चौरासी गुंबद कालपी – चौरासी गुंबद का इतिहास Naeem Ahmad, August 27, 2022February 24, 2023 चौरासी गुंबद यह नाम एक ऐतिहासिक इमारत का है। यह भव्य भवन उत्तर प्रदेश राज्य केजालौन जिले में यमुना नदी के दक्षिणी तट पर बसी कालपी नगरी के दक्षिणी किनारे पर कालपी उरई रोड पर स्थित है। यह चौरासी गुंबद अत्यन्त प्राचीन है। चौरासी गुंबद कालपी की ऐतिहासिक इमारतों में से एक उल्लेखनीय इमारत है।Contents1 चौरासी गुंबद का इतिहास2 चौरासी गुंबद का वास्तुशिल्प2.0.1 वास्तुशिल्प की दृष्टि से यह भवन एक विशाल व सुन्दर भवन है जो कि वर्गकार है। इस भवन के वास्तुशिल्प का अध्ययन हम दो चरणों में करेंगे2.0.2 प्रथम – भवन की मर्यादा (सीमा ) भित्ति द्वितीय – मूलभवन2.0.3 भवन की मर्यादा भित्ति:–2.0.3.1 मूलभवन3 हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—-चौरासी गुंबद का इतिहासचौरासी गुंबद का ऐतिहासिक अवलोकन विभिन्न मतो से आवेधित है। इसके विषय में कहा जाता कि यह बहुत प्राचीन इमारत है व आकृति के दृष्टि से यह बौद्ध भवन प्रतीत होती है। इस चौरासी गुंबद भवन को अशोक कालीन विद्यालय दर्शाते हुये कहा गया है कि यह आपरष्ठ चौरासी गुंबद के नाम से विख्यात है।सन 1928 में श्री रायबहादुर गौरीशंकर हीराचन्द्र ओझा राजस्थान व कलकत्ता विश्वविद्यालय के इतिहास के विभागाध्यक्ष प्रो० यदुनाथ सरकार ने कालपी भ्रमण के समय स्व० कृष्ण बलदेव वर्मा के यहाँ निवास किया था और उसी प्रवास के समय इन लोगो ने बतलाया था कि कालपी में चौरासी गुम्बद व अन्य मठ बौद्ध कालीन है। सम्राट अशोक द्वारा बौद्ध धर्म ग्रहण करने के पश्चात् एक विश्व स्तरीय सम्मेलन कालपी में हुआ था, और उसी आयोजन के अन्तरगत यह चौरासी गुंबद निर्माण किया गया था।एक अन्य मतानुसार कालपी के दक्षिण भाग के एक सिरे पर एक बौद्ध मठ स्तूप सा प्राचीन भव्य खंडहर है। कभी इस भवन में चौरासी गुंबद व दरवाजे थे। अतः इसका नाम चौरासी गुंबद पड़ा। इस भवन में कुछ पत्थर बौद्धकालीन शिल्प की छाप लिए हैं। संभव है कौशाम्बी और जीजाक नामक बौद्ध राज्यों के मध्य स्थित यह कालपी शहर बौद्ध प्रभाव में रहा हो। एक जनश्रुति के अनुसार चीनी यात्री ह्वेनसांग के समय यहाँ एक बौद्ध मठ उच्च शिक्षा संस्थान एवं आवास ग्रह था। मध्यकालीन लोधी वंशजों के विशाल मकबरा चौरासी गुंबद को बौद्ध कालीन मठ भी बहुत से लोग मानते हैं।हिजरी 791 में सुल्तान मुहम्मद उर्फ महमूद शाह लोधी ने कालपी लहरिया राजा उफ श्रीचन्द्र पर आक्रमण कर उसे परास्त किया था। उसी विजय के फलस्वरूप चौरासी गुंबद का निर्माण महमूद शाह लोधी द्वारा हुआ चौरासी गुंबद के नाम का कारण यह था कि निर्माण के समय चौरासी गुंबद बनाये गये थे। इस भवन में तीन कब्र है। एक कब्र महमूद शाह लोधी की है व दूसरी कब्र उस अमीर की है जो बादशाह की ओर से वहाँ पर रहता था तथा तीसरी कब्र एक भिश्ती की है । उस भिश्ती ने मुकामात मखवझ में बादशाह का साथ दिया था तथा ऐन वक्त पर खुद सुपर बादशाह का होकर घायल हुआ था। बादशाह ने उस भिश्ती के साथ बहुत अच्छा व्यवहार किया तथा उसे वचन दिया था कि उसकी कब्र के पास ही भिश्ती की भी कब्र रहेगी। इस करण वह भिश्ती भी वहीं दफनाया गया। यह एक पुराना व दिलचस्प भवन है।