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गुरु तेग बहादुर साहिब कश्मीरी पंडितों की प्रार्थना सुनते

गुरु तेग बहादुर जी का जीवन परिचय – गुरु तेग बहादुर जी की शहीदी

हिन्दू धर्म के रक्षक, भारतवर्ष का स्वाभिमान, अमन शांति के अवतार, कुर्बानी के प्रतीक, सिक्खों के नौवें गुरु साहिब श्री गुरु तेग बहादुर जी का जन्म वैसाख कृष्ण पंचमी 1678 में हुआ था। आपका बचपन का नाम त्याग मल्ल था। आप बचपन से ही बड़े बहादुर तथा निर्भिक थे। शस्त्र विद्या में प्रवीण थे। पैंदे खां और उस्मान खान जिस समय कीरतपुर पर मार करता आया तो छठे गुरु जी ने आपको लड़ाई में जाने की आज्ञा दी तो आपने बड़ी बहादुरी से दुश्मनों के छक्के छुडाएं। गुरु जी ने इनका नाम तेग बहादुर रख दिया।

गुरु तेग बहादुर जी का जीवन परिचय – गुरु तेग बहादुर जी की कथा

नाम —- गुरु तेग बहादुर सिंह
जन्म —- 23 वैशाख कृष्ण पंचमी वि.सं. 1678 ( 18 अप्रैल 1621 ई.)
जन्म स्थान —- गुरु का महल, अमृतसर
पिता —- श्री हरगोबिंद साहिब जी
माता —– माता नानकी जी
पत्नी —- माता गुजरी जी
पुत्र —– गुरु गोबिंद सिंह जी
गुरूगददी —– चैत्र शुक्ल चौदस वि.सं. 1721 (16 अप्रैल 1664 ई.)
ज्योति ज्योत —- मघर सुदी 5, वि.सं. 1732 ( 24 नवंबर, 1675 ई.)

गुरु तेग बहादुर जी का शीश
भाई जैता गुरु तेग बहादुर जी शीश लेकर पहुंचे

गुरूगददी पर विराजमान:—–

श्री गुरु हरकिशन साहिब दिल्ली में ज्योति ज्योत में समाने से पूर्व बाबा बकाला का संकेत कर गये कि नवम पातशाह बाबा बकाला में है। जब संगत को इस बात का पता चला तो वह नौवें गुरु की खोज में व्याकुल होने लगी। इस समय का फायदा उठाकर बकाला में 22 मंजीया डालकर नकली गुरु भ्रम फैलाकर बैठ गये पर सही गुरु की खोज मखन शाह लुवाणे ने की। उसका जहाज समुद्र में तूफान में घिर गया। उसने कहा यदि नानक मेरा बेड़ा पार करेंगें तो मैं 500 सोने की मोहरें चढ़ाऊंगा। उसका बेड़ा पार हो गया, तो वह सोने की मोहरे चढ़ाने के लिए गुरु की खोज में गया तो 22 गुरु गद्दीयां देखकर चकित रह गया, फिर भी उसने प्रत्येक को दो दो मोहरें दी। उसने सोचा कि जो भी असली गुरु होगें स्वंय ही बकाया रकम की मांग कर लेगें। जब किसी ने बकाया रकम नहीं मांगी तो वह समझ गया कि इनमें से गुरु जी नहीं है। मखन शाह भौरे में पहुंचे तो वहां भी दो मोहरें रखकर नमस्कार की तो घट घट को जानने वाले गुरु जी ने अपना कंधा दिखाकर कहा कि पांच सौ का वचन देकर दो मोहरें ही दे रहा है। मखन शाह की खुशी की कोई सीमा न रही। फिर बाबा बकाला में 8वी वैशाख वि.सं. 1721 को गुरु तेग बहादुर जी को गुरूगददी का तिलक दिया गया।

धीरमल की धक्केशाही:—-

जब गुरु जी दूसरे दिन चांदनी लगाकर, दरिया बिछवाकर, दरबार सजाकर बैठे तथा संगत भारी संख्या में पहुंचने लगी तो सारी भेंट चढावा की रकम, धीरमल के मसंद ने गुरु जी पर हमला कर लूट ली और धीरमल के ठिकाने पर पहुंचा दिया। जब मखन शाह लुबाने को पता चला तो वह अपने साथियों के साथ धीरमल के डेरे पहुंच गया और सारा माल वापस ले आया।

