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गुरु हर राय जी

गुरु हर राय जी की जीवनी – श्री हर राय जी की बायोग्राफी इन हिन्दी

श्री गुरु हर राय जी सिखों के सातवें गुरु थे। श्री गुरू हर राय जी का जन्म कीरतपुर साहिब ज़िला रोपड मे हुआ । पिता का नाम बाबा गुरूदित्ता जी व माता का नाम निहाल कौर था। बचपन में बड़े ही नर्म स्वभाव के थे हसलिए आपको कोमल आत्मा के नाम से याद किया जाता है। पिता बाबा गुरूदत्ता जी कयोंकि उदासीन बन चुके थे इसलिए छटे पातशाह ने आप मे गुरूगददी के लक्षण देकर आपको गुरूगददी सौंप दी। आपने गददी पर बेठने हि अपने बाबा की फौज में से2200जवान रखके बाकि सब कि छुट्टि कर दी।
कीरतपुर साहिब में एक विशाल दवाखाना तथा एक चिड़ियाघर भी बनवाया था।

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जन्म —- मार्गशीर्ष माघ शुक्ल,वि. सं. 1687 (16 जनवरी 1630)
जन्म स्थान —- कीरतपुर साहिब, जिला रोपड़
पिता —– बाबा गुरुदीत्ता जी
माता —– निहाल कौर जी
पत्नी —– किशन कौर, चन्द्र कौर, राम कौर, कोट कल्याणी, तोखी जी, अनोखी जी लडिकी जी, प्रेम कौर जी
पुत्र —- श्री राम राय जी, श्री हर कृष्ण जी
गुरुगददी —- चैत्र कृष्ण 13 वि.सं. 1698 ( 6 अक्टूबर सन् 1661) कीरतपुर

नाभा -पटियाला राज्य का वरदान-

एक दिन दरबार में प्राभु का यशगान हो रहा था। इलाही वाणी का कीर्तन चल रहा था कि काला नमक चोधरी अपने भाई के बेटे को कंधे पर उठाकर दरबार में आया और दोनों बच्चे जिनके बदन तक नंगे थे तथा भूके थे। काले चोधरी ने विनति कि की सच्चे पातशाह दोनों मेरे भाई की निशानी हैं। आपके पास आया हूँ कि भरण पोषण हो सके। तो गुरू जी ने कहा कि तू इनके भूके होने की बात करता है इनके आसंरे तो अनेकों के पेट भरेंगे तथा नाभा पटियाला जैसे राज्य इनकि संतान के कबज़े में होंगे।
काला बहुत खुश हुआ और मत्था टेककर अपने घर आया। पत्नी को सारी बात बताई तो पत्नी जल भछन गई कि भतिजे तो बादशाह बन जाए गे तुम्हारे बच्चों का क्या? फिर से जाकर अपने बच्चों के लिए भी गुरू जी से मांगे । जब काला फिर से गुरू दरवार मे विनती लेकर गया तो गुरू जी ने कहा चौधरी जो होना था सो तो हो गया अब क्या लेने आए हो ।
यह सुनकर काले के कपाट खुले गये । तब गुरू जी ने कहा जाऔ चौधरी भले ही तेरे बेटे राजे महाराजे ना बन सकेंगे पर दोलत से मालामाल रहेंगे। किसी बात की इनको कमी नही रहने वाली। समय पाकर उसके भतीजे नाभिया पटियाला तथा जींद रियासतो के के राजा बने तथा उसके अपने परिवार के बेटे भी बड़े सरदार हुए तथा धन माल से भरपूर होकर राज्य सुख भोगने लगे।

