जेट विमान क्या होता है, जेट विमान युद्ध में वायु सेना द्वारा उपयोग किया जाने वाला वायुयान होता है। जेट विमान की खोज महान साइंटिस्टआइज़क न्यूटन के सिद्धांत पर आधारित है। जेट प्रक्रिया मे भाप, हवा अथवा कोई अन्य गैस किसी नोजल से निकलने की प्रतिक्रिया स्वरूप उन वस्तु को आगे की ओर धकेलती है। यह प्रक्रिया न्यूटन के गति संबधी तृतीय नियम पर आधारित है। यदि किसी हवा भरे गुब्बारे के मुंह से हवा निकलती है, तो गुब्बारा वायु के निकलने की विपरीत दिशा में दौडने लगता है। यही जेट विमान प्रक्रिया है। राकेट प्रोपल्शन (प्रणोदन) का सिद्धांत भी लगभग इसी के सामान है।
जेट विमान की खोज किसने की और कैसे हुई
फ्रैंक विटल नामक एक अंग्रेज विमान चालक ने बिना प्रोपेलर के विमान चलाने का विचार रखा था। उसने प्रोपेलरों को चलाने के लिए पिस्टन इंजनों की जगह राकेट इंजन या गेस टरबाइन जैसे किसी साधन का भी सुझाव रखा था। टरबाइन एक ऐसे सपीडक को भी चलाता है, जो वायुयान के अगले भाग से वायु को खींचता है, साथ ही उसे दहन-कक्ष में भेजने के पहले सपीडित भी करता है। विटल ने अपने इस सिद्धांत को 1930 मे पेटेंट कराया, परंतु 1934 में उसकी अवधि समाप्त हो गयी। कारण, किसी ने भी उनके आविष्कार में रूचि लेकर पैसा नही लगाया।
दो वर्ष बाद उन्हें कुछ समर्थन मिला और कुछ पैसा इकट्ठा कर उन्होने एक कंपनी गठित की। तभी 1939 में युद्ध के बादल मडंराने लगे और उन्हे तुरंत एक जेट विमान का नमूना बनाने का निर्देश मिला। इसे सोलह व्यक्तियों के एक दल ने विटल के निर्देशन में बडे गोपनीय ढंग से तैयार किया। इसका नाम इ-28 रखा गया। परीक्षण उडान में यह सफल हुआ। रॉयल एयरफोर्स के जिन अधिकारियो ने इसे पहली बार उड़ते देखा तो अपनी आंखों पर विश्वास न कर सके। सबसे बडा आश्चर्य तो उन्हे यह देखकर हुआ कि इसमे कोई प्रोपेलर नहीं लगा था।
जेट विमानइसी प्रकार का जेट विमान जर्मनी के एक युवा इंजीनियर पाब्सट फॉन ओहाइन ने बनाया। यह बहुत बडा विमान था। इसने छह मिनट की उडान में लगभग 400 मील प्रति घटे की गति प्राप्त की, परंतुजर्मनी के नाजी अधिकारियों और निर्माताओं के आपसी वाद विवाद के कारण इसका विकास यही रुक गया।
फ्रैंक विटल जेट विमान का आविष्कारक मान लिया गया। इसके बाद कई देशो ने जेट विमान के निर्माण में रुचि दिखायी। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद संसार के लगभग सभी विकसित देशों में जेट विमान का उपयोग सैनिक ओर नागरिक क्षेत्रों में होने लगा। 1947 में एक अमेरीकी जेट विमान ‘बेल एक्स एस-1 ने ध्वनि की गति से भी तेज उड़ने का प्रदर्शन किया। ध्वनि की रफ्तार भूतल के समीप 760 मील प्रति घंटे के लगभग होती है। अगर प्रोपेलर से चलने वाला कोई वायुयान इतनी रफ्तार प्राप्त करे तो वह नष्ट हो जाएगा। यही कारण है कि आजकल के तेज रफ्तार से चलने वाले विमान जेट चालित ही होते हैं।
जेट विमानों के इंजनों में सामने एक खुला हुआ मुंह होता है, जिसमें बहुत ज्यादा दबाव के साथ वायु को अंदर फेंका जाता है।दबाव के साथ-साथ अंदर फेंकी जाने वाली वायु एक विशेष प्रकार के चेम्बर (प्रकोष्ठ) में पहुंचती है। इस चेम्बर मे इस वायु के साथ पैराफिन अथवा पेट्रोलियम तेल धीरे-धीरे मिलाया जाता है। चेम्बर में भारी दबाव के कारण वायु मिश्रित यह पेट्रोलियम तेल जल उठता है ओर इससे उत्पन्न गैसों का विस्फोट भी होता है। विस्फोट के कारण उत्पन्न गैसे तेजी से बाहर निकलना चाहती है, परंतु इनके बाहर निकलने का मार्ग बहुत छोटा रखा जाता है। मार्ग छोटा होने से गैसे बहुत अधिक दबाव के साथ बाहर निकलती हैं। गैसे जब पीछे की ओर तेजी से निकलती हैं, तो वायुयान आगे की ओर तेजी से धकेला जाता है। इस प्रकार के लगातार धक्के से वायुयान आगे बढ़ता रहता है।
जिस छोटे से मुंह की नली से ये गैसे तेजी से निकलती हैं, उसे अग्रेजी मे ‘जेट’ कहा जाता है। जेट विमान में चार जेटइंजन होते हैं। ये इंजन काफी बडे हाते हैं। प्रत्येक इंजन के जेट पर जहां से गैसे बाहर फेंकी जाती हैं, लगभग 5000 पोंड का दबाव उत्पन होता है। इसका यांत्रिक नियंत्रण अन्य वायुयानो की तुलना मे अपेक्षाकृत सरल होता है। जेट विमान को कम से कम 40000 फुट की ऊंचाई पर उडाया जाता है। जेट विमान जितना अधिक ऊंचाई पर उडेगा, उतनी ही उसकी रफ्तार भी तेज होगी।
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