उत्तर प्रदेश केजालौन जिले के कालपी नगर के गणेश गंज मुहल्ले में गणेश मंदिर कालपी स्थित है। गणेश मंदिर कालपी रेलवे स्टेशन से लगभग दो ‘फर्लांग की दूरी है। गणेश गंज मुहल्ला कालपी के प्राचीन 52 मुहल्लों में से एक है। यह गणेश मंदिर कालपी के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से एक है।
यह मन्दिर मरहठा काल में निर्मित हुआ था और मरहठों के आराध्य देव श्री गणेश जी महाराज की यहाँ पर प्राण प्रतिष्ठा है। बुन्देलखण्ड में मरहठों का आगमन सन 1729 से माना जाता है जब कि छत्रसाल ने बगंश खाँ को परास्त करने के लिये पेशवा वाजीराव की सहायता प्राप्त की थी तथा उसी वर्ष मरहठों को (बाजीराव पेशवा) बुन्देल प्रदेश का एक भाग प्राप्त हुआ था गणेश मन्दिर का जीर्णोद्वार बालाजी बाजीराव पेशवा द्वारा किया गया था।
संवत 1749 में इस गणेश मन्दिर का जीर्णोद्वार बालाजी बाजीराव पेशवा प्रथम द्वारा कराया गया। श्री अनिल यशवन्त कान्हेरे के अनुसार गोड़से नामक यात्री ने सन 1857 ई० में अपनी बुन्देलखण्ड यात्रा के विषय में अपनी यात्रा विवरणी जो कि “बरबर नाम है से जानी जाती है। यह तथ्य लिखा है कि पेशवा बाजीराव प्रथम ने इस मन्दिर का जीर्णोद्वार कराया था। श्री अनिल यशवन्त कान्हरे ने एक भेट में यह भी बताया कि महाराज छत्रपति शिवाजी के गुरु समर्थ गुरु रामदास ने शक संवत 1569 में अपने कालपी आगमन के समय अपने हाथों से लाल बलुआ पत्थर पर दाहिनी ओर सूंड़ वाले गणेश जी को गढ़कर उनकी स्थापना की थी।
गणेश मंदिर कालपी
गणेश मन्दिर कालपी का वास्तुशिल्प
यह मन्दिर 60*60 फुट के क्षेत्र में स्थापित है। यह पश्चिमा भिमुख मन्दिर 21*21 के चबूतरे पर 19*19फुट में मन्दिर का गर्भगृह स्थापित है। इस गर्भगृह की ऊंचाई 8 फुट है। जिसके ऊपर 7 फुट ऊंची गोल डाट की छत है और इस छत के ऊपर शुक नाशिकायुक्त विशाल उध्वर्कार चतुष्कोणीय विमान अंकित है जिसकी ऊँचाई 20 फुट है। इस विमान की चारो भुजाओं पर विमान आधार से 10 फुट की ऊचाई पर शुक नासिका स्थान पर एक अन्य विमान की आकृति के दोनों ओर एक एक अन्य विमानाकृति अंकित है। मन्दिर के चर्तुभुजी विमान के शुक नाशिका स्थान व विमान की दो संगम स्थल पर भी एक के ऊपर एक विमानाकृति अंकित है। विमान के आधार पर कमल दल अंकित है। मन्दिर का सम्पूर्ण क्षेत्र फुट ऊंची बाऊन्ड्रीवाल से घिरा हैं। वाऊन्ड्री वाल 3 फुट मोटी है तथा इस बाऊन्ड्रीवाल व गर्भगृह के चबूतरे के मध्य चारो ओर 21 फुट चौड़ा खुला आंगन है, जिसका उपयोग परिक्रमा हेतु किया जाता है। इस गणेश मन्दिर की उत्तरी बाउन्ड्रीवाल से संलग्न एक शिवमन्दिर है जो कि पूर्वाभिमुख है तथा इस मन्दिर का वास्तु शिल्प गणेश मन्दिर के वास्तु शिल्प से हूबहू मिलता जुलता है। इस मन्दिर का निर्माण भी पेशवा बाजीराव प्रथम द्वारा बतलाया जाता है।
गणेश मंदिर कालपी का मूर्तिशिल्प
,इस मन्दिर में गणेश जी की तीन मूर्तियाँ है।
प्रथम गणेश मूर्ति – यह मूर्ति समर्थ गुरु रामदास जी द्वारा गंढ़ित है। लाल बलुआ पत्थर की 12 इंच ऊँची तथा 8 इंच चौड़ी यह मूर्ति गणेश जी की शान्त मुद्रा मूर्ति है जिसके ऊपर तीन नागफनों से युक्त छत्र मुशोभित है।
द्वितीय गणेश मूर्ति – यह मूर्ति श्वेत संगमरमर पत्थर की शान्त मुद्रा की चर्तुभुजी मूर्ति है जिसकी सूंढ़ वक्राकार दाहिनी ओर अंकित है इस मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा पेशवा बाजीराव प्रथम द्वारा संवत 1749 में मन्दिर जीर्णोद्वार के समय की गई थी। यह मूर्ति 16 इंच ऊंची 12 इंच चौड़ी है।
तृतीय गणेश मूर्ति – यह मूर्ति श्वेत संगमरमर द्वारा निर्मित है। इसकी ऊचाई 14 इंच व चौड़ाई 8.5 इंच है। इस चर्तुभुजी मूर्ति में सूंढ़ दाहिनी ओर वक्राकार स्थित में अंकित है। इस मूर्ति का प्राणप्रतिष्ठा महारानी लक्ष्मीबाई द्वारा की गई थी।