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Alvitrips – Tourism, History and Biography
गुरु नानकदेव जी

गुरु नानकदेव जी का जीवन परिचय – गुरु नानकदेव जी के उपदेश

Naeem Ahmad, May 24, 2021March 12, 2023

साहिब श्री गुरु नानकदेव जी का जन्म कार्तिक पूर्णिमा वि.सं. 1526 (15 अप्रैल सन् 1469) में राय भोइ तलवंडी ग्राम जिला शेखूपुरा जिसे आजकल ननकाना साहिब कहा जाता है (वर्तमान में पाकिस्तान में है), में श्री कल्याण दास जी (मेहता कालू जी) क्षत्रिय बेदी तथा माता तृप्ता देवी के घर में हुआ था। पंडित हरिदयाल जी ने जन्म पत्री बनाई तथा बताया कि पटवारी जी आपके घर में तो यह बालक पैदा हुआ है सो यह कोई बहुत ही अधिक तप तेज वाला अवतार है।

गुरु नानकदेव कौन थे— गुरु नानकदेव जी सिखों के प्रथम गुरु थे

जन्म — कार्तिक सुदी पूर्णिमा 15 अप्रैल सन् 1469

जन्म स्थान— तलवंडी राय भोइ, ननकाना साहिब, जिला शेखूपुरा, पाकिस्तान

पिता—- श्री कल्याणदास जी (मेहता कालू जी)

माता—  माता तृप्ता देवी

पत्नी—  माता सुलखनी

सुपुत्र— श्री चन्द्र जी, लक्ष्मी दास जी

गुरु गद्दी— आरंभ से ही 70 वर्ष तक

ज्योति ज्योत— आश्विन वदी 10, 1596 वि.सं. सन् 1539

स्थान— करतारपुर (रावी) पाकिस्तान

 

Contents

  • 1 गुरु नानकदेव जी का जीवन परिचय
  • 2 गुरू नानकदेव जी के उपदेश
    • 2.1 गुरु जी को पांधे के पास पढ़ने के लिए भेजना –
        • 2.1.0.1 जनेऊ पहनने से इंकार –
        • 2.1.0.2 खेत हरा करना—-
        • 2.1.0.3 सर्प ने सिर पर छाया की—
        • 2.1.0.4 सच्चा सौदा—
        • 2.1.0.5 गुरु जी मोदी बने—
        • 2.1.0.6 गुरू नानक जी नमाज पढ़ने गये—-
      • 2.1.1 गुरू नानकदेव जी का विवाह—
        • 2.1.1.1 वेई में अलोप होना—-
        • 2.1.1.2 मलिक भागो का उद्धार—
        • 2.1.1.3 वली कंधारी का अहंकार तोडा—
        • 2.1.1.4 कौडा राक्षस का उद्धार—
        • 2.1.1.5 नानक मते की साखी—
        • 2.1.1.6 मक्का शरीफ घुमाया—
        • 2.1.1.7 वाणी की रचना—-
    • 2.2 हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें:—-

गुरु नानकदेव जी का जीवन परिचय

 

छोटी अवस्था में ही बच्चों के साथ खेलते हुए खेल खेल में ही महाराज आलती पालती लगाकर बैठ जाते तथा साथियों से भी उसी प्रकार आंख मूंद कर बैठने का आग्रह करते व उनसे सतनाम का जाप करनेके लिए कहते। पांच वर्ष की आयु में जब उन्हें गोपाल दास के पास पढ़ने के लिए बैठाया गया तो आपने पटटी लिखने के समय गोपालदास को हरिनाम का उपदेश दिया।

 

 

