उत्तर प्रदेश राज्य केजालौन जिले में यमुना के दक्षिणी किनारे से लगभग 4 किलोमीटर दूर बसे जगम्मनपुर ग्राम में यह किला स्थित है जोकि जगम्मनपुर का किला के नाम से जाना जाती है। जगम्मनपुर का इतिहास देखें तो पता चलता है कि यह किला राजा जगम्मनशाह द्वारा 1593 ई० में उस समय बनवाया गया था जब उनका कनार स्थित किला ध्वस्त हो गया था। यहाँ कनार से उत्तर पूर्व की ओर लगभग 3 किलोमीटर दूर पर आकर उन्होंने अपने नाम से जगम्मनपुर ग्राम को बसाया एवं अपने रहने के लिए एक किले का निर्माण कराया था। महाराजा कर्णदेव जोकि सन 936 ई० में हुए थे से प्रारंभ होकर आगे बढ़ते है और उसी क्रम के 29 वें महाराज जगम्मन शाह हुए। महाराज जगम्मन शाह के पश्चात जगम्मनपुर राज्य का दायित्व महाराज उदित शाह के ऊपर आया। तत्पश्चात महाराजा मानशाह तत्पश्चात महाराज भीमशाह तत्पश्चात महाराजा प्रतापशाह तत्पश्चात महाराजा सुमेरशाह, तत्पश्चात महाराजा रत्नशाह तत्पशचात महाराज बख्तशाह तत्पश्चात महाराजा महीपतशाह तत्पश्चात् महाराजा रूपशाह तत्पश्चात् महाराजा लोकेन्द्रशाह और सन 1919 में महाराजा वीरेन्द्रशाह एवं वर्तमान में उनके पुत्र महाराजा राजेन्द्र शाह हैं। ये सेंगर क्षत्रिय चन्द्रवंशी हैं। इनका गोत्र-गोतम, प्रवर तीन गौतम, वशिष्ठ , बा्स्पत्य, वेद-यजुर्वेद, शाखा-वाजसनेही, मूत्र-पारस्कर ग्रहसूत्र, कुलदेवी- विन्ध्य-वासिनी, ध्वजा-लाल, नदी-सेंगर, गुरू-विस्वामित्र, ऋषि-शृंगी। ये लोग विजयादशमी को कटारपूजन करते हैं।
जगम्मनपुर का इतिहास
कर्ण के पुत्र विकर्ण ने गंगा यमुना के दक्षिण गंगासागर से चम्बल नदी तक के प्रदेश पर अपना अधिकार जमाया और उनके वंशजों की शातकर्णि सज्ञा हुयी। क्रमश इस शतकीर्ण शब्द का अपभ्रृंश लोंकभाषा में पहले सातकर्णि फिर सेगणी और फिर सेंगर या
सैंगर हो गया।
मध्यकाल में मुगल सम्राट बाबर ने कनार को विध्वंश किया तब कनार के तत्कालीन (विशोकदेव से वीसवें ) ने नई राजधानी जगम्मनपुर यमुना से एक कोस हटकर बसाई जो आज तक सत्तावन ग्रामों और कनार के भग्नावशेषों सहित महाराजा कर्ण देव के वंशजों के अधिपत्य में है और जगम्मनपुर के महाराजा अद्यावधि ‘कनार धनी’ कहाते हैं।
जगम्मनपुर का किलाअकबर के समय में जब रामचरित मानष के रचयिता गोस्वामी
तुलसीदास जी महाराज वृन्दावन से प्रस्थान करके यमुनातट के मार्ग द्वारा चित्रकूट कीओर जा रहे थे तो उन्होंने जगम्मनपुर के तत्कालीन राजा उदोतशाह का आतिथ्य स्वीकार किया था तथा उन्हें एक दक्षिणावर्ती शंख, एक एकमुखी रुद्राक्ष और एक सालिगराम शिला प्रदान की थी।
सन 1134 में जगम्मनपुर के राजा वत्सराज सेंगर थे। इस सेंगर
वंश का प्रारभ शृंगी ऋषि एवं अयोध्या के महाराज दशरथ की भतीजी से माना जाता है। इस वंशावली के एक राजा विशोकदेव ने कन्नौज के राजा जयचन्द्र की पुत्री से विवाह करके दहेज में एक बहुत बड़ा राज्य क्षेत्र प्राप्त किया तब वे कनार कहलाये और सन 1100 ई० में अपना राज्य स्थापित किया।
जगम्मनपुर का किला
यह सम्पूर्ण किला खाई सहित लगभग सात एकड़ क्षेत्र पर स्थित है।जिसके चारों ओर 100 फुट चौड़ी तथा 50 फुट गहरी खाई है जो कि इसकी सुरक्षा का कवच बना हुआ है। यह किला पहले पूर्वाभिमुख था परन्तु वर्तमान में उत्तराभिमुख है। पूर्व की ओर यह किला आधार तल के ऊपर तीन मंजिला तक बना हुआ है तथा आधारतल के नीचे भूमि तल है। जगम्मनपुर किले के परकोटे पर चारों ओर चार गुम्बद बनें हुए हैं।परकोटे के दक्षिणी दीवार के मध्य में एक पाँचवाँ गुम्बद बना हुआ है जो कि यह प्रदर्शित करता है कि दक्षिणी द्वार को आक्रान्ताओं के आक्रमण से विशेष रूप से
सम्भाला गया था एवं दुश्मनों को अच्छा सबक सिखाया जा सकता था। इसके परकोटे में विभिन्न स्थानों में मारें भी बनी हुई हैं। इस प्रकार से सुरक्षा एवं युद्ध की दृष्टि से जगम्मनपुर का किला एक ऐसा किला है जो कि अभेद प्रतीत होता है। इसका पूर्वी द्वार विशाल मेहराबदार है इसके ऊपर बालकनी नुमा कोविल बनी हुई है। कोबिल के आसपास ईट चूना प्लास्टर से मूर्तियों का भी निर्माण किया गया था। मुख्य दरबाजे के दोनों पल्ले लकड़ी के बने हुए है जिन पर पीतल चढ़ा हुआ था । ऊपर हाँथी से सुरक्षा लिए सूजे इत्यादि लगे हुए हैं मुख्य दरबाजे के दोनों ओर एक बडी सुरक्षा भित्ती है। जगम्मनपुर किले के प्रथम तल में भी मुख्य दरवाजे के दोनों ओर क्रमवार कक्षों का निर्माण हुआ है और यही स्थिति द्वितीय व तृतीय तल में भी है। पूरा किलाबाहर से देखने में अत्यन्त सुन्दर तथा समानुपातिक है। यह किला वनक्षेत्र में स्थित होने के कारण वन दुर्ग की श्रेणी में आता है।
राजा रूपशाह जब बनारस में पढ़ते थे वहीं से वह इस किले को महल का स्वरूप प्रदान करने के लिए एक नक्शा बनवा लाये और इसी के आधार पर इस किले को महल का स्वरूप उन्हीं के समय में प्रदान किया गया। यह किला पतली ईटों से बना है तथा गारे, चूने की जुड़ाई है और बाहर भी पुच्दर बेलपत्तियों का अलंकरण है तथा कुछ स्थान पर बेलबूटों का चित्रण भी है। जगम्मनपुर के किले द्वारा कलाकारों को खूब संरक्षण प्रदान किया गया तब से आजतक चित्रकला के विभिन्न नमूने यहाँ पर देखने को मिलते हैं।
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