गुरुद्वारा बड़ी संगत नीचीबाग बनारस का इतिहास – वाराणसी गुरुद्वारा हिस्ट्री इन हिन्दी Naeem Ahmad, June 25, 2021April 22, 2024 गुरुद्वारा बड़ी संगत गुरु तेगबहादुर जी को समर्पित है। जो बनारस रेलवे स्टेशन से लगभग 9 किलोमीटर दूर नीचीबाग में स्थापित है। श्री गुरु तेग बहादुर जी ने पंजाब से बाहर रहने वाली संगत के अनुनय को मानते हुए पूर्वी बंगाल व आसाम तक की यात्रा कर उनकी मनोकामनाओं को पूर्ण किया। गुरुद्वारा बड़ी संगत नीचीबाग बनारस का इतिहास पंजाब के कई स्थानों से होते हुए दिल्ली, आगरा, मथुरा, कानपुर आदि से होते हुए जनवरी 1666 ई. में प्रयाग, त्रिवेणी पहुंचे यहां आपने कई मास तक निवास किया। गुरु नानक देव जी के मिशन का प्रचार करते हुए जरूरतमंदों की सहायता की तथा उपदेश, सत्संग, कीर्तन करते रहे। इससे गुरुदेव के यश में वृद्धि हुई। उस समय काशी में श्री गुरु नानक देव जी के अनुयायी एक वृद्ध बाबा, भाई कल्याण जी रहते थे। जिनकी आयु 100 वर्ष से अधिक हो चुकी थी। गुरूगददी के मालिक गुरु तेगबहादुर जी का आगमन सुनकर उनके दर्शन के लिए लालायित हो उठे परंतु उनका शरीर प्रयाग तक पहुंचने में असमर्थ था। इलाहाबाद त्रिवेणी से चलकर गुरु तेगबहादुर साहिब मिर्जापुर, चुनार, भुइली साहिब आदि स्थानों से होते हुए भाई कल्याण जी को उनके निवास स्थान काशी में आकर दर्शन दिये। यही स्थान गुरुद्वारा बड़ी संगत के नाम से प्रसिद्ध है। शहर के व्यापारिक केंद्र चौक के पास मोहल्ला औस भैरव नीचीबाग में स्थित हैं। यहां रहते हुए गुरु तेगबहादुर जी ने उपदेश, सत्संग कीर्तन करते हुए दूर दूर तक की संगतों को निहाल किया। गुरुद्वारा बड़ी संगत नीचीबाग बनारस भाई कल्याण जी के मकान के अंदर एक गर्भगृह था। गुरु जी ने सात महीने 13 दिन इस स्थान पर बैठकर तपस्या की।महाराज जी का यह नित्य कर्म था कि सवा पहर रात रहते स्नान करके भजन सिमरन में लवलीन हो जाते। एक दिन अमृत समय जब सतगुरु जी वस्त्र उतारकर स्नान करने लगे तो भाई कल्याण जी ने कहा कि सच्चे पातशाह जी आज तो ग्रहण है। लाखों लोग आज गंगा जी में स्नान करेंगे कृपा करें तो हम भी चलकर गंगा स्नान कर आये। गुरु जी ने कहा गंगा माई से विनती करिए कि आपको स्नान वह यही करा देवें। भाई कल्याण जी बोले पातशाह जी ये कैसे हो सकता है? गंगा यहां से आधा किलोमीटर दूर है। और यहां से काफी नीचे भी है। तब गुरु जी ने घर लगी हुई एक शिला को खोदने के लिए कहा। जिसे उखाड़ कर निकाल देने पर वहां से गंगा के निर्मल जल की धारा निकल पड़ी। गुरु जी और शेष सभी लोगों ने स्नान किया। जब घर और आंगन में पानी भरने लगा तो गुरु जी के आदेश के अनुसार वह पत्थर की शिला उसी स्थान पर रख दी गई और गंगा गुरु जी के चरणों को छूकर नीचे होती गयी। उस जल का स्त्रोत आज तक बाउली साहिब के रुप में इस स्थान के अंदर मौजूद है। बाउली साहिब के जल को अमृत मानकर लोग अपना तन मन शीतल करते है। तथा पूर्ण आस्था से इस अमृत का पान करके अपने रोगों को दूर करने की दुआ मांगते है। गुरु तेगबहादुर जी ने जब अपने