उन्होंने अपने जीवन में अनेक प्रकार के ढंग प्रयोग में लाकर अनेकानेक लोगों को सदुपदेश दिया। एक जाट की पशुओं द्वारा खाई गई खेती फिर से हरी भरी कर दी। एक बार एक सर्प ने गुरूनानक देव जी के सिर के ऊपर अपने फन से छाया की जबकि आप थककर जमीन पर ही धूप में सो गए थे। सुल्तानपुर में वेई नदी में अलोप हो गए। मोदीखाना गरीबों में बांटकर भी नवाब को हिसाब से लाभ दिखलाया, भाई लालो की दशनखों की कृत कमाई को दूध का सा मान सम्मान दिलाया तथा मलिक भागों के ब्रह्म भोज में से लहू की धारा बहती हुई दिखलाई, वली कंधारी का अभिमान तोड़ा। भले पुरुषों का उद्वार तो किया ही साथ मानवभक्षी कौडे राक्षस को उपदेशामृत पिलाकर कौडे से सुच्चा लाल बनाया। सुल्तानपुर की मस्जिद में नमाज पढ़कर काजी व नवाब को उपदेश दिया कि नमाज पढ़ते समय मन भी नमाज में उपस्थित होना चाहिए। सज्जन ठग का उद्धार किया, भाई भूमिये से चोरी छुड़वाई। मक्का पहुंच कर मक्का फिराकर जीवन काजी तथा औरों को उपदेश दिया कि परमात्मा का घर तो प्रत्येक दिशा में विद्यमान है तथा उसका नूर तो प्रत्येक जीवन में झलकता है। बाबर की जेल में, अपने आप चलती हुई चक्कियां दिखलाकर उसका अभिमान चकनाचूर किया।

 

 

गुरु नानकदेव साहिब जी की महिमा न्यारी है। आपने कृपा दृष्टि रीठे की कड़वाहट दूर करके उसे मिठास प्रदान की। नानक मते में सिद्ध गोष्ठी करके सिद्धों का अहं चूर चूर किया, आपने रावी दरिया के किनारे करतारपुर नगर आबाद किया तथा वहीं पर परिवार में रहते हुए संगत को उपदेश देते रहे।

 

गुरू नानकदेव जी के उपदेश

गुरु जी को पांधे के पास पढ़ने के लिए भेजना –

एक दिन मेहता कालू जी ने माता तृप्ता जी के साथ विचार करके बालक नानक को नहला धुलाकर नये वस्त्र पहनाकर , पांधे गोपालदास उपाध्याय के पास पढ़ने के लिए बिठने ले गए ।

 

पांधा जी जो कुछ भी आपके पढ़ाते थे, आप थोड़े समय में ही याद करके उन्हें सुना देते थे। एक दिन मेहता जी से उन्होंने कहा कि आपका पुत्र बहुत होशियार व मेहनती है। फिर एक दिन पांधा जी कोई पाठ पढ़ा रहे थे कि बालक नानक ने कहा कि आप मुझे कुछ ऐसा ज्ञान दें कि जिससे मैं जन्म मरन के चक्र से बच जाऊं तथा धर्मराज के पास पहुंचकर धन्य हो सकूं। पांधा जी ने पूछा नानक ! वह लेखा हिसाब- किताब कैसा है तो आपने एक शब्द उच्चारण कर उसे नाम जपने का बच्चा उपदेश दिया जिसे सुनकर अध्यापक सिर झुकाकर कहने लगा- नानक तेरा अंत मैं तो नहीं पा सकता।
फिर मेहता कालू जी से जाकर कहा-‘मैं इसे क्या पढ़ा सकता हूं यह तो स्वयं परमेशवर हैं।

 

 

गुरु नानकदेव जी
गुरू नानक देव जी

 

जनेऊ पहनने से इंकार –

जब गुरु नानक जी की आयु ग्यारह वर्ष की हुई तो उपनयन संस्कार के लिए परिवार के पंडित हरिदयाल जी को बुलाया गया। पिता कालू जी तथा सारा परिवार इकटठा हुआ। जब पंडित जनेऊ डालने लगे तो नानक जी ने कहा कि पंडित जी मेरे लिए यह सूत के धागे का जनेऊ नहीं चाहिए। मुझे तो ऐसा जनेऊ चाहिए जो न मैला हो कभी और ना हि कभी टूटे। पंडित जी ने कहा-हे नानक जी, ऐसा जनेऊ कहां मिलता है तथा नाम रूप वाला जनेक दे सकते हैं तो मैं डालने के लिए तैयार हूं वरना यह सूत का जनेऊ मैं पहनने वाला नहीं हूं।
ऐसा सुनकर पंडित हरिदयाल जी ने झुककर नमश्कार किया और पिता कालू जी से कहा कि मेहता जी आप बड़े भाग्यवान हैं जिसके घर में स्वयं ईश्वर ने अवतार धारण किया है और जो सारे संसार को तारने वाला है, कल्याण करने वाला है।