इस इमारत को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि उसका निर्माण पहले अन्य प्रयोजन के लिए हुआ था। इमारत वर्गाकार है। श्री डी०एल० ड्रेक ब्रोकमेन आई०सी० एस० भी यह स्वीकार करते हैं कि बाद में इस भवन को लोधी शाह बादशाह की कब्र के नाम से जाना जाने लगा और कुछ लोग इसे सिकन्दर लोधी की कब्र मानते हैं। जबकि हम यह तथ्य जानते हैं कि सिकन्दर लोधी आगरा के निकट मरा था और उसकी लाश को दिल्ली ले जाया गया था।चौरासी गुंबद नामक शानदार मकबरा महमूद लोधी का है जो बादशाह सिकन्दर लोधी का अमीर था और कालपी का सूबेदार नियुक्त हुआ था। हिजरी 791 में हुए एक युद्ध में महमूद लोधी अपने अंगरक्षक भिश्ती के साथ मारा गया था। उसकी याद में बने इस मजार के बीच में लोधी की कब्र और बायीं ओर भिश्ती की कब्र हैं। चौरसी गुंबद एक बहुत पुरानी इमारत है व इसकी आकृति देखने से यह बौद्ध इमारत प्रतीत होती है जिसको यवन काल में नष्ट कर मुसलमानी इमारत में परिणित की हुई मालूम होती है। इसके अन्दर मुसलमानी कब्रें हैं जिसके लिए बहुतेरी भ्रमात्मक खबरें कहीं जाती है। कोई कोई तो इसे सिकन्दर लोधी की व कोई इसे उस भिश्ती की जिसने हुमायूँ की जान बचाई थी कि कब्र होना बताते हैं परन्तु इसके कोई मानवीय प्रमाण नहीं मिलते हैं। ऐसा मालूम होता है कि यहां नगर के किसी प्रभावशाली यवन शासक की कब्र है जो मुगलों से पहले की बनी हुयी है। जौनपुर के सुल्तान से कालपी में महमूद शाह लोधी के बीच युद्ध हुआ था और इसकी मृत्यु हुयी थी। उसी की स्मृति में यह चौरासी गुंबद तैयार हुआ व इसके बड़े हाल में उसकी कब्र बनाई गईचौरासी गुंबद कालपीचौरासी गुंबद का वास्तुशिल्पवास्तुशिल्प की दृष्टि से यह भवन एक विशाल व सुन्दर भवन है जो कि वर्गकार है। इस भवन के वास्तुशिल्प का अध्ययन हम दो चरणों में करेंगेप्रथम – भवन की मर्यादा (सीमा ) भित्ति द्वितीय – मूलभवनभवन की मर्यादा भित्ति:–इस चौरासी गुंबद की मर्यादा भित्ति भी वर्गकार है। वर्ग की प्रत्येक भुजा के सन्धि स्थल पर एक मीनार स्थित है। वर्ग की पूर्वी भुजा के केन्द्र स्थल पर एक विशाल मेहराबदार द्वार स्थित है जिसके ऊपर अष्टकोणीय आधार पर आधारित एक विशाल गुम्बद है। इस दीवार की चौखट लाल बालू पत्थर से निर्मित है। दरवाजे के ऊपर स्लैब भी पत्थर का है जिसके कारण दरवाजा आयताकार हो जाता है। यह आयताकार द्वार तीन मैहराबों से युक्त है। इस मध्य गुम्बदकार द्वार की गहराई 17 फुट है व ऊँचाई 29 फुट है। इस मध्य द्वार के दायीं ओर दस इसी भाँति 14 फुट