चीरोबा त्योहारचीरोबा (चैराओबा) त्योहार कैसे मनाते हैंPost author:Naeem AhmadPost published:June 19, 2023Post category:भारत के प्रमुख त्यौहारPost comments:0 Comments मणिपुर के सबसे प्रसिद्ध त्योहारों में से एक, चीराओबा या चीरोबा साजिबू महीने (मार्च-अप्रैल) के पहले दिन मनाया जाता है। यह फेस्टिवल चंद्र नव वर्ष के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इसे मणिपुर में बसंत महोत्सव के रूप में भी जाना जाता है। इस त्योहार के दौरान, लोग पारंपरिक पोशाक पहनते हैं, दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलते हैं, बधाई और उपहारों का आदान-प्रदान करते हैं और स्थानीय व्यंजनों को पकाते हैं। मणिपुर के चीरोबा उत्सव के दौरान क्षेत्रीय देवी सनमही की भी पूजा की जाती है।लोग इस त्योहार के दौरान इम्फाल में स्थित चैराओचिंग पहाड़ी की चोटी पर चढ़ते हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि इस पहाड़ी पर चढ़ना मानव सभ्यता के उदय का प्रतीक है।Contents1 चीरोबा त्योहार कैसे मनाया जाता है2 हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—3 चीरोबा त्योहार कैसे मनाया जाता हैकहते हैं सभी दिशाओ में देवी-देवताओं एवं प्रेतात्माओं के लिए भोजन रख देते हैं तथा उनसे राजा व प्रजा के मंगल का वरदान माँगते हैं। इसको खरोयखडबा कहते हैं। वर्ष के अतिम दिन की रात को राज्य वैद्य एवं उसके लोग हैवोक्चक पर्वत पर जाकर देवताओं को तृण अर्पित करतें हैं। ओर उनसे राजा-रानी व सामंतों आदि की भलाई की प्रार्थना करते हैं। मणिपुरी के प्राचीन देवता लाइनिड थौ पाखंगम्बा को भी नए वस्त्र भेंट करने की परम्परा भी है। लाइनिड थौ नौसबा युमजाओ लाइरेम्मा देवी, लाइनिह थौ सवामही देवता और सभी देवी देवताओ को नए वस्त्र एव छत्र चढाए जाते हैं। जल में डमु नामक मछली छोडकर महाराजा के मंगल की कामना भी की जाती है। Trendingसंत तुकाराम का जीवन परिचय और जन्मचीरोबा त्योहारचीरोबा के छः दिन पूर्व से घरों की सफ़ाई की जाती है, नए वस्त्र बर्तन आदि भी क्रय किए जाते हैं। अपने-अपने मदिरों मे चीरोबा के दिन प्रातः काल पूजा पाठ होता है तथा उहें नई सब्जियाँ अर्पित की जाती है। नव वर्ष के लिए वर मांगे जाते हैं। परिवार के गुरूजनों को प्रणाम किया जाता है। स्वर्गीय देवी देवताओं को भी प्रणाम किया जाता है तथा नववर्ष हेतु मगल वरदान माँगे जाते हैं। लोहे से बने चूल्हे (योत्सवी) से कालिख लेकर उसको हल्दी व चावल के साथ मिलाकर घर के चारो ओर फेंक कर प्रेतात्माओं को भगाया जाता हैं। भोजन बनाकर लाइचाकथाबा अर्थात देवताओं को भोजन देने के लिए घर के मुख्य द्वार के दाहिनी ओर पका हुआ भोजन रख दिया जाता है। प्रार्थनाएं की जाती हैं तथा आशीर्वाद माँगा जाता है। तब सामूहिक भोज होता। भोज के उपरान्त गुरुजनो को प्रणाम् किया जाता है तथा उन्हे वस्त्र एवं नकद रुपये भेंट किए जाते हैं।चीरोबा के एक दिन पूर्व बाजार से सब्जियां खरीदी जाती हैं अतः उस दिन के बाजार को चेराओ केयेल अर्थात् चैराओबा का बाजार कहा जाता है। संध्या समय भोजन करने के बाद चैराओचींग नामक पहाड़ पर सभी लोग चढते हैं। चैराओचीग इम्फाल में है, अत दूसरी बस्तियों के लोग अपने अपने पास के पर्वतो पर चढते हैं और वहां शिवजी दुर्गा, गणेश आदि के साथ अपने आदिम स्थानीय देवताओं की पूजा करते हैं। पर्वत से उतर कर आने के पश्चात रात में थाबल चोडवा अर्थात् चाँदनी रात का नृत्य किया जाता है। जिसमें प्रत्येक स्त्री-पुरुष भाग लेते हैं।इस प्रकार नव वर्ष का बहुत ही घूमधाम से स्वागत किया जाता है। चीरोबा के बाद पाँच दिन तक विभिन खेल जैसे काड-सा नवा युवी लाकपी सगोल कांड जे आदि स्थानीय खेल खले जाते थे जिसे सिलहेनबा कहा जाता था किंतु अब सिल हेनबा केवल एक दिन के लिए होता है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:— कुकी जनजाति कहां पाई जाती है और जनजीवन मणिपुर के नृत्य - 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