गुरु हरकिशन जी सिक्खों के दस गुरूओं में से आठवें गुरु है। श्री गुरु हरकिशन जी का जन्म सावन वदी संवत 1713 वि. दिन बुधवार को हुआ था। 18 कार्तिक वदी नौमी वि.सं. 1718 को इन्होंने गुरूगददी प्राप्त की। गुरु गद्दी पर विराजमान होने के बाद इन्होंने सिख धर्म को नई ऊचांइयों तक पहुंचाया।
गुरू हरकिशन का जीवन परिचय – गुरु हरकिशन की जीवनी- गुरु हरकिशन का इतिहास
नाम —- श्री गुरु हरकिशन राय जी महाराज
जन्म —- सावन वदी 9, वि.सं. 1713 ( 7 जुलाई सन् 1656 ई.)
पिता —- श्री गुरु हर राय जी
माता —- माता सुलखणी जी
भाई —- श्री राम राय जी
गुरूगददी —- 18 कार्तिक वदी नौमी वि.सं. 1718 (20 अक्टूबर 1661)
ज्योति ज्योत —- चैत्र शुक्ल चौदा वि. सं. 1721 (16 अप्रैल, सन् 1664 ई.) दिल्ली में।
कुष्ठ का रोग दूर किया:—–
एक दिन आप पालकी में सैर करने जा रहे थे कि एक कुष्ठी जख्मों के दर्द से व्याकुल गुरु हरकृष्ण के रास्ते में लेटकर विलाप करने लगा। महाराज को उस पर दया आ गई। अपना रूमाल फेंककर उससे कहा कि इसे अपने अंगों पर छुवाकर गुरु नानक से विनती करना तुम्हारा दुख दूर हो जायेगा। उसने वैसा ही किया तो वह कुष्ठ रोगी तत्काल ठीक हो गया। इसके पश्चात अनेक रोगी आपके दर्शन करने आने लगे और महाराज उन्हें आरोग्यता प्रदान करने लगे।
गुरु हरकिशन जी महाराज
राम राय की चुगली और औरंगजेब का निमंत्रण:—
सदगुरु का प्रताप दिन प्रतिदिन बढ़ता देखकर राम राय जी ने, जोकि आपके बड़े भाई थे, औरंगजेब को सिखा पढ़ाकर हुक्मनामा लिखवाया दिया और आपको दिल्ली बुलवा भेजा।
राजा जयचंद ने मंत्री भेजा:—-
राजा जयचंद ने अपने दीवान परस राम को सवारों सहित गुरु हरकिशन जी को लाने के लिए पालकी भिजवाई। परस राम कीरतपुर आया तो उसने राजा जयचंद की ओर से आई भेंट सामने रखकर, राजा का संदेश दिया कि दिल्ली की संगत को दर्शन देकर निहाल करें।
गुरु जी के दिल्ली जाने की तैयारी:—
अंतर्यामी गुरु जी ने राजा जयचंद का प्रेम देखकर तत्काल तैयारी कर ली तथा पालकी में सवार होकर विक्रमी सन् 1720 को दिल्ली की ओर चल पड़े।
गीता का ज्ञान:—
रास्ते में जब कुरूक्षेत्र तीर्थ पर पहुंचे तो वहां लालचंद नामक पंडित ने ईर्ष्या वश कहा कि इतना बड़ा श्री कृष्ण जी से भी बड़ा नाम रखवाया है। उन्होंने तो गीता का उच्चारण किया था आप जरा गीता के अर्थ ही करके सुनाएं तो जाने।
गुरु जी ने सुना तो हंस पड़े और कहा– किसी अनपढ़ गंवार को ले आओ पंडित जी वहीं घूम रहे थे कि बधिक झीवर बालक छज्जू को पकड़ लाये तो गुरु जी ने अपनी छड़ी उसकी पीठ पर रखकर कहा इन पंडित जी को जो पूछे समझा देना। पंडित ने जो श्लोकों का अर्थ पूछा उस अनपढ़ झीवर ने तुरंत बतला दीये। यह देखकर पंडित जी का गर्व चकनाचूर हो गया और उसके मन का मैल भी धुल गया। उसे लगा कि जैसे वह सचमुच में भगवान श्रीकृष्ण जी के दर्शन कर रहा हो। चरण कमलों में गिरकर नमस्कार की तो गुरू जी ने आशीर्वाद दिया।
राजा जयचंद के महलों में:—
गुरु हरकृष्ण जी जब दिल्ली पहुंचे तो राजा जयचंद की रानी जिसके कोई बच्चा नही था, इंतजार कर रही थी कि कब गुरू जी आयें और मुझे भी राजकुमार की दात बख्शें। उसने सद्गुरु की परीक्षा लेने के लिए दासियों का वेश बनाकर दासियों में छुपकर बैठ गई। जब गुरु जी उसके महलों में आये तो सबके सिर पर अपनी छड़ी लगाते गये, जब रानी के पास आये तो उसे पहचान कर उसकी गोद में जा बैठे। माता तेरे घर में भी हम सा सुंदर राजकुमार आने वाला है क्योंकि गुरु घर की कृपादृष्टि अब तेरे महलों पर हो गई है। राजकुमार बहुत सुंदर जवान तथा प्रभावशाली होगा और तुम्हारे खानदान का नाम रोशन करेगा।
औरंगजेब ने तोहफे भिजवाये:—-
दूसरे दिन राजा साहिब ने बादशाह को गुरु जी के आने का शुभ समाचार दिया तो बादशाह ने अपने पुत्र बहादुर शाह के हाथ गुरु जी के लिए अनेक उपहार भिजवाये, पुत्र ने दरबार में आकर सजदा किया।
हैजे का प्रकोप:—-
उन दिनो दिल्ली में हैजे की भयंकर बिमारी फैली हुई थी, हर रोज हजारों लोग बिमका शिकार हो रहे थे। गुरु जी हैजे के रोगियों की सेवा में जुट गये। राजा ने बड़े बड़े जल कुण्ड गुरु चरणों के चरणामृत से भरवाकर लोगों की सेवा की जिस किसी ने भी चरणामृत लिया वह हैजे से बच गया। अनेक रोगी गुरु कृपा से ठीक हो गये।
दिल्ली में ही गुरु हरकृष्ण जी को तेज बुखार हो गया तथा माता निकल आई। राजा जयचंद से कहा कि हम पापी औरंगजेब के माथे नहीं लगेंगे। आपने पांच पैसे और नारियल रखकर बाबा बकाला की ओर मुंह करके माथा टेका और कहा कि बाबा बकाला!!! इस प्रकार गुरु हरकिशन जी लगभग आठ वर्ष की आयु में ज्योति ज्योत में समा गये।
उनकी याद में दिल्ली में गुरूद्वारा बंगला साहिब बना हुआ है जहां सदगुरू जी ने छोटी सी अवस्था में अनेक रोगी ठीक किये। आपके दर्शन लाखों लोगों के लिए दुखों की दवा बने तभी तो हम हर रोज अरदास करते है।
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