जूनागढ़ का इतिहास – गिरनार पर्वत जूनागढ़

गिरनार पर्वत जूनागढ़

गिरिनगर गिरनार पर्वत की तलहटी में बसे इस शहर का
आधुनिक नाम गिरनार है। यहगुजरात राज्य का प्रमुख धार्मिक स्थल है। इसे जूनागढ़ भी कहा जाता है। मौर्य काल में यह सौराष्ट्र प्रांत की राजधानी थी। उस समय पुण्यगुप्त यहां चंद्रगुप्त मौर्य का राज्यपाल था। तुषाष्फ और पर्णदत्त भी गिरिनगर के राज्यपाल रहे थे। वल्लभी वंश के पतन के बाद यहां का राज्यपाल स्वतंत्र हो गया था। उसने यहां चूड़ाश्मा वंश की नींव डाली और गिरिनगर को अपनी राजधानी बनाया।

गिरिनगर शक शासक रूद्रदमन की राजधानी भी थी। दसवीं शताब्दी के अंत में चेदि के कलचूरी राजा लक्ष्मणराज ने जूनागढ़ के आभीर शासक ग्राहरियु को हराया। पंद्रहवीं शताब्दी के आरंभ में अहमदाबाद के राजा अहमदशाह ने यहां के शासक को हराया और अहमदाबाद के एक अन्य शासक ने इसी शताब्दी के मध्य में जूनागढ़ पर अपना दबादबा बनाया।

गिरनार पर्वत का इतिहास – जूनागढ़ का इतिहास

देश की स्वतंत्रता के बाद जूनागढ़ के नवाब ने सितंबर, 1947 में पाकिस्तान में शामिल होने की मंशा जाहिर की थी, जबकि जूनागढ़ चारों ओर से भारत से घिरा हुआ था तथा इसकी अधिकांश जनता हिंदू थी। जनता ने नवाब के इस निर्णय के विरुद्ध विद्रोह करके एक अंतरिम सरकार की स्थापना कर ली, जिसने भारत में शामिल होने की घोषणा की। नवाब पाकिस्तान भाग गया। प्रदेश में जनमत संग्रह गया, जिसने जूनागढ़ को भारत में मिलाने का निर्णय दिया और जूनागढ़ को भारत में मिला लिया गया।

गिरनार पर्वत जूनागढ़
गिरनार पर्वत जूनागढ़

पुरातात्विक महत्त्व

राजनीति और इतिहास में गिरिनगर (गिरनार पर्वत) का महत्त्व प्रमुख रूप से कई राजाओं द्वारा स्थापित इसके लेखों के कारण बना रहा है। पहला शिलालेख सम्राट अशोक द्वारा 257-56 ई०पू० में स्थापित किया गया था, जिसमें उसके शासन और नैतिक नियमों का उल्लेख है।

दूसरा लेख रूद्रदमन का है, जिसमें चंद्रगुप्त मौर्य के विवरण के अतिरिक्त स्वयं उसके शासन और सार्वजनिक कार्यों का विवरण है। स्कंदगुप्त ने भी यहां उसी शिला पर अपना लेख खुदवाया था, जिस पर अशोक के चौदह आदेश और रूद्रदमन का विस्तृत विवरण खुदा है।

इसमें उसने अपने शत्रुओं के विरुद्ध युद्ध के बारे में लिखा है। मौर्यो ने यहां एक पुल और एक बाँध बनवाया था। चंद्रगुप्त मौर्य के राज्यपाल पुण्यगुप्त ने यहां की पहाड़ियों की तलहटी में एक झील बनवाई थी। बाद में शक क्षत्रप रूद्रदमन ने 150 ई० में, स्कंदगुप्त ने 455-56 ई० में और उसके राज्यपाल पर्णदत्त ने भी इसकी मरम्मत कराई थी। गिरिनगर में बारहवीं शताब्दी ई० के जैन मंदिर भी पाए गए हैं। यहां गुप्त राजा कुमारगुप्त प्रथम के सिक्के पाए गए हैं।

जूनागढ़ का धार्मिक महत्व

गिरनार पर्वत पहाड़ी पर एक किला है, जिसका प्रवेश द्वार तोरण के रूप में है। किसी-किसी जगह इसकी दीवार की ऊँचाई 70 फूट तक है। इस किले में अब एक हिंदू मंदिर ही शेष बचा है। यहां पाई गई गुफाओं से पता लगता है कि पहले यहां बौद्ध भिक्षु रहते थे। इन गुफाओं में एक दुमंजिली गुफा, गोलाकार सीढ़ी और नक्काशीदार खंभे तथा दो गहरे कुएं प्रमुख हैं।

पुराना जूनागढ़ शहर कभी किले की चारदीवारी से घिरा हुआ था। यहां कई उद्यान भी हैं। इनमें से शक्कर बाग गार्डन प्रमुख है। जू में गीर शेर को भी देखा जा सकता है। सुल्तान बेगड़ा ने यहां के राजपूत राजा की सोने की छतरी को प्राप्त करने के लिए कभी जूनागढ़ पर आक्रमण था।

गिरनार पर्वत जैनियों के लिए दूसरी पवित्र पहाड़ी है। यहां पर उनके अनेक मंदिर दर्शनीय हैं। ये मंदिर देखने के लिए दामोदर टैंक से लगभग 2000 फूट की ऊँचाई पैदल अथवा डोली में बैठकर चढ़नी होती है। सबसे ऊंचा मंदिर अंबा माता चोटी पर है और इसी नाम से है। यहां नवविवाहित जैनी अपने गठजोड़े बाँधते हैं। कालका चोटी पर त्यौहारों के दौरान बहुत से जैनी साधु इकठ्ठे होते हैं।

बाईसवें तीर्थंकार नेमिनाथ की स्मृति में बारहवीं शताब्दी में बनाया गया मंदिर सबसे पुराना और बड़ा है। इसकी 70 कोठड़ियों में से हरेक में नेमिनाथ की मूर्ति है। यहीं पास में ही ढोलका राजा के दो मंत्रियों, तेजपाल और वस्तुपाल, जो दोनों भाई भी थे, ने यहां तीन मंदिर बनवाए थे। पहाड़ी पर एक खुले हाल में उन्‍नीसवें तीर्थंकार मल्लिनाथ की काले रंग की मूर्ति है।

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