अवध के नवाबों द्वारा निर्मित सभी भव्य स्मारकों में, लखनऊ में छतर मंजिल सुंदर नवाबी-युग की वास्तुकला का एक प्रमुख उदाहरण है। स्मारक पुराने नवाबी आकर्षण को प्रदर्शित करता है जिसके लिए लखनऊ इतना प्रसिद्ध है। यहनवाब गाजीउद्दीन हैदर के संरक्षण में बनाया गया था और उनकी मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी नवाब नासिरउद्दीन हैदर द्वारा पूरा किया गया था। इमारतलखनऊ के शाही परिवार के लिए एक निवास और किले के रूप में कार्य करती थी।
फ्रेंच व इटालियन शैली से युक्त इस भव्य और निहायत खूबसूरत इमारत को नसीरूद्दीन हैदर ने बनवाया था। चूँकि इमारत का जो गुम्बद है उस पर पीतल की एक बड़ी छतरी मौजूद है। इसीलिए यह इमारत “छतर मंजिल” के नाम से मशहूर हो गयी । इमारत में अनेक तहखाने हैं। यह तहखाने इस प्रकार बने हैं कि बाहर की पर्याप्त रोशनी बनी रहती है। इसमें एक तहखाने तक मोती महल से सुरंग भी आती है। हर साल बरसात के दिनों में गोमती का जल स्तर बढ़ने पर इस सुरंग में पानी आ जाता था। इसलिए इसे बन्द कर दिया गया है।
द लखनऊ एलबम पुस्तक के अनुसार छतर मंजिल ऊंची चहारदीवारी से घिरी थी जो कि गदर के दौरान नष्ट हो गयी। छतर मंजिल में अब वह खबसूरती तो न रही जो गदर के पूर्व तक थी। यहां संगमरमर का बना एक तालाब था, जिसके बीचोंबीच बनी छतरी लोगों का मन मोह लेती है।
छतर मंजिल गर्मियों के दिनों में बड़ी आरामदेह थी। दरिया की बलखाती लहरें और उस तरफ खुलने वाली तमाम खिड़कियों से आते हवा के ठंडे झोंके बड़ा आनन्द देते थे। इस महल में नसीरुद्दीन की खास बेगमें भी रहती थीं। मलका किश्वर को यह महल बेहद पसन्द था। नवाब वाजिद अली शाह भी कई दिनों तक छतर मंजिल में रहे। मलका किश्वर अवध की बेगमों में बड़ी दिलेर मानी जाती थीं।
छतर मंजिल लखनऊ
कम्पनी सरकार की काली करतूतों सेनवाब वाजिद अली शाह की माँ यानी कि मलका किश्वर बुरी तरह से तंग आ गयी थी। 6 जून सन् 1856 को वह लंदन के लिए रवाना हुई। उनकी इस यात्रा में करोड़ों रुपये खर्च हुए। बेटे की बरबादी और उसके साथ अंग्रेजों द्वारा किया जा रहा सुलूक रुपये से कहीं ज्यादा अहमियत रखता था। मलका किश्वर का मेजर बर्ड ने बड़ा साथ दिया। 20 अगस्त को जहाज लन्दन पहुँचा। वहां मेजर बर्ड ने भी उनकी बड़ी सहायता की। मलका महारानी विक्टोरिया से मिली। मगर कोई काम न बना। बल्कि हुआ यह कि उन्हें कम्पनी सरकार की ओर से तैयार नवाब के विरुद्ध अभियोग की फाइल भेंट की गयी। फाइल कलकत्ता भिजवाई गयी। नवाब साहब ने उसके उत्तर में 300 प्रतियों और एक खत विक्टोरिया को भेजा। मलका किश्वर के सम्मान में ब्रिटन की महारानी विक्टोरिया ने भोज दिया। वह केवल मलका से मीठी-मीठी बातें ही करती रहीं। भोज के दौरान विक्टोरिया ने मलका की गोद में 3 साल के बच्चे एडवर्ड को बैठा दिया। मलका ने यह सोच कर कि शायद विक्टोरिया का दिल पसीज जाये अपना कीमती हार बच्चे के गले में पहना दिया। लाखों रुपये विक्टोरिया को दें दिये।