 

 

खेत हरा करना—-

 

 

जब पिता कालू जी ने देखा कि आपका मन दुनिया के कार्यों में नहीं लगता तो आपको भैंसों को घास चराने के लिए खेतों में भेज दिया। आप हर रोज हाथ में लाठी लेकर भैंसों को चराने के लिए ले जाते। स्वयं किसी वृक्ष के नीचे जाकर सो जाते और भैंसे घास चरती रहती। एक बार एक किसान का सारा खेत ही भैंसों ने साफ कर दिया। खेत का मालिक रोता पिटता चौधरी राय बुलार के पास शिकायत करने के लिए पहुंचा और कहा कि पटवारी के लड़के ने मेरे खेत का बहुत नुकसान कर दिया है। स्वयं तो लड़का सो रहा है और उसके पशु सारा खेत चर गए।

राय बुलार ने मेहता कालू जी को बुलवा कर जाट की शिकायत के बारे में कहा। जब गुरू नानकदेव जी को बुलाकर पूछा तो उन्होंने कहा कि जाट तो झूठ कह रहा है। इस पर जाट ने कहा चलकर आप स्वयं देख सकते है। जब सब लोगों ने जाकर देखा तो खेत हरी भरी लहरा रही थी तथा पहले से भी अधिक हरी भरी हो रही थी। जाट बहुत हैरान परेशान हुआ तथा शर्मिंदा होकर नानक देव जी के चरणों में गिर पड़ा। राय बुलार ने भी सजदा किया और मेहता कालू से कहा कि आपका बेटा तो खुद भगवान का रूप है।

 

 

सर्प ने सिर पर छाया की—

 

एक दिन गुरू नानक देव जी वट वृक्ष के नीचे सो रहे थे, और पशु इधर ऊधर घास चर रहे थे। अचानक ही आपके मुख मंडल पर धूप चमकने लगी। उसी समय उधर से एक विषधर काला फनवाला सांप गुजर रहा था। उसने नानक जी को देखकर सोचा कि आज तो मुझे सेवा करने का सुअवसर मिला है। क्यों न मै भी अपना जन्म सफल कर लूं। यह सोचकर उसने आपके मुख पर अपना फन फैलाकर छाया कर दी।

पास ही राय बुलार अपने अहलकारों के साथ गुजर रहा था। उसने ये दृश्य देखा तो घोडे से नीचे उतर कर आपके पास पहुंचा तब तक जहरीला सांप वहां से जा चुका था। राय बुलार ने नानक जी को सोते से उठाया और सजदे में झुककर सलाम किया और अर्जन किया हे मेरे मालिक, मेरे प्यारे नानक! यह तू क्या कौतक दिखा रहा है? आपने अपने कोमल पंखुड़ियों से होठ हिलाकर कहा कि यह सब तो राय साहिब उस मौला के हुक्म से ही हो रहा है। राय बुलार ने मेहता कालू से जाकर सारी वार्ता कही और अपनी पहली वार्ता दुहराई कि नानक देव जी खुद खुदा का रूप है।

 

 

सच्चा सौदा—

एक दिन पिता कालू जी कहने लगे कि बेटा खाते खाते कुएँ भी खाली हो जाते है। मेरे लाल कुछ कार्य व्यपार करो। आपने कहा जैसी आपकी आज्ञा। पिता जी ने 20 रूपये देकर कहा कि मंडी जाकर कोई सौदा लेकर आइयेगा जिसे यहां पर बेचकर कुछ पैसे कमा सको। इससे मेरा दिल भी खुश होगा और आपका मन भी बहला रहेगा।