अगले सफर की तैयारी शुरु की तब भाई कल्याण जी तथा अन्य श्रद्धालु भक्तों ने बिछोड़े के आंसू आंखो में भरकर विनती की कि सच्चे पातशाह जी अब हम आपके दर्शानों के बिना किस आश्रय पर जियेंगे। तब सतगुरू जी ने अपने पवित्र शरीर से छुआ ढाके की मलमल का एक चोला देकर कहा कि श्रद्धा और प्रेम के साथ इसके दर्शन करने से आपको हमारे दर्शन होगें। इसके साथ ही आपने अपने पवित्र चरणों का जोड़ा भी दिया। यह पवित्र निशानियां आज तक यहां मौजूद है। सारी संगते श्रद्धा सहित गुरुद्वारा बड़ी संगत में पहुंचकर इनके दर्शन करती है। भाई कल्याण जी का घर सिखों और भक्तजनों के लिए पवित्र स्थान बन गया। वहां पर एक भव्य गुरुद्वारा बनाया गया जिसका पुनः जीर्णोद्धार 1950 के लगभग किया गया। बहुत साल पहले सिखों ने काफी यातनाओं सहित इस स्थान को उदासी महंतों के कब्जे से प्राप्त किया था। इस गुरुदारे की सेवा महाराज रणजीत सिंह और महाराजा पटियाला ने करवाया। पटना साहिब से आनंदपुर साहिब जाते समय साहिबजादा गोबिंद राय जी ने भी सात साल की आयु में काशी में अपने चरण डाले। माता गुजरी जी, मामा कृपाल जी और अनेकों संगतों के साथ आएं। पिता गुरु साहिब जी के इस स्थान गुरुद्वारा बड़ी संगत में कुछ दिनों तक निवास किया। अपनी इसी आयु में कई विद्वानों की शंकाओ का समाधान बड़े ही आश्चर्यजनक ढंग से किया। अपना मखमली जोड़ा ( जूता) संगत की श्रद्धा को देखते हुए संगत को प्रदान किया। बालक गुरु गोबिंद राय जी की बाल्यावस्था की ये निशानी भी गुरुद्वारा बड़ी संगत में मौजूद है। इसके अतिरिक्त गुरु तेगबहादुर साहिब जी, गुरु गोबिंद सिंह जी और माता साहिब देवां जी के कुछ हुक्मनामे भी यहां मौजूद है। इन सभी यादगारों के दर्शन करके संगत अपने आपको धन्य मानते है। गुरुद्वारा बड़ी संगत में निवास करते समय मोहल्ला जगतगंज व धूफचंडी के श्रद्धालु जनों के निवेदन पर जगतगंज त्रिमुहानी पर स्थित एक मकान में रहकर सत्संग किया। गुरु जी के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हुए इस मकान को गुरुजी को अर्पित कर दिया गया इस पवित्र स्थान का प्रबंध श्री गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी करती है। गुरुद्वारा बड़ी संगत का निर्माण गुरुदारे का मुख्य सभामंडप 50 फुट वर्गाकार में अवस्थित है। जिसमें गुरु तेगबहादुर जी एवं श्री गुरु ग्रंथ साहिब का सिंहासन विराजमान है। लकड़ी का पलंग है जिसमें श्री गुरु ग्रंथ साहिब विराजमान है। श्री गुरु तेगबहादुर जी के स्मारक में उनके दो चोला कलीदार, हुक्मनामा पत्री मौजूद है। गुरुद्वारा तो तल में बना है। यहां पर गुरु गोबिंद सिंह जी का प्रकाशोत्सव, पालकी शोभायात्रा, गुरु शहीदी दिवस, 40 दिनों तक श्री गुरु अर्जुन देव जी के शहीदी दिवस में सुखमनी साहिब का पाठ होता है। साल भर यहा बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—— [post_grid id=”6818″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के प्रमुख धार्मिक स्थल उत्तर प्रदेश पर्यटनप्रमुख गुरूद्वारे