गौतमेश्वर महादेव मंदिर अरनोद राजस्थान – गौतमेश्वर मंदिर का इतिहास
Alvi
राजस्थान राज्य के दक्षिणी भूखंड में आरावली पर्वतमालाओं के बीच प्रतापगढ़ जिले की अरनोद तहसील से 2.5 किलोमीटर की दूरी पर प्रकृति की गोद में रमणीय स्थल पर गौतमेश्वर महादेव मंदिर स्थित है। इस मंदिर में मीणा जाति के इष्टदेव और शौर्य के प्रतीक गौतमेश्वर महादेव की प्रतिमा स्थापित है। इस गौतमेश्वर मंदिर में शिल्पकला का अद्भुत नमूना तो देखने को नहीं मिलता है, फिर भी सौंदर्य और प्राकृतिक छटा की दृष्टि से यह बहुत विख्यात है। वर्ष मे एक बार यहां गौतमेश्वर का मेला भी लगता है। जो काफी प्रसिद्ध है।
गौतमेश्वर धाम का इतिहास – हिस्ट्री ऑफ अरनोद गौतमेश्वर मंदिर
सूकडी नदी जिसे सब लोग पतित पावनी गंगा भी कहते है। के दाहिने किनारे की एक पहाडी पर परकोटे से घिरा यह मंदिर स्थित है। जिसे सर्व प्रथम एक गूजर ने अपूर्ण बनाकर छोड़ दिया था। उसके बाद मीणा जाति के लोगों ने गौतमेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण करवाया व मंदिर का प्रतिष्ठा महोत्सव भी सम्पन्न किया था। चारों ओर से विशाल परकोटे से घिरे इस गौतमेश्वर तीर्थ स्थल में विभिन्न देवताओं की प्रतिमाएं विद्यमान है। गौतमेश्वर के मुख्य मंदिर के श्वेत शिखरों की झांकी यात्रियों को दूर से ही दिखाई दे जाती है। इस गौतमेश्वर धाम का परकोटा दूर से एक छोटा सा किला प्रतीत होता है। मंदिर में साधु संतों व यात्रियों के बैठने को एक बडी गैलरी, भोजनशाला, और मोदीखाना है।
गौतमेश्वर महादेव धाम के सुंदर दृश्य
मंदिर का प्रवेशद्वार उत्तर दिशा में है, और अन्दर प्रवेश करते ही दाहिनी ओर श्री गौतमेश्वर महादेव का लिंगाकार है। उनके पीठ पीछे बाई ओर गजानंद व अहेलिया, तथा दाहिनी ओर अंजली, और सामने नंदेश्वर की प्रतिमाएं स्थापित है। मंदिर के बाहर पीछे दाहिनी तरफ गौतम ऋषि और बाई ओर अंबिकाली माता के छोटे छोटे मंदिर है। मुख्य मंदिर के सम्मुख हनुमानजी, गंगेश्वर, गजानंद, धर्मराज, शनेश्वर भगवान आदि की प्रतिमाएं विराजमान है।
गौतमेश्वर तीर्थ की प्राचीनता के प्रमाण तो अभी तक प्राप्त नहीं हो सके है। लेकिन लोगों का ऐसा अनुमान है कि यह मंदिर हजारों वर्ष पुराना है। वैसे श्री लल्लू भाई देसाई द्वारा लिखित “चौहान कुल कल्पद्रुम” के प्रथम भाग में विक्रमी सन् 1932 के पूर्व में भी यहां मंदिर मौजूद बताया है। गौतमेश्वर तीर्थ स्थान के संबंध अभी तक लिखित प्रमाण के अभाव में यह ज्ञात नहीं हो सका है कि मंदिर किसने बनवाया? क्यों बनवाया? व इसका नाम गौतमेश्वर क्यों रखा गया? । इस तीर्थ स्थल से तीन चार पौराणिक दंतकथाएं जुडी हुई है। कुछ लोगों का मानना है कि श्री गौतम ऋषि ने इन पर्वतमालाओं में तपस्या की थी। हांलाकि गौतम ऋषि की यहां कोई प्रतिमा नहीं है। लेकिन अहेलिया व अंजली की प्रतिमाओं का होना व मंदिर को गौतम ऋषि जी का मंदिर नाम से संम्बोधित करना यह प्रकट करता है कि इस स्थान से श्री गौतम ऋषि का संबंध रहा है।
