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चुनार शरीफ दरगाह

चुनार शरीफ का उर्स दरगाह शाह कासिम सुलेमानी

मिर्जापुर कंतित शरीफ का उर्स और दरगाह शरीफ का उर्स हिन्दुस्तान भर मे प्रसिद्ध है। दरगाह शरीफ चुनार के किले में स्थित है। इसलिए यहां के उर्स को चुनार का उर्स कहा जाता है। और दरगाह को चुनार शरीफ दरगाह के नाम से जाना जाता है। यहां देश भर के लोग अपनी मनोकामना-पूर्ति तथा भक्ति-भाव से आते है। दरगाह शरीफ का मेला चैत्र मास में हर गुरुवार को पांच बार लगता है। यह उर्स ईद के चांद पर तथा एक माह बाद बडे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। रजब के महीने मे तीन दिन लगातार सादा कुरान का पाठ होता है। धार्मिक उसूल पर दार्शनिक बाते विशिष्ट विद्धानों मौलवियो द्वारा की जाती है। इस समारोह में मजहबी कट्टरता पर बल न देकर कुरान के दार्शनिक पदो पर चर्चाएं होती है। जुमरात, नवचदी जुमरात के दिन हजारों भक्त यहां एकत्र होते हैं, दर्शन-पूजन होता है। चादरें चढाई जाती हैं, प्रसाद वितरित होता है।

चुनार का उर्स दरगाह शाह कासिम सुलेमानी

यह उर्स बाबा शाह कासिम सुलेमानी के नाम से भी जाना जाता है और मजार आला से सम्बोधित किया जाता है। इनके लडके और पोतो का नाम शाह वासिल शाह मुहम्मद वासिल तथा अब्दुल करीम था। वे भी संत थे। दरगाह शरीफ की इमारत चार सौ वर्ष पूर्व की है, भव्य और कलात्मक है। पूरी इमारत पत्थर की है। उस पर जो नक्काशी की गयी है, वह अद्भुत है। चुनार का गुलाबी रंग का पत्थर वैसे भी दुनिया भर मे मशहूर है। यहां का पुरातत्व, धरोहरों तथा स्थापत्यों का कोई मुकाबला नही है। उसी पत्थर से यह इमारत बनी है जो पचासों वर्षों मे तैयार हुई होगी तथा अथाह धन लगाया गया होगा। यह धन राजघरानो से तथा भक्‍तो की ओर से आया होगा।

चुनार शरीफ दरगाह
चुनार शरीफ दरगाह

चुनार के बाबा कासिम के बारे में बताया जाता है कि जहांगीर ने गंगा के रास्ते लाहौर से नजरबंद करके उन्हे यहां भेजा था। यहां डाक बगले मे उन्हे कैद किया गया था। बताया जाता है कि उनके हाथ में हथकडी और पावो में जंजीर बधी थी, किंतु जब उनके नमाज अदा करने का समय होता तो वह अपने आप खुल जाती, दरवाजा भी खुल जाता एक बार उन्होने एक तीर किले के डाक बगले के ऊपर से दक्षिण की ओर छोडा जो आगे जाकर दरगाह के पास गिरने लगा तो उन्होने कहा टूक और अर्थात्‌ थोडा और आगे जाकर गिरो, तो वह आगे जाकर मजार पर गिरा, जिसका नाम आज भी टेकउर पडा है। इसी ‘टेकउर’ में मेला लगता है। इस मजार की इमारत मे एक पगडी रखी हुई है जिसके बारे मे चार सौ वर्ष पूर्व बगदाद के एक पीर ने कहा था कि यह पगडी शेख अब्दुल कादिर जिलानी की है।

अन्य उर्स :-

चुनार मे और भी कई जगहों पर उर्स लगता है जैसे (॥) किले के गेट पर अलग शरीफ का उर्स (2) किले की चढाई पर दीवार के पास मामा-भैने का उर्स (3) गजनवी शरीफ का उर्स (4) मुहम्मद शाह की मजार का उर्स (5) लालू शरीफ 0) घोडा शरीफ (8) गदाशाह (9) उष्माशाह आदि।

नगर-निवासी अब्दुल रशीद से हुई वार्ता के अनुसार राजर्षि भर्तृहरि के समय से ही यहां सौत-महात्मा आते रहे। महबूब वियावली इमिलिया चट्टी के पास पटिहरा-गांव मे रहते थे, वे भी संत थे, वहा भी उर्स लगता है। दरगाह शाह बाबा कासिम के एक लडके पीर बाबा है। तात्पर्य यह कि उनके लडके संत थे। वह परंपरा आज भी चली आ रही है।

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Naeem Ahmad

CEO & founder alvi travels agency tour organiser planners and consultant and Indian Hindi blogger

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