जालौन का इतिहास समाजिक वह आर्थिक स्थिति Naeem Ahmad, September 4, 2022February 22, 2023 जालौन जिला उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख जिला है, जिसका जिला मुख्यालय उरई है। जनपद जालौन को इसी तहसील का नाम मिला है। जालौन एक बड़ी तहसील है जो कि उरई मुख्यालय के पश्चिम में 26° और 26° 27° उत्तर एवं 79° 3° और 79° 31° पूर्वी देशान्तर के मध्य बसी है। इसकी उत्तरी सीमा यमुना नदी द्वारा घिरी है। जालौन तहसील के अन्तर्गत जालौन कस्बा भी है जो कि 26° 8° उत्तरी अक्षांश और 79° 21° पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है। Contents1 जालौन का इतिहास2 जालौन की आर्थिक दशा3 जालौन की सामाजिक दशा3.1 भवनों के निर्माण में विभिन्न समकालीन स्थितियाँ एवं पृष्ठ भूमियाँ4 हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:— जालौन का इतिहास जालौन का इतिहास देखने पता चलता है कि यह क्षेत्र जालिम सिंह द्वारा बसाया गया था। वस्तुतः यह क्षेत्र सेंगर क्षत्रियों के अधिपत्य में था तथा इटावा के मेरब तक इनका प्रभाव था। इन सेंगर राजाओं ने जालिम सिंह को पुरोहिती के उपलक्ष्य में यह क्षेत्र दिया था। जालिम सिंह एक सनाढय ब्राहमण थे जिनका गोत्र मेरह था। एक अन्य विचारानुसार महर्षि उद्दालक का आश्रम उरई था तथा उसकी सीमायें काफी विस्तृत व घोर वनों से आच्छादित थी इसी कारण वे उद्दालक वन कहलाने लगे। यही उददालक वन से दालकवन तथा दालवन वन और दालवन से जालवन हो गया। यह स्थान किसी नदी आदि के किनारे नहीं है अतः इसका प्रारंभ में न तो कोई राजनैतिक महत्व था और न ही व्यापारिक। यह क्षेत्र कालपी द्वारा ही संचालित होता था। सन 1729 में पेशवा की सहायता से मुहम्मद बंगश खाँ के पुत्र कायम खाँ को छत्रसाल द्वारा जब पराजित कर दिया गया तब छत्रसाल ने पेशवा बाजीराव को अपने राज्य का 1/3 भाग देना स्वीकार किया था। जिसे उनके पुत्र हिरदेशाह ने जिसके नाम से आज भी जालौन में एक मुहल्ला बसा हुआ है। सन 1738 में यह क्षेत्र मराठों को दे दिया और सन 1738 के उतरार्द्ध तक जालौन राज्य की स्थापना हो गई तथा गोविन्द राव बुन्देला इसके प्रथम राजा बने। ये खेर परिवार के थे। जालौन का इतिहास जालौन को राज्य की राजधानी बनाने का अर्थ केवल यह था कि मुगलों को राजधानी तक पहुंचने के पहले कई स्थानों पर राज्य की सेना से युद्ध करना पड़े। इस राज्य का झन्डा लाल रंग का था। राजधानी बनते ही इसका महत्व बढ़ने लगा। यहाँ पर अनेक महाराष्ट्रीयन वैश्य मारवाड़ी आदि जातियों के लोग आकर बसने लगे। सन 1761 में पानीपत के युद्ध में गोविन्द राव बुन्देला की मृत्यु हो गई उसके पश्चात कौन उत्तराधिकारी हुआ इसका सही प्रमाण नहीं मिलता है। सन 1776 में कर्नल गोड़ार्ड को बंगाल सरकार द्वारा एक बड़ी सेना के साथ बुन्देलखण्ड में बम्बई सरकार की सहायतार्थ भेजा गया। जिसने कालपी पर तथा इस क्षेत्र पर भी अपना अधिकार कर लिया। सन 1857 तक बुन्देलखण्ड के प्रमुख राज्यों में जालौन का भी राज्य था। गोविन्द राव की मृत्यु के पश्चात् उनकी पौत्री ताई बाई राज्य की शासिका बनी। सन 1857 की क्रान्ति में ताई बाई ने क्रियाशील भूमिका निभाई। परन्तु अंत में उसे व उसके परिवार जनों को ब्रिटिश हुकूमत द्वारा कैद कर लिया गया। जालौन की आर्थिक दशा इस क्षेत्र की आर्थिक दशा अच्छी थी। इस क्षेत्र पर पहले सेगरों का अधिपत्य था। इनकी अच्छी काश्तकारी