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छेरता पर्व

छेरता पर्व कौन मनाते हैं तथा छेरता नृत्य कैसे करते है

आदिवासियों जनजाति का एक अन्य पर्व है छेरता, जिसे कह्ठी-कही शैला भी कहा जाता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड के अलावाबिहार और मध्य प्रदेश मे भी यह पूर्ण हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह विशेष रूप से युवकों का समारोह होता है। इस त्यौहार को छेरछेरता भी कहते हैं। यह पर्व दान का पर्व कहलाता है, इसमें गांव के युवक एक टोली बनाकर नृत्य करते हुए सम्पन्न लोगों से दान मांगते हैं।

छेरछेरा (छेरता) पून्नी अर्थात पौष माह की शुक्ल पक्ष 15 वीं तिथि को पौष पून्नी अर्थात छेरछेरा या छेरता त्योहार कहा जाता है, पौष माह यानि कि जनवरी माह तक अन्न का भंडारण कर लिया जाता है अतः पौष माह की पूर्णिमा को छेरछेरा (छेरता) त्यौहार मनाया जाता है।

गांव, पास-पडोस के युवक साफ-सुथरे कपडे पहन कर-पगडी या पत्तों की टोपी सिर पर रख कर, कमर में मोर-पंख बाध कर, हाथ मे दो-दो फीट के डन्डे लेकर, पावों में कडे या घुंघुरू बांध कर मादल की थाप पर हू-हू की आवाज करते हुए किसी मैदान में निकल आते है।

छेरता पर्व
छेरता पर्व

डंडा उछाल कर या उसे भोकते हुए कू-क की आवाज करते जब आगे बढते या दौडते है तो भय लगता है। ये युवक भिन्न रंगों से अपने चहरे भयानक बना लेते हैं और कुछ युवक तो शेर भालू चीता का मुखौटा भी लगा लेते हैं। ये समूह मे गांव के पैसे वालों के पास पहुच कर नगई करके पैसा बटोरते हैं और उससे छानते-खोटते है। यह आयोजन दो दिनो का होता है जो पूरे तौर पर मौज-मस्ती में बीतता है।

छेरता पर्व क्यों मनाया जाता है

इस छेरता पर्व आयोजन का प्रारम्भ शिकार मिलने की खुशी मे किया गया था। इसे हकवा विधि भी कह सकते है। पुराने समय में आदिवासी जनजाति समुदाय के लोग झुंड बनाकर जानवरों का शिकार किया करते थे। यह शिकार युवक एक नुकीले डंडे से किया करते थे। युवक डन्डा लेकर हकवा करके करते थे। शिकार मिल जाने पर उसके चारो ओर नाच कर खुशी मनाते थे। यह प्रथा अब धीरे-धीरे समाप्त हो गयी है। किंतु अपनी उसी प्राचीन शिकार प्रथा की स्मृति में आज भी युवक छेरता नृत्य के रूप में उसका प्रथा का अभिनय करते हैं। और शिकार के रूम में दान प्राप्त करते हैं। छेरता पर्व खुशी और हर्षोल्लास का पर्व है।

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Naeem Ahmad

CEO & founder alvi travels agency tour organiser planners and consultant and Indian Hindi blogger

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