एक अन्य दंतकथा के अनुसार गोंगमुआ नामक एक मीणा जाति का चरवाहा, एक गूजर के मवेशी चराया करता था। और जब वह मवेशियों को लेकर अरावली पर्वतमालाओं मे घुसता था तो उसके मवेशीयो के साथ एक अनजान गाय हमेशा साथ हो जाया करती थी। और शाम को वापस हो जाया करती थी। बहुत समय तक ऐसा ही चलता रहा गाय उसके मवेशियो के साथ हो जाती और दिनभर चर कर वापस अपने स्थान को चली जाती। एक उस गाय ने एक बछडे को जन्म दिया। गोंगमुआ उस बछडे को लेकर गाय के पिछे पिछे चल दिया। गाय जाकर एक टेकडी की गुफा के पास जाकर रूक जाती है। वर्त्तमान मे यह गुफा गौतमेश्वर गुफा के नाम से प्रसिद्ध है। उस गुफा में एक ऋषि और दो महिलाएं निवास करती थी। गोंगमुआ उनसे अपनी सालभर की गाय चराई मांगता है। ऋषि ने उसकी झोली में कुछ जौ के दाने गौ चराई में दिए। गोंगमुआ न जाने क्यों उन्हें वहीं डालकर चला गया। ऋषि उसके भोलेपन को देखकर मुस्कराएं। गोंगमुआ जब घर पहुंचा तो उसकी पत्नी की दृष्टि उसके कपडों पर चमकती हुई वस्तु पर पड़ी। (जौ का कोई दाना उसके कपडों से चिपका रह गया था)। और पुछा यह क्या वस्तु है। गोंगमुआ ने जब सारा वृत्तांत सुनाया तो उसकी पत्नी ने कहा कि वह ऋषि नहीं ईश्वर का रूप है। गोंगमुआ वापस पहुंचता है और ऋषि के चरण स्पर्श कर कहता है। कि मै आब अपने आपको आपकी सेवा में प्रस्तुत करता हूँ। और वह तपचर्या में लग जाता हैं। ऋषि उसकी तपश्चर्या से प्रसन्न होकर पूछते है। कि गोंगमुआ तुम क्या चाहते हो। वह अपनी इच्छा प्रकट करते हुए कहता है। कि एक तो मेरा नाम रोशन हो और दूसरे प्रति वर्ष मेरी जाति के लोग यहाँ पर एकत्रित हो। ऋषि ने कहा ऐसा ही होगा।
गौतमेश्वर महादेव धाम के सुंदर दृश्य
उसके पश्चात यहां प्रतिवर्ष मेला भरने लगा। जिसको लोग गोंगमुआ का मेला कहते थे। गौतम ऋषि का मेला और बाद मे गौतमेश्वर का मेला नाम से पुकारा जाने लगा। इसी दौरान गोंगमुआ की भक्ति से प्रभावित होकर एक गूजर ने यहां एक मंदिर का निर्माण कार्य प्रारंभ किया जिसको वह सम्पूर्ण नहीं करा सका। उसके बाद मीणा जाति के लोगों ने इस मंदिर का कार्य पूर्ण करवाकर इसकी व्यवस्था का कार्यभार अपने ऊपर लिया। यह मेला वैशाख माह की मकर सक्रांति के 90 दिन बाद 13 अप्रैल से 15 मई 30 दिन तक चलता है। भयंकर अकाल के समय कुओं का पानी सूख जाता है। पर यह उल्लेखनीय है कि मेले के शुरू होने के समय से गौतमेश्वर मंदिर की सीढियों के पास गंगा कुंड नामक स्थान से प्राकृतिक रूप से पानी फव्वारे की भांति आता है। वर्तमान में यहां पक्का कुंड बना है। दावा किया जाता है कि इस कुंड में स्नान करने तथा गौतमेश्वर के दर्शन करने से मनुष्य