आप बाला संधू के साथ चूहड़काना मंडी पहुंचे। वहां आपको कुछ साधु संत बैठे हुए दिखलाई दिये जो कई दिनों से भूखे बैठे थे। गुरु नानक साहिब ने भाई बाला से कहा चलो बीस रूपये में इनके लिए भोजन का प्रबंध कर दे। भाई बाले ने कहा क्यों अपने पिता से मुझे गांव से निकलवाना चाहते हो। मैं कोई ऐसा काम नहीं करूंगा जिससे मुझे फटकारा जाए। उन्होंने कहा तू कोई चिंता न कर। राशन मंगवाकर भोजन करवाया तथा वहां कई दिन तक ज्ञान चर्चा की। साधु प्रसन्न होकर आशीर्वाद देने लगे। वापिस लौटकर आप गाँव के बाहर ही वृक्ष के नीचे जा बैठे और भाई बाला को घर भेज दिया। जब पिता जी को सारा हाल मालूम हुआ तो आपके पास आये और हिसाब किताब के बारे में पूछताछ की। तब गुरू नानकदेव जी ने कहा कि मैने सच्चा सौदा किया है, तथा उन्होंने पूरा वृत्तांत सुनाया। सारी बात सुनकर उनके पिता बहुत क्रोधित हुए तथा मुखड़े पर दो करारे झापड़ जड़ दिए।

 

 

 

गुरु जी मोदी बने—

एक दिन बहन नानकी ने अपने पिता जी से कहा कि मैं वीर नायक को अपने साथ सुल्तानपुर ले जाना चाहती हूँ ताकि इसके जीजा जी इसे नवाब के पास ले जाकर किसी काम पर लगवा दे। इस प्रकार श्री जय राम जी व बेबे नानकी जी के साथ श्री गुरू नानकदेव जी सुल्तानपुर नवाब खान के पास पहुंचे और आपको मोदीखाना दिलवा दिया।

 

 

 

गुरू नानक जी नमाज पढ़ने गये—-

एक दिन सुल्तानपुर लोधी का नवाब दौलत खान और उसका एक काजी आपके साथ परमात्मा के बारे में बातचीत करने लगा। आपने ऊन दोनों को सच्चा उपदेश दिया जिस पर काजी ने कहा यदि खुदा और भगवान एक ही है तो चलिए आज आप हमारे साथ मिलकर नमाज पढ़ें। आप उनके साथ मस्जिद में नमाज पढ़ने चले गये। जब लोग नमाज़ पढ़ रहे थे तब आप अंतरध्यान होकर बैठे रहे। बाहर बैठे हिन्दू लोग चर्चा कर रहे थे कि शायद नानक आज मुसलमान हो जाए।

इधर जब काजी और नवाब नमाज से फारिग हुए तो इधर उधर की बातें करने लगे कि आप कहते हो कुछ और करते कुछ हो। आपने हमारे साथ मिलकर नमाज क्यों नहीं पढ़ी। इस पर गुरु नानक साहिब ने कहा किसके साथ मिलकर हम नमाज पढ़ते। नवाब साहिब स्वंय तो काबुल में घोड़े खरीद रहे थे और काजी साहिब का ध्यान घर में रमा था कि घोड़ी का बच्चा छोटा है कहीं खड्डे में न गिर पड़े, फिर नमाज किसके साथ पढ़नी थी, कोई वहां नमाज़ में हाजिर होता तो उसके साथ नमाज पढ़ते। ऐसा सुनकर काजी और नवाब दोनों ही शर्मिंदा हुये और गुरू के चरणों में गिर पड़े। आपने दोनों को उपदेश देकर कृतार्थ किया।

 

 

 

गुरू नानकदेव जी का विवाह—

जब आप सुल्तानपुर लोधी में मोदी बने तो आपकी कीर्ति चारों ओर फैलने लगी। आप गरीब निर्धन लोगों को मुफ्त में अनाज बांट देते थे। ऐसा देखकरचुगलखोरों से बर्दाश्त नहीं हो सका तो उन्होंने यह शिकायत नवाब के पास कर दी। जब हिसाब किताब देखा जाता तो नवाब को बहुत लाभ मिलता दिखाई पड़ता। इस प्रकार जब मेहता कालू जी के निकटवर्ती रिश्तेदारों को पता चला कि गुरु नानक काम पर लगे हुए है। तो तो रिश्तेनातों का तांता सा लग गया। गुरदासपुर के एक गांव पक्खों के रंधावा के एक क्षत्रिय मूल चन्द्र चोणा जो बटाला नगर में पटवारी लगे हुए थे उनकी बेटी सुलक्खनी के साथ गुरु नानकदेव जी का विवाह 24 ज्योष्ठ 1545 को बडी धूमधाम के साथ बटाला में समपन्न हुआ।