गुरु जी अमृतसर आये:—-

नौवें पातशाह श्री गुरु तेग बहादुर साहिब गुरूगददी पर विराजमान होने पर जब अमृसर श्री सचखंड साहिब के दर्शन करने आये तो हरिमंदिर साहिब के द्वार इस भय से बंद कर दिये गये कि कहीं गुरु जी श्री दरबार साहिब पर कब्जा न जमाकर बैठ जाये। सच्चे पातशाह श्री दरबार साहिब से बाहर एक चबुतरे पर जहाँ आजकल गुरुद्वारा थड़ा साहिब सुशोभित है, कुछ समय बैठकर श्री गुरु रामदास जी के चरणों में बैठे तथा अमृतसरीएं अंदरहु कहकर वहां से चले गये।

आनंदपुर साहिब बसाना:—-

वि.सं. 1732 में आपने सतलुज नदी के किनारे गांव माखोवाल के किनारे बिलासपुर के राजा से जमीन खरीदकर श्री आनन्दपुर साहिब नामक रमणीक नगरी बसाई। पहले इस नगर का नाम नानकी के नाम पर चक्क माता नानकी रखा गया था।

एक पीर को उपदेश:—-

आनन्दपुर साहिब की स्थापना के पश्चात आप हर रोज जीवों के कल्याण के लिए सतसंग, दीवान सजाते थे। रोपड़ से एक पीर दर्शन करने आया तो उसने कहा यह ठीक नहीं आप गृहस्थ होकर फकीरी का दावा करते हो, तो सच्चे पातशाह ने उसे उपदेश करते हुए कहा कि गृहस्थ सब धर्मों से ऊंचा है।

तीर्थ यात्रा:—-

शरीकदारों की ईर्ष्या से कुछ दिन दूर रहने के लिए आनन्दपुर से बाहर धर्म प्रचार यात्रा पर जाने का विचार किया तथा आपके साथ माता नानकी, पत्नी गुजरी जी भी चले। श्री आनन्दपुर साहिब की सेवा कुछ मुख्य सिक्खों के सुपुर्द कर दी गई।

मीठा कुआँ:—–

आपने पहला पडाव रोपड़ के आगे गांव मूलोवाल में डाला। जब गुरु जी ने पीने के लिए पानी कुएँ से मंगवाया तो वह जल खारा था। तो गुरु तेगबहादुर जी ने दोबारा जल सतनाम कहकर मंगवाया तो जल मीठा हो गया। जब लोगों ने सुना तो बड़ी श्रृद्धा के साथ आकर महाराज के चरणों पर नमस्कार किया।

प्रयागराज पहुंचे:——

गुरु महाराज गांव सिखों, हण्उयारें, नगर, दिल्ली, भेंदर, खीवा कलां, भीखीविंड, सीलसर, कुरूक्षेत्र, कैथल, वारने, थानेसर, बनी बदरपुर, सढैल पिंड कड़ा, मानकपुरी इत्यादि नगरी से होते हुए प्रयागराज पहुंचे। त्रिवेणी में स्नान किया और एक हवेली में दीवान सजाया जहां अटूट लंगर चलता रहा।

काशी वाराणसी:—-

छः महीने प्रयागराज में निवासकर आप काशी पहुंचे यहां भी आपकी ज्ञान चर्चा सुनकर यहां के विद्वान पंडित आपकी प्रतिभा से बहुत प्रभावित हुए।

गुरु तेग बहादुर
गुरु तेग बहादुर साहिब कश्मीरी पंडितों की प्रार्थना सुनते

भाई गुरबख्श को वरदान:—

आपकी कीर्ति सुनकर जौनपुर की संगत आई तो उसके प्रमुख भाई गुरबख्श को महाराज ने वर देते हुए कहा कि तुम्हारी चौरासी कट गई है। तेरे गृह बड़ा ही भगत सूरमा परोपकारी पुत्र पैदा होगा जो कुल का नाम रोशन करेगा।

पटना प्रवास:—-

काशी से सासाराम पहुंचे जहाँ से गया और गया से पटना पहुंचकर विश्राम किया वहीं सारा परिवार छोड़कर आप कामरूप देश राजा राम सिंह के साथ चले। आपकी कृपा से राजा राम सिंह को विजय प्राप्त हुई।

पुत्र का जन्म:—-

महाराज जब ढाका में थे तो पटना से आये एक गुरसिख ने पुत्र के जन्म का समाचार सुनाया तो राजा ने खूब मिठाई बांटी तथा गुरु महाराज ने भी गरीबों में खूब दान दिया।

आनन्दपुर प्रवेश:—

कुछ समय पश्चात गुरु जी ने सारा परिवार अपने पास आनन्दपुर साहिब वापस बुलवा लिया तथा आनन्दपुर में फिर से रौनक लौट आई। दोनों समय दीवान सजने लगे। संगत दूर दूर से आने लगी। गुरु जी ने अब पक्की रिहायश यही कर ली।

