गुरुद्वारा पिपली साहिब पुतलीघर अमृतसर का इतिहास इन हिन्दी – पिपली साहिब गुरुद्वारा
Naeem Ahmad
गुरुद्वारा पिपली साहिब अमृतसर रेलवे स्टेशन से छेहरटा जाने वाली सड़क पर चौक पुतलीघर से आबादी इस्लामाबाद वाले बाजार एवं सड़क पर स्थित है। यह गुरुद्वारा दो मंजिला बना है। वर्ष 1581 ई. में प्रिथीचंद को जब गुरूगददी न मिल सकी तो उसने ईर्ष्या तथा क्रोध वश गुरु के महल निवास स्थान पर जबरी कब्जा कर लिया। इस पर शांति के पुंज श्री गुरु अर्जुन देव जी श्री गोइंदवाल, बासरके, छेहरटा साहिब आदि से होते हुए इस स्थान पर रहने लगे। उस समय यहां पीपल के वृक्ष थे। गुरु जी की कृपा से यहां संगत तथा पंगत का प्रवाह चलने लगा। श्री हरमंदिर साहिब के अमृत सरोवर की कारसेवा करने के लिए जो नर नारी संग रूप बाहर से आती, उनके ठहरने तथा लंगर आदि का प्रबंध इसी स्थान पर होता था।
गुरुद्वारा पिपली साहिब का इतिहास इन हिन्दी
सन् 1586 मे भाई गुरदास जी जो गुरु अर्जुन देव के मामा थे। आगरा आदि के क्षेत्रों में प्रचार करते हुए लौटकर आए, तो अपने गुरु परिवार की स्थिति संबंधी सारी बातचीत बाबा बुड्ढा जी तथा बाबा प्रिथीचंद के साथ करके श्री हरमंदिर साहिब की सेवा अपने जिम्मे ले ली। श्री गुरु अर्जुन देव जी पुनः गुरु के महल में रहने लगे। सरोवर तथा श्री हरमंदिर साहिब की सेवा पहले की तरह पूरे जोर शोर से आरंभ हो गई।
गुरुद्वारा पिपली साहिब पुतलीघर अमृतसर
22 मई 1606 को जब गुरु अर्जुन देव लाहौर शहीदी के लिए गये, तो भारी संख्या में संगत ने गुरु जी के साथ प्रस्थान किया, परंतु गुरुद्वारा पिपली साहिब के स्थान पर गुरु जी की आज्ञा का पालन करके सब लौट गये। जून 1629 में श्री हरगोबिंद साहिब जी के समय शाहजहां के साथ मुगल सेनाओं का युद्ध हुआ। इस युद्ध में खालसा कालेज, गुरुद्वारा पिपली साहिब तथा लोहगढ़ का क्षेत्र रणभूमि में परिवर्तित हो गया। गुरु जी की इस युद्ध में विजय हुई। आपने इसी स्थान पर कमर कस्सा खोला। इस युद्ध में लाहौर का रसूल खां, शूरवीर योद्धा भाई बिधीचंद के हाथों मारा गया। महाराजा रणजीत सिंह ने इस गुरूद्वारे के नाम काफी जमीन लगवाई। अमृतसर सरोवर की पहली कार सेवा 27 जून 1923 को शुरु हुई।
गुरुद्वारा पिपली साहिब पुतलीघर अमृतसर
बसंत पंचमी के दिन गुरुद्वारा पिपली साहिब पर भारी रौनक होती है। गुरमति पुस्तकालय तथा रोगियों के लिए निःशुल्क डिस्पेंसरी इस गुरूद्वारे साहिब के परिसर में स्थित है। पुराने पीपल तथा बरगद के वृक्ष इस गुरुद्वारे के इतिहास को साक्षात रूप में पेश करते है।