गहराई वाले व 20 फुट ऊँचाई वाले द्वार स्थित हैं। बायीं ओर के द्वार नेस्तनाबूत हो गये हैं। परन्तु इस भित्ति की दक्षिणी भुजा के देखने से ऐसा आभास अवश्य मिलता है कि भित्ति की प्रत्येक भुजा 27 द्वारों युक्त होगी। इसी प्रकार से मर्यादा भित्ति पर कुल 84 द्वार होंगे जिन पर गोल गुम्बद बने होंगे और इन्हीं 84 गुम्बद युक्त द्वारों के कारण इस भवन का नाम 84 गुंबद पड़ा होगा। द्वार के मेहराबों के दोनों ओर एक एक आला स्थित है। गुम्बद के अष्ट कोणीय आधार एवं उसके नीचे मुख्य द्वार की भुजा पर वाहय ओर कमल दल की भाँति अलंकरण है।मूलभवनभवन की मर्यादा भित्ति के अन्दर 80 फुट चौतरफा चौड़ाई का खुला आँगन है। इसके बाद वर्ग आकार में भवन का मध्य केन्द्रीय भाग स्थित हैं। इस वर्ग की भी चारों भुजायें मर्यादा भित्ति कीभाँति मीनारों द्वारा चारों कोनों पर जुड़ी है। वर्ग की प्रत्येक भुजा में बाहर से 7 तीन मेहराबों से युक्त दरवाजे है। दरवाजों के ऊपर तोड़ा आधार पर छज्जा निकला हुआ है तथा छल्ले के ऊपर कंगूरे अंकित है। दरवाजों के ऊपर छज्जा लाल पत्थर के आधार पर आधारित एवं बाहर की ओर थोड़ा सा झुका हुआ है जो कि पानी को ढाल देकर नीचे गिरने में सहायक होता है। प्रत्येक दरवाजे की मध्य भित्ति पर अर्थात् दो दरवाजो के बीच की दीवार पर ऊपरी ओर एक एक अलंकृत आला बना हुआ है। दरवाजों के दोनो ओर ऊपरी भाग में एक एक ज्यामितीय बेल से अलंकृत गोला अंकित है। कुछ गोलों में अरबी में अल्लाह खुदा है। इस मूल भवन का केन्द्रीय कक्ष वर्गकार है। जिसकी प्रत्येक भुजा 35 फुट लम्बी है।आन्तरिक वर्ग की प्रत्येक भुजा में तीन दरवाजे तथा मध्य वर्ग भाग की प्रत्येक भुजा में पाँच पाँच दरवाजे व सबसे बाहरी वर्ग की प्रत्येक भुजा पर सात सात दरवाजे बने है। इस प्रकार से मूलभवन में कुल 60 दरवाजे है। इस मूल भवन के केन्द्रीय वर्ग में उच्चकोटि का चूने का प्लास्टर है जिस पर ज्यामितीय डिजाईने उकेरी गई है। अन्दर के प्रत्येक आले एवं दरवाजे पर भी अलंकरण है। इस भवन को अन्दर से देखने पर स्पष्ट होता है कि इसका आधार तल वर्गाकार तथा द्वितीय तल अष्टभुजी है और इस द्वितीय अष्टभुजी तल के ऊपरी भाग पर भवन का तृतीय तल गोल गुम्बदकार रुप में स्थित था जिसके अवशेष आज भी देखे जा सकते है। इसके मध्य में बड़ा चौकोर हालनुमा गुम्बद है जिसके चारों ओर छोटे गुम्बद और मेहराबी दरवाजे बने है। बाहर चारोंओर सहन के बाद बाऊंड्री है। इस बाऊन्डी में चारों तरफ गुंबद नुमा मेहराबी दरवाजे बने हैं। मध्य का गुम्बद टूटा हुआ है। इसकी मीनारे बहुत छोटी है।यह चौरासी गुंबद भवन बाहर से 125 फुट के वर्ग में बना है जिसकी ऊँचाई लगभग 80 फुट है। सम्पूर्ण भवन शतरंज के बोर्ड की भाँति आठ मेहराब के स्तम्भों एवं सात रेखाओं द्वारा खुली जगह में विभक्त है। इस प्रकार से 64 मेहराब के स्तम्भ आपस में दुगने 49 मेहराबों से 49 कयवों युक्त जगहों से जुड़े है जिसके ऊपर समतल छत है। इस भवन के मेहराब के स्तम्भ 6 फुट 2 इंच से लेकर 8 फुट 8 इंच तक वर्ग के आकार में तथा 6-5 फुट से 9-5 फुट तक फैलाव लिए हैं।हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—- श्री दरवाजा कालपी – श्री दरवाजे का इतिहास भारत के उत्तर प्रदेश राज्य केजालौन जिले में कालपी एक ऐतिहासिक नगर है, कालपी स्थित बड़े बाजार की पूर्वी सीमा रंग महल कहा स्थित है – बीरबल का रंगमहल उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले के कालपी नगर के मिर्जामण्डी स्थित मुहल्ले में यह रंग महल बना हुआ है। जो गोपालपुरा का किला जालौन – गोपालपुरा का इतिहास गोपालपुरा जागीर की अतुलनीय पुरातात्विक धरोहर गोपालपुरा का किला अपने तमाम गौरवमयी अतीत को अपने आंचल में संजोये, वर्तमान जालौन जनपद रामपुरा का किला और रामपुरा का इतिहास जालौन जिला मुख्यालय से रामपुरा का किला 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 46 गांवों की जागीर का मुख्य जगम्मनपुर का किला – जगम्मनपुर का इतिहास उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले में यमुना के दक्षिणी किनारे से लगभग 4 किलोमीटर दूर बसे जगम्मनपुर ग्राम में यह तालबहेट का किला किसने बनवाया – तालबहेट फोर्ट हिस्ट्री इन हिन्दी तालबहेट का किला ललितपुर जनपद मे है। यह स्थान झाँसी - सागर मार्ग पर स्थित है तथा झांसी से 34 मील कुलपहाड़ का किला – कुलपहाड़ का इतिहास इन हिन्दी कुलपहाड़ सेनापति महल कुलपहाड़ भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के महोबा ज़िले में स्थित एक शहर है। यह बुंदेलखंड क्षेत्र का एक ऐतिहासिक पथरीगढ़ का किला किसने बनवाया – पाथर कछार का किला का इतिहास इन हिन्दी पथरीगढ़ का किला चन्देलकालीन दुर्ग है यह दुर्ग फतहगंज से कुछ दूरी पर सतना जनपद में स्थित है इस दुर्ग के धमौनी का किला किसने बनवाया – धमौनी का युद्ध कब हुआ और उसका इतिहास विशाल धमौनी का किला मध्य प्रदेश के सागर जिले में स्थित है। यह 52 गढ़ों में से 29वां था। इस क्षेत्र बिजावर का किला किसने बनवाया – बिजावर का इतिहास इन हिन्दी बिजावर भारत के मध्यप्रदेश राज्य केछतरपुर जिले में स्थित एक गांव है। यह गांव एक ऐतिहासिक गांव है। बिजावर का बटियागढ़ का किला किसने बनवाया – बटियागढ़ का इतिहास इन हिन्दी बटियागढ़ का किला तुर्कों के युग में महत्वपूर्ण स्थान रखता था। यह किला छतरपुर से दमोह और जबलपुर जाने वाले मार्ग राजनगर का किला किसने बनवाया – राजनगर मध्यप्रदेश का इतिहास इन हिन्दी राजनगर मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में खुजराहों के विश्व धरोहर स्थल से केवल 3 किमी उत्तर में एक छोटा सा पन्ना का इतिहास – पन्ना का किला – पन्ना के दर्शनीय स्थलों की जानकारी हिन्दी में पन्ना का किला भी भारतीय मध्यकालीन किलों की