थी। जिसके कारण ये लोग आर्थिक रूप से खूब सम्पन्न थे। जनसामान्य की आर्थिक दशा विशेष अच्छी नही थी। मुख्य रूप से लोग कृषि कार्यो में ही जुटे रहते थे। व्यापार भी कृषि आधारित ही था। किसी वस्तु का निर्यात आदि नहीं होता था। सामान्य जन इन सेंगर राजाओं की कृपा पर ही अपना जीवन यापन करता था। जालौन की सामाजिक दशा समाज में शिक्षा का अभाव था। जिसके कारण समाज प्रगति शील नहीं हो सका। सभी सामाजिक एवं धार्मिक उत्सव इन राजाओं के इशारों पर ही सम्पन्न होते थे। शादी विवाह में भी इन राजाओं का काफी हस्तक्षेप रहता था। निर्बल वर्ग असहाय था। स्त्रियों की दशा अच्छी नही थी। उन्हे भोगविलास की वस्तु समझा जाता था। मराठो के आने से स्त्रियों को समाज में कुछ मान्यता प्राप्त होने लगी थी। भवनों के निर्माण में विभिन्न समकालीन स्थितियाँ एवं पृष्ठ भूमियाँ यहां पर सेगरों के अधिपत्य होने के कारण तमाम सेंगर राजाओं ने अपनी सुरक्षा के लिये अपनी अपनी गढ़ियों का निर्माण कराया था जैसे जगम्मनपुर , रामपुरा , हरदोई, सिरसा, बाबई इत्यादि। समाज में सबल केवल यही राजा थे शेष कुछ जनो को छोड कर सभी निर्बल थे अतः उन सभी निर्बलो के छोटे छोटे कच्ची मिई तथा फूस के मकान थे। कुछ आर्थिक रूप से सम्पन्न वैश्यों व राजघरानों से सम्बन्धित व्यक्तियों के आवास गृह सुन्दर व मजबूत बने थे। भवनो का निर्माण मुख्यतः रह राजाओं द्वारा राजकीय कोष से कराया गया था। जब गोविन्द राव बुन्देला जालौन के राजा बने तब उन्होने ही लक्ष्मी नारायण मन्दिर, गोबिन्देश्वर मन्दिर, बावडी आदि का निर्माण कराया था। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:— चौरासी गुंबद कालपी – चौरासी गुंबद का इतिहास चौरासी गुंबद यह नाम एक ऐतिहासिक इमारत का है। यह भव्य भवन उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले में यमुना नदी श्री दरवाजा कालपी – श्री दरवाजे का इतिहास भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले में कालपी एक ऐतिहासिक नगर है, कालपी स्थित बड़े बाजार की पूर्वी सीमा रंग महल कहा स्थित है – बीरबल का रंगमहल उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले के कालपी नगर के मिर्जामण्डी स्थित मुहल्ले में यह रंग महल बना हुआ है। जो गोपालपुरा का किला जालौन – गोपालपुरा का इतिहास गोपालपुरा जागीर की अतुलनीय पुरातात्विक धरोहर गोपालपुरा का किला अपने तमाम गौरवमयी अतीत को अपने आंचल में संजोये, वर्तमान जालौन जनपद रामपुरा का किला और रामपुरा का इतिहास जालौन जिला मुख्यालय से रामपुरा का किला 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 46 गांवों की जागीर का मुख्य जगम्मनपुर का किला – जगम्मनपुर का इतिहास उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले में यमुना के दक्षिणी किनारे से लगभग 4 किलोमीटर दूर बसे जगम्मनपुर ग्राम में यह तालबहेट का किला किसने बनवाया – तालबहेट फोर्ट हिस्ट्री इन हिन्दी तालबहेट का किला ललितपुर जनपद मे है। यह स्थान झाँसी - सागर मार्ग पर स्थित है तथा झांसी से 34 मील कुलपहाड़ का किला – कुलपहाड़ का इतिहास इन हिन्दी कुलपहाड़ सेनापति महल कुलपहाड़ भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के महोबा ज़िले में स्थित एक शहर है। यह बुंदेलखंड क्षेत्र का एक ऐतिहासिक पथरीगढ़ का किला किसने बनवाया – पाथर कछार का किला का इतिहास इन हिन्दी पथरीगढ़ का किला