चंद्रगुप्त मौर्य और सिकंदर का युद्ध – सेल्यूकस और चंद्रगुप्त का युद्ध Naeem Ahmad, May 10, 2020April 5, 2024 चंद्रगुप्त मौर्य और सिकंदर का युद्ध ईसा से 303 वर्ष पूर्व हुआ था। दरासल यह युद्ध सिकंदर की मृत्यु के बाद उसके सेनापति सेल्यूकस और चंद्रगुप्त के बीच हुआ था। इसलिए इसको सही तौर पर सेल्यूकस और चंद्रगुप्त मौर्य का युद्ध के नाम से जाना जाना चाहिए। चूंकि सेल्यूकस सिकंदर का सेनापति था और उसकी मृत्यु के बाद उसके सम्राज्य के कुछ हिस्से का उत्तराधिकारी हुआ था इसलिए इतिहास में इसे चंद्रगुप्त मौर्य और सिकंदर का युद्ध के नाम से भी प्रसिद्धि प्राप्त है। अपने इस लेख में आज से 2300 वर्ष पूर्व हुए इस भीषण युद्ध के बारे में विस्तार से जानेंगे। सबसे पहले इस युद्ध के प्रमुख किरदारों के बारे में जानेगें।चंद्रगुप्त मौर्यचंद्रगुप्त मौर्य कौन था? चंद्रगुप्त मौर्य कहा का शासक था?मौर्य नामक क्षत्रिय वंश में चंद्रगुप्त ने जन्म लिया था। और इसलिए वह चंद्रगुप्त मौर्य के नाम के विख्यात हुआ। ईसा से छः शताब्दी पू्र्व चंद्रगुप्त मौर्य के पूर्वज पिपलोन नामक एक छोटी सी रियासत में राज्य करते थे। उन दिनों में मगध का राज्य शक्तिशाली हो रहा था। उसने अनेक छोटे छोटे राज्यों पर आक्रमण करके उनको अपने राज्य में मिला लिया था। उसके द्वारा जो राज्य पराजित हुए थे उनमें पिपलोन राज्य भी था। अपना राज्य खोकर चंद्रगुप्त मौर्य के पूर्वज परतंत्र हो गये थे। उनके जीवन में इस परतंत्रता की पीड़ा थी। चंद्रगुप्त मौर्य अपनी छोटी आयु में ही ही इस बात को सुना करता था कि हमारे राज्य को जीतकर मगध के राजा ने अपने साम्राज्य में मिला लिया है। नंद साम्राज्य के प्रति चंद्रगुप्त के ह्रदय में पहले से ही द्वेष भरा हुआ था और इसी कारण वह उस साम्राज्य का शत्रु हो रहा था। मगध में नंदवंश राजाओं का शासन था, इसलिए वह राज्य नंद साम्राज्य और मगध राज्य दोनों ही नामों से प्रसिद्ध था।बीजापुर का युद्ध जयसिंह और आदिलशाह के मध्यउन दिनों मे राजकुमारों को शिक्षा देने के लिए तक्षशिला में एक विद्यालय था, उसमें सभी प्रकार की ऊंची शिक्षा दी जाती थी। चंद्रगुप्त भी उस विद्यालय में पढनें के लिए तक्षशिला गया था और वही पर रहकर वह अध्ययन कर रहा था। भारत में आक्रमण करने के लिए जब सिकंदर तक्षशिला में पहुंचा था, उस समय चंद्रगुप्त मौर्य वहां के विद्यालय में पढ़ रहा था। उस विद्यालय में चाणक्य नामक एक अध्यापक शिक्षा देने का काम करता था, उसके साथ चंद्रगुप्त की मित्रता थी।चाणक्य राजनीति का पंडित था। सिकंदर के संबंध में बहुत सी बातों की जानकारी प्राप्त करने के बाद उसने चंद्रगुप्त को परामर्श दिया कि अगर वह सिकंदर से मिले और नंद सम्राज्य के संबंध में वह उसको प्रोत्साहन दे तो बहुत कुछ लाभ उठा सकता है। चंद्रगुप्त मगध साम्राज्य के साथ शत्रुता रखता था और अपने पूर्वजों का उससे वह बदला लेना चाहता था।