गुरू नानक देव जी की शादी की याद में एक कच्ची मिट्टी की दीवार नगर में गुरूद्वारा कंध साहिब के नाम से विख्यात है। जब बारात सुल्तानपुर से बटाला पहुची तो एक कच्ची मिट्टी की दीवार के पास बिठाया गया। इतिहास बताता है कि एक बुढिया ने कहा कि बेटा यह दीवार कच्ची है और किसी समय भी गिर सकती है। तो आपने हंसते हुए कहा माता यह दीवार तो युगों तक हमारी शादी की अमर याद बनेगी। यह दीवार आज भी कायम है।

 

 

 

वेई में अलोप होना—-

कुछ समय तलवंडी में ठहरने के पश्चात गुरु नानक साहिब सुल्तानपुर लोधी मोदीखाने का काम देखने लगे। यही एक दिन आप वेई नदी में गोता लगाकर अलोप हो गए तथा निरंकार प्रभु के दरबार मे जा पहुंचे। वहां से दो दिन बाद नदी से बाहर आए तथा मूलमंत्र पढ़ाकर जपवा कर जगत का उद्धार करते रहे।

 

 

मलिक भागो का उद्धार—

जब पहली उदासी दुनिया को तारने के लिए धारण की तो नानक जी एमनाबाद पहुंचे, भाई बाला व भाई मरदाना दोनों आपके साथ थे, तब आप भाई लालो जी जो कि बढ़ई का काम करते थे की कुटिया में आये। लालो जी ने बड़ी श्रद्धा से सेवा की।
गुरु नानकदेव जी साहिब जब उसके यहां कोधरे (मोटे अनाज) की रोटी खाते थे तो जैसे नशा सा आ जाता। एक दिन उस दिन शहर के हाकिम मलिक भागो ने ब्रहम भोज का आयोजन किया। सब साधु संतों को आमंत्रित किया गया तथा गुरु नानक देव जी उसके यहां नहीं गए। मलिक को जब नानक जी के न आने का पता लगा तो जबरदस्ती बुलवाया और न आने का कारण पूछा। तो गुरु नानक साहिब ने कहा कि तेरा यह यज्ञ दिखलावे का है, और इसमें तूने पाप की कमाई लगा रखी है। यह जो पूरी व मालपुए इत्यादि जो भी बने है इनमें गरीब गुरबों का खून भरा है। इस पर गुरू जी ने एक हाथ से मलिक भागो के ब्रहम भोज के पकवान और दूसरे हाथ में भाई लालो के घर की रूखी रोटी लेकर जोर से दबाया तो मलिक भागो के पकवान में से लहू की धारा और भाई लालो के खाने से दूध की धारा फूट पड़ी। मलिक भागो बहुत शर्मिंदा हुआ।

 

 

 

वली कंधारी का अहंकार तोडा—

गुरु नानकदेव जी जब हसन अब्दाल पहुंचे तो भाई मरदाने ने कहा कि मुझे तो प्यास ने बहुत परेशान कर रखा है। गुरू जी ने कहा कि पहाड़ी के ऊपर चढ़ जाओ वहां वली कंधारी बैठा हुआ है, उससे जल मांग लो। जब मरदाना ऊपर गया तो वली ने कहा मुसलमान होकर हिन्दू को पीर तस्लीम करते हो जाओ जाकर उससे ही पानी मांगो। गुरु जी ने तीन बार मरदाने को वली के पास भेजा। अहंकार से भरे वली ने जब पानी नहीं दिया तो गुरु जी ने मरदाना से कहा कि प्रभु का नाम लेकर वह सामने वाला पत्थर उठाओ, तब वहां से ही पानी का स्रोत फूट पड़ा और वली का अहंकार बिफर गया, उसने ऊपर से एक बड़ा पत्थर गुरू जी की ओर लुढ़का दिया जिसे गुरूदेव ने अपने पंजे से रोक दिया। जो आज भी उस अवस्था में अटका हुआ है। यह देखकर वली कंधारी का मान मर्दित हुआ और वह आपका चरण सेवक बन गया। उस स्थान को पंजा साहिब कहते है जो कि वर्तमान में पाकिस्तान में है।

 

 

 

