गढ़कुंडार का किला का इतिहास – गढ़कुंडार का किला किसने बनवाया
Naeem Ahmad
गढ़कुण्डार का किला मध्यप्रदेश केटीकमगढ़ जिले में गढ़कुंडार नामक एक छोटे से गांव मे स्थित है। गढ़कुंडार का किला बीच जंगल में काले पत्थरों से निर्मित है। तथा किला एक पहाडी पर है यह किला बहुत सुदृढ़ है और एक चौकोर पहाड़ी पर स्थित है। किले के ऊपर से मैदानी भाग का दृश्य बहुत सुन्दर दिखलाई देता है। अक्सर इस किले में यात्रीगण और अधिकारी गण आते रहते है। इस दुर्ग में चढ़ने के लिये पहाडी मार्ग है उसके पश्चात यहाँ एक गोपनीय मार्ग है जिसका उपयोग तदयुगीन सैनिक शत्रुओं को धोखा देने के लिये किया करते थे। दुर्ग के नीचे अनेक गाँव है जहाँ के व्यक्ति खेती किसानी करते है। गढ़कुण्ढार के नीचे काले रंग की चट्टाने और पत्थर है और सूखे हुए पेड है इस दुर्ग में पैदल ही पहुँचा जा सकता है।
गढ़कुंडार का किला का इतिहास
नवीं शताब्दी में गढ़कुंडार का किला चन्देलों के अधीन था। पृथ्वीराज चौहान के आक्रमण के पश्चात यह दुर्ग उसके आधीन हो गया। बाद में दिल्ली के सुल्तानों के आधीन हो गया। लगभग 12वीं शताब्दी में यहाँ खूब सिंह खांंगार का अधिकार था। उस समय बुन्देलखण्ड जुझती देश के नाम से विख्यात था। बाद में यह दुर्ग बुन्देलो के अधिकार में आ गया खंगार जाति के लोग जंगली और लडाकू व्यक्ति थे। जिनके अभियान और आक्रमण भूमि और सम्पत्ति के लिये होते रहते थे। खूब सिंह ने अपने शासनकाल के दौरान दुर्ग को सुदृढ़ किया और चारो तरफ अपने राज्य को बढ़ाया। इस समय उसके जागीरदार आपस में लड़ते रहते थे जिसका लाभ उसे हुआ।
प्रलोभन के कारण खंगार लोग मंदाग हो गये जिसके कारण उनका पतन हुआ। हरमत सिंह खंगार की यह इच्छा थी कि वह अपने बेटे का विवाह राजपूत बून्देला सोहनपाल की पुत्री से करे, सोहनपाल ने यह बरदास्त नहीं किया कि खंगार उसके ऊपर अपना रोब जमाये कुछ समय बाद सोहनपाल और उसके सहयोगियो ने हुमत सिंह और नारदेव की हत्या कर दी। इस समय ये लोग विवाह के भोज में भोजन करके सो रहे थे। इसके पश्चात सोहनपाल शक्तिशाली शासक बन गये।
गढ़कुंडार का किला
चौदहवीं शताब्दी में इस दुर्ग में तुगलक वंशीय शासकों ने आक्रमण किया। अनेकों बार यह देखा गया है कि दिल्ली के सुल्तान हिन्दू शासकों को अपनी आँख का काँटा समझते थे। इसलिये वे हमेशा उन पर आक्रमण करते रहते थे। इसी समय किसी औरत को लेकर तुगलक वंश के शासकों का संघर्ष बुन्देलों से एक स्त्री को लेकर यहाँ हुआ। कहते है कि बरदायी सिंह खांगार के एक अति सुन्दर कन्या थी जिसका नाम केशर देवी था। मुस्लिम सुल्तान उससे शादी करना चाहता था। जब बरदायी सिंह खंगार ने अपनी कन्या का विवाह उससे करने से इनकार कर दिया उस समय सुल्तान ने यहाँ आक्रमण कर किया और यह दुर्ग तुर्कों के आध्यीन हो गया बरदायी सिंह खंगार इस युद्ध में पराजित हुआ। उस समय यहाँ की महिलाओं ने जौहर व्रत किया इस प्रकार खंगारों का साम्राज्य समाप्त हो गया। गढ़कुंडार किले के ऊपर अनेक धर्मिक स्थल और महलों के अवशेष उपलब्ध होते है। धीर-धीरे यह दुर्ग भी नष्ट होने लगा है।
धीरे-धीरे गढकुण्ढार की कहानी का अन्त हो गया अब अनेक शताब्दियाँ बीत चुकी हैं। तथा यहाँ के पत्थरों में सती स्तम्भ सूर्य और चन्द्रमा की प्रतिमाये उपलब्ध होती है। और टूटी हुई काँच की चूडिया मिलती है इतिहास इस बात का साक्षी है कि तुगलक वंश के शासको और बुन्देला शासको के बीच कभी भी ताल मेल नहीं रहा। यहाँ अनेक ऐसे स्तम्भ भी उपलब्ध हुए है जहाँ सुरक्षा के लिये तोपें रखी जाती थी तथा इसी के समीप एक चौकोर बडा कमरा उपलब्ध हुआ है जिसके चारो ओर मीनारे है। सम्भवतः यह दरबार कक्ष था। यहीं पर एक तीन मंजीली इमारत भी है कहा जाता है कि यही कही पर गढ़कुण्ढार का खजाना छुपा हुआ है। उसको खोजने के लिए यहाँ के अनेक लोग इस स्थल पर खोदा-खादी करते रहते है। इस स्थल पर अनेक सरोवर है और सुरक्षा चौकिया है। कुछ दूरी पर एक छतरी बनी हुई है। गढ़कुण्ढार में खिड़कियों के झरोखे खाली पडी हुई है। जिनसे कभी यहाँ के शासक झाँका करते थे। इस स्थान पर गणेश पार्वती और शिव की मूर्तियाँ उपलब्ध हुई । यहाँ निम्नलिखित स्थल दर्शनीय है।
1. दुर्ग अवशेष 2. कचेहरी था दरबार हाल 3. सती चौरा 4. बुन्देलों के आवासीय महल 5. प्रवेश द्वार