इससे पहले कि अब बातचीत का थोड़ा बहुत सही माहोल बन पाता कि 1857 की आजादी की लड़ाई शुरू हो गयी। सारे किये कराये प्रयत्नों पर पानी फिर गया। वह निराश होकर वापस लौट पड़ी। दोबारा हिन्दुस्तान देखना नसीब न था। पेरिस में ही उनका इंतकाल हो गया।
गदर के दौरान अंग्रेजों ने इस इमारत की बची खुची खूबसरती भी नेस्तनाबूद कर दी। शीशे का सजावटी सामान, झाड़फनूस तथा अन्य कीमती वस्तुएँ उठा ले गये। आज इस विशाल इमारत में “संट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट” (सी ० डी० आर० आई०) विद्यमान हुआ।
छत्तर मंजिल के बारे में अनूठा पहलू असामान्य रूप से अलग वास्तुकला है। इस भव्य स्मारक की ध्यान देने योग्य स्थापत्य विशेषता अद्वितीय छतरी के आकार का गुंबद है जिससे स्मारक का नाम पड़ा है।
छतर मंजिल की वास्तुकला में फारसी और यूरोपीय वास्तुकला के कुछ सुंदर तत्व भी शामिल हैं। अवध के नवाब यूरोप की समकालीन शैली की वास्तुकला से गहराई से प्रभावित थे। इसलिए, लखनऊ में कई स्मारकों और संरचनाओं में यूरोपीय शैली की वास्तुकला के कुछ तत्व हैं।
इस शानदार संरचना का मूल प्रसिद्ध कोठी फरहत बख्श है। कहा जाता है कि मेजर जनरल क्लाउड मार्टिन ने छतर मंजिल के अंदर कोठी फरहत बख्श के निर्माण का आदेश दिया था। यह 1781 वर्ष में बनाया गया था। हालांकि, नवाब सआदत अली खान द्वारा कोठी का अधिग्रहण किया गया था, और यह छतर मंजिल परिसर का एक अभिन्न अंग बन गया। 1857 के विद्रोह के दौरान, छत्तर मंजिल भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के लिए एक गढ़ बन गया।
1947 तक विशाल भवन का उपयोग यूनाइटेड सर्विसेज क्लब के लिए एक स्थान के रूप में किया गया था। 1951 से, छतर मंजिल ने केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (सीडीआरआई) के घर के रूप में कार्य किया है। वर्ष 2007 में, जब सीडीआरआई के प्रबंधन को कार्य के लिए अधिक स्थान की आवश्यकता थी, परिसर के भीतर नए निर्माण के रूप में विस्तार का सुझाव दिया गया था। शहर की पुरातात्विक विरासत को संरक्षित करने के आधार पर इस विचार को खारिज कर दिया गया। इस निर्णय की पुरातत्वविदों और शहर से प्यार करने वाले सभी लखनऊवासियों ने सराहना की।
छतर मंजिल आज की स्थिति
केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान के विस्तार की आवश्यकता ने अनुसंधान संस्थान को छतर मंजिल से अपने नए परिसर जानकीपुरम एक्सटेंशन, सीतापुर रोड, लखनऊ में स्थानांतरित करने के लिए प्रेरित किया। उत्तर प्रदेश सरकार ने छतर मंजिल के परिसर में एक शहर संग्रहालय बनाने का प्रस्ताव रखा है। सरकार ने परिसर के अंदर एक विशेष गैलरी के निर्माण की भी योजना बनाई है जिसमें अद्भुत कलाकृतियों से भरे लखनऊ के समृद्ध इतिहास को प्रदर्शित किया गया है। संग्रहालय में आने वाले पर्यटकों को लखनऊ के गौरवशाली अतीत की अनुभूति और झलक मिलेगी।