कौडा राक्षस का उद्धार—

गुरू नानकदेव जी बंगाल के जंगलों से गुजर रहे थेकि भाई मरदाना भूख से व्याकुल होकर अपना रबाब गुरु जी के चरणों पर पटक कर भाग खड़ा हुआ। गुरु जी पुकारते रहे पर वह नहीं पलटा, दो तीन मील आगे गया होगा तो एक भयंकर राक्षस ने उसे पकड़कर गर्म तेल के कड़ाहे में डालना चाहा तब दुखी होकर मरदाना गुरू जी को याद करके फरियाद करता है और गुरूदेव अपने मित्र की रक्षा करने हेतु पवन रूप हो वहां पहुंचे और सत करतार का शब्द उच्चारण किया तो गर्म कड़ाहा ठंडा हो गया। यह देखकर वह विकराल राक्षस गुरु चरणों पर नमस्तक हुआ। गुरू जी ने उसे सत्य का उपदेश देकर जन्म मरण के चक्र से मुक्त कर दिया।

 

 

 

नानक मते की साखी—

आप उत्तर प्रदेश के नगर नानक मते पहुंचे जो अब उतराखंड में है और नानकमत्ता के नाम से जाना जाता है। और सिद्धो के साथ बड़ी लम्बी विचार गोष्ठी हुई। अंततः सिद्ध मंडली आपके चरणों पर नमस्तक हुई। गुरू जी का उपदेश सुनकर अहंकार ऐसे लोप हो गया जैसे आंधी के आने से गली मुहल्लों से घासफूस के तिनके उड़ जाते है।

 

 

 

मक्का शरीफ घुमाया—

गुरू नानकदेव जी जब मक्का पहुंचे और मुख्य स्थान की ओर पांव पसार कर सो गए। जीवन काजी ने आपको देखा तो गुस्से में आकर आपको एक लात जमा दी और कहा अच्छा हज करने आए हो खुदा के घर की ओर पांव करके लेटे हो। आपने शांत भाव से कहा भाई मै तो दूर से थका मांदा आया हूँ। नींद आ गई सो गया। गुस्सा मत करो जिधर आपके खुदा का घर न हो उधर मेरे पांव कर दो। गुस्से से भरे काजी ने जिस ओर भी आपके पांव पकड़कर करने चाहे उसी ओर ही उसे खुदा का घर नजर आया। उसका भ्रमजाल टूट गया और वह ऊंचे स्वर से चिल्लाने लगा कि मक्के वालो खुदा खुद आपको दीदार देने आया है।

 

 

 

वाणी की रचना—-

गुरु नानकदेव जी ने जपु जी, सिद्ध गोष्ठ, सोदर, सोहिला, आरती, रामकली, दक्षिणी ओंकार, आसा दी वार, मल्हार की वार,माझ दी वार, पट्टी, बारांमाह आदि वाणी उच्चारण की। जिसमें कुल 947 शब्द है और यही वाणी 19 रागों में पायी गई हैं। गुरु नानकदेव जी के समय भारत वर्ष में बहलोल लोधी, सिकंदर लोदी, इब्राहिम लोधी, बाबर तथा हुमायूं का शासन रहा।

गुरु नानकदेव जी अपने परमशिष्य भाई लहना जी को गुरू गद्दी सौंपकर तथा गुरू अंगद देव नाम देकर आश्विन शुक्ल दसवीं, 1585 वि.संवत (सन् 1539) को श्री करतारपुर साहिब (रावी नदी किनारे) ज्योति ज्योत समा गए।

 

 

 

