गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब का इतिहास – गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब हिस्ट्री इन हिन्दी Naeem Ahmad, June 17, 2021March 11, 2023 नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से 5 किलोमीटर दूर लोकसभा के सामने गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब स्थित है। गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब की स्थापना सन् 1783 में सरदार बघेल सिंह जी द्वारा करवाई गई थी। दिल्ली के पर्यटन स्थलों में यह गुरुद्वारा महत्वपूर्ण स्थान रखता है। बड़ी संख्या में श्रृद्धालु और पर्यटक यहां आते है। गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब का इतिहास गुरु के दो बहादुर सिख, भाई लखी शाह बंजारा और उनके बेटे, भाई नघैया ने गुरु के वध के बाद दिल्ली के चांदनी चौक से श्रद्धेय नौवें सिख गुरु के सिर रहित शरीर को बचाया। इन दोनों ने गुरु जी के शरीर को कपास और खाद्य पदार्थों की गांठें ले जाने वाली कई बैल चालित गाड़ियों के काफिलेद्वारा से बचाया था। तेज धूल भरी आंधी के कारण, ये बहादुर सिख मुगल सैनिकों को दिखाई दिये बिना गुरु के शरीर को उठाने में कामयाब रहे, सैनिकों को यह पता ही नहीं चल पाया कि क्या चल रहा था। ये दोनों सिख तूफान की आड़ में शरीर को बड़ी तेजी से उठाने में कामयाब हुए और फिर शव को रुई की गांठों के नीचे बैल गाड़ी में छिपा दिया। फिर वे जल्दी से रायसीना गाँव की ओर चल पड़े, जहाँ वे रहते थे। अपने निवास पर पहुंचने पर उन्होंने मुगल अधिकारियों के किसी भी संदेह से बचने लिए भाई लखी शाह बंजारा ने गुरू के शव को अपने बिस्तर पर रखा और उसने अपने पूरे घर में आग लगा दी। इस जगह को रकाबगंज के नाम से जाना जाने लगा। गुरु और उनके समर्पित साथियों की यह दुखद मृत्यु 11 नवंबर, 1675 को मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश के तहत हुई थी। एक और समर्पित सिख, भाई जैता, शीशगंज, चांदनी चौक से 500 किमी (300 मील) दूर आनंदपुर साहिब में गुरु जी के सिर को ले गए थे। गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब के स्थान पर सिक्ख धर्म के नौवें गुरु, गुरु श्री तेगबहादुर जी महाराज के धड़ का संस्कार हुआ था। गुरु तेगबहादुर जी शीशगंज साहिब चांदनी चौक वाले पवित्र स्थान पर 11 नवंबर 1675 को शहीद हुए थे। सतगुरु का पवित्र शीश आनंदपुर साहिब ले जाया गया वहां उनका संस्कार किया गया। तथा गुरु जी के धड़ का संस्कार इस स्थान पर किया गया। जब जत्थेदार सरदार बघेल सिंह ने दिल्ली फतह की तब उन्होंने इस स्थान पर गुरु जी की यादगार कायम की। गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब का निर्माण भव्य गुरुद्वारे का वर्तमान स्थान नई दिल्ली में पंत रोड पर है, जो संसद भवन और केंद्रीय सचिवालय के उत्तरी ब्लॉक के सामने है। आधुनिक इमारत मुख्य रूप से सफेद संगमरमर से बनी है जो एक खूबसूरत बगीचे से घिरी हुई है। अधिकांश अन्य सिख तीर्थस्थलों की तरह इस गुरुद्वारे में चार तरफ से प्रवेश द्वार हैं जो इस बात का प्रतीक हैं कि वे बिना किसी जाति या पंथ के भेद के सभी के लिए खुले हैं। इस ऐतिहासिक गुरुद्वारा को उस समय 25 लाख रुपये की लागत से बनाया गया था और इसे बनने में 12 साल लगे थे। ऐतिहासिक रिकॉर्ड बताते हैं कि सरदार बघेल सिंह ने नौवें गुरु श्री तेग बहादुर की स्मृति को बनाए रखने के लिए 1783 में रायसीना गांव में एक गुरुद्वारे का निर्माण किया था। उसने चार अन्य कमांडरों के साथ 30,000 सिख योद्धाओं की सेना का नेतृत्व करके दिल्ली पर विजय प्राप्त की थी। 