चन्देलकालीन दुर्ग है यह दुर्ग फतहगंज से कुछ दूरी पर सतना जनपद में स्थित है इस दुर्ग के धमौनी का किला किसने बनवाया – धमौनी का युद्ध कब हुआ और उसका इतिहास विशाल धमौनी का किला मध्य प्रदेश के सागर जिले में स्थित है। यह 52 गढ़ों में से 29वां था। इस क्षेत्र बिजावर का किला किसने बनवाया – बिजावर का इतिहास इन हिन्दी बिजावर भारत के मध्यप्रदेश राज्य के छतरपुर जिले में स्थित एक गांव है। यह गांव एक ऐतिहासिक गांव है। बिजावर का बटियागढ़ का किला किसने बनवाया – बटियागढ़ का इतिहास इन हिन्दी बटियागढ़ का किला तुर्कों के युग में महत्वपूर्ण स्थान रखता था। यह किला छतरपुर से दमोह और जबलपुर जाने वाले मार्ग राजनगर का किला किसने बनवाया – राजनगर मध्यप्रदेश का इतिहास इन हिन्दी राजनगर मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में खुजराहों के विश्व धरोहर स्थल से केवल 3 किमी उत्तर में एक छोटा सा पन्ना का इतिहास – पन्ना का किला – पन्ना के दर्शनीय स्थलों की जानकारी हिन्दी में पन्ना का किला भी भारतीय मध्यकालीन किलों की श्रेणी में आता है। महाराजा छत्रसाल ने विक्रमी संवत् 1738 में पन्ना सिंगौरगढ़ का किला किसने बनवाया – सिंगौरगढ़ का इतिहास इन हिन्दी मध्य भारत में मध्य प्रदेश राज्य के दमोह जिले में सिंगौरगढ़ का किला स्थित हैं, यह किला गढ़ा साम्राज्य का छतरपुर का किला हिस्ट्री इन हिन्दी – छतरपुर का इतिहास की जानकारी हिन्दी में छतरपुर का किला मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में अठारहवीं शताब्दी का किला है। यह किला पहाड़ी की चोटी पर चंदेरी का किला किसने बनवाया – चंदेरी का इतिहास इन हिन्दी व दर्शनीय स्थल भारत के मध्य प्रदेश राज्य के अशोकनगर जिले के चंदेरी में स्थित चंदेरी का किला शिवपुरी से 127 किमी और ललितपुर ग्वालियर का किला हिस्ट्री इन हिन्दी – ग्वालियर का इतिहास व दर्शनीय स्थल ग्वालियर का किला उत्तर प्रदेश के ग्वालियर में स्थित है। इस किले का अस्तित्व गुप्त साम्राज्य में भी था। दुर्ग बड़ौनी का किला किसने बनवाया – बड़ौनी का इतिहास व दर्शनीय स्थल बड़ौनी का किला,यह स्थान छोटी बड़ौनी के नाम जाना जाता है जो दतिया से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर है। दतिया का इतिहास – दतिया महल या दतिया का किला किसने बनवाया था दतिया जनपद मध्य प्रदेश का एक सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक जिला है इसकी सीमाए उत्तर प्रदेश के झांसी जनपद से मिलती है। यहां कालपी का इतिहास – कालपी का किला – चौरासी खंभा हिस्ट्री इन हिंदी कालपी का किला ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अति प्राचीन स्थल है। यह झाँसी कानपुर मार्ग पर स्थित है उरई उरई का किला किसने बनवाया – माहिल तालाब का इतिहास इन हिन्दी उत्तर प्रदेश के जालौन जनपद मे स्थित उरई नगर अति प्राचीन, धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व का स्थल है। यह झाँसी कानपुर एरच का किला किसने बनवाया था – एरच के किले का इतिहास हिन्दी में उत्तर प्रदेश के झांसी जनपद में एरच एक छोटा सा कस्बा है। जो बेतवा नदी के तट पर बसा है, या चिरगांव का किला किसने बनवाया – चिरगांव किले का इतिहास का इतिहास चिरगाँव झाँसी जनपद का एक छोटा से कस्बा है। यह झाँसी से 48 मील दूर तथा मोड से 44 मील गढ़कुंडार का किला का इतिहास – गढ़कुंडार का किला किसने