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अमृतसर शहर के कुल 13 द्वार है। लोहगढ़ द्वार के अंदर लोहगढ़ किला स्थित है। तत्कालीन मुगल सरकार पर्याप्त रूप Read more
सिख धर्म के पांच ककार
ककार का अर्थ - ककार किसे कहते है - सिख धर्म के पांच प्रतीक
प्रिय पाठकों अपने इस लेख में हम सिख धर्म के उन पांच प्रतीक चिन्हों के बारें में जानेंगे, जिन्हें धारण Read more
तरनतारन गुरूद्वारा साहिब के सुंदर दृश्य
तरनतारन गुरूद्वारा साहिब का इतिहास - तरनतारन के प्रमुख गुरूद्वारे
तरनतारन गुरूद्वारा साहिब, भारत के पंजाब राज्य में एक शहर), जिला मुख्यालय और तरन तारन जिले की नगरपालिका परिषद है। Read more
गुरूद्वारा मंजी साहिब आलमगीर लुधियाना के सुंदर दृश्य
मंजी साहिब गुरूद्वारा आलमगीर लुधियाना - Manji sahib history in hindi
गुरूद्वारा मंजी साहिब लुधियाना के आलमगीर में स्थापित है। यह स्थान लुधियाना रेलवे स्टेशन से 16 किलोमीटर की दूरी पर Read more
मंजी साहिब गुरुद्वारा, नीम साहिब गुरूद्वारा कैथल के सुंदर दृश्य
मंजी साहिब गुरूद्वारा कैथल हरियाणा - नीम साहिब गुरूद्वारा कैथल हरियाणा
मंजी साहिब गुरूद्वारा हरियाणा के कैथल शहर में स्थित है। कैथल भारत के हरियाणा राज्य का एक जिला, शहर और Read more
दुख निवारण साहिब पटियाला के सुंदर दृश्य
दुख निवारण साहिब पटियाला - दुख निवारण गुरूद्वारा साहिब का इतिहास
दुख निवारण गुरूद्वारा साहिब पटियाला रेलवे स्टेशन एवं बस स्टैंड से 300 मी की दूरी पर स्थित है। दुख निवारण Read more
गोइंदवाल साहिब के सुंदर दृश्य
गोइंदवाल साहिब हिस्ट्री इन हिन्दी - श्री बाउली साहिब गुरूद्वारा गोइंदवाल
गुरू श्री अंगद देव जी के हुक्म से श्री गुरू अमरदास जी ने पवित्र ऐतिहासिक नगर श्री गोइंदवाल साहिब को Read more
नानकसर साहिब कलेरा जगराओं के सुंदर दृश्य
नानकसर कलेरा जगराओं साहिब - नानकसर गुरूद्वारे जगराओं हिस्ट्री इन हिन्दी
गुरूद्वारा नानकसर कलेरा जगराओं लुधियाना जिले की जगराओं तहसील में स्थापित है।यह लुधियाना शहर से 40 किलोमीटर और जगराओं से Read more
गुरूद्वारा चरण कंवल साहिब माछीवाड़ा के सुंदर दृश्य
चरण कंवल साहिब माछीवाड़ा - Gurudwara Charan Kanwal Sahib
गुरूद्वारा चरण कंवल साहिब लुधियाना जिले की माछीवाड़ा तहसील में समराला नामक स्थान पर स्थित है। जो लुधियाना शहर से Read more
मुक्तसर साहिब के सुंदर दृश्य
मुक्तसर साहिब का गुरूद्वारा, हिस्ट्री ऑफ मुक्तसर साहिब
मुक्तसर फरीदकोट जिले के सब डिवीजन का मुख्यालय है। तथा एक खुशहाल कस्बा है। यह प्रसिद्ध तीर्थ स्थान भी है। Read more
गुरूद्वारा गुरू तेग बहादुर धुबरी साहिब के सुंदर दृश्य
धुबरी साहिब असम - श्री गुरू तेग बहादुर गुरूद्वारा धुबरी असम
गुरूद्वारा श्री तेगबहादुर साहिब या धुबरी साहिब भारत के असम राज्य के धुबरी जिले में ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे स्थित Read more
गुरूद्वारा नानक झिरा साहिब के सुंदर दृश्य
नानक झिरा बीदर साहिब - गुरूद्वारा नानक झिरा साहिब का इतिहास
गुरूद्वारा नानक झिरा साहिब कर्नाटक राज्य के बीदर जिले में स्थित है। यह सिक्खों का पवित्र और ऐतिहासिक तीर्थ स्थान Read more
नाड़ा साहिब गुरूद्वारा पंचकूला
नाड़ा साहिब गुरूद्वारा पंचकूला हरियाणा चंडीगढ़
नाड़ा साहिब गुरूद्वारा चंडीगढ़ रेलवे स्टेशन से 5किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। नाड़ा साहिब गुरूद्वारा हरियाणा प्रदेश के पंचकूला Read more
गुरुद्वारा पिपली साहिब पुतलीघर अमृतसर
गुरुद्वारा पिपली साहिब पुतलीघर अमृतसर का इतिहास इन हिन्दी - पिपली साहिब गुरुद्वारा
गुरुद्वारा पिपली साहिब अमृतसर रेलवे स्टेशन से छेहरटा जाने वाली सड़क पर चौक पुतलीघर से आबादी इस्लामाबाद वाले बाजार एवं Read more