गुरु हर राय जी
गुरु हर राय जी

भाई फेरु पर वरदान:—-

एक दिन भाई भगतू ने दरबार में हाजिर होकर विनती की कि कोई सेवा बताएँ तो आपने वचन किया कि गुरु के घर लंगर के लिए खेती करवाया करो, सो भाई जी खेती करवाने लगे। एक दिन खेती मजदूर कहने लगे कि हमें रोटियों पर घी लगवा कर दिया करें, तो भाई जी ने एक फेरी लगाने वाले से जोकि नमक, घी, तेल बेचा करता था, से कहा कि इन मजदूरों को जितना घी मांगते है दे दो और कल आकर हम से पैसे ले जाना। सो उस फेरी वाले ने जितना घी मजदूरों ने मांगा कुप्पी से निकाल कर दे दिया। उसने बचे हुए घी की टोकरी को ऊपर ढांप दिया। अगले दिन वो गुरु जी के पास पैसे लेने गया तो हैरान रह गया। उसकी टोकरी तो अब भी घी से भरी थी। यह देखकर भाई भगतू के पास आकर कहने लगा कि उसे भी सिक्ख बना लेवें। भाई भगतू उसे गुरु हर राय जी साहिब के पास ले आये तो गुरु जी ने उसे सिख बनाकर कहा कि आज से तेरा नाम भाई फेरु होगा क्योंकि तू फेरी लगाता है।

भाई जीवन परोपकारी:—

एक ब्राह्मण का लड़का मर गया तो गुरु महाराज के दरबार में आकर विनती की कि महाराज मेरे बेटे को जीवन दान बख्शो तो गुरु हर राय जी ने कहा कि भाई सारा संसार ही चलने वाला है, मौत तो किसी क कहे रूक नहीं सकती। जब उसने बहुत कहा तो गुरु जी ने कहा एक सूरत है कि बच्चा जी उठे, यदि कोई और इसके लिए प्राण त्याग दें, क्योंकि यमदूतों को तो एक आत्मा पकड़ कर ले जानी है।
यदि कोई ऐसा व्यक्ति तुम्हें मिले तो यहां ले आना तेरा बेटा जी उठेगा। जब लड़के के माता पिता और कोई रिश्तेदार मरने के लिए तैयार न हुआ तो भाई जीवन जी ने अपने घर जाकर योगाभ्यास द्वारा अपने प्राण त्याग दिये और उसका बेटा उठकर बैठ गया। गुरु महाराज जी ने भाई जीवन जी को सौ सौ वरदान दिए और अपने हाथों से उसका संस्कार किया।

रामराय जी को दिल्ली भेजा:—-

एक बार औरंगजेब बादशाह ने गुरु हर राय जी महाराज को दिल्ली बुलवाया। आपने अपने बड़े बेटे राम राय जी को भेज दिया और कहा कि बेटे वहां जाकर कोई करामात नहीं दिखलाना तथा बादशाह जो सवाल करें तो घबराना नही, न ही शाही जलाल के रोआब में आना। सद्गुरु नानक सदा अंग संग रहेंगें। आप जो चाहोगे वहीं होगा।
जब राम राय जी औरंगजेब के पास पहुंचे तो औरंगजेब पर आपका उचित प्रभाव पड़ा पर उन्होंने आज्ञा का पालन न करते हुए करामातें दिखानी शुरू कर दी तथा गुरुवाणी की तुको को भी उलटा कर सुनाया। जब गुरु जी को यह सब पता चला तो आपने बहुत गुस्सा महसूस किया तथा कहा कि उससे कहो कि अब हमें अपना मुंह न दिखाये।

श्री गुरु हरिकृष्ण जी को गुरूगददी सौंपी:—-

छोटे पुत्र श्री गुरु हरिकृष्ण जी अभी केवल पांच वर्ष के थे कि एक दिन आपने सुंदर वस्त्र हरिकृष्ण जी को पहनाये तथा गले में सोने का कैण्ठा भी डाल दिया। श्री गुरु हरिकृष्ण जी बालकों के साथ खेलते हुए बाहर चले गये, किसी मंगते ने सवाल किया तो बालक प्रभु ने उसे कैण्ठा उतार कर भीख में दे दिया। जब आपने पुत्र से पूछा कि लाल जी कैण्ठा कहाँ है, तो कहा कि एक भिक्षुक ने मांगा तो हमने उतारकर दे दिया ताकि वह सुख से रह सके। पुत्र का त्याग देखकर सातवें पातशाह मेहरबान हो गये तथा खुश होकर कहा आठवां नानक मिल गया है, उसी समय गुरूगददी त्यागकर कहा कि अब संगत इन्हें ही हमारा रूप समझे तथा कार्तिक कृष्ण नवमी 1718 वि. को आप कीरतपुर साहिब में ज्योति ज्योत में समा गये।

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