बनवाया गढ़कुण्डार का किला मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ जिले में गढ़कुंडार नामक एक छोटे से गांव मे स्थित है। गढ़कुंडार का किला बीच बरूआ सागर का किला – बरूआसागर झील का निर्माण किसने और कब करवाया बरूआ सागर झाँसी जनपद का एक छोटा से कस्बा है। यह मानिकपुर झांसी मार्ग पर है। तथा दक्षिण पूर्व दिशा पर मनियागढ़ का किला – मनियागढ़ का किला किसने बनवाया था तथा कहाँ है मनियागढ़ का किला मध्यप्रदेश के छतरपुर जनपद मे स्थित है। सामरिक दृष्टि से इस दुर्ग का विशेष महत्व है। सुप्रसिद्ध ग्रन्थ मंगलगढ़ का किला किसने बनवाया था – मंगलगढ़ का इतिहास हिन्दी में मंगलगढ़ का किला चरखारी के एक पहाड़ी पर बना हुआ है। तथा इसके के आसपास अनेक ऐतिहासिक इमारते है। यह हमीरपुर जैतपुर का किला या बेलाताल का किला या बेलासागर झील हिस्ट्री इन हिन्दी, जैतपुर का किला उत्तर प्रदेश के महोबा हरपालपुर मार्ग पर कुलपहाड से 11 किलोमीटर दूर तथा महोबा से 32 किलोमीटर दूर सिरसागढ़ का किला – बहादुर मलखान सिंह का किला व इतिहास हिन्दी में सिरसागढ़ का किला कहाँ है? सिरसागढ़ का किला महोबा राठ मार्ग पर उरई के पास स्थित है। तथा किसी युग में महोबा का किला – महोबा दुर्ग का इतिहास – आल्हा उदल का महल महोबा का किला महोबा जनपद में एक सुप्रसिद्ध दुर्ग है। यह दुर्ग चन्देल कालीन है इस दुर्ग में कई अभिलेख भी कल्याणगढ़ का किला मानिकपुर चित्रकूट उत्तर प्रदेश, कल्याणगढ़ दुर्ग का इतिहास कल्याणगढ़ का किला, बुंदेलखंड में अनगिनत ऐसे ऐतिहासिक स्थल है। जिन्हें सहेजकर उन्हें पर्यटन की मुख्य धारा से जोडा जा भूरागढ़ का किला – भूरागढ़ दुर्ग का इतिहास – भूरागढ़ जहां लगता है आशिकों का मेला भूरागढ़ का किला बांदा शहर के केन नदी के तट पर स्थित है। पहले यह किला महत्वपूर्ण प्रशासनिक स्थल था। वर्तमान रनगढ़ दुर्ग – रनगढ़ का किला या जल दुर्ग या जलीय दुर्ग के गुप्त मार्ग रनगढ़ दुर्ग ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रतीत होता है। यद्यपि किसी भी ऐतिहासिक ग्रन्थ में इस दुर्ग खत्री पहाड़ विंध्यवासिनी देवी मंदिर तथा शेरपुर सेवड़ा दुर्ग व इतिहास उत्तर प्रदेश राज्य के बांदा जिले में शेरपुर सेवड़ा नामक एक गांव है। यह गांव खत्री पहाड़ के नाम से विख्यात मड़फा दुर्ग के रहस्य – जहां तानसेन और बीरबल ने निवास किया था मड़फा दुर्ग भी एक चन्देल कालीन किला है यह दुर्ग चित्रकूट के समीप चित्रकूट से 30 किलोमीटर की दूरी पर रसिन का किला प्राकृतिक सुंदरता के बीच बिखरे इतिहास के अनमोल मोती रसिन का किला उत्तर प्रदेश के बांदा जिले मे अतर्रा तहसील के रसिन गांव में स्थित है। यह जिला मुख्यालय बांदा अजयगढ़ का किला किसने बनवाया था व उसका इतिहास अजयगढ़ की घाटी का प्राकृतिक सौंदर्य अजयगढ़ का किला महोबा के दक्षिण पूर्व में कालिंजर के दक्षिण पश्चिम में और खुजराहों के उत्तर पूर्व में मध्यप्रदेश कालिंजर का किला – कालिंजर का युद्ध – कालिंजर का इतिहास इन हिन्दी कालिंजर का किला या कालिंजर दुर्ग कहा स्थित है?:--- यह दुर्ग बांदा जिला उत्तर प्रदेश मुख्यालय से 55 किलोमीटर दूर बांदा-सतना ओरछा का किला – ओरछा दर्शनीय स्थल – ओरछा के टॉप 10 पर्यटन स्थल शक्तिशाली बुंदेला राजपूत राजाओं की राजधानी ओरछा शहर के हर हिस्से में लगभग इतिहास का जादू फैला हुआ है। ओरछा Uncategorized उत्तर प्रदेश के जिलेहिस्ट्री