गुरू ग्रंथ साहिब – सिक्ख धर्म के पवित्र ग्रंथ के बारे मे जाने
Naeem Ahmad
जिस तरह हिन्दुओं के लिए रामायण, गीता, मुसलमानों के लिए कुरान शरीफ, ईसाइयों के लिए बाइबल पूजनीय है। इसी तरह सिक्खों के लिए ,आदि ग्रंथ, श्री गुरू ग्रंथ साहिब़ अद्वितीय एवं पूजनीय है। 1430 अंगों का यह एक विशाल वाणी ग्रंथ है। अतः सिक्ख समुदाय इस ग्रंथ को एक पवित्र गुरू मानता है न कि एक धार्मिक पुस्तक। आज के अपने इस लेख में हम गुरू ग्रंथ साहिब का इतिहास, गुरू ग्रंथ साहिब की जानकारी, गुरू ग्रंथ क्या है, आदि ग्रंथ साहिब क्या ऐसे ही अनेक सवालों के बारे मे विस्तार से जानेंगे।
श्री गुरू ग्रंथ साहिब़ अन्य धार्मिक पुस्तकों की तरह न इतिहास है और न ही पुराण है, और न ही किसी प्रकार की करामातों का संग्रह है। यह एक धार्मिक गुरूवाणी का संग्रह है, जो ब्रह्माण्ड से ज्ञान एवं विश्व की उत्पत्ति के सिद्धांत की एक झलक को प्रस्तुत करता है।
गुरु ग्रंथ साहिब
इसलिए यह दुनिया में एक विलक्षण धार्मिक ग्रंथ है। सिक्ख धर्म के लोग इसे केवल एक धार्मिक ग्रंथ ही नहीं मानता, बल्कि वह इसे दस गुरू साहिबान की ज्योति समझकर उपासना करता है। पावन इलाही शब्द का कोष होने के कारण सिक्ख बड़े आदर से इसकी सेवा करते है।
सिक्खों की धार्मिक सभाओं में श्री गुरू ग्रंथ साहिब़ की उपस्थिति एक पूजनीय व्यक्तित्व के रूप में समझी जाती है। इसका प्रकाश समूचे समारोह को एक पावन धार्मिक रंग में रंग देता है। वहां फिर इसके सम्मुख ही शीश झुकाया जाता है। अन्य किसी को आदर देना योग्य नहीं समझा जाता हैं। जहां भी प्रकाश होता है, वहां निरंतर उसके ऊपर चंवर किया जाता हैं। श्री गुरू ग्रंथ साहिब़ की हजूरी में फिर कीर्तन होता है। और धार्मिक दीवान सुशोभित किए जाते है। धार्मिक पवित्रता एवं साधसंगत के बडे प्रेम एवं श्रद्धा के कारण हर स्थान एक प्रकार का गुरूद्वारा ही बन जाता है।
जहां भी श्री गुरू ग्रंथ साहिब का प्रकाश होता है, वहां पहले ही चंदोवा लगाया जाता है। जहां से इसकी पवित्रता एवं शाही ठाठ की झलक देखने को मिलती है। उस समय सभी व्यक्ति हाथ जोडकर विन्रमता से बैठते है।
कोई भी व्यक्ति चाहे वह कोई बादशाह हो या कोई मंत्री हो, वह भी गुरू ग्रंथ साहिब़ से ऊंचे स्थान पर नही बैठ सकता। सभी संगत ग्रंथ साहिब़ के सम्मुख फर्श पर ही बैठते है। जिस पर दरी अथवा गलीचे बिछाए जा सकते है। सारी संगत श्री गुरू ग्रंथ साहिब के सम्मुख खडे होकर हाथ जोडकर प्रार्थना करते है। सिक्खों की कोई भी रस्म, यहां तक कि उनके विवाह भी श्री गुरु ग्रंथ साहिब़ की हाजरी के बिना परवान नहीं होते है। दूल्हा दुल्हन जब श्री गुरू ग्रंथ साहिब के इर्द चार लावां लेते है, तो यह समझ लिया जाता हैं कि सिक्ख रहत मर्यादा अनुसार विवाह की रस्म सम्मपूर्ण हो गई है।
जब श्री गुरू ग्रंथ साहिब को एक स्थान से दूसरे स्थान पर लेकर जाते है तो उस समय भी पूरी मर्यादा रखी जाती है। एक गुरूमुख प्यारा श्री आदि ग्रंथ साहिब को अपने शीश पर उठाता है तो शेष साध संगत शब्द पाठ पढ़ती हुई साथ चलती है। एक प्यारा श्री गुरू ग्रंथ साहिब़ के आगे आगे चलता है और खुशबूदार गुलाब जल से छिड़काव करता चलता है।
सम्मपूर्ण वाणी 31 रागों में लिखी गई है। जिसमें गुरू तेगबहादुर जी द्वारा रचित राग जैजैवंती भी शामिल है। उल्लेखनीय है कि सिक्खों के दशवें गुरू, गुरू गोविंद सिंह जी ने श्री गुरू ग्रंथ साहिब़ को गुरूगद्दी सौंपने से पूर्व गुरू पिता की वाणी भी दर्ज कर दी थी। अतः गुरु ग्रंथ साहिब में कुल 31 राग है।
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