श्रेणी में आता है। महाराजा छत्रसाल ने विक्रमी संवत् 1738 में पन्ना सिंगौरगढ़ का किला किसने बनवाया – सिंगौरगढ़ का इतिहास इन हिन्दी मध्य भारत में मध्य प्रदेश राज्य के दमोह जिले में सिंगौरगढ़ का किला स्थित हैं, यह किला गढ़ा साम्राज्य का छतरपुर का किला हिस्ट्री इन हिन्दी – छतरपुर का इतिहास की जानकारी हिन्दी में छतरपुर का किला मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में अठारहवीं शताब्दी का किला है। यह किला पहाड़ी की चोटी पर चंदेरी का किला किसने बनवाया – चंदेरी का इतिहास इन हिन्दी व दर्शनीय स्थल भारत के मध्य प्रदेश राज्य के अशोकनगर जिले के चंदेरी में स्थित चंदेरी का किला शिवपुरी से 127 किमी और ललितपुर ग्वालियर का किला हिस्ट्री इन हिन्दी – ग्वालियर का इतिहास व दर्शनीय स्थल ग्वालियर का किला उत्तर प्रदेश के ग्वालियर में स्थित है। इस किले का अस्तित्व गुप्त साम्राज्य में भी था। दुर्ग बड़ौनी का किला किसने बनवाया – बड़ौनी का इतिहास व दर्शनीय स्थल बड़ौनी का किला,यह स्थान छोटी बड़ौनी के नाम जाना जाता है जोदतिया से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर है। दतिया का इतिहास – दतिया महल या दतिया का किला किसने बनवाया था दतिया जनपद मध्य प्रदेश का एक सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक जिला है इसकी सीमाए उत्तर प्रदेश के झांसी जनपद से मिलती है। यहां कालपी का इतिहास – कालपी का किला – चौरासी खंभा हिस्ट्री इन हिंदी कालपी का किला ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अति प्राचीन स्थल है। यह झाँसी कानपुर मार्ग पर स्थित है उरई उरई का किला किसने बनवाया – माहिल तालाब का इतिहास इन हिन्दी उत्तर प्रदेश के जालौन जनपद मे स्थित उरई नगर अति प्राचीन, धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व का स्थल है। यह झाँसी कानपुर एरच का किला किसने बनवाया था – एरच के किले का इतिहास हिन्दी में उत्तर प्रदेश के झांसी जनपद में एरच एक छोटा सा कस्बा है। जो बेतवा नदी के तट पर बसा है, या चिरगांव का किला किसने बनवाया – चिरगांव किले का इतिहास का इतिहास चिरगाँव झाँसी जनपद का एक छोटा से कस्बा है। यह झाँसी से 48 मील दूर तथा मोड से 44 मील गढ़कुंडार का किला का इतिहास – गढ़कुंडार का किला किसने बनवाया गढ़कुण्डार का किला मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ जिले में गढ़कुंडार नामक एक छोटे से गांव मे स्थित है। गढ़कुंडार का किला बीच बरूआ सागर का किला – बरूआसागर झील का निर्माण किसने और कब करवाया बरूआ सागर झाँसी जनपद का एक छोटा से कस्बा है। यह मानिकपुरझांसी मार्ग पर है। तथा दक्षिण पूर्व दिशा पर मनियागढ़ का किला – मनियागढ़ का किला किसने बनवाया था तथा कहाँ है मनियागढ़ का किला मध्यप्रदेश के छतरपुर जनपद मे स्थित है। सामरिक दृष्टि से इस दुर्ग का