पुरंदर का युद्ध और पुरंदर की संधि कब और किसके बीच हुईचाणक्य के साथ परामर्श करके तक्षशिला में चंद्रगुप्त सिकंदर के पास गया और मगध साम्राज्य के संबंध में उसने बहुत सी बातें सिकंदर से कही उसने सिकंदर को बताया कि मगध का राजा महापद्मनंद जाति का नाई है। और उस देश की रानी को अपने साथ मिलाकर उसने राजा को मार डाला है। और स्वयं राजसिंहासन पर बैठ गया है। महापद्मनंद के इस अपराध के कारण राज्य की प्रजा उसका साथ न देगी और इस तरीके से इस राज्य को अपने अधिकार में कर लेना आपके लिए बड़ा सरल होगा। लेकिन सिकंदर ने इन बातों को पसंद नहीं किया। इस दशा में चंद्रगुप्त को कोई सफलता नहीं मिली और वह सिकंदर के पास से चुपचाप लौट आया। चंद्रगुप्त मौर्य और सिकंदर का युद्धचंद्रगुप्त अपनी कोशिशों में निराश नहीं हुआ इस समय उसकी आयु लगभग पच्चीस वर्ष की थी। वह किसी भी प्रकार मगध के राजा से अपना अपने पूर्वजों का बदला लेना चाहता था। और चाणक्य उसके इस उद्देश्य में सहायक और मित्र था। व्यास नदी के पास से सिकंदर अपनी सेना के साथ अपने देश की ओर वापस लौट गया था और काबुल पहुंचने पर उसकी मृत्यु हो गई थी। यह समाचार कुछ विलंब के बाद भारत में पहुंचा। सिकंदर ने भारतीय राज्यों को जीतकर कुछ राज्य पोरस के अधिकार में दे दिये थे। और अनेक राज्यों का प्रबंध करने के लिए उसने अपने सेनापति नियुक्त कर दिये थे। शासक की हैसियत में चंद्रगुप्त मौर्यचंद्रगुप्त शासक कैसे बना? चंद्रगुप्त मौर्य ने मगध को कैसे जीता?सिकंदर की मृत्यु का समाचार मिलने के बाद भारत में यूनानी सरदारों और सेनापतियों के विरुद्ध क्रांति की आवाजें उठने लगी। भारतीय प्रजा यूनानी शासन नहीं चाहती थी। चंद्रगुप्त एक उत्साही युवक था। उसने इस अवसर का लाभ उठाया। चाणक्य उसका सलाहकार था ही। चंद्रगुप्त ने यूनानी सेनापतियों के विरूद्ध भारतीय विद्रोहियों का साथ दिया और अपनी बुद्धिमत्ता के कारण वह विद्रोहियों का नेता हो गया। विदेशी शासन के विरुद्ध क्रांति करने में चंद्रगुप्त को सफलता मिली। कुछ साधारण और असाधारण संघर्षों के बाद विद्रोहियों ने यूनानी शासन को छिन्न भिन्न कर दिया और सिकंदर के सेनापति अपने प्राण बचाकर वहां से भाग गये। इस अवसर पर चंद्रगुप्त मौर्य के अधिकार में विद्रोहियों की एक अच्छी सेना हो गई थी। चाणक्य से इस समय चंद्रगुप्त को बड़ी सहायता मिली। उसने विद्रोहियों से मिलकर चंद्रगुप्त मौर्य को राजा घोषित किया और पंजाब से यूनान शासन मिटाकर चंद्रगुप्त शासन करने के लिए सिंहासन पर बैठा।राणा सांगा और बाबर का युद्ध – खानवा का युद्धचंद्रगुप्त मौर्य की इस सफलता का श्रेय चाणक्य को मिला और इस प्रकार के अधिकारों के साथ वह चंद्रगुप्त मौर्य का मंत्री बनाया गया। राजा होने के थोडे ही दिनों में चंद्रगुप्त मौर्य ने भारत की अनेक उत्तर और पश्चिमी रियासतें अपने अधिकार में कर ली। इस समय उसकी सैनिक शक्ति प्रबल हो गई थी। अवसर पाकर उसने मगध राज्य पर आक्रमण किया और उसके राजा महापद्मनंद को युद्ध में मारकर उसने उसके राज्य पर अपना अधिकार कर लिया। ईसा से 321 वर्ष पहले चंद्रगुप्त मौर्य मगध के सिंहासन पर बैठा और यहां से उसने मौर्य साम्राज्य का विस्तार किया। चंद्रगुप्त मौर्य स्वयं तो बुद्धिमान था ही और चाणक्य जैसे राजनीतिज्ञ का मंत्रीत्व उसे प्राप्त था। इसलिए अपने राज्य के विस्तार में उसे अद्भुत सफलता मिली। कुछ ही दिनों में उत्तर भारत के समस्त राज्य उसके अधिकार में आ गये। हिमालय से विन्ध्याचल तक और पंजाब सौराष्ट्र से लेकर बंगाल तक मौर्य साम्राज्य का विस्तार हो गया। सेल्यूकस का भारत की ओर अवागमनसेल्यूकस कौन था? सेल्यूकस भारत किस इरादे से आया था? सेल्यूकस कहा का शासक था? सेल्यूकस कहा का राजा था?