1783 से पहले दिल्ली के मुसलमानों ने इसी जगह पर मस्जिद बनाई थी। सिखों ने अपने गुरु के बलिदान की याद में इस स्थान को अपना पवित्र स्थान होने का दावा किया। मुसलमानों ने दावे का विरोध किया, और मस्जिद को तोड़ने पर कड़ी आपत्ति जताई थी। विरोधी पक्ष तलवारें खींचे खड़े थे और माहौल तनावपूर्ण था – कुछ भी हो सकता था। हालाँकि, सिखों ने मुसलमानों के लिए अपने स्वयं के खर्च से मस्जिद के पुनर्निर्माण की पेशकश करते हुए कहा, कि इस स्थान की खुदाई की जाये यदि सम्मानित गुरु की राख वाला कलश वहाँ खड़ी मस्जिद के नीचे दफन नहीं पाया गया। तो वह अपना दावा छोड़ देगें। इससे माहौल शांत हुआ और पारा ठंडा हुआ। खुदाई का काम मुगल अधिकारियों की मौजूदगी में शुरू हुआ। सिखों द्वारा किया गया दावा सही साबित हुआ और उन्हें बादशाह शाह आलम द्वितीय द्वारा गुरुद्वारा रकाब गंज के निर्माण की अनुमति दी गई। उन्होंने सिखों को दो सनद भी दिए। एक सनद में सरदार भगेल सिंह को एक गुरुद्वारा और एक बगीचे के निर्माण के लिए भूमि पर कब्जा करने की अनुमति दी गई। तथा दूसरी सनद में बादशाह ने गुरुदारे को 101 बीघा और 5 बिस्वास पुखता लगभग 63 एकड़ के बराबर और 3 कुओं की भूमि, राजस्व से मुक्त भेंट की। इन रियायतों के एवज में मुगल राजधानी में अपने धार्मिक स्थलों के निर्माण के बाद सिख सेना दिल्ली क्षेत्र से शांतिपूर्वक हटने के लिए सहमत हो गई। 1857 के गदर के बाद सिक्ख रियासतों के उत्थान के बाद इस गुरुद्वारे के चारों तरफ पक्की दीवार बनाई गई। सन् 1914 में जब अंग्रेजों ने दीवार को गिरा दिया तो पंथ में रोष की लहर दौड़ गई। सिक्खों के आक्रोश को देखकर अंग्रेजों ने इस दीवार का पुनः निर्माण कराया। गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब की इमारत की सेवा सरदार हरनाम सिंह ने करवाई। गुरुदारे का मुख्य भवन जिसमें श्री गुरू ग्रंथ साहिब स्थापित है वह 6फुट ऊंची जगती पर 60×60 वर्ग फुट में बना है। दरबार हाल दो मंजिल का है। चारों प्रवेशद्वार चांदी से मंडित है। दक्षिण की तरफ श्री गुरु ग्रंथ साहिब विराजमान है। यहां सदैव शबद कीर्तन होता रहता है। गुरुदारे के द्वारों की सज्जा नित्य सुंदर फूलों से की जाती है। दरबार हाल की छत पर सुंदर चित्रकारी की गयी है। दरबार हाल के दक्षिण की तरफ 4×4 की सोने पालकी साहिब पर श्री गुरु ग्रंथ साहिब विराजमान है। मुख्य भवन के बाहर चारों कोनों पर सुंदर छतरियां बनी है। लगभग 80-90 फुट ऊंचा निशान साहिब (ध्वज स्तंभ) है। चारों ओर परिक्रमा मार्ग है। गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब का शिखर लगभग 60 फुट ऊंचा है। इसके अलावा गुरुद्वारा परिसर में बड़ी पार्किंग एवं जूता घर स्थापित है। जूता घर के अंदर बड़े बड़े करोड़पति भक्तों के जूतों पर निःशुल्क पालिश करते है और गुरुद्वारे में झाडू पोछा भी लगाते है। और बाथरूम भी साफ करते है। गुरुदारे में लक्खी शाह, बनजारा हाल, व लंगर हाल स्थापित है। गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब का क्षेत्रफल लगभग 10 एकड़ से अधिक है। गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा संचालित दो अतिथिगृह में अनेक कमरे ठहरने की उपयुक्त व्यवस्था से साथ उपलब्ध है। यहां एक बारात घर भी बना हुआ है। प्रतिवर्ष लगभग 250 विवाह सम्पन्न होते है। लंगर हाल में प्रतिदिन लगभग 2000 भक्त निःशुल्क लंगर छकते है। यहां पर सभी गुरुओ की जयंती व उत्सव हर्षोल्लास के साथ बड़ी धूम धाम से मनाये जाते है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें:—- [post_grid id=”6818″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के प्रमुख धार्मिक स्थल ऐतिहासिक गुरूद्वारेगुरूद्वारे इन हिन्दीदिल्ली पर्यटनभारत के प्रमुख गुरूद्वारे