चांद की खोज और उसके अनसुलझे रहस्यों की जानकारी Naeem Ahmad, March 4, 2022March 12, 2022 जुलाई, सन् 1969 को दो अमेरिकी अंतरिक्ष यात्रियों नील आर्मस्ट्रांग और एडविन आल्डिन ने अपोलो-11 से निकलकर चांद पर मानव द्वारा रखा गया पहला कदम रखा। यह एक ऐसी क्रांतिकारी घटना थी, जिसने अंतरिक्ष तथा चंद्रमा संबंधी खोज जगत में तहलका मचा दिया। ये दोनो अंतरिक्ष यात्री चांद की धरती के नमूने लेकर अपने यान में लौट आए। लेकिन वे अपने पीछे कुछ ऐसे यंत्र व उपकरण छोड़ आए थे, जो उनके चले जाने के बाद भी चंद्रमा से जाच – पडताल करके अपने प्रेक्षण (Observation) पृथ्वी की प्रयोगशालाओं को भेजते रहे अपोलो-11, ईगल-2 नामक अंतरिक्ष यान के साथ जुडा हुआ था। जितनी देर अपोलो-11 चांद की धरती पर रहा, उतनी देर ईगल-2 चांद के चक्कर लगाता रहा। ईगल-2 में तीसरे अंतरिक्ष यात्री माइकिल कोलिस अपने दोनों साथियो का इंतजार कर रहे थे। चांद की खोज इस सफल अभियान के पश्चात् अपोलो यानो की श्रृंखला का मानवों को लेकर चांद पर जाने का क्रम शुरू हो गया और पृथ्वी के इस उपग्रह के बारे में अत्यंत लाभदायक और अद्भुत जानकारी प्राप्त हुई। इस जानकारी ने दुनिया के लोगों के दिमाग़ मे चांद के बारे में जो तमाम भ्रम थे, उन्हें दूर कर दिया। खगोल वैज्ञानिक अब भी इस बात का अध्ययन कर रहे हैं कि हमारी पृथ्वी तथा अन्य खगोलीय पिंडों का जन्म कैसे हुआ। उन्होंने देखा है कि चंद्रमा की आयु पृथ्वी के बराबर है अर्थात् 4 अरब 60 करोड़ वर्ष लेकिन चंद्रमा पर पृथ्वी की तरह घटनाएं नहीं घटीं। वहां सक्रिय ज्वालामुखी व अन्य गतिविधियां लगभग तीन अरब वर्ष पूर्व समाप्त हो गई। इस प्रकार चंद्रमा पर किसी पिंड के प्रारंभिक इतिहास के चिह्न मिल जाते हैं। ये चिह्न ज्यो के त्यों बने हुए हैं और किसी भी भूगर्भ प्रक्रिया के कारण समाप्त नहीं हुए हैं। चांद की खोज अंतरिक्षयात्रा के कार्यक्रम में चांद की खोज प्रमुख थी। यही एक ऐसा आकाशीय पिंड था, जहां आदमी उतरा और उसने पहली बार इसको देखा। अन्य ग्रहों पर भी यान उतारे गए हैं। ग्रहों की खोज जारी है साथ ही चंद्रमा की खोज के अब भी कई कार्यक्रम जारी है। इसकी खोज के कार्यक्रम सोवियत संघ तथा अमेरिका के साथ अन्य कई देशों ने बनाये। अमेरिका ने अपने अंतरिक्ष यात्री भेजे, जब कि सोवियत रूस ने चद्रयान भेजे। देखा जाए वो चन्द्र-अनुसंधान कार्यक्रम को अनेक वर्ष हो गए हैं। कुछ वर्षों पूर्व चन्द्रमा पर अपोलो कार्यक्रम के अंतर्गत विभिन्न अवधियों में यात्री उतरे। चंद्रमा की खोज के लिए सर्वप्रथम 2 जनवरी, सन् 1959 को सोवियत रूस ने संसार का प्रथम चन्द्रयान लूना-1 छोडा था। इसमें शक नहीं कि अंतरिक्ष युग के सूत्रपात से चन्द्रमा के अध्ययन मे बहुत दिलचस्पी बढी। अपोलो यात्री चन्द्रमा की चट्टाने लाए और उनको विश्व के वैज्ञानिकों