जाटों की उत्पत्ति कैसे हुई – जाटों का प्राचीन इतिहास Naeem Ahmad, December 20, 2022February 19, 2023 जाट जाति भारत की एक प्रमुख जाति है, जाटों को उत्पत्ति कैसे हुई यह एक अनसुलझा प्रश्न है। जाट वंश की उत्पत्ति के लिये भिन्न भिन्न विद्वानों की भिन्न भिन्न राय है। जाटों को प्राचीन इतिहास देखने से पता चलता है कि कुछ पाश्चात विद्वानों ने इनकी उत्पत्ति इन्डो सीथियन्स से बतलाई है और लिखा है कि कई विदेशी जातियों की तरह जाट भी मध्य एशिया से आकर हिन्दुस्तान में बस गये और धीरे धीरे हिन्दु जाति ने इन्हें अपने में मिला लिया। पर आधुनिक ऐतिहासिक अन्वेषणों ने उक्त मत को भ्रम पूर्ण सिद्ध कर दिया है। जाट की उत्पत्ति कैसे हुई – जाटों का प्राचीन इतिहास सुप्रख्यात् डॉक्टर ट्रम्प और बीम्स ने इनकी उत्पत्ति विशुद्ध आर्यवंश से मानी है ( Memoirs of the races of North Western provinces of India ) सर ह॒र्बट रिसली ले अपने ( people of India) नामक ग्रंथ में ऐेतिहासिक ओर भौतिक प्रमाणों के आधार पर जाटों को विशुद्ध आर्य जाति के सिद्ध करने की सफल चेष्टा की है। महामति कर्नल टॉड साहब ने शिलालेखों के आधार पर यह प्रगट किया है कि इसवी सन् 409 में भारत में जाट जाति के राज्यवंश का अस्तित्व था। महाभारत में जत्रि नामक लोगों का वर्णन है। सर जेम्स केम्बेल और प्रियर्सन उक्त लोगों को जाट ही ख्याल करते हैं। और भी कितने ही विख्यात विद्वानों ने जाटों को विशुद्ध आर्य वंश के स्वीकार किये हैं। अरब इतिहासकारों तथा भूगोलवेत्ताओं ने भारतीय ऐतिहासिक युग के प्रारम्भिक काल में जाटों को भारत में बसते हुए पाया है ( Elliots history of India)। यहाँ यह बात ध्यान में रखने योग्य है कि भारत में अरब लोगों का सब से प्रथम सम्बन्ध जाटों ही से पडा था और वे सारे हिन्दुओं को जाट ही के नाम से सम्बोधित करते थे। कई फारसी तवारीखों में भी जाट जाति के विस्तार का ओर उसके वीरत्व का उल्लेख किया गया है। कहने का मतलब यह है कि जाट आर्यवंश के हैं और प्राचीनकाल में उनकी भारत में बस्ती होने के ऐतिहासिक उल्लेख मिलते हैं। यह भी पता चलता है कि उस समय ये क्षत्रियों की तरह उच्च वंशीय माने जाते थे। पर सामाजिक मामलों में अधिक उदार होने के कारण ये ब्राह्मणों की आखों में खटकने लगे और उन्होंने इनका जातीय पद नीचे गिराने का यत्न किया। जाटों की उत्पत्ति मुगल बादशाह औरंगजेब के अत्याचारों से तंग आकर भारतकी बहादुर जाट जाति ने भी मुगल सम्राट के खिलाफ विद्रोह का झंण्डा उठाया। मथुरा और आगरा के जाट किसान उक्त अत्याचारी सम्राट के कारण बेतरह तंग और परेशान हो गये थे। उन्हें उसके जुल्मों का बुरी तरह शिकार होना पड़ा था। उनकी औरते और बचे उठाये जाने लगे थे। अनेक ललनाओं को मुसलमानों की काम वासना का शिकार होना पड़ा था। मथुरा का सूबेदार मुर्शिदकुली खाँ गांवों पर हमला कर सुन्दर ललनाओं को ले जाय करता था। दूसरी घृणित प्रथा यह थी कि जब कोई हिन्दू मेला लगता था तो यह मनुष्य-रूप-धारी राक्षस हिन्दु का वेष पहन कर मेले में घुमता और ज्योंहि इसे चन्द्रमुखी सुन्दर हिन्दू रमणी दिखलाई दी कि वह उस पर रपट कर उसे उड़ा ले जाता था और पास ही यमुना नदी में नाव पर बैठकर आगरा भाग जाता था। इसके थोड़े ही दिनों के बाद औरंगजेब ने अकुलनबी नामक एक मुसलमान को मथुरा का शासक नियुक्त किया। इसने हिन्दुओं के मन्दिर नष्ट भ्रष्ट करना शुरू किया। उसने अपने मालिक औरंगजेब की तरह हिन्दुओं की मूर्तियों का नामो निशान मिटाने का निश्चय कर लिया। धर्म-प्राण जाट लोगों ने इसका मुकाबला किया। ईसवी सन् 1666 में दोनों की लड़ाई हो गई। इस समय जाटों का नेता गोकल था। इसने सादाबाद का परगना लूट लिया। इसके बाद औरंगजेब ने ओर उसके हसनअली खां सेनापति सेना-नायकों ने जाटों पर चढ़ाई करने के लिये एक अति प्रबल सेना के साथ कूच किया। हसन अली खाँ ने जाटों के तीन गांवों पर जोर के हमले किये। जाटों ने अद्भुत पराक्रम और वीरत्व के साथ शत्रु सेना का प्रतीकार किया। अल्प संख्यक वीर जाटों के मुकाबले में शत्रु सेना असंख्य थी। जब जाटों ने लड़ते लड़ते धैर्य और वीरत्व की पराकाष्ठा कर दी। जब उन्हें विजय की आशा न रही तब उन्होंने अपने स्त्री बच्चों को मारकर मुगलों पर जोर का हमला कर दिया। उन्होंने 4000 मुगलों को तलवार के घाट उतार दिया। पर आख़िर में विशाल मुगल सेना के सामने इन्हें विजयश्री प्राप्त न हुई। जाट नेता गोकल पकड़ा गया। औरंगजेब ने इसे जिस क्रूरता के साथ मरवाया उसे देखकर राक्षस भी सहम जावे। आगरा के पुलिस ऑफिस के प्लेटफार्म पर उसकी हड्डियों पसलियाँ एक एक करके तोड़ी गई। उसकी बोटी बोटी कर दी गई। क्रूरता और अमानुषिकता की हद हो गई। पर वीरवर गोकल का यह खून व्यर्थ न गया। उसने वीर जाटों के हृदय में स्वाधीनता के सुमधुर बीज का रोपण कर दिया। इस बलिदान ने जाट जाति के दिल में अनुपम साहस और स्वार्थत्याग के सह्लगुणों का अपूर्व विकास कर दिया। उसमें जागृति के प्रकाश-चिन्ह चमकने लगे। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:— [post_grid id=”6680″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... Uncategorized जाट वंशजाटों का प्राचीन इतिहासजाटों की उत्पत्ति