पापों से मुक्त हो जाता है। वर्तमान पापों से मुक्त होने का सर्टिफिकेट भी मंदिर कार्यालय से दिया जाता है। इसके अलावा मेले के समय इस क्षेत्र के दो तीन किलोमीटर के क्षेत्र थोडी खुदाई करने पर ही अपार मीठा जल प्राप्त हो जाता है। आश्चर्य की बात यह है कि मेले के अतिरिक्त समय में ऐसा कभी नहीं होता है। यहां आने वाले यात्रियों का ही यह विश्वास नहीं है बल्कि यह एक वास्तविकता है।
मेले मे मीणा लोग अपनी पारंपरिक पौशाक सिर पर लाल साफा, जिसका एक पल्ला कानों तक लटकता हुआ, कमीज की जेब में रेशमी रूमाल, कानों मे झेलें, हाथ में फूंदकीदार छाता, एक पैर मे चांदी का कड़ा आदि पहने हुए बडे सज धज के मेले में आते है। और एक दूसरे के गले मे हाथ डालकर गौतमेश्वर महादेव के गीत गाते है।
गौतमेश्वर महादेव धाम के सुंदर दृश्य
मेला शुरू होने से दस दिन पूर्व से मीणा लोग शराब, मांस का सेवन बंद कर देते है। और मेले में किसी भी व्यक्ति को शराब पीकर घूमने नहीं देते। यदि कोई ऐसा कर भी लेता है तो उसे तत्काल मेले से दूर लेजाकर छोड़ दिया जाता है। साथ ही इस क्षेत्र में जुआ खेलना भी वर्जित है। मंदिर के बाहर एक कक्ष बना हुआ है। जहाँ पर मीणों की पंचायत लगती है। जिसका फैसला सर्वमान्य होता है। तथा इसी मेले के अवसर पर मीणा तथा अन्य जाति के लोग अपने अपने पूर्खो की अस्थियां सूकडी नदी में विसर्जित करते है। मीणा जाति के लोग गौतमेश्वर महादेव को अपना कुलदेवता मानते है। और उन्हें प्यार से भूरिया बाबा, गौतम बाबा, गौरेश्वर बाबा आदि नामों से संम्बोधित करते है।
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3 responses to “गौतमेश्वर महादेव मंदिर अरनोद राजस्थान – गौतमेश्वर मंदिर का इतिहास”
arnod vala gautameshwar mandir pratapgarh hai jahan sari jatiyon ki puja sthali hai…..vahi sukdi nadi gautameshwar mandir sirohi me sukdi nadi ke kinare hai ….in dono jagaho ke bich ki duri 200 km se jyada ki hai……
गौतमेश्वर महादेव मंदिर अरनोद राजस्थान – गौतमेश्वर मंदिर का इतिहास।
यह इतिहास पूर्ण तः सही नही हो सकता है।
परंतु आपके द्वारा दी गई जानकारी कई तथ्यों उजागर करती है।
में आपकी बात से सहमत हु ।
यहां दी गई जानकारी काफी कुछ सही है।
3 responses to “गौतमेश्वर महादेव मंदिर अरनोद राजस्थान – गौतमेश्वर मंदिर का इतिहास”
arnod vala gautameshwar mandir pratapgarh hai jahan sari jatiyon ki puja sthali hai…..vahi sukdi nadi gautameshwar mandir sirohi me sukdi nadi ke kinare hai ….in dono jagaho ke bich ki duri 200 km se jyada ki hai……
गौतमेश्वर महादेव मंदिर अरनोद राजस्थान – गौतमेश्वर मंदिर का इतिहास।
यह इतिहास पूर्ण तः सही नही हो सकता है।
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