जरनैल सिंह का पूरा नाम जरनैल सिंह ढिल्लों है। वे भारत के फुटबॉल के एक अत्यंत सफल खिलाड़ी रहे है। जरनैल सिंह का जन्म 1936 में पनाम, जिला होशियारपुर पंजाब में हुआ था। जरनैल सिंह फुटबॉल फुटबॉल के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में से एक है। भारत को विजय दिलाने में उन्होंने श्रेष्ठ डिफेंडर की भूमिका निभाई है। 1962 के जकार्ता एशियाई खेलों में जरनैल ने अपने स्ट्रोक द्वारा विजय दिलाकर भारत को स्वर्ण पदक दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
अपनी शक्ति और बेहतर प्रदर्शन के दम पर फुटबॉल में बचाव की कला ( आर्ट ऑफ डिफेंस) को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने वाले खिलाड़ी रहे है। वे 1952 से 1956 तक खालसा कॉलेज महिपालपुर पंजाब के लिए खेलते रहे। फिर 1956-57 के बीच खालसा स्पोर्ट्रिग कॉलेज पंजाब टीम के सदस्य रहे। 1957-58 में वे राजस्थान क्लब, कलकत्ता टीम के सदस्य रहे। भारतीय फुटबॉल के स्वर्णिम युग में जरनैल सिंह ने अपने समय के अन्य श्रेष्ठ खिलाड़ियों की भांति भारतीय फुटबॉल को आगे बढ़ाने तथा उन्नति के रास्ते पर ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1962 के जकार्ता एशियाई खेलों में उनकी योग्यता व श्रैष्ठता किसी से छिपी नहीं है। वहां किया गया उनका श्रेष्ठ प्रदर्शन आज भी याद किया जाता हैं।
जरनैल सिंह की जीवनी, बायोग्राफी, रिकॉर्ड, पदक, सम्मान व उपलब्धियां
इन एशियाई खेलों में जरनैल के सिर में चोट के कारण छः टांके आएं थे, परंतु उन्होंने उसे भुलाकर फॉरवर्ड के रूप में खेलकर ऐसा महत्वपूर्ण गोल किया कि भारत पहले सेमीफाइनल में और फिर फाइनल में जीतकर एशियाई फुकबॉल में पहली बार स्वर्ण पदक हासिल कर सका। दो साल बाद अर्थात 1964 में तेल अवीव में हुए एशिया कप में जरनैल ने डिफेंडर के रूप में अत्यंत श्रेष्ठ प्रदर्शन किया और भारत उस खेल में रनरअप रहा।
1964 में ही मलेशिया के मर्डेका टूर्नामेंट में अच्छे प्रदर्शन के पश्चात जरनैल ने चुन्नी गोस्वामी से टीम की डोर अपने हाथ में ले ली। वे 1965 से 1967 तक भारतीय फुटबॉल टीम के कप्तान रहे और उनके नेतृत्व में टीम ने अत्यंत बेहतरीन प्रदर्शन किया तथा अनेक सफलताएं अर्जित की। 1965-66 तथा 1966-67 में जरनैल एशियाई ऑल स्टार टीम के कप्तान भी रहे। घरेलू सर्किट में भी जरनैल मोहन बगान क्लब से 10 महत्वपूर्ण सालों तक जुडे रहे। जब हरी तथा मैरून टीमों ने राष्ट्रीय स्तर पर लगभग सभी महत्वपूर्ण मुकाबले जीत लिए। वह 1958 से 1968 तक मोहन बागान क्लब से जुड़े रहे।
जरनैल सिंह एथलीट
1969 में मोहन बागान क्लब छोड़ने बाद वे पंजाब की टीम के लिए खेले और 1970 में उन्होंने टीम के कोच तथा खिलाड़ी के रूप में संतोष ट्रॉफी जीतने में टीम की मदद की। जरनैल सिंह भारतीय राष्ट्रीय टीम के कोच भी रहे। वे कई महत्वपूर्ण प्रशासनिक पदों पर भी रहे। 1964 में जरनैल जिला खेल अधिकारी पद पर रहे। 1985 से 1990 तक वह पंजाब में खेल विभाग के डिप्टी डारेक्टर रहे। 1990 से 1994 के बीच वे पंजाब के डारेक्टर ऑफ स्पोर्ट्स पद पर रहे। जरनैल को 1964 में अर्जुन पुरस्कार प्रदान किया गया। 13 अक्टूबर 2000 को उनकी वैंकूवर, कनाडा में मृत्यु हो गयी।
खेल जीवन की महत्वपूर्ण उपलब्धियां
• जरनैल भारतीय फुटबॉल टीम मे डिफेंडर के रूप में अत्यंत ख्याति प्राप्त खिलाड़ी रहे।
• वे 1952 से 1956 तक खालसा कॉलेज महिपालपुर पंजाब के खिलाडी रहे।
• 1956 से 1957 तक जरनैल जी खालसा स्पोर्ट्रिंग क्लब, पंजाब टीम के सदस्य रहे।
• 1957 से 1958 के बीच वे राजस्थान क्लब कलकत्ता टीम के लिए खेले।
• 1958 से 1968 के बीच वे मोहन बागान क्लब से जुडे रहे।
• वे भारतीय टीम के राष्ट्रीय कोच रहे।
• वे उस टीम के कोच व खिलाडी थे जिसने 1970 में संतोष ट्रॉफी जीती।
• 1965 से 1967 तक वे भारतीय टीम के कप्तान रहे।
• 1962 में जकार्ता एशियाई खेलों के सेमीफाइनल में उनके महत्वपूर्ण स्ट्रोक से भारत फाइनल में पहुंच सका, फिर फाइनल में उनके महत्वपूर्ण खेल से भारत पहली बार एशियाई फुटबॉल में स्वर्ण पदक प्राप्त कर सका।
• 1964 में जरनैल सिंह को अर्जुन पुरस्कार प्रदान किया गया।
• 1964 में तेल अवीव में हुए एशिया कप में उन्होंने डिफेंस में रहकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारत रनरअप रहा।