धर्म की रक्षा:—–

यहां पर कश्मीर के पंडितों ने आकर पुकार की कि औरंगजेब हिन्दू धर्म को समाप्त करने पर तुला हुआ है। गुरु जी अभी विचार ही रहे थे कि नौ वर्ष के गोविंद राय जी बाहर से खेलकर लौटे तो गोद में बैठ गये। बाल गोपाल ने पूछा कि इनका दुख कैसे दूर हो सकता है। आपने कहा यदि कोई महापुरुष अपना बलिदान देने को तैयार हो जाये। इस पर बाल गोविंद राय ने कहा आज की तारीख में आपसे बढ़कर कौन महापुरुष हो सकता है जो हिन्दू धर्म की रक्षा कर सके। ऐसे वीर वचन सुनकर गुरु तेग बहादुर जी ने बाल गोविंद राय को ह्रदय से लगा लिया और पंडितों से कहा कि जाओ जाकर अपने बादशाह को कह दो कि अगर हमारा गुरु तेगबहादुर मुसलमान बन जाये तो हम सब मुसलमान होने को तैयार है। बादशाह के बुलावे पर भाई दयाला, मतीदास, सतीदास इत्यादि गिने चुने शिष्यों को साथ लेकर गुरू पातशाह दिल्ली चले गये।

औरंगजेब की ओर से सत्कार:—-

जब औरंगजेब को पता चला तो आपसे विनती कि आपका संदेश मिल चुका है। अब आप फौरन इस्लाम कबूल करें तो सारे हिन्दू मुसलमान हो जावें। इस पर गुरु जी ने मुस्कुरा कर कहा — किसी को अपने दीन में जबरदस्ती दाखिल करना गुनाहे अव्वल है, हो सके तो अपने दीन में ऐसी खूबियां पैदा करो कि लोग खुद मुस्लमान बने। यूं ही खुदा की खलकत को दुखाना ठीक नहीं।
महाराज जी के वचन सुनकर बादशाह लज्जित हो गये। आपको अनेक कष्ट दिये गये यहा तक की लोहे के पिंजरे में कैद भी कर दिया गया। भाई मतीदास को आरे से चिरवा दिया गया। सतीदास जी को रस्सी से बांधकर जला दिया गया तथा भाई दयाला जी को गर्म पानी की देग में ऊबाला गया। आपके शिष्य शहीद हो गये।

पुत्र को गुरूगददी:—–

अंत समय निकट जानकर एक सिक्ख के हाथ पांच पैसे तथा नारियल भेजकर गुरु जी ने श्री आनन्दपुर साहिब में पुत्र गोबिंद राय जी को गुरूगददी सौंप दी।

गुरु तेग बहादुर जी का शीश
भाई जैता गुरु तेग बहादुर जी शीश लेकर पहुंचे

शहीदी:——

गुरु तेग बहादुर जी को मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी वि.सं. 1732 चांदनी चौक दिल्ली में शहीद कर दिया गया जहां उनकी याद में गुरूद्वारा शीशगंज कायम है। यह समय खुदाई कहर से कम नहीं था। बहुत अंधेड़ चल रहा था तथा वर्षा हो रही थी। भाई जैता गुरु महाराज क शीश को संभालकर आनन्दपुर साहिब की ओर रवाना हो गया तथा धड़ को गुरु का एक प्रेमी सिख लखीशाह वंजारा, अपने रूई के भरे ठेले में छुपाकर अपने घर, जहा आजकल गुरूद्वारा रकाबगंज शोभायमान है, का दिल्ली में ही संस्कार कर दिया गया। भाई लखीशाह का अभूतपूर्व कार्य था।

आनन्दपुर साहिब में शीश का संस्कार:—–

भाई जैता गुरु तेग बहादुर जी का शीश लेकर अभी कीरतपुर साहिब ही पहुंचा था कि आगे दसवें पातशाह गुरु गोबिंद सिंह जी शीश का इंतज़ार कर रहे थे। गुरु जी ने बड़े प्यार तथा वैराग्यवान होकर भाई जैता जी को गले से लगाकर उनका सत्कार किया तथा रंगरेटे गुरु के बेटे कहकर आदर किया। फिर शीश को पालकी में रखकर आनन्दपुर साहिब में नगर कीर्तन करते हुए पहुंचे तथा चन्दन की चिता बनाकर विधिपूर्वक अंतिम संस्कार किया गया। सारी संगत वैराग्यवान होकर हरिकीर्तन कर रही थी।

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Naeem Ahmad

CEO & founder alvi travels agency tour organiser planners and consultant and Indian Hindi blogger

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