विशेष महत्व है। सुप्रसिद्ध ग्रन्थ मंगलगढ़ का किला किसने बनवाया था – मंगलगढ़ का इतिहास हिन्दी में मंगलगढ़ का किला चरखारी के एक पहाड़ी पर बना हुआ है। तथा इसके के आसपास अनेक ऐतिहासिक इमारते है। यहहमीरपुर जैतपुर का किला या बेलाताल का किला या बेलासागर झील हिस्ट्री इन हिन्दी, जैतपुर का किला उत्तर प्रदेश के महोबा हरपालपुर मार्ग पर कुलपहाड से 11 किलोमीटर दूर तथा महोबा से 32 किलोमीटर दूर सिरसागढ़ का किला – बहादुर मलखान सिंह का किला व इतिहास हिन्दी में सिरसागढ़ का किला कहाँ है? सिरसागढ़ का किला महोबा राठ मार्ग पर उरई के पास स्थित है। तथा किसी युग में महोबा का किला – महोबा दुर्ग का इतिहास – आल्हा उदल का महल महोबा का किलामहोबा जनपद में एक सुप्रसिद्ध दुर्ग है। यह दुर्ग चन्देल कालीन है इस दुर्ग में कई अभिलेख भी कल्याणगढ़ का किला मानिकपुर चित्रकूट उत्तर प्रदेश, कल्याणगढ़ दुर्ग का इतिहास कल्याणगढ़ का किला, बुंदेलखंड में अनगिनत ऐसे ऐतिहासिक स्थल है। जिन्हें सहेजकर उन्हें पर्यटन की मुख्य धारा से जोडा जा भूरागढ़ का किला – भूरागढ़ दुर्ग का इतिहास – भूरागढ़ जहां लगता है आशिकों का मेला भूरागढ़ का किला बांदा शहर के केन नदी के तट पर स्थित है। पहले यह किला महत्वपूर्ण प्रशासनिक स्थल था। वर्तमान रनगढ़ दुर्ग – रनगढ़ का किला या जल दुर्ग या जलीय दुर्ग के गुप्त मार्ग रनगढ़ दुर्ग ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रतीत होता है। यद्यपि किसी भी ऐतिहासिक ग्रन्थ में इस दुर्ग खत्री पहाड़ विंध्यवासिनी देवी मंदिर तथा शेरपुर सेवड़ा दुर्ग व इतिहास उत्तर प्रदेश राज्य के बांदा जिले में शेरपुर सेवड़ा नामक एक गांव है। यह गांव खत्री पहाड़ के नाम से विख्यात मड़फा दुर्ग के रहस्य – जहां तानसेन और बीरबल ने निवास किया था मड़फा दुर्ग भी एक चन्देल कालीन किला है यह दुर्ग चित्रकूट के समीप चित्रकूट से 30 किलोमीटर की दूरी पर रसिन का किला प्राकृतिक सुंदरता के बीच बिखरे इतिहास के अनमोल मोती रसिन का किला उत्तर प्रदेश के बांदा जिले मे अतर्रा तहसील के रसिन गांव में स्थित है। यह जिला मुख्यालय बांदा अजयगढ़ का किला किसने बनवाया था व उसका इतिहास अजयगढ़ की घाटी का प्राकृतिक सौंदर्य अजयगढ़ का किला महोबा के दक्षिण पूर्व में कालिंजर के दक्षिण पश्चिम में और खुजराहों के उत्तर पूर्व में मध्यप्रदेश कालिंजर का किला – कालिंजर का युद्ध – कालिंजर का इतिहास इन हिन्दी कालिंजर का किला या कालिंजर दुर्ग कहा स्थित है?:--- यह दुर्ग बांदा जिला उत्तर प्रदेश मुख्यालय से 55 किलोमीटर दूर बांदा-सतना ओरछा का किला – ओरछा दर्शनीय स्थल – ओरछा के टॉप 10 पर्यटन स्थल शक्तिशाली बुंदेला राजपूत राजाओं की राजधानी ओरछा शहर के हर हिस्से में लगभग इतिहास का जादू फैला हुआ है। ओरछा भारत के पर्यटन स्थल उत्तर प्रदेश पर्यटनऐतिहासिक धरोहरेंबुंदेलखंड के किले