बना है। जिसे जैसलमेर का किला भी कहते है। इसका निर्माण राजा रावल जैसल ने सन् 1156 में करवाया था। इस किले में चार द्वार है अखे पोल, सूरज पोल, गणेश पोल और हवा पोल। तथा 99 बुर्ज है। सोनार किले के भीतर मोती महल, रंग महल, राज विलास आदि कई महत्वपूर्ण इमारते है जोकि विशेष रूप से दर्शनीय है। महल स्थापत्य कला और बेहतरीन कारीगरी का नमूना है। यहा 12 वी से 15वी शताब्दी के बने कुछ जैन मंदिर भी है। जोकि देखने लायक है।
पटुओ की हवेली
जैन भवन के पास बनी ये 5 हवेलिया 5 भाइयो की धरोहर है। इनका निर्माण सन् 1800 से 1860 के बीच हुआ था। इनका निर्माण गुमानमल बाफना के 5 पुत्रो द्वारा करवाया गया था। इन हवेलियो के जालीदार झरोखे, मेहराबदार छज्जे, तथा रंगीन कांच का जडाऊ काम देखने योग्य है।
दीवान नथमल की हवेली
माहेश्वरी मोहल्ले में स्थित यह विशाल हवेली दीवान नथमल द्वारा सन् 1881-85 में बनवाई गई थी। नथमल महारावल रणजीत सिंह और बैरीशाल सिंह के समय मे दीवान थे। इस हवेली के झरोखे, बारियो व तिबारियो की बनावट देखने योग्य है। चूंकि यह हवेली रिहायशी काम में आती है। इसलिए इसे केवल बाहर से देखा जा सकता है।
सालिम सिंह की हवेली
सोनार किले की पूर्वी ढलान पर स्थित यह हवेली दीवान सालिम सिंह द्वारा सन् 1825 में बनवाई गई थी। यह हवेली जैसलमेर के दर्शनीय स्थल में सबसे सुंदर व भव्य हवेलियो में से एक है। इस हवेली का ऊपरी भाग जिसे मोती महल भी कहते है। बडा ही सुंदर तरीके से बना हुआ है। यद्यपि यह हवेली रिहायशी काम में आती है फिर भी इसे देखा जा सकता है।
गडसीसर सरोवर
यह सरोवर जैसलमेर के पूर्वी द्वार पर बना है। यह जैसलमेर वासियो का प्रमुख जलस्रोत है। यहा वर्षा का पानी इकठ्ठा किया जाता है। इसका प्रवेशद्वार टीलों की पोल कहलाता है। इस पोल का निर्माण टीलों नाम की एक वेश्याइ ने सन् 1909 में करवाया था। कहते है की उस समय इसके बनते ही महारावल ने इसे तोडने के आदेश दे दिए थे। क्योकि वेश्या द्वारा निर्मित इस द्वार के नीचे से महारावल को गुजरना जरा भी गवारा न था। उस वक्त इस द्वार को टूटने से बचाने के लिए टीलो ने रातो रात इस द्वार पर सत्यनारायण कि मूर्ति स्थापित करवाकर यहा एक मंदिर बनवा दिया था। इस प्रकार यह पोल टूटने से बचा था। इस सरोवर के किनारे महल, छतरिया, मंदिर, बगीची घर आदि बने हुए है। जिनकी सुंदरता देखते ही बनती है।
जैसलमेर के दर्शनीय स्थलो के सुंदर दृश्य
लोक सांस्कृतिक संग्रहालय
यह संग्रहालय गडसीसर सरोवर के पास ही स्थित है। इस संग्रहालय में जैसलमेर की लोक संस्कृति से जुडी वस्तुए, वाद्य यंत्र, वस्त्राभूषण, कलात्मक चित्र जैसलमेर के इतिहास संबंधित दस्तावेज, कठपुतलिया आदि संग्रहीत है। इस संग्रहालय की स्थापना लेखक, कवि एवं पेशे से शिक्षक नंदकिशोर शर्मा ने सन् 1984 में की थी।
जैसलमेर के आस पास के दर्शनीय स्थल
अमर सागर झील
यह झील जैसलमेर के दर्शनीय स्थल में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। अमर सागर झील की जैसलमेर से दूरी लगभग 5 किलोमीटर है। इसका निर्माण महारावल अमर सिंह ने सन् 1784 में करवाया था। इस झील के दूसरे छोर पर हिम्मत रामजी बाफना द्वारा सन् 1817 में बनवाया गया एक खूबसूरत जैन मंदिर है। इस मंदिर में आदीश्वर भगवान की लगभग 1500 साल पुरानी प्रतिमा स्थापित है। यह झील जैसलमेर के दर्शनीय स्थल की सैर पर आने वाले सैलानियो को दूर से ही लुभाती है।
बडा बाग व छतरिया
यह स्थान महारावलो का शमशान है। जोकि जैसलमेर से लगभग 5 किलोमीटर दूर है। यहा महारावलो की स्मृतिस्वरूप बनी कलात्मक छतरिया देखने योग्य है।
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लोद्रवा
यह काक नदी के तट पर बसा हुआ एक नगर है। जो जैसलमेर से 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जैसलमेर बसने से पहले यह नगर भाटियो की राजधानी हुआ करता था। यहा स्थित खुबसूरत जैन मंदिर मुख्य रूप से दर्शनीय है। इस मंदिर में 23वे तीर्थंकर भगवान पार्शवनाथ की आकर्षक मूर्ति स्थापित है। इसके मुख्य द्वार पर कलात्मक तोरण द्वार बना हुआ है। यह मंदिर प्राचीन कला व संस्कृति का बेहतरीन उदाहरण है। वैसे तो इसका निर्माण बहुत पहले हो चुका था। किंतु सही तौर पर इसका आखरी जीर्णोद्वार जैसलमेर निवासी शारूशाह भंसाली ने सन् 1618 में करवाया था।
वुड फासिल पार्क
यह पार्क जैसलमेर से 17 किलोमीटर की दूरी पर बीकानेर मार्ग पर स्थित आकल गांव में बनाया गया है। यहा 18 करोड साल पुराने पेड पौधो जीव जंतुओ के अवशेषो को, जो अब पत्थरो में तब्दील हो चुके हैं सुरक्षित रखा गया है। सैलानी इन वस्तुओ को देखकर आश्चर्यचकित रह जाते है।
साम के रेतीले टीले
यह स्थान जैसलमेर से लगभग 42 किलोमीटर दूर है। यहा दूर दूर तक रेत ही रेत दिखाई देती है। रेत के ऊंचे नीचे टीले जिन्हें देखने के लिए अक्सर सैलानी राजस्थान की यात्रा पर आते है। इनमे डूबते सूरज का नजारा यहा से बडा ही आकर्षक दिखाई देता है। सैलानी इस नजारे को अपने कैमरे में कैद करने के लिए आतुर रहते है। यहा रेतीले रेगिस्तान में ऊंट की सवारी का अपना अलग ही मजा है। सही मायने में यहा एक अनोखे रोमांच की अनूभूति होती है।
राष्ट्रीय मठ उद्यान
यह उद्यान जैसलमेर से करीब 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहा राजस्थान के राज्य पक्षी गोडावन को आसानी से देखा जा सकता है। इसके अलावा यहा काला हिरण, चिंकारा, रेगिस्तानी लोमडी, भेडिया, तीतर, और सोन चिडिया भी बहुतायत रूप में पायी जाती है।
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