ने परखा। लूना श्रृंखला के आरंभ होने के बाद सबसे पहले अमेरिका ने 10 अगस्त, सन् 1966 को प्रथम चन्द्र-कक्ष यान (लूनर आर्बिटर) भेजा। तब तक सोवियत रूस ने चन्द्रमा के बारे में अनेक तथ्य इकट्ठे कर लिए थे, जैसे इस पर उल्का-पात, इसका धरातल और विकिरण तथा चन्द्रमा पर आदमी को उतारने के लिए महत्वपूर्ण बाते। लूना-1 में अनेक वैज्ञानिक उपकरण थे। यह चन्द्रमा के पास से गुजरने के बाद सूर्य का उपग्रह बन गया। इसने बाह्य अंतरिक्ष के बारे में भी सूचनाएं भेजी। लूना-2 सितंबर सन् 1959 में चन्द्रमा के धरातल पर उतरा था। इसी बर्ष अक्तूबर में लूना-3 ने चन्द्रमा के पृष्ठ भागों के चित्र भेजे। यह भाग पृथ्वी से सदा छिपा रहता है। सोवियत संघ ने चन्द्रमा पर आदमी भेजने की आवश्यकता नहीं समझी। उसने चन्द्र-यान उतार कर यत्रों से खोज करना ज्यादा उचित समझा। सितम्बर, सन् 1970 में लूना-6 की उडान से यह सिद्ध किया गया कि एक यांत्रिक आदमी (रोबट) असली आदमी के बराबर काम कर सकता है। इसमें खर्च भी कम आता है और आदमी को खतरे में भी नहीं डाला जाता। यह जरूर है कि यांत्रिक मानव जहां उतरेगा, उसी जगह की खोज कर सकेगा। आदमी दूर-दूर तक देख सकता है और जा भी सकता है। लूना-17 से लूनोखोद-1 नामक, जो सोवियत चन्द्र-यान उतरा था, उसने चन्द्रमा की धरती छानी। उसने चांद की चट्टानों का रासायनिक विश्लेषण किया। इसी ने एक भयंकर सौर-ज्वाला को दर्ज किया। यदि उस समय कोई यात्री चांद पर होता तो वह मर गया होता। चन्द्रमा के अनेक वर्षों के अनुसंधान ने इसके बारे में अनेक पुरानी मान्यताओं को बदल दिया है। यह एकदम निर्जन स्थान है। न जल और न हवा। रूसी वैज्ञानिकों का कहना है कि यह आदमी के रहने योग्य नहीं है। यहां एल्यूमीनियम, टिटेनियम तथा लोहा है। लेकिन आदमी इन्हें प्राप्त करने के लिए आकृष्ट नहीं हुआ। कुछ वैज्ञानिकों का अब भी विचार है कि चांद को अन्य तत्वों के साथ मिश्रित आक्सीजन प्राप्त करके आदमी के रहने योग्य बनाया जा सकता है। चंद्रमा की चट्टानों में क्या मिला? रूसी वैज्ञानिकों ने हाल में चांद की चट्टानों पर खोज के बाद कुछ दिलचस्प आंकड़े प्रकाशित किए। इन चट्टानों में पर्वतीय चट्टानों के छोटे टुकड़े तथा खनिज थे। इन चट्टानों की पृथ्वी की चट्टानों से तुलना की गई, देखा गया कि कुछ चट्टाने पृथ्वी-जैसी थी, लेकिन इनमें पानी नही था और पोटेशियम व सोडियम की मात्रा भी बहुत कम थी। सोवियत संघ ने कुछ वर्ष पहले खोज की थी कि चंद्रमा के धरातल में टिटेनियम, लोहा तथा सिलिकॉन के कण पृथ्वी के वायुमंडल में आक्सीकृत नही होते। इसका अर्थ है-उन पर जंग नही लग सकती। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े [post_grid id=’8586′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... विश्व की महत्वपूर्ण खोजें प्रमुख खोजें