गुरुद्वारा पातालपुरी साहिब हिस्ट्री इन हिन्दी - गुरुद्वारा पातालपुरी साहिब का इतिहास
गुरुद्वारा पातालपुरी साहिब, यह गुरुद्वारा रूपनगर जिले के किरतपुर में स्थित है। यह सतलुज नदी के तट पर बनाया गया Read more
गुरुद्वारा कतलगढ़ साहिब चमकौर
गुरुद्वारा कतलगढ़ साहिब हिस्ट्री इन हिन्दी - गुरुद्वारा श्री कतलगढ़ साहिब चमकौर
गुरुद्वारा कतलगढ़ साहिब श्री चमकौर साहिब में स्थापित है। यह गुरुद्वारा ऐतिहासिक गुरुद्वारा है। इस स्थान पर श्री गुरु गोबिंद Read more
गुरुद्वारा बेर साहिब सुल्तानपुर लोधी
गुरुद्वारा बेर साहिब सुल्तानपुर लोधी कपूरथला - गुरुद्वारा बेर साहिब हिस्ट्री इन हिन्दी
गुरुद्वारा बेर साहिब सुल्तानपुर लोधी नामक कस्बे में स्थित है। सुल्तानपुर लोधी, कपूरथला जिले का एक प्रमुख नगर है। तथा Read more
गुरुद्वारा हट्ट साहिब
गुरुद्वारा हट्ट साहिब सुल्तानपुर लोधी कपूरथला पंजाब - गुरुद्वारा हट्ट साहिब हिस्ट्री इन हिन्दी
गुरुद्वारा हट्ट साहिब, पंजाब के जिला कपूरथला में सुल्तानपुर लोधी एक प्रसिद्ध कस्बा है। यहां सिख धर्म के संस्थापक गुरु Read more
गुरुद्वारा मुक्तसर साहिब
गुरुद्वारा मुक्तसर साहिब हिस्ट्री इन हिन्दी - गुरुद्वारा श्री मुक्तसर साहिब का इतिहास
मुक्तसर जिला फरीदकोट के सब डिवीजन का मुख्यालय है तथा एक खुशहाल कस्बा है। यह प्रसिद्ध तीर्थ स्थान भी है। Read more
गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब
गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब का इतिहास - गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब हिस्ट्री इन हिन्दी
नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से 5 किलोमीटर दूर लोकसभा के सामने गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब स्थित है। गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब की स्थापना Read more
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दरबार साहिब तरनतारन हिस्ट्री इन हिन्दी - श्री दरबार साहिब तरनतारन का इतिहास
श्री दरबार साहिब तरनतारन रेलवे स्टेशन से 1 किलोमीटर तथा बस स्टैंड तरनतारन से आधा किलोमीटर की दूरी पर स्थित Read more
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गुरुद्वारा मजनूं का टीला नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से 15 किलोमीटर एवं पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से 6 किलोमीटर की दूरी Read more
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नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से 3 किलोमीटर की दूरी पर गोल डाकखाने के पास बंगला साहिब गुरुद्वारा स्थापित है। बंगला Read more
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उत्तर प्रदेश की की राजधानी लखनऊ के जिला मुख्यालय से 4 किलोमीटर की दूरी पर यहियागंज के बाजार में स्थापित लखनऊ Read more
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नाका गुरुद्वारा - गुरुद्वारा सिंह सभा नाका हिण्डोला लखनऊ हिस्ट्री इन हिन्दी
नाका गुरुद्वारा, यह ऐतिहासिक गुरुद्वारा नाका हिण्डोला लखनऊ में स्थित है। नाका गुरुद्वारा साहिब के बारे में कहा जाता है Read more
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आगरा भारत के शेरशाह सूरी मार्ग पर उत्तर दक्षिण की तरफ यमुना किनारे वृज भूमि में बसा हुआ एक पुरातन Read more
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गुरुद्वारा बड़ी संगत गुरु तेगबहादुर जी को समर्पित है। जो बनारस रेलवे स्टेशन से लगभग 9 किलोमीटर दूर नीचीबाग में Read more
सिखों के दस गुरु सिख गुरु

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