अपने राज्य का विस्तार करके जिन दिनों में चंद्रगुप्त मौर्य उसको ओर मजबूत बना रहा था, ठीक उन्हीं दिनों में एशिया के मध्य भाग और पश्चिमी देशों में सेल्यूकस अपनी रण शक्ति को दृढ़ करने में लगा हुआ था। सेल्यूकस का पुरा नाम सेल्यूकस निकेटर था। सिकंदर की विश्व विजयी यात्रा में वह एक सेनापति की हैसियत में भारत आया था। और भारतीय राज्यों को जीत कर उसने यूनानी शासन कायम किया था।ईसा से 321 वर्ष पूर्व सिकंदर के मरने के बाद उसके सेनापतियों में उसके राज्य का विभाजन हुआ। उसमें सेल्यूकस को अपने हिस्से में सीरिया, एशिया माइनर और पूर्वीय प्रांत मिले। विरोधियों के साथ बहुत दिनों तक संघर्ष करने के बाद ईसा से 312 वर्ष पहले वह बेबीलोन का राजा हुआ यानि सेल्यूकस बेबीलोन का शासन था। इसके बाद सेल्यूकस ने उन देशों पर अधिकार करने का इरादा किया जिनको सिकंदर विजयी कर चुका था तथा उसी मृत्यु के बाद विद्रोहियों ने उसे अपने कब्जे में ले लिया था। उसने भारत को पराजित करने के लिए ईसा से 305 वर्ष पूर्व सिंध नदी को पार किया। चंद्रगुप्त मौर्य और सिकंदर का युद्ध – सेल्यूकस और चंद्रगुप्त मौर्य का युद्धचंद्रगुप्त मौर्य और सिकंदर का युद्ध? सेल्यूकस और चंद्रगुप्त मौर्य के युद्ध में किसकी जीत हुई? चंद्रगुप्त मौर्य और सेल्यूकस की संधि? चंद्रगुप्त मौर्य का विवाह? सेल्यूकस की पुत्री का नाम क्या था? सेल्यूकस ने अपनी पुत्री का विवाह चंद्रगुप्त मौर्य से क्यों किया?पंजाब में सिकंदर के सरदारों और सेनापतियों को पराजित करके उनके राज्यों पर चंद्रगुप्त मौर्य ने अपना अधिकार कर लिया था। इसलिए सेल्यूकस निकेटर सीधे मौर्य साम्राज्य पर आक्रमण करने के आगे बढ़ा। चंद्रगुप्त मौर्य को जब मालूम हुआ कि सेल्यूकस अपनी सेना के साथ युद्ध करने के लिए आया है। तो उसने तुरंत युद्ध की तैयारी की और अपने साम्राज्य के बाहर उसने एक विशाल सेना लेकर सेल्यूकस का मुकाबला किया। लड़ाई के मैदान में चंद्रगुप्त मौर्य की सेना के आते ही सेल्यूकस की सेना आगे बढ़ी और दोनों ओर से घमासान युद्ध आरंभ हो गया। कुछ घंटों के बाद ही युद्ध ने भीषण रूप धारण किया। सेल्यूकस ने भारतीय सैनिकों के संबंध में जो अनुमान किया था, वह अनुमान सेल्यूकस को धोखा देता हुआ दिखाई देने लगा। भारतीय सेना की मार के सामने सेल्यूकस nicator के सैनिकों के पैर उखड़ने लगे। सेल्यूकस के बहुत जोर मारने पर भी उसकी सेना युद्ध में डटती हुई मालूम न हुई, दूसरी तरफ भारतीय सेना बराबर आगे बढ़ती हुई आ रही थी। सेल्यूकस और उसकी सेना का साहस टूट गया। उसने पीछे हटकर अपने हथियार डाल दिये और संधि का झंडा ऊंचा किया।तिरला का युद्ध (1728) तिरला की लड़ाईसेल्यूकस nicator के आत्मसमर्पण की प्रार्थना पर चंद्रगुप्त मौर्य ने अपनी सेना को आगे बढ़ने से रोक दिया। अंत में सेल्यूकस ने चंद्रगुप्त मौर्य के पास जाकर संधि का प्रास्ताव किया। ईसा से 303 वर्ष पूर्व सेल्यूकस और चंद्रगुप्त मौर्य मे संधि हो गई, और संधि की शर्तों के अनुसार सेल्यूकस nicator ने अपने राज्य के चार प्रांत काबुल, हिरात, कंधार, और मकरान चंद्रगुप्त मौर्य को भेंट में दिये और चंद्रगुप्त मौर्य की तरफ से सेल्यूकस को पांच सौ हाथी दिये गये। इस संधि के बाद सेल्यूकस ने अपने संबंध को चिरस्थायी और मजबूत बनाने का इरादा किया। जिसके लिए सेल्यूकस nicator ने अपनी पुत्री हेलन का विवाह चंद्रगुप्त मौर्य के साथ कर दिया।हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:——–[post_grid id=”7736″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के प्रमुख युद्ध भारत की प्रमुख लड़ाईयांहिस्ट्री